भारत-नेपाल सीमा का आकार
1751 किमी- की भारत-नेपाल सीमा खुली तथा छिद्रित सीमा है। जिस पर प्राकृतिक बाधाएं बहुत ही कम है। भारत तथा नेपाल 1950 से, शांति और दोस्ती की संधि पर हस्ताक्षर करने के बाद से, खुली सीमा साझा करते हैं। इस संधि द्वारा दोनों देशों के नागरिकों को एक दूसरे के क्षेत्र में निवास, संपत्ति खरीदने, रोजगार और आवागमन के समान अधिकार प्रदान किए गए हैं। इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि खुली सीमा ने अद्वितीय द्विपक्षीय संबंधों के विकास में अभूतपूर्व योगदान दिया है पर साथ ही इसने कई परेशानियों तथा समस्याओं को भी जन्म दिया है जो गंभीर चिंताओं को बढ़ाते हैं।
भारत-नेपाल सीमावर्ती क्षेत्रें में सुरक्षा चुनौतियां
भारत नेपाल सीमा पर विवाद के कई बिंदु हैं। इनमें ज्यादातर नदियाें के अशांत तथा लगातार बदलते मार्ग के कारण उत्पन्न होती है। इनमें से प्रमुख कालापानी तथा सुस्ता से संबंधित है। सीमा स्तंभों के डूबने, नष्ट होने तथा हटने तथा नो मैन्स लैंड (No man's land) में दोनों क्षेत्रें के लोगों द्वारा अतिक्रमण इस समस्या को और उलझाता है।
विवादित सीमा पर दोनों पक्षों की ओर से निरंतर होते विवाद जैसे धमकी, भूमि को जबरन हथियाना आदि के आरोप समय-समय पर लगाए जाते रहते हैं। ये विवादित सीमाएं न सिर्फ दोनों देशों बल्कि दोनों देश की स्थानीय आबादी के बीच भी असहजता उत्पन्न करती है।
एक खुली सीमा आतंकवादियों तथा विद्राहियों को एक आसान निकास उपलब्ध करते हैं। 1980 के दशक के उत्तरार्ध में सिख और कश्मीरी आतंकवादी इसी रास्ते भारत में घुस आए थे। बाद के वर्षो में उत्तर-पूर्व के कई विद्रोही गुट जैसे-यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (ULFA), नेशनी डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (NDFB) तथा कामतापुर लिबरेशन ऑरगनाइजेशन (KLO) आदि ने भी इस खुली सीमा का दुष्प्रयोग किया। हाल के वर्षों में भी कई आतंकवादियों ने इस कम सुरक्षा वाली सीमा का प्रयोग भारत में घुसने के लिए किया है। नेपाल में माओवादी विद्रोह के समय जब नेपाली सुरक्षा बल माओवादियों को ढूढ़ती थी तो वे भागकर भारत में छिप जाते थे। इन आतंकवादियों और विद्रोहियों के अलावा दोनों ओर के बड़े और वांछित अपराधी भी एक दूसरे के क्षेत्र में जाकर छिपने के लिए इसी सीमा का सहारा लेते हैं।
मैकमोहन रेखा भारत और तिब्बत के बीच सीमा रेखा है। यह अस्त्तिव में सन् 1914 में भारत की त्तकालीन ब्रिटिश सरकार और तिब्बत के बीच शिमला समझौते तहत आई थी। 1914 के बाद से अगले कई वर्षो तक इस सीमारेख का अस्त्तिव कई अन्य विवादों के कारण कहीं छुप गया था, किन्तु 1935 में ओलफ केरो नामक एक अंग्रेज प्रशासनिक अधिकारी ने त्तकालीन अंग्रेज सरकार को इसे आधिकारिक तौर पर लागू करने का अनुरोध किया। 1937 में सर्वे ऑफ इंडिया के एक मानचित्र में मैकमोहन रेखा को आधिकारिक भारतीय सीमारेखा के रूप में दिखाया गया था। इस सीमारेखा का नाम सर हैनरी मैकमहोन के नाम पर रखा गया था, जिनकी इस समझौते में महत्वपूर्ण भूमिका थी और वे भारत की त्तकालीन अंग्रेज सरकार के विदेश सचिव थे। अधिकांश हिमालय से होती हुई सीमारेखा पश्चिम में भूटान से 890 किमी और पूर्व में ब्रह्मपुत्र तक 260 किमी तक फैली है। जहां भारत के अनुसार यह चीन के साथ उसकी सीमा है, वही, चीन 1914 के शिमला समझौते को मानने से इनकार करता है। चीन के अनुसार तिब्बत स्वायत्त राज्य नहीं था और उसके पास किसी भी प्रकार के समझौते करने का कोई अधिकार नहीं था। चीन के आधिकारिक मानचित्रें में मैकमहान रेखा के दक्षिण में 56 हजार वर्ग मील के क्षेत्र को तिब्बती स्वायत्त क्षेत्र का हिस्सा माना जाता है। इस क्षेत्र को चीन में दक्षिणी तिब्बत के नाम से जाना जाता है। 1962-63 के भारत-चीन युद्ध के समय चीनी फौजों ने कुछ समय के लिए इस क्षेत्र पर अधिकार भी जमा लिया था। इस कारण ही हाल में भी इस सीमारेखा पर विवाद यथावत बना हुआ है, लेकिन भारत-चीन के बीच भौगोलिक सीमा रेखा के रूप में इसे अवश्य माना जाता है। |
इस सीमा द्वारा ये राष्ट्र विरोधी त्तव आवश्यक वस्तुओं नकली मुद्रा और मानव की तस्करी जैसी गतिविधियों में लिप्त होते हैं। यह तंत्र आपसी हित के मुद्दों यथा-सीमापार अपराधों की रोकथाम, तस्करी आतंकवादी गतिविधियों से उत्पन्न स्थितियों आदि पर राष्ट्रीय क्षेत्रीय और स्थानीय स्तर पर चर्चा के मंच के रूप में कार्य करता है। वर्षो से अप्रतिबंधित प्रवास ने एक दूसरे के क्षेत्र में ऐसे खंडो का निर्माण किया है। जहां दूसरे देश के नागरिकों का बोलबाला है। ऐसे प्रवासों का प्रभाव चरम मामलों में ‘होमलैंड’ की मांग के रूप में सामने आ सकता है जैसा दार्जिलिंग के पहाड़ी जिलों, जो नेपाल से सटे हैं, में गोरखालैंड की मांग के रूप में सामने आया था।
भारत-नेपाल सीमा प्रबंधन
भारत-नेपाल सीमा की चौकसी के लिए सशस्त्र सीमा बैठक के 27 बटालियन लगाये गये हैं। भारत-नेपाल सीमा पर 436 (540का लक्ष्य) बॉर्डर आउट पोस्ट बनाए गए हैं।
गृह सचिव स्तर पर वार्ता और संयुक्त सचिवों के सतर पर संयुक्त कार्यसमूह दोनों देशें के बीच द्विपक्षीय तंत्र के रूप में कार्य कर रहा है। इसके अलावा दोनों देशों के जिला अधिकारियों के बीच सीमा जिला समन्वय समिति की बैठकों का एक तंत्र है।
सीमा के अंकन के लिए बनाए गए पिलरों के रख-रखाव, परीक्षण तथा ठीक करने के लिए भारत तथा नेपाल के महासर्वेक्षकों (Surveyor Generals) के बीच संस्थागत प्रसास हो रहे हैं। नेपाल के मधेश क्षेत्र में भी इसी प्रकार की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। भारत-नेपाल सीमा पर व्यापार के लिए 22 निर्धारित कस्टम स्टेशन भी स्थापित हैं। हालांकि ज्यादा आवागमन रक्सौल तथा सुगौली सीमा पर है।