लोकसभा द्वारा मातृत्व लाभ (संशोधन) विधेयक, 2016 को पारित कर दिया गया राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद अब यह विधेयक कानून बन गया। 1961 के मूल कानून की जगह संशोधित विधेयक में संगठित क्षेत्र की महिला कामगारों के लिए मातृत्व अवकाश की अवधि बढ़ाने के साथ-साथ कई नए प्रावधान शामिल किए गए हैं। इसके तहत बच्चे को कानूनन गोद लेने वाली महिलाओं के साथ-साथ सरोगेसी यानी उधार की कोख के जरिये संतान सुख पाने वाली महिलाओं को भी कानून के दायरे में लाया गया है। उल्लेखनीय है कि इस विधेयक में मातृत्व लाभ के अंतर्गत वेतन सहित छुट्टी की संख्या बढ़ाकर 26 सप्ताह कर दी गयी है जो पहले 12 सप्ताह थी।
यह प्रावधान वैसे सभी प्रतिष्ठानों पर लागू होगा जहां 9 से अधिक कर्मचारी कार्यरत होंगे। मातृत्व लाभ के तहत ऐसा प्रावधान करके भारत उन 16 देशों में शामिल हो गया है जहाँ इसप्रकार का प्रावधान है। इस विधेयक में मातृत्व लाभ के तहत घर से कार्य करने का भी प्रावधान किया गया है। साथ ही वैसे प्रतिष्ठानों को क्रेच की व्यवस्था करनी होगी जहाँ 50 या अधिक कर्मचारी कार्यरत हो। इस विधेयक से देश के संगठित क्षेत्र में कार्य करने वाली 18 लाख महिलाओं को लाभ होगा।
उल्लेखनीय है कि भारत को सही दिशा देने के लिए इस विधेयक की नितांत आवश्यकता थी। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अलावा स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े कई संगठनों का मानना है कि मां और बच्चे के स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए कामकाजी महिलाओं को 24 हफ्ते का मातृत्व अवकाश देना जरूरी है। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक बच्चों की उत्तरजीविता (सरवाइवल) दर में सुधार के लिए 24 हफ्रते तक उन्हें सिर्फ स्तनपान कराना जरुरी होता है। संगठन का यह भी मानना है कि पर्याप्त मातृत्व अवकाश और आय की सुरक्षा न होने की वजह से महिलाओं के करिअर पर बुरा असर पड़ता है। इसके अलावा 2015 में विधि आयोग ने मूल कानून में संशोधन करके मातृत्व अवकाश की अवधि को बढ़ाकर 24 हफ्रते करने का भी सुझाव दिया था। साथ ही, बदलते समय के साथ सरोगेसी के जरिए बच्चे पैदा करने और बच्चे गोद लेने के मामलों में बढ़ोतरी देखने को मिल रही है, इसलिए ऐसी महिलाओं को भी इस कानून के दायरे में लाने के लिए यह संशोधन किया गया है।
भारत में महिलाओं के शिक्षित होने के बावजूद या शिक्षा में सहभागिता बढ़ने के बाद भी कार्यबल में उनकी भागीदारी कम है। एक अध्ययन के मुताबिक कुल महिलाओं की केवल 22% आबादी ही संगठित क्षेत्र में कार्यशील है। यह वैश्विक औसत 47.1% से काफी कम है। भारत में बच्चों के जन्म के बाद प्रारंभिक देखरेख के लिए महिलाओं द्वारा नौकरी छोड़ने का औसत भी अत्यधिक है। यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि भारत में केवल 55 प्रतिशत महिलायें ही अपने बच्चे को शुरू के 6 माह तक स्तनपान करा पाती है जबकि नेपाल और श्रीलंका में ऐसी महिलाओ का प्रतिशत क्रमशः 70 और 76 प्रतिशत है।
मातृत्व लाभ संशोधन विधेयक, 2016 के मुख्य प्रावधान संशोधित विधेयक में नौ से अधिक कर्मचारियों वाले प्रतिष्ठानों में कामगार महिलाओं के लिए मातृत्व अवकाश की अवधि 12 से बढ़ाकर 26 हफ्रते कर दी गई है। विधेयक में अवकाश का लाभ प्रसव की संभावित तारीख से आठ हफ्ते पहले लिया जा सकता है। 1961 के मूल कानून में यह अवधि छह हफ्ते की थी। यदि महिला के दो से अधिक बच्चे हैं तो उसे केवल 12 हफ्ते का ही अवकाश मिलेगा। इसका लाभ प्रसव की संभावित तारीख से छह हफ्ते पहले ही उठाया जा सकता है। मूल कानून में बच्चों की संख्या तय नहीं की गई थी। संशोधित विधेयक में कई नए प्रावधान भी शामिल किए गए हैं। इनमें ऐसी महिलाओं को जिन्होंने तीन महीने से कम उम्र के बच्चे को कानूनन गोद लिया है, 12 हफ्ते का अवकाश दिया जाएगा। साथ ही सरोगेसी के जरिये संतान सुख पाने वाली महिला को भी इतने ही हफ्ते का लाभ दिया जाएगा। यह अवधि उस तारीख से मानी जाएगी जब बच्चे को गोद लिया गया हो या सरोगेसी के जरिये संतान पाने वाली महिला को बच्चा सौंपा गया हो। संशोधित विधेयक में 50 या इससे अधिक कर्मचारियों वाले संस्थानों से क्रेच की सुविधा मुहैया कराने संबंधी प्रावधान किया गया है। साथ ही, महिलाओं को दिन में चार बार क्रेच जाने की सुविधा देने का उपबंध भी बनाया गया है। नए विधेयक में काम की प्रकृति इजाजत दे तो महिलाओं को घर से काम करने की भी सुविधा देने की बात कही गई है। इसके अलावा प्रतिष्ठानों के अनिवार्य किया गया है कि वे महिला कर्मचारी को नियुक्ति के समय मातृत्व लाभ के बारे में जानकारी लििखत और ई-मेल के रूप में उपलब्ध कराएं। |