भारत में अंतरिक्ष कार्यक्रम का सूत्रपात 1962 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति के गठन तथा 1963 में केरल राज्य में तिरुवनंतपुरम के निकट थुम्बा में रॉकेट प्रक्षेपण केन्द्र से अमेरिका से प्राप्त दो चरण वाले रॉकेट के अंतरिक्ष में प्रक्षेपण के साथ हुआ। आज के वैज्ञानिक परिदृश्य में भारत उपग्रहों के निर्माण से लेकर अंतरिक्ष यान के सफल प्रक्षेपण के क्षेत्र में नित्य नयी ऊंचाइयां छू रहा है। भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान ने अल्पावधि में ही आर्यभट्ट से लेकर ओशनसैट-2 तक महत्त्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल कर ली हैं।
सन् 1962 में गठित भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति के प्रथम अध्यक्ष भारत के सुप्रसिद्ध अंतरिक्ष वैज्ञानिक डॉ- विक्रम साराभाई थे। डॉ- साराभाई की ही अध्यक्षता में उक्त समिति को सन् 1969 में पुनर्गठित करके भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) नाम दिया गया। इसके उपरांत देश में अंतरिक्ष अनुसंधान को एक मजबूत वित्तीय आधार प्रदान करने के लिए सन् 1972 में केन्द्र सरकार ने एक अलग अंतरिक्ष विभाग और अंतरिक्ष आयोग का गठन किया।
सन् 1975 में भारत ने आर्यभट्ट नामक उपग्रह के प्रक्षेपण के साथ अंतरिक्ष युग में प्रवेश किया। इसके पश्चात् भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने इनसैटशृंखला के उपग्रहों की परिकल्पना की। इसशृंखला में प्रथम श्रेणी के उपग्रहों (इनसैट 1ए से 1डी तक) का निर्माण भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिकों द्वारा निर्धारित मापदंडों के अनुसार अमेरिकी वैज्ञानिकों ने किया, जबकि इसशृंखला की द्वितीय पीढ़ी के उपग्रहों (इनसैट 2ए, 2बी, 2सी, 2डी, 2ई 4सी आर) को स्वदेशी तकनीक द्वारा देश में ही तैयार किया गया। इसी प्रकार, भारतीय दूरसंवेदी उपग्रहों आई-आर-एस--1ए, 1बी, 1सी और 1डी ने संसाधनों के सर्वेक्षण और प्रबंधन के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
ध्रुवीय उपग्रह प्रमोचक रॉकेट, पी-एस-एल-वी- की सितंबर 1993 में आयोजित प्रथम विकासात्मक उड़ान यद्यपि आई-आर-एस--1ई उपग्रह को निर्धारित कक्षा में स्थापित करने में सफल नहीं रही, तथापि इसने लगभग सभी अलग-अलग उप-प्रणालियों को सफल साबित किया। इस प्रकार देश को आई-आर-एस- श्रेणी के उपग्रहों के प्रमोचन के क्षेत्र में स्वदेशी क्षमता अर्जित करने की दहलीज पर पहुंचा दिया। 29 सितम्बर 1997 को पी-एस-एल-वी--सी1 से पीएसएलवी-सी 14 के सफल प्रक्षेपण के साथ भारत ने अंतरिक्ष कार्यक्रम के क्षेत्र में उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल की।
उपग्रह प्रक्षेपण के क्षेत्र में भारत ने एक एतिहासिक उपलब्धि 28 अप्रैल, 2008 को उस समय प्राप्त की, जब ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (PSLV-C9) के द्वारा एक साथ 10 उपग्रहों का प्रक्षेपण कर उन्हें पृथ्वी की ध्रुवीय कक्षा में स्थापित किया गया। भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम का उद्देश्य-संचार, मौसम विज्ञान, संसाधन सर्वेक्षण व प्रबंधन, आपक्ष बचाव व राहत आदि है। वर्ष 2009 में पीएसएलबी C-12 एवं पीएसएलवी C-14 के सफल प्रक्षेपण के द्वारा क्रमशः रिसैट-2 एवं ऑशन सैट-2 को अंतरिक्ष की ध्रुवीय कक्षा में स्थापित किया गया जबकि वर्ष 2010 में पीएसएलवी सी-15 द्वारा दूरसंवेदी उपग्रह कार्टोसैट-2B और पीको सैटेलाइट स्टडसैट को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया गया है। वर्ष 2012 में इसरो ने पीएसएलवी-सी 21 के माध्यम से दो विदेशी उपग्रहों को उनकी कक्षा में स्थापित किया। इसके साथ ही इसरो का 100वां अंतरिक्ष अभियान पूरा हो गया।
इनसैट-3डी को 26 जुलाई 2013 को एरियन प्रक्षेपणयान से सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया गया। यह उपग्रह एक उन्नत मौसम उपग्रह है जो मौसम की भविष्यवाणी, तापमान, भूमि व सतह की निगरानी के साथ ही आपदा चेतावनी के लिए उपयुक्त है। जीसैट-7 एक उन्नत संचार उपग्रह है जिसे 30 अगस्त 2013 को एरियन प्रक्षेपणयान से सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया गया। 5 नवंबर 2013 को भारत ने अपना प्रथम मंगल अभियान मार्स आर्बिटर मिशन स्पेसक्राफ्ट सफलतापूर्वक पी-एस-एल-वी--सी 25 से प्रक्षेपित किया।
चंद्र अभियान
चन्द्रयान (अथवा चंद्रयान-1) भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के चंद्र अन्वेषण कार्यक्रम के अंतर्गत द्वारा चंद्रमा की तरफ कूच करने वाला भारत का पहला अंतरिक्ष यान था। इस अभियान के अन्तर्गत एक मानवरहित यान को 22 अक्टूबर, 2008 को चन्द्रमा पर भेजा गया और यह 30 अगस्त, 2009 तक सक्रिय रहा। यह यान ध्रुवीय उपग्रह प्रमोचन यान (पोलर सेटलाईट लांच वेहिकल, पीएसएलवी) के एक संशोधित संस्करण वाले राकेट की सहायता से सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र से प्रक्षेपित किया गया। इसे चन्द्रमा तक पहुँचने में 5 दिन लगे पर चन्द्रमा की कक्षा में स्थापित करने में 15 दिनों का समय लग गया। चंद्रयान का उद्देश्य चंद्रमा की सतह के विस्तृत नक्शे और पानी के अंश और हीलियम की तलाश करना था। चंद्रयान-प्रथम ने चंद्रमा से 100 किमी- ऊपर 525 किग्रा का एक उपग्रह ध्रुवीय कक्षा में स्थापित किया। यह उपग्रह अपने रिमोट सेंसिंग (दूर संवेदी) उपकरणों के जरिये चंद्रमा की ऊपरी सतह के चित्र भेजे।
भारत के प्रमुख अंतरिक्ष केन्द्र भारत में अंतरिक्ष कार्यक्रम का सूत्रपात 1962 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति के गठन तथा 1963 में केरल में तिरुवनंतपुरम के निकट थुम्बा में रॉकेट प्रक्षेपण केंद्र से अमेरिका से प्राप्त दो चरण वाले रॉकेट के अंतरिक्ष में प्रक्षेपण के साथ हुआ। आगे चलकर 1969 में परमाणु ऊर्जा विभाग के अधीन भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की स्थापना हुई। राष्ट्र के अंतरिक्ष नीति निर्धारित करने एवं उन्हें क्रियान्वित करने हेतु 1972 में अंतरिक्ष विभाग एवं अंतरिक्ष आयोग का गठन कर अंतरिक्ष कार्यक्रम को औपचारिक रूप प्रदान किया गया। श्रीहरिकोटा: सतीश धवन स्पेस सेंटर (SDSC) -इस केंद्र से प्रक्षेपण यान एवं साउंडिंग रॉकेटों का प्रक्षेपण किया जाता है। हासन: इनसेट मास्टर कंट्रोल फैसिलिटी (MCF)- यह केंद्र इनसैट उपग्रहों के प्रचालन के लिए उत्तरदायी है। तिरुवनंतपुरम : विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर (VSSC) - यह केंद्र देश की प्रक्षेपण यान प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में कार्यरत है। थुम्बा: इसरो इनर्शियल सिस्टम यूनिट (IISU) महेंद्रगिरि: लिक्विड प्रोपल्शन टेस्ट फैसिलिटी (LPSC) बंगलौर: अंतरिक्ष आयोग, अंतरिक्ष विभाग, इसरो मुख्यालय, इनसेट प्रोग्राम्स ऑफिस,एनएनआरएमएस, सचिवालय, सिविल इंजीनियरिंग डिवीजन, सदन आरआरएसएससी (रीजनल रिमोट सेंसिंग सर्विस सेंटर्स), इसरो सैटेलाइट सेंटर (ISAC), इसरो टेलीमेटरी ट्रेकिंग एंड कमांड नेटवर्क (ISTRAC) पोर्ट ब्लेयर: डाउन रेंज स्टेशन उदयपुर: सोलर आब्जर्वेटरी अहमदाबाद: स्पेस एप्लीकेशन सेंटरए फिजिकल रिसर्च लैबोरेटरीए डेवलपमेंट एंड एजूकेशनल कम्युनिकेशन यूनिट। यहां अंतरिक्ष उपयोग हेतु अनुसंधान एवं विकास कार्य होता है। तिरुपति: नेशनल मेसोस्फिअर स्ट्रैटोस्फिअर - ट्रोपोस्फिअर राडार फैसिलिटी (NMRF) देहरादून: इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिंग नई दिल्ली: डिपार्टमेंट ऑफ स्पेस ब्रांच सेक्रेट्रिएट (DOS), इसरो ब्रांच ऑफिस जोधपुर: वेस्टर्न रीजनल रिमोट सेंसिंग सर्विस केंद्र लखनऊ: टेलीमेटरी ट्रैकिंग एंड कमांड नेटवर्क नागपुर: सेंट्रल रीजनल रिमोट सेंसिंग सर्विस केंद्र खड़गपुर: ईस्टर्न रीजनल रिमोट सेंसिंग सर्विस केंद्र शिलांग: नार्थ ईस्टर्न स्पेस एल्पीकेशन सेंटर हैदराबाद: नेशनल रिमोट सेंसिंग एजेंसी। यहां सुदूर संवेदन उपग्रह आंकड़ों के अभिग्रहण संसाधन एवं प्रकीर्णन का कार्य होता है। बालासोर: मेटेरियोलॉजिकल रॉकेट स्टेशन |
भारतीय अंतरिक्षयान प्रक्षेपण के अनुक्रम में यह 27वां उपक्रम था। इसका कार्यकाल लगभग 2 साल का होना था, मगर नियंत्रण कक्ष से संपर्क टूटने के कारण इसे उससे पहले बंद कर दिया गया। चन्द्रयान के साथ भारत चाँद को यान भेजने वाला छठा देश बन गया था। इस उपक्रम से चन्द्रमा और मंगल ग्रह पर मानव-सहित विमान भेजने के लिये रास्ता खुला। हालांकि इस यान का नाम मात्र चंद्रयान था, किन्तु इसी शृंखला में अगले यान का नाम चन्द्रयान-2 होने से इस अभियान को चंद्रयान-1 कहा जाने लगा। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र ‘इसरो’ के चार चरणों वाले 316 टन वजनी और 44.4 मीटर लंबे अंतरिक्ष यान चंद्रयान प्रथम के साथ ही 11 और उपकरण एपीएसएलवी-सी11 से प्रक्षेपित किए गए जिनमें से पाँच भारत के और छह अमरीका और यूरोपीय देशों के थे। इस परियोजना में इसरो ने पहली बार 10 उपग्रह एक साथ प्रक्षेपित किए।
चन्द्रयान-1 मिशन की उपलब्धियां
भारत का एकमात्र महात्वाकांक्षी चन्द्रमिशन चन्द्रयान-1, 29 अगस्त, 2009 को अंतरिक्षयान से सम्पर्क टूट जाने के साथ समाप्त हो गया। दो वर्षीय मिशन अवधि पर भेजे गये चंन्द्रयान-1 ने केवल 10 माह (312 दिन) में ही अपना 90-95 प्रतिशत मिशन लक्ष्य को हासिल कर लिया।
इसका प्रक्षेपण 22 अक्टूबर, 2008 को किया गया था। 1380 किलोग्राम वजनी चन्द्रयान-1 मिशन के साथ 11 पेलोड भेजे गये थे। जिनमें से 5 का डिजाइन और निर्माण भारत द्वारा 3 यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी द्वारा, 2 का निर्माण संयुक्त राज्य अमेरिका और एक का निर्माण बुल्गारिया द्वारा किया गया था।
चंद्रयान-2 मिशन अप्रैल 2018 में संभव
चंद्रयान-2 देश का दूसरा दूसरा चंद्र अन्वेषण अभियान है। भारत के चंद्रयान-1 ने चंद्रमा की सतह पर पानी की उपस्थिति की खोज की थी और चंद्रयान-2 उसका विस्तार है। यह मिशन मानव को चन्द्रमा पर उतारने जितना ही अच्छा है।
चंद्रयान-2 चुनौतीपूर्ण मिशन है क्योंकि पहली बार इस अभियान में भारत में निर्मित एक लूनार ऑर्बिटर (चन्द्रयान), एक रोवर एवं एक लैंडर शामिल होंगे जो अंतरिक्ष टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में भारत की नई उपलब्धि होगी। यह इसरो का पहला अंतर-ग्रह मिशन होगा जो किसी खगोलीय पिंड पर रोवर उतारेगा।
रोवर को चन्द्रमा के दक्षिण ध्रुव के पास लैंड कराये जाने की योजना है। इसरो के अध्यक्ष डॉ- के- सिवन के अनुसार दक्षिण ध्रुव को लैंडिंग के लिए चुनने की वजह ये है कि चन्द्रमा का दक्षिण ध्रुव बहुत महत्वपूर्ण एवं रहस्यमयी क्षेत्र है जहां लगभग 10 लाख वर्ष पूर्व
निर्मित चट्टानें विद्यमान हैं जिसके अध्ययन से हमें ब्रहमांड की उत्पति को समझने में सहायता मिल सकती है। दक्षिण ध्रुव के निकट रोवर उतारने का अन्य कारण यह भी है कि इस क्षेत्र का अन्य मिशनों द्वारा अभी तक अन्वेषण नहीं किया गया है। उल्लेखनीय है कि नासा के अपोलो और रूस के लूना मिशन में रोवर को चन्द्रमा के भूमध्य रेखीय भाग में उतारा गया था।
मिशन छह पहियों (Six-Wheeled) वाला एक रोवर ले जाएगा जो सॉफ्रट लैंडिंग के बाद लैंडर से अलग हो जाएगा और भूमिगत आदेशों के अनुसार लैंडिंग साइट के चारों ओर एक अर्द्ध-स्वायत्त मोड में गतिमान होगा। रोवर को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि यह चंद्रमा की सतह पर 14 दिन तक रह पाएगा और 150-200 किमी तक चलने में सक्षम होगा। रोवर पर दिए गए उपकरण चंद्रमा की सतह का निरीक्षण करेंगे और आंकड़ों को वापस पृथ्वी पर भेजेंगे जो चंद्रमा की सतह पर मृदा के विश्लेषण के लिए उपयोगी होंगे।
चंद्रयान-2 कोश्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से प्रक्षेपित किया जाएगा और एक से दो महीनों में यह यान चंद्रमा की कक्षा तक पहुंच जाएगा। चंद्रयान -1, जिसे पीएसएलवी की सहायता से प्रक्षेपित किया गया था, के विपरीत चंद्रयान-2 को जीएसएलवी एम के- II (GSLV Mk&II) द्वारा प्रक्षेपित किया जायेगा।
मंगल अभियान
मंगलयान, भारत का प्रथम मंगल अभियान है। यह भारत की प्रथम ग्रहों के बीच का मिशन है। वस्तुतः यह भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन की एक महत्वाकांक्षी अन्तरिक्ष परियोजना है। इस परियोजना के अन्तर्गत 5 नवम्बर, 2013 को 2 बजकर 38 मिनट पर मंगल ग्रह की परिक्रमा करने हेतु छोड़ा गया एक उपग्रह आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसलवी) सी-25 के द्वारा सफलतापूर्वक छोड़ा गया। इसके साथ ही भारत भी अब उन देशों में शामिल हो गया है जिन्होंने मंगल पर अपने यान भेजे हैं। वैसे अब तक मंगल को जानने के लिये शुरू किये गये दो तिहाई अभियान असफल भी रहे हैं परन्तु 24 सितंबर 2014 को मंगल पर पहुंचने के साथ ही भारत विश्व में अपने प्रथम प्रयास में ही सफल होने वाला पहला देश तथा सोवियत रूस, नासा और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के बाद दुनिया का चौथा देश बन गया है। इसके अतिरिक्त ये मंगल पर भेजा गया सबसे सस्ता मिशन भी है। भारत एशिया का भी ऐसा करने वाला प्रथम पहला देश बन गया। क्योंकि इससे पहले चीन और जापान अपने मंगल अभियान में असफल रहे थे। वस्तुतः यह एक प्रौद्योगिकी प्रदर्शन परियोजना है जिसका लक्ष्य अन्तरग्रहीय अन्तरिक्ष मिशनों के लिये आवश्यक डिजाइन, नियोजन, प्रबन्धन तथा क्रियान्वयन का विकास करना है। ऑर्बिटर अपने पांच उपकरणों के साथ मंगल की परिक्रमा करता रहेगा तथा वैज्ञानिक उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए आंकड़े व तस्वीरें पृथ्वी पर भेजेगा। अंतरिक्ष यान पर वर्तमान में इसरो टेलीमेट्री, ट्रैकिंग और कमांड नेटवर्क (इस्ट्रैक), बंगलौर के अंतरिक्षयान नियंत्रण केंद्र से भारतीय डीप स्पेस नेटवर्क एंटीना की सहायता से नजर रखी जा रही है।
प्रतिष्ठित ‘टाइम’ पत्रिका ने मंगलयान को 2014 के सर्वश्रेष्ठ आविष्कारों में शामिल किया।