क्लोरो- फ्रलोरो कार्बन के उपयोग पर रोक लगाने के लिए मार्च 1985 में 20 राष्ट्रों ने ‘ओजोन परत के संरक्षण’ के लिए वियना सम्मेलन पर हस्ताक्षर किये थे। सम्मेलन में इस बात पर सहमति व्यक्त की गयी थी कि ओजोन परत के लिए क्लोरो- फ्लोरो कार्बन प्राथमिक रूप से मुख्य कारक हैं। ओजोन परत की क्षति के संबंध में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहली कार्रवाही के रूप में 1977 में वाशिंगटन में 32 देशों की एक बैठक हुई, जिसमें ओजोन परत की सुरक्षा के लिये एक कार्ययोजना को अपनाया गया। अंटार्कटिका के ऊपर स्थिति ओजोन परत की भारी क्षति के बारे में जानकारी 1985 के वियना सम्मेलन में दी गई।
ओजोन परत को बचाने की दिशा में सबसे महत्वपूर्ण सम्मेलन कनाडा के शहर मांट्रियल में सितंबर 1987 में हुआ। इस सम्मेलन में लिये गए निर्णयों में 1990 में विकासशील देशों को आश्वस्त करने के लिये संशोधन किया गया। इसमें निर्णय लिया गया कि ओजोन को नष्ट करने वाली गैसों का प्रयोग बंद कर दिया जाए। यह भी निर्णय लिया गया कि ओजोन को नुकसान पहुंचाने वाली गैसों का उत्पादन और प्रयोग विकासशील देश धीरे-धीरे परंतु विकसित देश जल्दी बंद कर देंगे। इस सम्मेलन में ओजोन के लिये खतरनाक गैसों के स्थान पर दूसरी निरापद गैसों के प्रयोग के लिये विकासशील देशों को आर्थिक सहायता देने की बात कही गई थी।
भारत ने इस समझौते पर 1992 में हस्ताक्षर किया। भारत के दबाव के कारण इसमें एक अनुच्छेद- 5 जोड़ा गया था। इस अनुच्छेद के अनुसार, ओजोन हानिकारक पदार्थों के प्रतिव्यक्ति 300 ग्राम से कम खपत वाले देशों में इन पदार्थों के प्रयोग को बंद करने तथा तकनीकी हस्तांतरण के व्यय को विकसित देशाेंं द्वारा वहन किया जाएगा। भारतीय रिजर्व बैंक ने सभी वित्तीय संस्थाओं और बैंकों को निर्देश जारी कर ओडीएस तकनीकी वाले नये उद्योगों को वित्तीय सहायता देने पर रोक लगा दी है।
ओडीएस के आयात और निर्यात को नियमित करने के लिये लाइसेंसिंग प्रणाली शुरू की गई। मांट्रियल संधि का पालन सुनिश्चित करने व कानूनी सुविधा प्रदान करने के लिये ओडीएस नियमन एवं नियंत्रण नियम, 2000 भी अधिसूचित किया गया है। इस नियम के अंतर्गत कुछ आवश्यक दवाइयों के उत्पादन को छोड़कर विभिन्न उत्पादों में पहली जनवरी, 2003 के बाद सीएफसी के इस्तेमाल पर रोक लगा दी गई थी।