नाभिकीय ऊर्जा वैकल्पिक अथवा गैर-परंपरागत ऊर्जा स्रोत है। नाभिकीय ऊर्जा की उत्पत्ति नाभिकीय विखंडन अथवा नाभिकीय संलयन की प्रक्रिया के फलस्वरूप होती है। नाभिकीय विखंडन की प्रक्रिया में किसी भारी परमाणु (जैसे- यूरेनियम, प्लूटोनियम अथवा थोरियम) के नाभिक पर निम्न ऊर्जा न्यूट्रॉनो की बमबारी द्वारा हल्के नाभिकों में तोडा जाता है। इसके विपरीत नाभिकीय संलयन में दो हल्के नाभिक मिलकर एक अपेक्षाकृत बड़ा नाभिक बनाते हैं। दोनों ही प्रक्रियाओं में विशाल मात्र में ऊर्जा निर्मुक्त होती है जिसकी गणना अलबर्ट आइंस्टाइन द्वारा दिए गए समीकरण E=mc2 द्वारा की जाती है। जहां < निर्वात में प्रकाश की चाल है तथा m द्रव्यमान क्षति है। सूर्य तथा अन्य तारों की विशाल ऊर्जा का स्रोत तथा अन्य तारों की विशाल ऊर्जा का स्रोत नाभिकीय संलयन की अभिक्रिया ही है। आजकल सभी व्यापारिक नाभिकीय रिएक्टर नाभिकीय विखंडन पर आधारित है परंतु नाभिकीय संलयन द्वारा भी नाभिकीय ऊर्जा उत्पन्न करने की संभावना व्यक्त की जा रही है।
नाभिकीय रिएक्टर
नियन्त्रित नाभिकीय शृंखला उत्पन्न करने के प्रयोग में लाये जाने वाले रिएक्टर को ‘नाभिकीय रिएक्टर’ या ‘परमाणु भट्ठी’ (Nuclear Reactor) कहा जाता है। नाभिकीय रिएक्टर के निम्नलिखित पांच भाग होते हैं:
ईंधन (Fuel): यह रिएक्टर का मुख्य भाग होता है, जिसका विखंडन किया जाता है। ईंधन के रूप में प्रायः यूरेनियम-235 और प्लूटोनियम-239 को प्रयोग में लाया जाता है।
मंदक (Moderator): यह न्यूट्रॉनों की गति को मंद करता है। भारी जल (D2O), बेरीलियम ऑक्साइड या ग्रेफाइट का प्रयोग मंदक के रूप में किया जाता है। इनमें से भारी जल सबसे अच्छा मंदक माना गया है।
शीतलक (Coolant): नाभिकीय विखंडन के दौरान बड़ी मात्र में ऊर्जा निर्मुक्त होती है, जिसे ठंडा करना आवश्यक होता है। इस निमित्त रिएक्टर में वायु, जल और कार्बन डाइऑक्साइड प्रवाहित किये जाते हैं।
परिरक्षक (Shield or Protector): नाभिकीय विखंडन के दौरान कई प्रकार की उच्च शक्ति और वेधन क्षमता वाली किरणें निकलती हैं। इन किरणों से रक्षा के लिए रिएक्टर के चारों ओर कंक्रीट की मोटी- मोटी दीवारों का निर्माण किया जाता है, जिन्हें ‘परिरक्षक’ कहा जाता है।
भारत में निर्माणाधीन एवं प्रस्तावित परमाणु ऊर्जा रिएक्टर |
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कुडनकुलम और कलपक्कम |
तमिलनाडु |
जैतपुर |
रत्नागिरी, महाराष्ट्र |
गोरखपुर |
फतेहाबाद, हरियाणा |
चुटका और भीमपुर |
मध्य प्रदेश |
माही बांसवाड़ा |
राजस्थान |
कैगा |
कर्नाटक |
कोवड़ा |
श्रीकाकुलम, आंध्र प्रदेश |
निजामपट्नम |
गुंटूर, आंध्र प्रदेश |
पुलिवेन्दुल |
कड़पा, आंध्र प्रदेश |
मीठी विर्धि |
भावनगर, गुजरात |
राजौरी |
नवादा, बिहार |
मरकन्दी (पति सोनापुरा) |
ओडि़सा |
हरिपुर |
पश्चिम बंगाल |
नियंत्रक (Controller): नाभिकीय विखंडन की गति को नियन्त्रित करना भी जरूरी होता है। इसके लिए कैडमियम की छड़ें प्रयोग में लायी जाती हैं।
नाभिकीय रिएक्टर के प्रकार
तापीय रिएक्टर (Thermal Reactor): तापीय रिएक्टर में मन्द गति वाले न्यूट्रॉनों से यूरेनियम-235 को विखंडित कर ऊर्जा प्राप्त की जाती है। प्राकृतिक यूरेनियम में चूंकि न्-235 की मात्र काफी कम होती है, इसलिए इसका विखंडन काफी मंहगा होता है।
शक्ति भट्ठी (Power Reactor): नाभिकीय ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलने वाली परमाणु भट्ठी को शक्ति भट्ठी कहा जाता है।
भारी जल (Heavy Water)
हाईड्रोजन के भारी समस्थानिकों जैसे- ड्यूटेरियम, ट्रिटियम के साथ ऑक्सीजन के संयोग से प्राप्त होने वाला जल भारी जल कहलाता है। इसका रासायनिक सूत्र D2O है। इसका सापेक्षिक घनत्व 1-1 और हिमांक साधारण जल से थोड़ा अधिक होता है। इसका उपयोग परमाणु ऊर्जा संयत्रें में मंदक (Moderator) और प्रशीतक (Coolant) के रूप में किया जाता है।
विश्व परमाणु ऊर्जा उत्पादन
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परमाणु बम (Atom Bomb): सर्वप्रथम जर्मन वैज्ञानिक ऑटो हॉन ने यूरेनियम विखंडन का सिद्धांत प्रतिपादित किया और तदुपरांत यूरेनियम-235 के नाभिकीय विखंडन के सिद्धांत पर परमाणु बम बनाया गया। इसके तहत न्यूट्रॉन के प्रहार से यूरेनियम परमाणु के नाभिक का कृत्रिम विखंडन किया जाता है। परमाणु विखंडन से एक्स-रे, गामा-रे, उष्मा आदि रूपों में अपरिमित ऊर्जा उत्पन्न होती है। इन रूपों में उत्सर्जित ऊर्जा दूसरे परमाणुओं का विखंडन करती है, जिसके फलस्वरूप पुनः ऊर्जा उत्पन्न होती है और यह ऊर्जा किसी अन्य परमाणु का विखंडन करती है। यह प्रक्रिया समस्त परमाणुओं के विखंडन तक चलती रहती है। इस बम का प्रयोग द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका द्वारा 6 और 9 अगस्त, 1945 को क्रमशः जापान के हिरोशिमा और नागासाकी नामक शहरों पर किया गया था।
हाइड्रोजन बमः हाइड्रोजन बम (Hydrogen bamb or h-bomd) में परमाणु संलयन (fuse) से विस्फोट होता है। इस संलयन के लिए बहुत ऊँचे ताप, लगभग 500,00,000० सें- की आवश्यकता पड़ती है यह परमाणु विस्फोट, जो कि विखंडन के द्वारा होता है, से प्राप्त होता है। इससे उत्पन्न ताप से हाइड्रोजन के समस्थानिक ड्यूटीरियम (deuterium) और ट्राइटियिम (tritum) में संलयन प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है और इस हाइड्रोजन परमाणु के विस्फोट के साथ ही बहुत अधिक ऊर्जा उत्पन्न होती है।
शृंखला अभिक्रिया (Chain Reaction): जब एक अभिक्रिया से स्वतः दूसरी अभिक्रिया होती है तो उसेशृंखला अभिक्रिया कहा जाता है। उदाहरणार्थ, यूरेनियम-235 के नाभिक पर जब न्यूट्रॉनों का प्रहार कराया जाता है, तब बड़ी मात्र में ऊर्जा और न्यूट्रॉन निर्मुक्त होते हैं जो अन्य नाभिकों का पुनर्विखंडन करते हैं, जिससे अतिरिक्त ऊर्जा और न्यूट्रॉन उत्पन्न होते हैं।
संवर्द्धित यूरेनियम (Enriched Uranium): नाभिकीय विखंडन के लिए यूरेनियम-238 की तुलना में यूरेनियम-235 अधिक उपयोगी होता है, क्योंकि यूरेनियम-235 का नाभिक अत्यधिक क्षणभंगुर होता है। फलतः यदि कम गति से भी कोई न्यूट्रॉन उससे टकरा जाये, तो वह उसे खंडित कर सकता है। यूरेनियम रिएक्टर में कुछ विशेष प्रक्रियाओं द्वारा उसमें विखंडन योग्य U235 की मात्र 0-7 प्रतिशत से बढ़ाकर 2 34 प्रतिशत तक की जाती है। इसी प्रक्रिया को यूरेनियम- संवर्द्धन (Enrichment of Uranium) तथा इस विधि द्वारा प्राप्त यूरेनियम को संवर्द्धित यूरेनियम कहा जाता है। प्रकृति में यूरेनियम प्रायः पिचब्लेन्ड के रूप में पाया जाता है।
परमाणु अवताप (Nuclear Fallout): नाभिकीय विस्फोट के पश्चात् रेडियोएक्टिव पदार्थ वायुमंडल में तैरने लगते हैं तथा बाद में धीरे-धीरे पृथ्वी की सतह पर जमा होने लगते हैं। इसे ही ‘परमाणु अवताप’ कहा जाता है। परमाणु अवताप तीन प्रकार का होता है-स्थानीय अवताप (Local Fallout), क्षोभमंडलीय अवताप (Tropospheric Fallout) तथा समतापमंडलीय अवताप (Stratospheric Fallout)। स्थानीय अवताप में विस्फोट के कुछ ही घंटों के भीतर लगभग 100 मील की परिधि में रेडियोएक्टिव कण यथा-स्ट्रांशियम, जमा हो जाते हैं, जबकि क्षोभमंडलीय अवताप में धरातल से लगभग 8 मील की ऊंचाई तक तथा समतापमंडलीय अवताप में 8 से 20 मील तक की ऊंचाई में रेडियोएक्टिव कण तैरते रहते हैं।
ताप नाभिकीय अभिक्रियाः अति उच्च तापमान पर सम्पन्न होने वाली नाभिकीय संलयन की क्रिया, जिसमें हल्के नाभिक आपस में जुड़ कर भारी नाभिकों को जन्म देते हैं और साथ ही अपार ऊर्जा का उत्सर्जन करते हैं। हाइड्रोजन बम के विस्फोट में संपन्न होने वाली ताप नाभिकीय अभिक्रिया, एटम बम के विस्फोट का परिणाम होती है।
भारत के नाभिकीय विद्युत कार्यक्रम टाइमलाइन
भारत के नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम के चरण
भारत के तीन चरणीय परमाणु कार्यक्रम को डॉ होमी भाभा ने 1950 में तैयार किया जिसका उद्देश्य देश को यूरेनियम और दक्षिण भारत के तटीय क्षेत्र में पाये जाने वाले मोनोजाइट रेत में उपलब्ध थोरियम के माध्यम से देश को दीर्घकालीन ऊर्जा सुरक्षा प्रदान करना कार्यक्रम तीन चरणीय था जो इस प्रकार हैं_
प्रथम चरणः इस चरण में ऊर्जा उत्पादन के लिए दाबित भारी जल रिएक्टरों (पीएचडब्ल्यूआर) में प्राकृतिक यूरेनियम को ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया गया और उप उत्पाद के रूप में प्लूटोनियम-239 की प्राप्ति होती है।
द्वितीय चरणः इस चरण में फास्ट ब्रीडर रिएक्टर (FBR) का प्रयोग होता है जिस में ईंधन के रूप में प्रथम चरण के उप उत्पाद प्लूटोनियम-239 का इस्तेमाल होता है इसमें यूरेनियम 238 और थोरियम-232 का मिश्रण होता है। यूरेनियम-238, प्लूटोनियम-239 में और थोरियम-232, यूरेनियम-233 में बदल जाता है। इस कारण इस चरण में उपभोग ईंधन से ज्यादा अवशेष के रूप में ईंधन प्राप्त होता है।
तृतीय चरणः इस उन्नत परमाणु ऊर्जा चरण में ब्रीडर रिएक्टर में ईंधन के रूप में यूरेनियम -233 का उपयोग होता है जिसमें थोरियम 232 का लेप लगाया जाता है जो यूरेनियम - 233 में बदल जाता है चूंकि भारत में थोरियम के पर्याप्त भंडार मौजूद हैं, इस कारण यह स्थायी और सतत चरण है।
भारत में परमाणु ऊर्जा विकास
परमाणु विद्युत उत्पादन के कार्यान्वयन की दृष्टि से ‘परमाणु विद्युत बोर्ड’ के स्थान पर सन् 1987 में ‘भारतीय परमाणु विद्युत निगम लिमिटेड’ की स्थापना की गयी तथा उसे देश के समस्त परमाणु विद्युत संयंत्रें के प्रारूप, निर्माण कार्य, संचालन और उत्पादन संबंधी उत्तरदायित्व को सौंपा गया। भारत में वर्तमान में 27 परमाणु रिएक्टर कार्यरत हैं जिनमें से साइरस (CIRUS) और राणा प्रताप सागर ऊर्जा संयंत्र कनाडा के सहयोग से तथा तारापुर परमाणु ऊर्जा संयंत्र अमेरिका की सहायता से स्थापित किये गये हैं। इनसे उत्पादित प्लूटोनियम का उपयोग भारत अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी द्वारा अनुमोदित प्रयोजनों के लिए ही कर सकता है।
परमाणु रिएक्टरों जैसे अप्सरा, जरलिना और पूर्णिमा आदि की स्थापना भारत ने स्वयं अपने प्रयासों से की है, जिनसे उत्पादित प्लूटोनियम आदि का उपयोग भारत अपनी इच्छानुसार कर सकता है। भारत ने 18 मई, 1974 को राजस्थान के जैसलमेर में पोखरण नामक स्थान पर अपना पहला नाभिकीय परीक्षण (पोखरण-I) किया था। इसमें प्लूटोनियम परमाणु बम का प्रयोग किया गया, जिसकी क्षमता 15 से 20 किलो टन तक थी। भारत द्वारा किये गये प्रथम विस्फोट की प्रमुख विशेषता यह थी कि इससे किसी प्रकार का नाभिकीय अवताप उत्पन्न नहीं हुआ। भारत ने 11 मई, 1998 और 13 मई, 1998 को जैसलमेर जिले के खेतोलोई गांव के पास दूसरी बार परमाणु परीक्षण (पोखरण-II) किया। 11 मई को तीन और 13 मई को 2 (यानी कुल 5) परीक्षण किये गये। इसके अंतर्गत एक किलोटन से भी कम ऊर्जा उत्सर्जन वाले (सब-किलोटन) परमाणु परीक्षण करके सुपर कंप्यूटर की मदद से प्रयोगशाला में ही परीक्षण करने का सामर्थ्य हासिल किया गया है। इस दौरान जो पांच परीक्षण किये गये उनमें से एक फिशन (Fission), तीन कम यील्ड वाले तथा एक थर्मोन्यूक्लियर परीक्षण था। इनमें से पहला परमाणु बम बनाने के लिए, दूसरा छोटा बम बनाने तथा बूस्टर फिशन (Booster Fission) के लिए तथा तीसरा परीक्षण हाइड्रोजन बम बनाने के लिए उपयुक्त था। हाल ही में परमाणु वैज्ञानिक के- संथानम ने इन परीक्षणों के सफल होने पर सवाल उठाये थे, जिन्हे भारत सरकार ने नकार दिया और परीक्षणों को सफल बताया है।
देश का पहला तीव्र प्रजनक रिएक्टर
भारत ने नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम के तहत विश्व में अपनी तरह का पहला तीव्र प्रजनक रिएक्टर विकसित किया है, जिसमें प्राकृतिक यूरेनियम के स्थान पर प्लूटोनियम 239 एवं यूरेनियम-233 के मिश्रित कार्बाइड का प्रयोग ईंधन के रूप में किया जायेगा। थोरियम को तीव्र प्रजनक रिएक्टर (एफबीआर) में यूरेनियम-233 में परिवर्तित किया जायेगा, जो नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम के तीसरे चरण के अंतर्गत बनने वाले परमाणु विद्युत गृहों में ईंधन के रूप में कार्य करेगा। भविष्य की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कलपक्कम में बनाए जा रहे प्रोटोटाइप फास्ट ब्रीडर रिएक्टर के बाद ऐसी लगभग 4 इकाइयां और बनानी होंगी और कई क्षेत्रें म्रें अनुसंधान एवं विकास गतिविधियां जारी रखनी होंगी। फास्ट रिएक्टरों के मामले में महत्वपूर्ण विकास क्षेत्रें को दो चरणों में बांटा जा सकता हैः
भारत में परमाणु संयंत्र | ||||
संयंत्र |
इकाई |
प्रकार |
क्षमता (mwe) |
वाणिज्यिक प्रचालन के आरम्भ की तिथि |
तारापुर परमाणु शक्ति स्टेशन (महाराष्ट्र) |
1 |
BWR |
160 |
28 अक्टूबर, 1969 |
तारापुर परमाणु शक्ति स्टेशन (महाराष्ट्र) |
2 |
BWR |
160 |
28 अक्टूबर, 1969 |
तारापुर परमाणु शक्ति स्टेशन (महाराष्ट्र) |
3 |
PHWR |
540 |
18 अगस्त, 2006 |
तारापुर परमाणु शक्ति स्टेशन (महाराष्ट्र) |
4 |
PHWR |
540 |
12 सितम्बर, 2005 |
राजस्थान परमाणु शक्ति स्टेशन (राजस्थान) |
1 |
PHWR |
100 |
16 दिसम्बर, 1973 |
राजस्थान परमाणु शक्ति स्टेशन (राजस्थान) |
2 |
PHWR |
200 |
1 अप्रैल, 1981 |
राजस्थान परमाणु शक्ति स्टेशन (राजस्थान) |
3 |
PHWR |
220 |
1 जून, 2000 |
राजस्थान परमाणु शक्ति स्टेशन (राजस्थान) |
4 |
PHWR |
220 |
23 दिसम्बर, 2000 |
राजस्थान परमाणु शक्ति स्टेशन (राजस्थान) |
5 |
PHWR |
220 |
4 फरवरी, 2010 |
राजस्थान परमाणु शक्ति स्टेशन (राजस्थान) |
6 |
PHWR |
220 |
31 मार्च, 2010 |
मद्रास परमाणु शक्ति स्टेशन (तमिलनाडु) |
1 |
PHWR |
220 |
27 जनवरी, 1984 |
मद्रास परमाणु शक्ति स्टेशन (तमिलनाडु) |
2 |
PHWR |
220 |
21 मार्च, 1986 |
कैगा स्टेशन (कर्नाटक) |
1 |
PHWR |
220 |
16 नवम्बर, 2000 |
कैगा स्टेशन (कर्नाटक) |
2 |
PHWR |
220 |
16 मार्च, 2000 |
कैगा स्टेशन (कर्नाटक) |
3 |
PHWR |
220 |
6 मई, 2007 |
कैगा स्टेशन (कर्नाटक) |
4 |
PHWR |
220 |
20 जनवरी, 2011 |
कुडनकुलम, तमिलनाडु |
1 |
WER |
2000 |
31 दिसंबर, 2014 |
नरोरा परमाणु शक्ति स्टेशन (उ-प्र-) |
1 |
PHWR |
220 |
1 जनवरी, 1991 |
नरोरा परमाणु शक्ति स्टेशन (उ-प्र-) |
2 |
PHWR |
220 |
1 जुलाई 1992 |
काकरापार परमाणु शक्ति स्टेशन (गुजरात) |
1 |
PHWR |
220 |
6 जुलाई 1993 |
काकरापार परमाणु शक्ति स्टेशन (गुजरात) |
2 |
PHWR |
220 |
1 सितंबर 1995 |
परमाणु शक्ति संयंत्रें की कुल क्षमताः 6780 मेगावाट (MW) |
1. 2020 तक स्थापित किये जाने वाले रिएक्टरः इस चरण के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए महत्व के विशिष्ट क्षेत्र हैं:
2. 2020 के बाद स्थापित किये जाने वाले रिएक्टरः इस चरण के लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए महत्व के विशिष्ट क्षेत्र निम्नलिखित हैं:
2020 के बाद, भारतीय नाभिकीय कार्यक्रम के आधार के रूप में दाबित गुरु जल रिएक्टरों का स्थान फास्ट ब्रीडर रिएक्टर लेना शुरू कर देगा, इसलिए हमें थोरियम के उपयोग के टेक्नोलोजी विकसित करना जारी रखना होगा। कलपक्कम में थोरियम से निकाले जाने वाले यूरोनियम 233 ईंधन पर आधारित एक अनुसंधान रिएक्टर कामिनी काम कर रहा है।
यह ईंधन देश में ही तैयार, पुनर्विघटित और संयोजित किया गया है। इस गुरुजल रिएक्टर का भौतिकी डिजाइन इस प्रकार तैयार किया गया है कि थोरियम से लगभग 65% ऊर्जा तैयार की जा सकती है।