नाभिकीय ऊर्जा

नाभिकीय ऊर्जा वैकल्पिक अथवा गैर-परंपरागत ऊर्जा स्रोत है। नाभिकीय ऊर्जा की उत्पत्ति नाभिकीय विखंडन अथवा नाभिकीय संलयन की प्रक्रिया के फलस्वरूप होती है। नाभिकीय विखंडन की प्रक्रिया में किसी भारी परमाणु (जैसे- यूरेनियम, प्लूटोनियम अथवा थोरियम) के नाभिक पर निम्न ऊर्जा न्यूट्रॉनो की बमबारी द्वारा हल्के नाभिकों में तोडा जाता है। इसके विपरीत नाभिकीय संलयन में दो हल्के नाभिक मिलकर एक अपेक्षाकृत बड़ा नाभिक बनाते हैं। दोनों ही प्रक्रियाओं में विशाल मात्र में ऊर्जा निर्मुक्त होती है जिसकी गणना अलबर्ट आइंस्टाइन द्वारा दिए गए समीकरण E=mc2 द्वारा की जाती है। जहां < निर्वात में प्रकाश की चाल है तथा m द्रव्यमान क्षति है। सूर्य तथा अन्य तारों की विशाल ऊर्जा का स्रोत तथा अन्य तारों की विशाल ऊर्जा का स्रोत नाभिकीय संलयन की अभिक्रिया ही है। आजकल सभी व्यापारिक नाभिकीय रिएक्टर नाभिकीय विखंडन पर आधारित है परंतु नाभिकीय संलयन द्वारा भी नाभिकीय ऊर्जा उत्पन्न करने की संभावना व्यक्त की जा रही है।

नाभिकीय रिएक्टर

नियन्त्रित नाभिकीय शृंखला उत्पन्न करने के प्रयोग में लाये जाने वाले रिएक्टर को ‘नाभिकीय रिएक्टर’ या ‘परमाणु भट्ठी’ (Nuclear Reactor) कहा जाता है। नाभिकीय रिएक्टर के निम्नलिखित पांच भाग होते हैं:

ईंधन (Fuel): यह रिएक्टर का मुख्य भाग होता है, जिसका विखंडन किया जाता है। ईंधन के रूप में प्रायः यूरेनियम-235 और प्लूटोनियम-239 को प्रयोग में लाया जाता है।

मंदक (Moderator): यह न्यूट्रॉनों की गति को मंद करता है। भारी जल (D2O), बेरीलियम ऑक्साइड या ग्रेफाइट का प्रयोग मंदक के रूप में किया जाता है। इनमें से भारी जल सबसे अच्छा मंदक माना गया है।

शीतलक (Coolant): नाभिकीय विखंडन के दौरान बड़ी मात्र में ऊर्जा निर्मुक्त होती है, जिसे ठंडा करना आवश्यक होता है। इस निमित्त रिएक्टर में वायु, जल और कार्बन डाइऑक्साइड प्रवाहित किये जाते हैं।

परिरक्षक (Shield or Protector): नाभिकीय विखंडन के दौरान कई प्रकार की उच्च शक्ति और वेधन क्षमता वाली किरणें निकलती हैं। इन किरणों से रक्षा के लिए रिएक्टर के चारों ओर कंक्रीट की मोटी- मोटी दीवारों का निर्माण किया जाता है, जिन्हें ‘परिरक्षक’ कहा जाता है।

भारत में निर्माणाधीन एवं प्रस्तावित परमाणु ऊर्जा रिएक्टर

कुडनकुलम और कलपक्कम

तमिलनाडु

जैतपुर

रत्नागिरी, महाराष्ट्र

गोरखपुर

फतेहाबाद, हरियाणा

चुटका और भीमपुर

मध्य प्रदेश

माही बांसवाड़ा

राजस्थान

कैगा

कर्नाटक

कोवड़ा

श्रीकाकुलम, आंध्र प्रदेश

निजामपट्नम

गुंटूर, आंध्र प्रदेश

पुलिवेन्दुल

कड़पा, आंध्र प्रदेश

मीठी विर्धि

भावनगर, गुजरात

राजौरी

नवादा, बिहार

मरकन्दी (पति सोनापुरा)

ओडि़सा

हरिपुर

पश्चिम बंगाल

नियंत्रक (Controller): नाभिकीय विखंडन की गति को नियन्त्रित करना भी जरूरी होता है। इसके लिए कैडमियम की छड़ें प्रयोग में लायी जाती हैं।

नाभिकीय रिएक्टर के प्रकार

तापीय रिएक्टर (Thermal Reactor): तापीय रिएक्टर में मन्द गति वाले न्यूट्रॉनों से यूरेनियम-235 को विखंडित कर ऊर्जा प्राप्त की जाती है। प्राकृतिक यूरेनियम में चूंकि न्-235 की मात्र काफी कम होती है, इसलिए इसका विखंडन काफी मंहगा होता है।

शक्ति भट्ठी (Power Reactor): नाभिकीय ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलने वाली परमाणु भट्ठी को शक्ति भट्ठी कहा जाता है।

भारी जल (Heavy Water)

हाईड्रोजन के भारी समस्थानिकों जैसे- ड्यूटेरियम, ट्रिटियम के साथ ऑक्सीजन के संयोग से प्राप्त होने वाला जल भारी जल कहलाता है। इसका रासायनिक सूत्र D2O है। इसका सापेक्षिक घनत्व 1-1 और हिमांक साधारण जल से थोड़ा अधिक होता है। इसका उपयोग परमाणु ऊर्जा संयत्रें में मंदक (Moderator) और प्रशीतक (Coolant) के रूप में किया जाता है।

विश्व परमाणु ऊर्जा उत्पादन

  • प्रथम व्यवसायिक परमाणु रिएक्टर ने 1950 के दशक में कार्य करना आरंभ किया था।
  • इस समय (31 दिसंबर, 2016 तक) विश्व में 450 व्यवसायिक परमाणु ऊर्जा रिएक्टर 30 देशों में उत्पादनरत है जिनकी 390000 मेगावाट ऊर्जा उत्पादन की क्षमता है।
  • इस समय विश्व ऊर्जा उत्पादन का लगभग 10-9% ऊर्जा की आपूर्ति परमाणु रिएक्टरों द्वारा होती है। वर्तमान में 56 देशों में 240 अनुसंधान रिएक्टर कार्य कर रहे हैं। इसके अलावा 150 से अधिक विशाल जलयानों एवं पनडुब्बियाें को 180 नाभिकीय रिएक्टर ऊर्जा प्रदान कर रहे है।
  • विश्व में 13 ऐसे देश हैं जो अपनी कुल ऊर्जा उत्पादन में से कम से कम एक चौथाई भाग नाभिकीय ऊर्जा से प्राप्त कर रहे हैं।
  • फ्रांस के कुल ऊर्जा उत्पादन का तीन-चौथाई (76-3%) भाग नाभिकीय ऊर्जा से प्राप्त होती है।
  • बेल्जियम, बुल्गारिया, चेक गणराज्य, हंगरी, स्लोवाकिया, दक्षिण कोरिया, स्वीडन, स्वीट्जरलैण्ड, स्लोवेनिया एवं यूक्रेन अपनी ऊर्जा उत्पादन का एक तिहाई भाग एवं, जर्मनी, फिनलैण्ड एक चौथाई भाग से अधिक परमाणु ऊर्जा से प्राप्त करते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका के कुल ऊर्जा उत्पादन का 20% नाभिकीय ऊर्जा से प्राप्त होता है।
  • वर्तमान में विश्व के 8 देश परमाणु शस्त्रें से संपन्न (औपचारिक रूप से) हैं।
  • वर्तमान में सर्वाधिक नाभिकीय रिएक्टर (ऊर्जा उत्पादन हेतु) सं. रा. अमेरिका में है, फ्रांस, जापान एवं रूस अन्य अग्रणी राष्ट्र हैं।
  • विश्व में सर्वाधिक नाभिकीय ऊर्जा उत्पादन देश भी सं रा-अमेरिका ही है। फ्रांस का इसके बाद स्थान आता है।

परमाणु बम (Atom Bomb): सर्वप्रथम जर्मन वैज्ञानिक ऑटो हॉन ने यूरेनियम विखंडन का सिद्धांत प्रतिपादित किया और तदुपरांत यूरेनियम-235 के नाभिकीय विखंडन के सिद्धांत पर परमाणु बम बनाया गया। इसके तहत न्यूट्रॉन के प्रहार से यूरेनियम परमाणु के नाभिक का कृत्रिम विखंडन किया जाता है। परमाणु विखंडन से एक्स-रे, गामा-रे, उष्मा आदि रूपों में अपरिमित ऊर्जा उत्पन्न होती है। इन रूपों में उत्सर्जित ऊर्जा दूसरे परमाणुओं का विखंडन करती है, जिसके फलस्वरूप पुनः ऊर्जा उत्पन्न होती है और यह ऊर्जा किसी अन्य परमाणु का विखंडन करती है। यह प्रक्रिया समस्त परमाणुओं के विखंडन तक चलती रहती है। इस बम का प्रयोग द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका द्वारा 6 और 9 अगस्त, 1945 को क्रमशः जापान के हिरोशिमा और नागासाकी नामक शहरों पर किया गया था।

हाइड्रोजन बमः हाइड्रोजन बम (Hydrogen bamb or h-bomd) में परमाणु संलयन (fuse) से विस्फोट होता है। इस संलयन के लिए बहुत ऊँचे ताप, लगभग 500,00,000० सें- की आवश्यकता पड़ती है यह परमाणु विस्फोट, जो कि विखंडन के द्वारा होता है, से प्राप्त होता है। इससे उत्पन्न ताप से हाइड्रोजन के समस्थानिक ड्यूटीरियम (deuterium) और ट्राइटियिम (tritum) में संलयन प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है और इस हाइड्रोजन परमाणु के विस्फोट के साथ ही बहुत अधिक ऊर्जा उत्पन्न होती है।

शृंखला अभिक्रिया (Chain Reaction): जब एक अभिक्रिया से स्वतः दूसरी अभिक्रिया होती है तो उसेशृंखला अभिक्रिया कहा जाता है। उदाहरणार्थ, यूरेनियम-235 के नाभिक पर जब न्यूट्रॉनों का प्रहार कराया जाता है, तब बड़ी मात्र में ऊर्जा और न्यूट्रॉन निर्मुक्त होते हैं जो अन्य नाभिकों का पुनर्विखंडन करते हैं, जिससे अतिरिक्त ऊर्जा और न्यूट्रॉन उत्पन्न होते हैं।

संवर्द्धित यूरेनियम (Enriched Uranium): नाभिकीय विखंडन के लिए यूरेनियम-238 की तुलना में यूरेनियम-235 अधिक उपयोगी होता है, क्योंकि यूरेनियम-235 का नाभिक अत्यधिक क्षणभंगुर होता है। फलतः यदि कम गति से भी कोई न्यूट्रॉन उससे टकरा जाये, तो वह उसे खंडित कर सकता है। यूरेनियम रिएक्टर में कुछ विशेष प्रक्रियाओं द्वारा उसमें विखंडन योग्य U235 की मात्र 0-7 प्रतिशत से बढ़ाकर 2 34 प्रतिशत तक की जाती है। इसी प्रक्रिया को यूरेनियम- संवर्द्धन (Enrichment of Uranium) तथा इस विधि द्वारा प्राप्त यूरेनियम को संवर्द्धित यूरेनियम कहा जाता है। प्रकृति में यूरेनियम प्रायः पिचब्लेन्ड के रूप में पाया जाता है।

परमाणु अवताप (Nuclear Fallout): नाभिकीय विस्फोट के पश्चात् रेडियोएक्टिव पदार्थ वायुमंडल में तैरने लगते हैं तथा बाद में धीरे-धीरे पृथ्वी की सतह पर जमा होने लगते हैं। इसे ही ‘परमाणु अवताप’ कहा जाता है। परमाणु अवताप तीन प्रकार का होता है-स्थानीय अवताप (Local Fallout), क्षोभमंडलीय अवताप (Tropospheric Fallout) तथा समतापमंडलीय अवताप (Stratospheric Fallout)। स्थानीय अवताप में विस्फोट के कुछ ही घंटों के भीतर लगभग 100 मील की परिधि में रेडियोएक्टिव कण यथा-स्ट्रांशियम, जमा हो जाते हैं, जबकि क्षोभमंडलीय अवताप में धरातल से लगभग 8 मील की ऊंचाई तक तथा समतापमंडलीय अवताप में 8 से 20 मील तक की ऊंचाई में रेडियोएक्टिव कण तैरते रहते हैं।

ताप नाभिकीय अभिक्रियाः अति उच्च तापमान पर सम्पन्न होने वाली नाभिकीय संलयन की क्रिया, जिसमें हल्के नाभिक आपस में जुड़ कर भारी नाभिकों को जन्म देते हैं और साथ ही अपार ऊर्जा का उत्सर्जन करते हैं। हाइड्रोजन बम के विस्फोट में संपन्न होने वाली ताप नाभिकीय अभिक्रिया, एटम बम के विस्फोट का परिणाम होती है।

भारत के नाभिकीय विद्युत कार्यक्रम टाइमलाइन

  • 1945: टाटा इंस्ट्यिूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (टी-आई-एफ-आरण्) की स्थापना।
  • 1948: परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1948 पारित तथा परमाणु ऊर्जा आयोग का गठन।
  • 1951: साहा परमाणु भौतिकी संस्थान, कोलकाता की स्थापना।
  • 1954: परमाणु ऊर्जा विभाग (डी-ए-ई-) की स्थापना।
  • 1956: ट्रॉम्बे में परमाणु अनुसंधान भट्ठी ‘अप्सरा’ कार्यशील।
  • 1957: परमाणु ऊर्जा प्रतिष्ठान, ट्रॉम्बे की स्थापना।
  • 1959: नाभिकीय कोटि के यूरेनियम धातु का प्रथम धातुपिंड परमाणु ऊर्जा प्रतिष्ठान, ट्रॅाम्बे में उत्पादन।
  • 1960: परमाणु अनुसंधान भट्ठी ‘साइरस’ पूर्ण क्षमता से कार्यशील।
  • 1961: परमाणु अनुसंधान भट्ठी ‘जरलिना’ का पूर्ण क्षमता से कार्य प्रारंभ।
  • 1962: नांगल के भारी जल संयंत्र द्वारा देश में पहली बार भारी जल का उत्पादन प्रारंभ।
  • 1964: परमाणु ऊर्जा प्रतिष्ठान के अन्तर्गत प्लूटोनियम संयंत्र चालू किया गया। दो ‘क्वथन जल भट्ठियां’ (बी-डब्ल्यू-आर) संयुक्त राज्य अमेरिका से खरीदी गयीं।
  • 1967: परमाणु ऊर्जा प्रतिष्ठान, ट्रॉम्बे का नया नाम भाभा परमाणु ऊर्जा अनुसंधान केन्द्र (बार्क) रखा गया।
  • 1969: तारापुर का व्यावसायिक प्रचालन प्रारंभ तथा चेननई के निकट कलपक्कम में अनुसंधान केंद्र की स्थापना।
  • 1972: प्लूटोनियम ईंधन वाली तीव्र भट्ठी ‘पूर्णिमा-I’ का ट्रॉम्बे में निर्माण।
  • 1974: पोखरण में पहला भूमिगत परमाणु परीक्षण।
  • 1981: देश की दूसरी नाभिकीय भट्ठी राजस्थान में पूर्णतःकार्यशील।
  • 1983: परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड की स्थापना।
  • 1984: पूर्णिमा-I का सुधार पूर्णिमा-II के रूप में किया गया, जिसमें विलयन के रूप में यूरेनियम-233 का प्रयोग किया गया।
  • 1985: स्वदेशी डिजाइन पर आधारित मद्रास परमाणु शक्ति स्टेशन व्यावसायिक रूप में चालू।
  • 1987: भारतीय परमाणु विद्युत निगम लिमिटेड (एन-पी-सी-आई-एल­) की स्थापना।
  • 1989: नरौरा शक्ति परियोजना की प्रथम इकाई पूर्ण क्षमता के साथ कार्यशील।
  • 1991: नरौरा शक्ति परियोजना की द्वितीय इकाई पूर्ण रूप से कार्यशील।
  • 1998: पोखरण में 11 मई को तीन नाभिकीय विस्फोट किये गये। इनमें से दो विखंडन विस्फोट और एक ताप नाभिकीय विस्फोट था। पुनः 13 मई को पोखरण में ही दो और विखंडन विस्फोट किये गये।
  • 1999: इंदौर के इंडस-1 एक्सीलरेटर द्वारा 113 मिली- एंपियर की इलेक्ट्रान पुंज धारा प्रवाहित। बार्क द्वारा परमाणु कचरे की रेडियो धर्मिता समाप्त करने हेतु बोरोसिलिकेट पात्र का निर्माण।
  • 2000: रावतभाटा परमाणु विद्युत गृह की तीसरी तथा कैगा परमाणु विद्युत गृह की दूसरी इकाई चालू।
  • 2001: रावतभाटा परमाणु विद्युतगृह की चौथी इकाई का व्यावसायिक उत्पादन प्रारंभ।
  • 2002: कुडनकुलम (तमिलनाडु) में परमाणु ऊर्जा संयंत्र स्थापित करने हेतु रूसी संघ से समझौता।
  • 2003: एफबीटीआर कार्बइड ईंधन के प्रसंस्करण प्रयोगशालीय 1-7 डमट टेंडेट्रन एक्सीलेटर चालू।
  • 2004: कलपक्कम में 540 मेगावाट की क्षमता वाले प्रोटोटाइप फास्ट ब्रीडर रियेक्टर के निर्माण की 3,492 करोड़ रुपये की परियोजना मंजूर।
  • 2006: भारत तथा अमेरिका के बीच परमाणु समझौते को अमेरिकी सीनेट की मंजूरी मिली।
  • 2007: कर्नाटक स्थित कैगा परियोजना की तीसरी इकाई का रिएक्टर प्रारंभ।
  • 2008: 6 सितंबर को 34 साल बाद भारत को एनएसजी से मंजूरी प्राप्त हुई। इससे वह अपने परमाणु रिएक्टरों के लिए न केवल परमाणु ईंधन पा सकता है वरन बाहरी देश उसे ईंधन, उपकरण और तकनीक मुहैया करने के अलावा भारत में संयंत्र भी लगा सकते हैं।
  • 2009: 24 नवंबर, 2009 को राजस्थान में रावतभाटा स्थित परमाणु विद्युत केन्द्र की 220 मेगावाट के पांचवें संयंत्र ने क्रिटिकैलिटी प्राप्त की।
  • 2010: भारतीय संसद द्वारा अगस्त, 2010 में परमाणु जन दायित्व विधेयक पारित किया गया। भारत के बीसवें न्यूक्लियर पॉवर प्लांट का संचालन आरंभ।
  • 2011: परमाणु ऊर्जा विभाग ने 20 जून 2011 को रुस की एक कंपनी रोएस्टम के साथ एक करार किया जिसमें हरियाणा में ग्लोबल सेंटर फॉर न्यूक्लियर इनर्जी पार्टनरशिप स्थापित किया जाना है।
  • 2013: तमिलनाडु स्थित कुडनकुलम परमाणु संयंत्र में 13 जुलाई को काम शुरू करने के बाद सभी परमाणु प्रक्रिया सफल रही और उसके सभी मानक खरे उतरे। यह देश का 21वां संयंत्र है जिसमें पहली बार लाइट वाटर कैटेगरी के प्रेशराइज्ड वाटर रिएक्टर का इस्तेमाल किया गया।
  • 2014: 7 जून, 2014 को तमिलनाडु के कुडन-कुलम में 1000 मेगावाट के परमाणु रिएक्टर की इकाई-1 ने ट्रायल में विद्यतु उत्पादन किया।
  • 2015: कुडनकुलम स्थित संयंत्र की इकाई-2 ने हॉट रन ऑफ न्यूक्लियर स्टीम सप्लाई सिस्टम को पूरा कर लिया।
  • 2017: कुडनकुलम परमाणु संयंत्र की इकाई-2 ने 100% की क्षमता का उपयोग कर महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की।

भारत के नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम के चरण

भारत के तीन चरणीय परमाणु कार्यक्रम को डॉ होमी भाभा ने 1950 में तैयार किया जिसका उद्देश्य देश को यूरेनियम और दक्षिण भारत के तटीय क्षेत्र में पाये जाने वाले मोनोजाइट रेत में उपलब्ध थोरियम के माध्यम से देश को दीर्घकालीन ऊर्जा सुरक्षा प्रदान करना कार्यक्रम तीन चरणीय था जो इस प्रकार हैं_

प्रथम चरणः इस चरण में ऊर्जा उत्पादन के लिए दाबित भारी जल रिएक्टरों (पीएचडब्ल्यूआर) में प्राकृतिक यूरेनियम को ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया गया और उप उत्पाद के रूप में प्लूटोनियम-239 की प्राप्ति होती है।

द्वितीय चरणः इस चरण में फास्ट ब्रीडर रिएक्टर (FBR) का प्रयोग होता है जिस में ईंधन के रूप में प्रथम चरण के उप उत्पाद प्लूटोनियम-239 का इस्तेमाल होता है इसमें यूरेनियम 238 और थोरियम-232 का मिश्रण होता है। यूरेनियम-238, प्लूटोनियम-239 में और थोरियम-232, यूरेनियम-233 में बदल जाता है। इस कारण इस चरण में उपभोग ईंधन से ज्यादा अवशेष के रूप में ईंधन प्राप्त होता है।

तृतीय चरणः इस उन्नत परमाणु ऊर्जा चरण में ब्रीडर रिएक्टर में ईंधन के रूप में यूरेनियम -233 का उपयोग होता है जिसमें थोरियम 232 का लेप लगाया जाता है जो यूरेनियम - 233 में बदल जाता है चूंकि भारत में थोरियम के पर्याप्त भंडार मौजूद हैं, इस कारण यह स्थायी और सतत चरण है।

भारत में परमाणु ऊर्जा विकास

परमाणु विद्युत उत्पादन के कार्यान्वयन की दृष्टि से ‘परमाणु विद्युत बोर्ड’ के स्थान पर सन् 1987 में ‘भारतीय परमाणु विद्युत निगम लिमिटेड’ की स्थापना की गयी तथा उसे देश के समस्त परमाणु विद्युत संयंत्रें के प्रारूप, निर्माण कार्य, संचालन और उत्पादन संबंधी उत्तरदायित्व को सौंपा गया। भारत में वर्तमान में 27 परमाणु रिएक्टर कार्यरत हैं जिनमें से साइरस (CIRUS) और राणा प्रताप सागर ऊर्जा संयंत्र कनाडा के सहयोग से तथा तारापुर परमाणु ऊर्जा संयंत्र अमेरिका की सहायता से स्थापित किये गये हैं। इनसे उत्पादित प्लूटोनियम का उपयोग भारत अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी द्वारा अनुमोदित प्रयोजनों के लिए ही कर सकता है।

परमाणु रिएक्टरों जैसे अप्सरा, जरलिना और पूर्णिमा आदि की स्थापना भारत ने स्वयं अपने प्रयासों से की है, जिनसे उत्पादित प्लूटोनियम आदि का उपयोग भारत अपनी इच्छानुसार कर सकता है। भारत ने 18 मई, 1974 को राजस्थान के जैसलमेर में पोखरण नामक स्थान पर अपना पहला नाभिकीय परीक्षण (पोखरण-I) किया था। इसमें प्लूटोनियम परमाणु बम का प्रयोग किया गया, जिसकी क्षमता 15 से 20 किलो टन तक थी। भारत द्वारा किये गये प्रथम विस्फोट की प्रमुख विशेषता यह थी कि इससे किसी प्रकार का नाभिकीय अवताप उत्पन्न नहीं हुआ। भारत ने 11 मई, 1998 और 13 मई, 1998 को जैसलमेर जिले के खेतोलोई गांव के पास दूसरी बार परमाणु परीक्षण (पोखरण-II) किया। 11 मई को तीन और 13 मई को 2 (यानी कुल 5) परीक्षण किये गये। इसके अंतर्गत एक किलोटन से भी कम ऊर्जा उत्सर्जन वाले (सब-किलोटन) परमाणु परीक्षण करके सुपर कंप्यूटर की मदद से प्रयोगशाला में ही परीक्षण करने का सामर्थ्य हासिल किया गया है। इस दौरान जो पांच परीक्षण किये गये उनमें से एक फिशन (Fission), तीन कम यील्ड वाले तथा एक थर्मोन्यूक्लियर परीक्षण था। इनमें से पहला परमाणु बम बनाने के लिए, दूसरा छोटा बम बनाने तथा बूस्टर फिशन (Booster Fission) के लिए तथा तीसरा परीक्षण हाइड्रोजन बम बनाने के लिए उपयुक्त था। हाल ही में परमाणु वैज्ञानिक के- संथानम ने इन परीक्षणों के सफल होने पर सवाल उठाये थे, जिन्हे भारत सरकार ने नकार दिया और परीक्षणों को सफल बताया है।

देश का पहला तीव्र प्रजनक रिएक्टर

भारत ने नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम के तहत विश्व में अपनी तरह का पहला तीव्र प्रजनक रिएक्टर विकसित किया है, जिसमें प्राकृतिक यूरेनियम के स्थान पर प्लूटोनियम 239 एवं यूरेनियम-233 के मिश्रित कार्बाइड का प्रयोग ईंधन के रूप में किया जायेगा। थोरियम को तीव्र प्रजनक रिएक्टर (एफबीआर) में यूरेनियम-233 में परिवर्तित किया जायेगा, जो नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम के तीसरे चरण के अंतर्गत बनने वाले परमाणु विद्युत गृहों में ईंधन के रूप में कार्य करेगा। भविष्य की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कलपक्कम में बनाए जा रहे प्रोटोटाइप फास्ट ब्रीडर रिएक्टर के बाद ऐसी लगभग 4 इकाइयां और बनानी होंगी और कई क्षेत्रें म्रें अनुसंधान एवं विकास गतिविधियां जारी रखनी होंगी। फास्ट रिएक्टरों के मामले में महत्वपूर्ण विकास क्षेत्रें को दो चरणों में बांटा जा सकता हैः

भारत में परमाणु संयंत्र

संयंत्र

इकाई

प्रकार

क्षमता (mwe)

वाणिज्यिक प्रचालन के आरम्भ की तिथि

तारापुर परमाणु शक्ति स्टेशन (महाराष्ट्र)

1

BWR

160

28 अक्टूबर, 1969

तारापुर परमाणु शक्ति स्टेशन (महाराष्ट्र)

2

BWR

160

28 अक्टूबर, 1969

तारापुर परमाणु शक्ति स्टेशन (महाराष्ट्र)

3

PHWR

540

18 अगस्त, 2006

तारापुर परमाणु शक्ति स्टेशन (महाराष्ट्र)

4

PHWR

540

12 सितम्बर, 2005

राजस्थान परमाणु शक्ति स्टेशन (राजस्थान)

1

PHWR

100

16 दिसम्बर, 1973

राजस्थान परमाणु शक्ति स्टेशन (राजस्थान)

2

PHWR

200

1 अप्रैल, 1981

राजस्थान परमाणु शक्ति स्टेशन (राजस्थान)

3

PHWR

220

1 जून, 2000

राजस्थान परमाणु शक्ति स्टेशन (राजस्थान)

4

PHWR

220

23 दिसम्बर, 2000

राजस्थान परमाणु शक्ति स्टेशन (राजस्थान)

5

PHWR

220

4 फरवरी, 2010

राजस्थान परमाणु शक्ति स्टेशन (राजस्थान)

6

PHWR

220

31 मार्च, 2010

मद्रास परमाणु शक्ति स्टेशन (तमिलनाडु)

1

PHWR

220

27 जनवरी, 1984

मद्रास परमाणु शक्ति स्टेशन (तमिलनाडु)

2

PHWR

220

21 मार्च, 1986

कैगा स्टेशन (कर्नाटक)

1

PHWR

220

16 नवम्बर, 2000

कैगा स्टेशन (कर्नाटक)

2

PHWR

220

16 मार्च, 2000

कैगा स्टेशन (कर्नाटक)

3

PHWR

220

6 मई, 2007

कैगा स्टेशन (कर्नाटक)

4

PHWR

220

20 जनवरी, 2011

कुडनकुलम, तमिलनाडु

1

WER

2000

31 दिसंबर, 2014

नरोरा परमाणु शक्ति स्टेशन (उ-प्र-)

1

PHWR

220

1 जनवरी, 1991

नरोरा परमाणु शक्ति स्टेशन (उ-प्र-)

2

PHWR

220

1 जुलाई 1992

काकरापार परमाणु शक्ति स्टेशन (गुजरात)

1

PHWR

220

6 जुलाई 1993

काकरापार परमाणु शक्ति स्टेशन (गुजरात)

2

PHWR

220

1 सितंबर 1995

परमाणु शक्ति संयंत्रें की कुल क्षमताः 6780 मेगावाट (MW)

1. 2020 तक स्थापित किये जाने वाले रिएक्टरः इस चरण के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए महत्व के विशिष्ट क्षेत्र हैं:

  1. उच्च वाष्प तापमान के इस्तेमाल से ताप कुशलता में 4 से 5 प्रतिशत सुधार। इसके लिए बेहतर सामग्री और ढांचेगत विश्लेषण क्षमता में वृद्धि की आवश्यकता होगी।
  2. फास्ट ब्रीडर ईंधन की रिप्रोसेसिंग टेक्नोलॉजी और ईंधन रीफैब्रीकेशन टेक्नोलॉजी का विकास।
  3. ईंधन के रिमोट फैब्रीकेशन की टेक्नोलोजी का विकास।
  4. लगभग 60 वर्षों तक चलने वाला डिजाइन इससे डिकमीशनिरी लागत कम होगी।
  5. प्राथमिक तथा मध्यवर्ती सर्किटों के लिए समन्वित सोडियम शुद्धीकरण सर्किट। इससे सुरक्षा बढ़ेगी और निर्माण समय कम होगा।

2. 2020 के बाद स्थापित किये जाने वाले रिएक्टरः इस चरण के लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए महत्व के विशिष्ट क्षेत्र निम्नलिखित हैं:

  1. संयंत्र की निर्धारित क्षमता को 1000 मेगावाट या अधिक तक बढ़ाना।
  2. फास्ट ब्रीडर रिएक्टरों की क्षमता वृद्धि के लिए संक्षिप्त डबलिंग ईंधन विकसित करना। ईंधन सामग्री धातु या नाइट्राइड हो सकती है।
  3. संयंत्र निर्माण तथा संयंत्र परिचालन में किफायत के लिए श्रेष्ठतम डिजाइन।

2020 के बाद, भारतीय नाभिकीय कार्यक्रम के आधार के रूप में दाबित गुरु जल रिएक्टरों का स्थान फास्ट ब्रीडर रिएक्टर लेना शुरू कर देगा, इसलिए हमें थोरियम के उपयोग के टेक्नोलोजी विकसित करना जारी रखना होगा। कलपक्कम में थोरियम से निकाले जाने वाले यूरोनियम 233 ईंधन पर आधारित एक अनुसंधान रिएक्टर कामिनी काम कर रहा है।

यह ईंधन देश में ही तैयार, पुनर्विघटित और संयोजित किया गया है। इस गुरुजल रिएक्टर का भौतिकी डिजाइन इस प्रकार तैयार किया गया है कि थोरियम से लगभग 65% ऊर्जा तैयार की जा सकती है।