सल्फर डाइ ऑक्साइड कोयले के जलने, विद्युत शक्ति संयंत्रें एवं पेट्रोलियम शोधन से सल्फर डाइ ऑक्साइड गैस निकलती हैं। इसी के साथ कुछ मात्र में सल्फर ट्राइ ऑक्साइड भी निकलती हैं। प्राकृतिक स्रोतों में ज्वालामुखी प्रमुख है। हाइड्रोजन सल्फाइड गैस प्राकृतिक रूप से सल्फर को अपचयित करने वाले जीवाणुओं से प्राप्त होती है तथा दलदली भूमि से निकलती रहती है। यह गैस जीवाष्म ईधनों के आंशिक रूप से जलने एवं अनेक उद्योगों में द्वितीयक उत्पाद के रूप में प्रकट होती है। नाइट्रोजन की विभिन्न ऑक्साइड गैसें अनेक जीवाश्म इंधनों के ज्वलन तथा विस्फोटक उद्योगों से निकलकर वायुमण्डल में मिल जाती हैं।
आजकल होने वाली 60 से 70 प्रतिशत अम्लीय वर्षा सल्फर के विभिन्न ऑक्साइड से होती है। 30 से 40 प्रतिशत अम्लीय वर्षा नाइट्रोजन के ऑक्साइड एवं अन्य कारणें से होती है।
अम्लीय वर्षा के दुष्प्रभाव
अम्लीय वर्षा के अत्यंत घातक परिणाम होते हैं जिनमें प्रमुख निम्न प्रकार हैं-
आगरा से 40 किमी दूर मथुरा का तेल शोधक कारखाना है जो प्रतिदिन 25 से 30 टन सल्फर डाइ ऑक्साइड गैस वायुमण्डल को देता है। इसी कारण आगरा के वायुमण्डल में सल्फर डाइ ऑक्साइड की मात्र 1.75 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है। इसके कारण ताजमहल पर कहीं-कहीं संक्षारक धब्बे दिखाई देते हैं।
अम्लीय वर्षा से स्वीडन की बीस हजार झीलों की मछलियाँ मर गई। जर्मनी के जंगलों को अम्लीय वर्षा से अपार क्षति पहुँची है। अम्लीय वर्षा को नियत्रिंत करने के लिये सल्फर एवं नाइट्रोजन के ऑक्साइडों के प्रयोग में कमी लाना आवश्यक है।