Question : "लोक प्रशासन तथा निजी प्रशासन एक ही जींस की दो स्पीशीज हैं, परंतु उनके अपने-अपने विशेष मूल्य एवं तकनीकें भी हैं।" टिप्पणी कीजिए।
(2007)
Answer : सामान्यतः लोक प्रशासन में लोक सार्वजनिक अर्थात् जनता से जुड़ा होने के कारण ‘सरकारी’ का भावार्थ नहीं देता है। किंतु जब लोक प्रशासन की निजी प्रशासन से तुलना करते हैं तो स्वतः ही ऐसा मालूम पड़ता है कि लोक प्रशासन में लोक का अर्थ सरकारी से है, वास्तव में यह सत्य है। यह सही है कि लोक प्रशासन तथा निजी प्रशासन दोनों में प्रशासन शब्द समान रूप से प्रयुक्त होता है। दोनों ही किन्हीं उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु संगठित प्रयास करते हैं लेकिन इन दोनों में समानताएं होते हुए भी बहुत-सी असमानताएं हैं। इन दोनों प्रशासनों के मध्य समानता के कुछ तत्व विद्यमान हैं। दोनों ही प्रशासनों में संगठन के सिद्धात तथा आधार समान होते है तथा दोनों ही ये समान कार्यालयी व्यवस्था अपनायी जाती है। लोक प्रशासन तथा निजी प्रशासन दोनों में कार्यरत कर्मचारियों को एक समान प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। धन या वित्तीय व्यवस्था दोनों प्रशासन की सामान्य कड़ी है।
दोनों प्रशासन की अपनी कार्यकुशलता अपने कर्मचारी वर्ग पर निर्भर हैं। दोनों प्रशासन लोकप्रिय समर्थन प्राप्त करने हेतु अपने-अपने क्षेत्र में जनसंपर्क स्थापित करते हैं। दोनों प्रशासनों में उत्तरदायित्व के एक निश्चित भावों को स्वीकारना पड़ता है। प्रशासन चाहे शासकीय तौर पर किया जाए या निजी तौर पर, संगठन की आवश्यकता पड़ती है। संगठन प्रशासन का शरीर है, दोनों के प्रशासन के उत्तरदायित्व समान होते हैं, इसका कारण यह है कि पदाधिकारियों के उद्देश्य एक समान होते हैं। वे अपने नियत कार्य क्षेत्र में काम करते हुए उपलब्ध मानवीय एवं भौतिक सामग्री को इस प्रकार प्रयुक्त करते हैं ताकि यथा सम्भव अच्छे परिणाम प्राप्त किया जा सके।
वर्तमान समय में यह माना जा रहा है कि निजीकरण, वैश्वीकरण, उदारीकरण तथा तकनीकी विकास के परिणामस्वरूप लोक एवं निजी प्रशासन में समानताएं बढ़ रही हैं। लेकिन लोक प्रशासन तथा निजी प्रशासन में पर्याप्त मात्रा में व्यापक असमानताएं भी हैं। लोक प्रशासन का स्वरूप नौकरशाही नुमा होता है, जबकि निजी प्रशासन का स्वरूप व्यापारिक होता है। लोक प्रशासन राजनीतिक वातावरण के अधिक समय है जबकि निजी प्रशासन अराजनीतिक होता है। लोक प्रशासन में अकर्मण्यता, कमजोरी तथा लाल-फीताशाही की व्याधियां हैं, जबकि निजी प्रशासन समान्यतः इन व्याधियों से मुक्त है। लोक प्रशासन में एकरूपता पाई जाती है, जबकि निजी प्रशासन में विभिन्नताएं व्याप्त हैं।
लोक प्रशासन में वाह्य वित्तीय नियंत्रण पाया जाता है जबकि निजी प्रशासन आन्तरिक वित्तीय नियंत्रण रखता है। लोक प्रशासन जनता के प्रति जवाबदेह होता है, लेकिन निजी प्रशासन में प्रायः ऐसा नहीं होता है। लोक प्रशासन का मुख्य ध्येय जनकल्याण तथा सामुदायिक सेवाएं देना है, लाभ कमाना नहीं, जबकि निजी प्रशासन लाभोन्मुखी होता है। इसके अतिरिक्त व्यापकता, प्रभाव तथा महत्ता की दृष्टि से दोनों में अन्तर है। सार्वजनिक जवाबदेयता तथा राजनीतिक स्वरूप भी दोनों को अलग करता है। जिम्मेदार लोक प्रशासन का राष्ट्र के निर्माण में विशेष योगदान होता है, जबकि निजी का ऐसा नहीं है। दोनों में अन्तर अधिक स्पष्ट है लेकिन यह अन्तर जाति का है जींस का नहीं। लेकिन उनकी कार्य करने की तकनीकें अलग-अलग हैं।
Question : मनोबल का क्या अर्थ होता है? ऐसा विश्वास किया जाता है कि ‘मनोबल और उत्पादकता हाथ पकड़ साथ-साथ चलते हैं और जितना उच्च मनोबल होगा, उतनी उच्च उत्पादकता होगी।’ क्या आप इस बात से सहमत हैं?
(2007)
Answer : मनोबल अर्थात् मन का बल, अर्थात् मनुष्य के अन्तस में अवस्थित मानसिक शक्ति तथा उसकी आत्मा के विश्वास का द्योतक मनोबल ही है। मन को बल प्रदान कराने वाली क्रियाविधि ही मनोबल कहलाती है। यह किसी विशिष्ट समय में व्यक्ति या समूह द्वारा प्रदर्शित, आत्मविश्वास, उत्साह तथा दृढ़ता आदि की मात्रा से भी संदर्भित हो सकती है। मनोबल को संतुष्टि की वृत्ति, निरन्तरता की इच्छा का भी पर्याय कहा जा सकता है। यह किसी विशेषीकृत समूह या संगठन के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति एवं स्वीकृति का माध्यम है। मनोबल व्यक्ति में भावनात्मक रूप से वह स्थिति है, जो व्यक्ति को कार्य निष्पादन हेतु अपार ऊर्जा, उत्साह तथा आत्मविश्वास की उच्च स्थिति प्रदान करती है। मनोवैज्ञनिक दृष्टिकोण से मनोबल साहस, पौरूष, निश्चय, विश्वास, दृढ़ता जैसे मनोवैज्ञानिक गुणों की उत्त्पत्ति है। इन मनोवैज्ञानिक गुणों की एकीकृति मनोबल कहलाती है।
मनोबल व्यक्ति या समूह के मानसिक व्यवहार का दर्पण है। इसके माध्यम से कर्मचारी यह अनुभूत करने लगता है कि उसके तुष्टिपूर्ण कार्यों एवं संगठन के लक्ष्यों की प्रतिपूर्ति में एक तरह का साम्य है। कार्मिक मूलतः संगठन के हित में ही अपने हित को भी देखने लगता है। इस प्रकार मनोबल वह विशिष्ट बल है, जो व्यक्ति को कार्य के कुशल निष्पादन हेतु अपार ऊर्जा एवं स्फूर्ति प्रदान करता है। यह किसी कार्मिक का कार्य के निमित्त उसकी वृतियों का भी विम्ब है। मनोबल की अग्रांकित विशिष्टताएं होती हैं:
मनोबल, व्यक्ति या समूह में कार्यरत व्यक्तियों के अन्तस में अवस्थित दृढ़ता तथा विश्वास का घातक है।
मनोबल एक काल्पनिक अभिवृत्ति है जो व्यक्ति के अन्तस को विशिष्ट प्रकार से कार्यरत रहने हेतु प्रेरित करती है।
मनोबल को सामान्यतः समूह के साथ संगुम्फित किया जाता है। यह सामूहिक वृत्ति को दर्शित करता है।
मनोबल सकारात्मक एवं नकारात्मक हो सकता है। जहां सकारात्मक मनोबल व्यक्ति को कार्य में सहजता का अनुभव करता है, वहीं नकारात्मक मनोबल व्यक्ति को कार्य में दुरूहता के पक्ष का अधिक अनुभव कराता है।
मनोबल, मानसिक क्रियाओं यथा विश्वास, उत्साह, आशा अनुशासन साहस इत्यादि का द्योतक है।
किसी सामूहिक व्यक्तिगत उद्देश्य की सम्प्राप्ति के निमित्त किसी व्यक्ति समूह की दृढ़तापूर्वक और निरन्तरता से कार्यरत रहने की अपार इच्छा ही मनोबल कहलाती है। समग्र रूप से यह कहा जा सकता है कि मनोबल एक भावनात्मक अन्तस में उद्भूत मानसिक स्थिति है, जो कार्य करने की इच्छा को सकारात्मक या नकारात्मक ढंग से प्रभावित करती है और व्यक्ति की इसी अदम्य इच्छा से ही व्यक्तिगत एवं संगठनात्मक लक्ष्य सकारात्मक या नकारात्मक ढंग से प्रभावित होते हैं।
सामान्यतः मनोबल समूह से संदर्भित होता है, जबकि अभिप्रेरणा पूर्णतया एकांगिक होती है। वस्तुतः अभिप्रेरणा एक प्रक्रिया है जिसका सम्बन्ध आवश्यकता एवं उसकी प्रतिपूर्ति तक ही सीमित है जबकि मनोबल आत्मबल है। अभिप्रेरणा कार्य करने की इच्छा एवं शक्ति के मध्य माध्यम का कार्य करती है जबकि मनोबल तो स्वयं कार्य करने के इच्छा एवं शक्ति का परिचालक है। अभिप्रेरणा व्यक्ति की प्रतिष्ठा, अस्तित्व, स्वाभिमान, उपलब्धि तथा आत्मविकास से संप्रेरित होती है, जबकि मनोबल व्यक्ति या समूह की मानसिक वृत्ति है।
किसी संगठन में कार्य निष्पादन हेतु मनोबल अत्यावश्यक है, मनोबल की उपस्थिति संगठन की सफलता हेतु उत्प्रेरण का कार्य करती है। वस्तुतः संगठन की उत्पादकता का निर्धारण उच्च या निम्न मनोबल ही निर्धारित करता है। प्रबन्धकों को संगठन में उच्च मनोबल बढ़ाने हेतु महत्वपूर्ण प्रयास करने चाहिए। उन्हें मनोबल को प्रभावित करने वाले कारकों का भली प्रकार से संज्ञान होना चाहिए। संगठन में मनोबल को प्रभावित करने वाले कारक निम्नांकित होते हैं-
(i) स्तरहीन कार्य (ii) बंकमास्टरशिप (अधीनस्थों पर निर्भरता) (iii) सख्त नियंत्रण (iv) षडयन्त्र (v) नेतृत्व की अक्षमता (vi) वेतन व भत्ते (vii) निहित स्वार्थ (viii) संचार तथा समन्वय व्यवस्था (ix) अमानवीय कार्य दशाएं (x) असुरक्षा की भावना (xi) प्रशिक्षण, पुरस्कार एवं शक्ति के प्रावधान (xii) कार्य तथा व्यक्तियों की प्रकृति (xiii) पर्यवेक्षण (xiv) शिकायत निदान व्यवस्था (xv) बाह्य एवं आंतरिक हस्तक्षेप (xvi) जनसहयोग (vii) प्रेस का रूझान (viii) संगठन की विधियां एवं नीतियां (xix) सामाजिक, आर्थिक तथा राजनैतिक परिस्थितियां आदि।
वस्तुतः मनोबल का ह्रास देश, काल, समाज, संस्कृति, संगठन नेता परिस्थितियों तथा परस्पर अर्न्तक्रियाओं के साथ ही व्यक्ति विशेष की मनोवृति पर भी आश्रित होती है। मूलतः मनोबल एवं अभिप्रेरणा संगुम्फित हैं एवं एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं। सामाजिक दृष्टि से देखा जाये किसी भी कार्य की निरापद सफलता हेतु मनोबल उच्च होना अत्यावश्यक है। सरकार का मनोबल तभी बढ़ेगा जबकि लोक सेवकों का मनोबल उच्च होगा। प्रशासन में मनोबल उच्च रखने के लिए अथक परिश्रम, स्वाभिमान एवं आत्मगौरव, सामूहिक कार्य करने की वृत्ति, निष्ठा अनुशासन, उत्साह, एवं असीमित मानव ऊर्जा के नियोजन की नितांत आवश्यकता होती है।
सच्चे अर्थों में मनोबल प्रशासन की उर्वरा शक्ति है, इसे उच्च रखने हेतु प्रेरणाओं की महत्ती आवश्यकता होती है। संगठन में कार्य का विभाजन इस आधार पर किया जाना चाहिए कि किसी कर्मचारी को असंगत अपमान न महसूस हो। यदि कर्मचारी स्वयं को संगठन रूपी भवन की ईंट मान लेगा तो उस कर्मचारी की कार्य क्षमता का लाभ निश्चित रूप से संगठन को भी प्राप्त होगा ही।
अतः सुस्पष्ट है कि मनोबल और उत्पादकता हाथ पकड़कर साथ-साथ रमण करते हैं और मनोबल जितना श्रेष्ठ होगा उतनी ही उच्च उत्पादकता होगी।
Question : यदि "लोक प्रशासन को हमारे जटिल समाज के शासन में एक प्रमुख विधि सम्मतकारी भूमिका निभानी है, तो उसके ज्यादा पूरी तरह से संकल्पनाकृत होने की आवश्यकता है।" चर्चा कीजिये।
(2006)
Answer : वर्तमान आधुनिक समाज में वैश्वीकरण, निजीकरण जैसी विकसित अवधारणायें एवं सकल घरेलू उत्पाद और अर्थव्यवस्था से अत्यधिक प्रभावित राजव्यवस्था और राज्य के द्वारा निर्मित नीतियां और लोकतांत्रिक सुदृढ़ीकरण का आदर्श हैं। इस परिप्रेक्ष्य में लोक प्रशासन को अधिक विधिसम्मतकारी भूमिका के निर्वाह के लिये आवश्यक ही नहीं बल्कि अनिवार्य शर्त बन जाता है कि वह ज्यादा से ज्यादा संकल्पनाओं को धारण करे, जो उसके लोकतांत्रिक स्वरूप को शब्द और आत्मा दोनों रूपों में परिपूर्णता दे सके।
अतः इस विधिसम्मतकारी स्वरूप को प्राप्त करने की आवश्यकतायें इस प्रकार हैं- विधि आधारित सत्ता, अधिकतम प्रभावशीलता, संबंधों में विश्वास व सुदृढ़ता, लोकतांत्रिक उत्तरदायित्व, संवैधानिक सटीकता, राजकोषीय अनुशासन, वितरण तंत्र की पारदर्शिता इत्यादि यानि कुल मिलाकर अच्छे अभिशासन की व्यवस्था। यदि संकल्पना और व्यवहार में मौजूद हैं, तो वह लोक प्रशासन के विधिसम्मत रूप को सुनिश्चित करेगी। पारंपरिक अवधारणायें जैसे- लोकनीति (एल. डी. व्हाइट), कार्यपालिका शाखा (गुलिक एवं उर्विक), कानून का व्यवस्थित कार्यपालन (वुडरो विल्सन) इत्यादि किसी न किसी परिप्रेक्ष्य में कुछ कमियों से ग्रस्त है। इस निमित्त ‘लोक’ शब्द में विद्यमान नैतिकता और ‘प्रशासन’ की प्रभावशीलता का संतुलन बिठाना मुश्किल हो जाता है। अतः "लोकस" का संस्थागत् प्रश्न और "फ़ोकस" का कार्यक्षेत्र निर्धारण एक बौद्धिक विश्लेषण के एक बिंदु पर ठहर जाता है और विषय में पुनर्संकल्पनाओं की आवश्यकता और औचित्य को सामने लाता है।
संकल्पनाओं के विकास के चरण और वर्तमान स्थापनायें इस प्रकार हैं- बहु-विषयी या अंतः-विषयी स्वरूप को अपनाना, लोकनीति आधारित नव तुलनात्मक लोक प्रशासन (जॉर्ज. एम. गॉस); नीतियों का वैश्विक जाल, नव लोक प्रबंध व उद्यमीय सरकार आंदोलन; पारदर्शिता; उत्तरदायित्व; सहभागिता और पूर्वकथन के आधार पर अच्छा अभिशासन; राज्य, सिविल सोसाइटी और बाजार की सहभागिता पर बनी एकीकृत शासन व्यवस्था, लोकव्यय में कर्म साथ ही प्रभावशाली निष्पादन, इत्यादि।
अतः अवधारणात्मक चुनौती से तात्पर्य- मूल्यों और तथ्यों में संतुलन लाना, विस्तृत सहभागिता के साथ केंद्रीयता; एक अलग पहचान और बहु-विषयों की समझ; नित नूतन आयामों के साथ तारतम्यता तथा लोकतांत्रिक व्यवस्था में सेवा का भाव इत्यादि।
वर्तमान लोक प्रशासन का स्वरूप एक बहु-विषयी लोक विज्ञान के रूप में उभर कर सामने आ रहा है, जो मित्यत्यता, कुशल, प्रभावशीलता और समता (4 Es-Economy, Efficiency, Effectively and Equity) के चार स्तंभों पर खड़ा हुआ है। जिसमें ‘प्रशासन’ उसका साधन है और ‘लोक’ उसका साध्य।