Question : आज प्रशासनिक विधि की अंतर्वस्तु मुख्य रूप से लोक प्रशासनिक क्रियाकलाप की परिधि के द्वारा परिचालित होती है। स्पष्ट कीजिए।
(2006)
Answer : प्रशासनिक कानून अपने विस्तृत भाव में कानून का वह पूरा समूह है जो लोक प्रशासन से संबंधित है। बार्थलैमी (Barthelemy) के अनुसार प्रशासनिक कानून उन सभी सिद्धांतों का समूह है जिनके अनुसार कानून को लागू करने में लगी हुई लोक सेवाओं (न्यायपालिका के अतिरिक्त) की गतिविधि का प्रयोग होता है।
यह लोकविधि की दो बड़ी शाखाओं में से एक है। संविधानिक कानून का संबंध सरकार की मशीनरी की संरचना से होता है, जबकि प्रशासनिक कानून उन अंगों का अध्ययन करता है, जिनसे वह मशीनरी बनायी गयी है, प्रशासनिक कानून में वे सभी वैधानिक नियम, चार्टर, प्रस्ताव, नियम, अधिनियम, न्यायिक निर्णय और आदेश सम्मिलित हैं, जिनका प्रशासनिक अधिकारियों की संरचना, उनमें कार्यों का विभाजन, उनकी शक्तियां और कार्यविधि, उनके कार्मिक तथा वित्त और उनके उत्तरदायित्व पर प्रभाव पड़ता है।
प्रशासनिक कानून की महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि यह कॉमन लॉ (Common Law) पर आधारित व्यक्तिगत स्वतंत्रता और निजी संपत्ति के अधिकारों को सामाजिक अथवा सामूहिक कल्याण की धारणा के अधीन करता है। सामूहिक अथवा सामाजिक हित की प्राप्ति के लिये यह व्यक्ति की निजी संपत्ति अथवा स्वतंत्रता पर अनिवार्य प्रतिबंध लगाने से झिझक नहीं करता। यह व्यक्ति की स्वतंत्रता के विपरीत सामाजिक हित पर अधिक बल देता है। यह कानूनी सिद्धांत के प्रति व्यक्ति के कर्तव्यों पर अधिक बल देता है और आधुनिक औद्योगिक समाज की सामाजिक आवश्यकताओं पर आधारित अपने नये सिद्धांत की स्थापना करता है।
चूंकि प्रशासनिक कानून का उद्देश्य व्यक्ति के अधिकारों को लागू करना नहीं वरन् सामाजिक सुधार की नीतियों को आगे बढ़ाना है। उदाहरणतया लोक स्वास्थ्य, आवास, शिक्षा आदि का अधिक विकास करना। यह कुछ पूर्व-निर्मित कानूनी नियमों अथवा निर्देशों का अनुकरण करने की अपेक्षा भिन्न-भिन्न स्थितियों पर लागू किये जाने वाले लचीचे मानक निर्धारित करता है। अतः प्रशासनिक कानून यह कह सकता है कि रेलवे की दर-संरचना उचित होनी चाहिये, कि पानी के निकास की व्यवस्था यथोचित पर्याप्त होनी चाहिए, व्यापार वाणिज्य के महत्वपूर्ण क्षेत्रों में अनुचित व्यवहार की अनुमति नहीं दी जायेगी आदि-आदि। एक स्थिति में उपयुक्त अथवा अनुपयुक्त क्या है अथवा उचित अथवा अनुचित क्या है, इसको निश्चित रूप से नहीं बताया जाता है? अपितु निर्णय प्रशासक के हाथ में छोड़ दिया जाता है।
इसी प्रकार प्रशासनिक कानून द्वारा स्थापित बहुत सारे मानक ऐसे विषयों से संबंधित होते हैं, जो बहुत ही तकनीकी स्वभाव के हैं। उदाहरणतया एक पर्याप्त स्वास्थ्य-सेवा किसे समझा जाना चाहिये, अथवा एक जलपोत का समुद्र पर चलाने की उपयुक्तता क्या होती है आदि-आदि। अतः व्यक्तिगत स्थितियों में इनको लागू करना इनकी व्याख्या को प्रशासनिक न्यायालयों की सौंप दिया जाता है, जिनके न्यायाधीश केवल कानून में प्रशिक्षित होते हैं। इससे स्पष्ट है कि साधारण न्यायालयों के कानून में प्रशिक्षित न्यायाधीश आसानी से यह नहीं समझ सकते कि क्या रेलवे दर-संरचना अथवा किसी पुल की सुरक्षा के लिये उसके प्रयोग पर लगाये प्रतिबंध (यातायात) उचित है अथवा नहीं, अथवा बीमा-व्यापार के क्षेत्र में एक व्यवहार उचित है अथवा नहीं। इनको ठीक-ठाक समझने के लिए और निर्णय करने के लिए एक विशेषज्ञ विषयवस्तु से संबंधित क्षेत्रों के अनुभव की पृष्ठभूमि का हो, की आवश्यकता होती है। अतः प्रशासनिक कानून इस परिप्रेक्ष्य में भी लोक प्रशासन के ज्ञान, अनुभव और कार्य रूप के वृत्त में ही स्वयं को प्रकट करता है।
प्रशासनिक कानून साधारणतया नागरिकों की अपेक्षा लोक अधिकारियों को विशेषाधिकार की स्थिति प्रदान करता है और लोक सेवाओं के कुशल प्रबंध करने के लिए अनिवार्य मात्रा में स्व-निर्णय तथा स्वतंत्रता प्रदान करता है। इसी कारण लार्ड हीवर्ड (Lord Hewart) जैसे व्यक्तियों ने इसकी आलोचना की है। उन्होंने कहा कि प्रशासनिक कानून तथा न्यायालायों का विकास प्रशासनिक अधिकारियों का एक प्रकार का नया तानाशाही शासन है, परन्तु डायसी जैसे विधि के शासन (Rule of Law)के प्रसिद्ध समर्थकों को भी मानना पड़ा कि प्रशासनिक कानून के अधीन लोक-अधिकारियों को जो अधिक स्व-निर्णय और स्वतंत्रता की जाती है, वह अवश्यभावी है, क्योंकि लोकहित की सुरक्षा के लिये वर्तमान राज्य को व्यापार में जाना ही जरूरी था। जब राज्य उस व्यापार का प्रबंध करने लगता है, जिसको पहले प्रत्येक व्यक्तिगत नागरिक अपने हित में चलाया करता था, तो सरकार को उस स्वतंत्रता की आवश्यकता होती है जो अपने व्यापार का प्रबंध चलाने के लिये एक व्यक्तिगत नागरिक को प्राप्त होती है।
अतः हम कह सकते हैं कि प्रशासकीय विधि या कानून की विषयवस्तु प्रशासकीय क्रियाकलापों की परिधि में होती है। राजनीतिक चिंतन और दर्शन की दृष्टि से जिस प्रकार इंग्लैण्ड ‘विधि के शासन’ के लिये विख्यात है, उसी प्रकार फ्रांस ‘प्रशासकीय विधि’ और न्यायालयों की व्यवस्था के लिये प्रसिद्ध है।
Question : संप्रति प्रशासनिक विधि की अर्न्तवस्तु मुुख्य रूप से लोक प्रशासन कार्यकलाप की व्याप्ति के द्वारा चालित है। स्पष्ट कीजिए।
(2005)
Answer : लोक प्रशासकों को अपनी शक्तियों को क्रियान्वित करने में सदैव विवेकाधीन सत्ता प्राप्त होती है। प्रशासनिक कानून, कानूनों का वह समूह है जिसका सम्बन्ध सार्वजनिक प्रशासन से है। प्रशासनिक कानून उन सभी सिद्धान्तों का समूह है, जिनके अनुसार कानून को लागू करने में लगी हुई लोक सेवाओं की गतिविधि का प्रयोग होता है। यह प्रशासनिक प्राधिकरण के संगठन, शक्तियां तथा कर्त्तव्यों का निर्धारण करता है। प्रशासनिक अभिकरणों की शक्तियां तथा कार्यविधियों से सम्बधित कानून ही प्रशासनिक कानून है।
प्रशासनिक कानून के क्षेत्र के अन्तर्गत वे सभी कानून, नियम, अध्यादेश, आदेश, प्रस्ताव, परम्पराएं तथा निर्णय सम्मिलित किए जाते हैं जो लोक प्रशासन की संरचनाएं, कार्य, प्रकृति, प्रक्रिया
अधिकारों, शक्तियों कर्त्तव्यों तथा कार्यविधि को प्रभावित करते हैं और जिनसे कार्मिक, वित्त व उत्तरदायित्व पर प्रभाव पड़ता है। वही संकीर्ण अवधारणा में प्रशासनिक कानून का अर्थ मा=ा प्रशासनिक अधिकारियों के कर्त्तव्यों तथा स्वविवेकीय शक्तियों को सम्मिलित किया जाता है। यूरोपीय देशों में लोक प्रशासन का अध्ययन मुख्यतः प्रशासनिक कानून के अधीन ही किया जाता है। फ्रांस में प्राचीन राजतन्त्र में सरकारी अधिकारियोें के अलग कानून थे, इसी कारण प्रशासनिक कानून की उत्पत्ति का ड्डोत फ्रांस का प्राचीन राजतन्त्र ही कहा जाता है। प्रशासनिक कानून को अपनाने का व्यावहारिक कारण फ्रांस के लोगों की यह धारणा है कि न्यायाधीश सरकारी कर्मचारियों के विरूद्ध होते हैं। वही उनके द्वारा सरकारी अधिकारियों की कठिनाई को न समझते हुए उनके कर्त्तव्य-पालन में बाधक तत्व का कार्य करते हैं। अतः प्रशासनिक कानून के कारण फ्रांस में सरकारी कर्मचारियों के लिए न्याय की अलग व्यवस्था है। सरकारी कर्मचारी प्रशासन के नियमों से प्रशासित होते हैं जबकि साधारण नागरिकों के लिए सामान्य विधि की व्यवस्था है। प्रशासकीय विधि वस्तुतः प्रशासकीय न्यायालयों के निर्णयों का एक समूह है, इसकी तुलना इंग्लैण्ड के न्यायाधीशों द्वारा निर्मित विधि से की जाती है।
प्रशासनिक कानून सभी देशों में प्राचीन समय से पाया जाता है, पर आधुनिक काल में इसका अद्भुत विकास हुआ है। इसका कारण औद्योगिक क्रांति, प्रशासकीय कानून का लचीलापन, विशेषज्ञों और तकनीकी ज्ञाताओं का सहयोग, प्रयोगात्मक व व्यावहारिक विधि, प्रशासकों का स्वविवेक है। आधुनिक काल में सरकारों के कार्यों में बहुत अधिक वृद्धि हुई है। औद्योगिक वृद्धि अधिक होने के कारण सभ्यता का शहरीकरण हुआ है। जब औद्योगिक क्रांति हुई तो उत्पादन के साधन और कार्य कतिपय व्यक्तियों के केन्द्रीभूत हो गए। समाज के आर्थिक जीवन में बहुत परिवर्तन आया। पूंजीपति आगे बढ़ने लगे। जिस कारण लोक कल्याण सरकार की चिन्ता का मुख्य कारण बना। सामूहिक हित के लिए व्यक्तिगत स्वच्छन्दता को दबाना पड़ा। अब तक सामान्य कानून से व्यक्तिगत स्वतन्त्रता की रक्षा होती थी परन्तु अब ऐसे कानून बने जो पुराने कानून को दबाकर जन कल्याण का हित करने लगे। वहीं से प्रशासनिक कानूनों का प्रारम्भ हुआ।
सामान्य कानून में व्यक्ति की प्रतिष्ठा प्रधान है। सार्वजनिक स्वास्थ्य, आवास, शिक्षा आदि जिन पर प्रशासनिक कानून जोर देता है। सामयिक विवेक कर प्रशासनिक कानून में अंग स्थान है। इसलिए यह लचीला होता है, इसी कारण इसे अधिक महत्व प्राप्त हुआ। प्रशासनिक कानून में विशिष्ट विषयों के लिए विशेष अधिकारियों की नियुक्ति की गई। सामान्य न्यायालयों के न्यायाधिकारी कानून मात्र के ज्ञाता होते हैं, अतः तकनीकी मामलों में निर्णय लेने में यह असफल हो जाते हैं। प्रशासनिक कानून के उत्तरोत्तर विकास का यह कारण था।
प्रशासकीय कानून नियम तथा अधिनियम का मार्ग अपनाता है। यह व्यावहारिक अधिक ध्यान देता है। इस कारण इसका विकास तेजी से हो रहा है। प्रशासकीय अधिकारियों को अपने कर्त्तव्यों के निर्वाह हेतु स्वविवेक से काम लेने की छूट होती है एवं ये जनता को विभिन्न सुख सुविधाएं उपलब्ध करा सकते हैं। प्रशासनिक अधिकारी निर्णय निर्धारण करते है तथा विभिन्न आदेश-निवेश जारी करते हैं। जिस कारण प्रशासकीय कानून में वृद्धि होती है तथा विकास होता है।
प्रशासनिक कानून विधि की यह संहिता है जो लोक प्रशासन के कार्यों तथा लोकसेवकों के अन्य व्यक्तियों तथा राज्य के अन्य प्राधिकारियों के साथ सम्बन्धों की व्याख्या करती है।
Question : प्रत्यायोजनी विधान आत्यंतिक नहीं होता है। इसको समझाइए।
(2004)
Answer : प्रत्यायोजनी विधान प्रशासन की सर्वाधिक महत्वपूर्ण समस्याओं में से एक है। विधि निर्माण संसद का कार्य है, लेकिन संसद द्वारा आज जितनी भी विधियां पारित की जाती हैं, उनका स्वरूप क्रियाहीन होता है। संसदीय विधियों में नियमों की एक मोटी रूपरेखा तैयार की जाती है। संसद द्वारा निर्मित विधि की मोटी रूप रेखा का विभागीय आदेशों अथवा प्रशासनिक आज्ञाओं द्वारा क्रियान्वित किया जाता है, इसी को प्रत्यायोजनी विधान कहते हैं।
प्रत्यायोजनी विधान के कारण संसद के कार्य भार मे कमी और समय की बचत होती है। प्रत्यायोजनी व्यवस्था में विशेषज्ञों के अनुभव तथा ज्ञान का लाभ प्राप्त हो जाता है। इसके द्वारा संकट कालीन परिस्थितियों का सामना आसानी से हो जाती है। यह विधि लचीली होती है एवं इसमें प्रभावित व्यक्तियों से परामर्श भी प्राप्त होता है। इसी के द्वारा कार्यपालिका को स्वविवेकीय शक्तियां प्राप्त होती हैं। इन सारे अधिकारों एवं गुणों के कारण कुछ आलोचक इसे संसदीय प्रणाली के लिए घातक मानते हैं, पर भारत में प्रतिनिहित विधान पर संसदीय नियंत्रण है। इसके लिए कुछ रक्षोपाय अपनाए गए हैं। प्रदत्त विधायन एक उत्तरदायी प्रधिकारी को किया गया, जो कि संसद के प्रति उत्तरदायी थी। प्रत्यायोजित विधान यदि किसी नियम का उल्लघंन करता है तो उस स्थितियों मे नागरिक अधिकारों की रक्षा के लिए न्यायालय का आश्रय ले सकता है। समय-समय पर न्यायालयों द्वारा विभिन्न प्रत्यायोजित विधानों की समीक्षा की जा सकती है जिससे उस पर नियन्त्रण रहता है। प्रत्यायोजित विधान में शक्तियों का प्रत्याधिकरण केवल सीमित एवं साधारण उद्देश्यों की प्राप्ति तक ही सीमित रहता है। इसमें कोई सन्देह नही है कि प्रत्यायोजित विधान पर संसदीय नियन्त्रण रहता है क्योंकि विधान बनाने की शक्ति का प्रत्यायोजन भी संसद ही करती है।
भारत में 1953 में अधीनस्थ विधान समिति का गठन हुआ था। यह समिति इस बात की जांच करती है कि क्या संविधान द्वारा प्रदत्त नियमों, उपनियमों तथा कानून-निर्माण सम्बन्धी शक्तियों का अधिकारीगण उचित प्रयोग कर रहे हैं। प्रत्यायोजित विधान आदेश तथा नियमों को जारी तो करते हैं, पर इस पर संसदीय नियन्त्रण के साथ-साथ न्यायिक नियन्त्रण भी लागू रहता है, इसलिए यह कहा जाता है कि प्रत्यायोजनी विधान आत्यंतिक नहीं है। इस पर संसद का नियन्त्रण रहता है।
Question : फ्डायसी न केवल विधि समस्त शासन की अपनी संकल्पना में गलत था, परन्तु उसने प्रशासनिक विधि का सार्थकता को भी नजर अन्दाज किया था। टिप्पणी कीजिए।
(2002)
Answer : प्रशासनिक न्यायालयों का जन्म फ्रांस के क्रांतिकारी युग में शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त में प्रभावित तत्कालीन व्यावहारिक आवश्यकताओं के कारण हुआ था। ब्रिटिश विद्वान डायसी ने अपनी पुस्तक संविधान का कानून में प्रशासनिक कानून की पहचान ड्रापट एडमिनिस्ट्रेटिव के उस विशेष भाग के साथ की, जिसके अनुसार सरकारी अधिकारी बनाम नागरिक के विवादों की सुनवाई साधारण न्यायालयों द्वारा न होकर प्रशासनिक न्यायालयों द्वारा होती है, जिसमें न्यायाधीश लोक सेवक होता है। डायसी ने कहा कि राज्यों के अधिकार कानून और नियमों के एक विशेष समूह से निश्चित होते है। जो साधारण नागरिकों पर लागू नही होते हैं। सरकारी अधिकारों बनाम नागरिक के मुकदमें में सरकारी या राज्य न्यायालयों का हस्तक्षेप नहीं है। ये आक्षेप डायसी ने ड्रापट एडमिनिस्ट्रेटिव पर लगायीं, इसके विपरीत ब्रिटिश व्यवस्था में विधेयक शासन की विशेषताएं बताईं कि देश के साधारण कानून के समक्ष समता हो। नागरिकों ने व्यक्तिगत अधिकारों की सर्वोच्चता हो एवं देश के साधारण कानून की परम सर्वोच्चता, जिसके अधीन किसी व्यक्ति को तब तक दण्डित नहीं किया जा सकता, जब तक उसे कानून के उल्लघन के लिए साधारण न्यायालय द्वारा दण्ड प्रभावित न कर दिया गया हो।
डायसी द्वारा राज्य तथा अधिकारियों के विशेष संरक्षण का आक्षेप प्रशासनिक न्यायालयों के सरकारी संगठन से निकाला गया निष्कर्ष था, अतः डायसी को पक्षपात की सम्भावना नजर आई किन्तु यह तथ्य नहीं था। वास्तव में भेद यह था कि ड्रापट एडमिनिस्ट्रेटिक के अधीन राज्य ने अधिकारियों के अवैध कृत्यों का दायित्व और उससे उत्पन्न नागरिकी क्षतिपूर्ण कर दायित्व अपने ऊपर ले लिया था। इग्लैण्ड में राज्य अपने अधिकारियों के कृत्यों के प्रतिनिधिमूलक दायित्वों को स्वीकार नहीं करता है। डायसी का यह कहना कि इग्लैण्ड में विधि के शासन के अधीन प्रशासनिक अधिकारी तथा साधारण नागरिक एक समान थे। सत्यता से परे था। उनका यह कथन कि संविधान नागरिकों के अधिकारों का ड्डोत नहीं अपितु उनका परिणाम है, सत्य नहीं है। प्रशासनिक कानून सार्थकता इस बात में निहित है कि वह कामन लॅा पर आधारित व्यक्तिगत स्वतन्त्रता और निजी सम्पत्ति के अधिकारों को सामाजिक कल्याण की धारणा के अधीन करता है।
Question : ‘केन्द्रीय और राज्य प्रशासनिक अधिकरणों की प्राथमिकता और उपयोगिता।‘
(2002)
Answer : प्रशासनिक न्यायाधिकरण साधारण न्यायिक प्रणाली के बाहर स्थित ऐसी सत्ता है जो उस समय विधियों की व्याख्या करते हैं एवं उन्हें लागू करते हैं, जब लोक प्रशासन के कार्यों पर औपचारिक मुकदमों या अन्य स्थापित रीतियों द्वारा आक्रमण होता हैं। प्रशासनिक अभिकरण द्वारा कानून तथा तथ्य के आधार पर किसी गैर सरकारी पक्ष से सम्बधित विवाद की जांच तथा उस पर निर्णय देना है।
भारत मे ब्रिटेन की भॉति ही प्रशासनिक अधिकरणों का विकास हुआ है। प्रशासकीय अधिकरणों की प्रभाविता बहुत
अधिक है। प्रशासकीय न्यायाधिकरणों के गठन का उद्देश्य यह है कि वादकारियों को त्वरित न्याय प्राप्त है। केन्द्रीय प्रशासकीय अधिकरणों में अनेक बाधाएं आने के बावजूद यह कार्य काफी हद तक पूरा कर सका है। मामलों को निपटाने में केन्द्रीय प्रशासकीय न्यायाधिकरण द्वारा लिया गया है, औसत समय पारम्परिक न्यायालयों द्वारा लिए गए समय की अपेक्षा सामान्यतः कम होता है।
प्रशासनिक अधिकरण सस्ता न्याय है क्योंकि सामान्य न्यायालयों से न्याय पाने की पद्धति बड़ी पेचीदा और खर्चीली होती है परन्तु प्रशासनिक अधिकरण की प्रक्रिया बड़ी सारल व सीधी-सादी होती है। इन न्यायाधिकरणों के द्वारा अपनाई गई कार्यविधि सामान्य न्यायालयों की कार्यविधि की अपेक्षा अधिक शीघ्रगामी होती हैं। प्रशासकीय न्यायाधिकारों में विशेषज्ञों को सेवाएं उपलब्ध कराई जाती हैं। आधुनिक राज्य अनेक सामाजिक तथा आर्थिक कानून बनाते हैं। इनसे कभी-कभी ऐसे विवाद उत्पन्न होते हैं, जिनका निपटारा विशेषज्ञ ही भली-भांति कर सकते हैं। साधारण न्यायालयों के न्यायाधीश नहीं अपितु प्रशासनिक अधिकारी नयी सामाजिक एवं आर्थिक नीतियों का निर्माण करते हैं। अतः उन्हें प्रशासन की नयी सामाजिक आर्थिक नीतियों से सहानुभूति होती है और जब ऐसे विवादों के सम्बन्ध में न्यायिक निर्णय देते हैं तब समाज के व्यापक हित उनके सामने रहते हैं।
प्रशासकीय न्यायाधिकरण प्रशासकीय अधिकारियों को विस्तृत विवेक तथा स्वाधीनता प्रदान करता है, जो कि प्रशासकीय कार्यकुशलता के लिए अत्यन्त आवश्यक होती है। नयी समस्याओं से व्यवहार करते समय प्रशासकीय न्यायधिकरणों द्वारा अपनाई जाने वाली कार्य विधि सामान्य न्यायालयों की कठोर रूप से औपचारिक कार्य विधि के मुकाबले अधिक लोचदार होती है। अपने इन गुणों के कारण केन्द्रीय एवं राज्य प्रशासनिक अधिकरण अधिक प्रभावित करते हैं एवं दिनों दिन इनकी उपयोगिता बढ़ रही है।
Question : आधुनिक सरकारी तन्त्र में प्रशासनिक विधि अपरिहार्य है।
(1998)
Answer : प्रशासनिक विधि से तात्पर्य यह है कि यह शासन के सभी अंगों के प्रशासन से सम्बन्ध रखने वाली विधि है। प्रशासकीय कानून अपने व्यापक अर्थ में विधियों का वह समूह है, जिसका सम्बन्ध सार्वजनिक प्रशासन से है। प्रशासकीय कानून वह कानून है जो प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा कर्तव्यों और उत्तरदायित्वों के निर्वहन में विवेक प्रयोग की सीमाओं का निर्धारण करता है तथा इसके लिए एक सुनिश्चित ढंग से अथवा तरीके की ओर निर्देश देता है।
यूरोपीय देशों में लोक प्रशासन का अध्ययन वैधानिक दृष्टि अथवा विधानशास्त्रीय दृष्टि से किया जाता है। यूरोपीय देशों में लोकविधि को दो भागों में बांटा जाता है- संविधानिक शासकीय विधि, सांविधानिक विधि का उद्देश्य मौलिक रूप से सरकार के तीनो अंगों यथा विधायिका, कार्यपालिका एवं न्याय पालिका का अलग-अलग वर्णन कर, उनके आपसी सम्बन्धों की व्यापक व्याख्या प्रस्तुत करना है, जबकि प्रशासकीय विधि का उद्देश्य राज्य स्थानीय शासन संस्थाओें, सार्वजनिक निगमों तथा सरकार के विभिन्न विभागों के संगठनों, कार्यों, उनके सह-सम्बन्धों, तत्वों आदि की व्याख्या करने से है। पहले संविधानिक विधि का जन्म होता है। फ्रांस, बेल्जियम एवं जर्मनी आदि यूरोपीय राष्ट्रों में लोक प्रशासन का अध्ययन प्रशासकीय विधि के आधार पर होता है। इन राष्ट्रों के प्रशासन संबंधी अध्ययन मुख्यतः प्रशासकीय सत्ता एवं उसकी प्रक्रियाओं के वैधानिक या कानूनी आधारों तक ही सीमित रहा है। इंग्लैड एवं अमेरिका में भी लोक प्रशासन के अध्ययन के वैधानिक पद्धित को काफी समर्थन मिला है और इसलिए प्रशासकीय विधि और प्रशासकीय न्याय का अध्ययन आरम्भ हुआ है।
प्रशासनिक कानून का सामान्य अर्थ कानून का वह पूरा समूह है जो लोक प्रशासन से सम्बन्धित है, जिसके अनुसार कानून को लागू करने में लगी हुई लोक सेवाओं की गतिविधि का प्रयोग होता है। यह लोक विधि दो बड़ी शाखाओं में से एक है। संविधानिक कानून का सम्बन्ध सरकार की मशीनरी में होता है। प्रशासनिक विधि में वे सभी वैधानिक नियम, चार्टर प्रस्ताव, नियम, अधिनियम, न्यायिक निर्णय एवं आदेश सम्मिलित हैं, जिसका प्रशासनिक अधिकारियों की संरचना, उनमें कार्यों का विभाजन उनकी शक्तियां और कार्यविधि, उनके कार्मिक तथा वित्त और उनके उत्तरदायित्व पर प्रभाव पड़ता है।
डायसी ने प्रशासनिक कानून की पहचान फ्रांस के ड्रायट एडमिनिस्टेªटिव के उस विशेष भाग से की है, जिसके अनुसार सरकारी अधिकारियों द्वारा अपने सम्बन्धी कार्य करते हुए अवैध कार्यवाहियों के विरूद्ध नागरिकों द्वारा अपने पद सम्बंधी कार्य किये गये मुकदमों की सुनवाई साधारण प्रकृति के न्यायालयों द्वारा नहीं की जाती है बल्कि विशेष प्रशासनिक न्यायलयों द्वारा की जाती है, जिनके न्यायाधीश लोक सेवक होते हैं।
डायसी ने फ्रांस के ड्राय ऐडमिनिस्ट्रेटिव की तीन निम्नलिखित विशेषताओं का वर्णन किया हैः
डायसी ने ब्रिटिश व्यवस्था में विधि के शासन की तीन विशेषताओं का उल्लेख किया है। जो निम्नवत् हैं
डायसी के समय में भी ब्रिटेन में प्रशासनिक कानून का प्रचलन था। लोक प्रशासन से सम्बन्धित कानून प्रायः सभी देशों में किसी न किसी प्रकार से अवश्य रहा है। भारत भी समाजवादी समाज की स्थापना के लिए कृत संकल्प है। वह आर्थिक नियोजन, व्यक्तिगत उद्यम के नियम-नियंत्रण तथा अधिक से अधिक जनकल्याण के लिए सीमित साधनों के उपयोग पर जोर देने लगा है। प्रशासनिक कानून नये तथा अज्ञात क्षेत्रें जिनमें आधुनिक लोक प्रशासन की गतिविधियां फैलती जा रही हैं, उपयुक्त मानकों की खोज में लगा है, अतः आधुनिक प्रशासन में प्रशासनिक विधि एक अपरिहार्य आवश्यकता बन चुकी है।
Question : प्रशासनिक विधि का केन्द्रीय सरोकार प्रशासनिक विवेक की कानूनी परिसीमा बांधना रहा है।
(1997)
Answer : अपने व्यापक अर्थ में प्रशासनिक विधि का क्षेत्र काफी वृहद् है। इस अर्थ में वह शासन के सभी अंगों से सम्पर्क रखने वाली विधि है। वस्तुतः प्रशासनिक विधि, कानूनों का वह संग्रह है, जिसका संबंध सार्वजनिक प्रशासन से है। अपने सीमित अर्थ में प्रशासनिक विधि का सम्बन्ध प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा प्रयुक्त विधिक सोपानों में स्वविवेक से है। प्रशासकीय विधि उन नियमों का संग्रह है, जो नागरिकों के प्रति प्रशासकीय अधिकारियों के सम्बन्धों का नियमन करते हैं तथा राज्य के अधिकारियों के दायित्वों एवं अधिकारों को प्रयुक्त करने की क्रियाविधियों का भी निर्धारण करती हैं। प्रशासकीय विधि के क्षेत्र की समस्याएं अग्राकिंत हैं।
वित्तीय प्रशासन सम्बन्धी समस्याएं, सेवी वर्ग की समस्याएँ, प्रशासकीय न्यायालयों तथा प्रशासकीय विधि की समस्या, प्रशासकीय विवेक के संदर्भ में कानूनी स्थितियों का अध्ययन, प्रशासकीय विनिमय, प्रशासकीय विश्लेषण की समस्याएं, सरकार के विरूद्ध किये जाने वाले दावे, असाधारण उपचारों की समस्या, व्यावसायिक संघों की मान्यता तथा उनके स्तर से सम्बन्धित समस्याएं, बहुअध्यक्षीय प्रशासकीय निकायों के नियमन की समस्याएँ आदि।
यद्यपि प्रशासकीय विधि का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है, तथापि प्रशासकीय विधि के कुछ प्रमुख क्षेत्र अग्राकिंत हैं-
प्रत्यायोजित विधान द्वारा निर्मित नियमों की न्यूनता यह होती है कि व्यापक प्रचार के अभाव में सामान्य जन इन नियमों से अनभिज्ञ होते हैं तथा इसका लाभ उठा पाने में असफल रहते हैं। इस विधान द्वारा प्रशासनिक शक्तियां निरंकुशतापूर्ण व्यवहार करती हैं जिससे नागरिकों की स्वतन्त्रताओं मे ”ास आता है। इसमें ऐसे अधिनियमों की व्यवस्था होती है, जिसके अंतर्गत बने नियमों पर किसी भी विधिक न्यायालय में आपत्ति नहीं उठाई जा सकती है। इसने न्यायालयों के आधिकारिक क्षेत्र को सीमित कर दिया है। प्रत्यायोजित विधान में परिस्थिति और आवश्यकता अनुसार परिवर्तन सरलता पूर्वक किया जा सकता है। यदि परिवर्तन अत्यधिक हो, नियम बार-बार बदले जायें तो भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती है। भ्रम की इसी स्थिति के कारण इस तरह के विधान का अनुसरण दुरूह प्रतीत होता है। प्रतिदिन विधान में नियम निर्माण की शक्ति सरकारी अधिकारियों को प्रदत्त होती है। यह सम्भावना हमेशा बनी रहती है कि सरकारी कर्मचारी को नियम निर्माण के अतिव्यापक अधिकार प्राप्त हो जायें। जिससे लोकतंत्र में नौकरशाही निरंकुशता की ओर गमन करती हैै। इस तरह के विधान में निर्माण के समय प्रशासनिक अधिकारी व्यापक सार्वजनिक हित का ध्यान नहीं रखते, वे विशिष्ट संगठनोेें के हितों तक ही दृष्टीपात कर पाते हैं और सार्वजनिक हितों की उपेक्षा करते हैं।
उपरोक्त न्यूनताओं को दृष्टिगत रखते हुए यह कहना सत्य है कि लोकतंत्र में प्रतिनिहित विधान एक आवश्यक तत्व है। यह आवश्यक तत्व इसलिये है, क्योंकि केन्द्र के पास समय का अभाव है। वस्तुतः प्रदत्त विधि निर्माण की प्रणाली कुछ उद्देश्यों के लिये कुछ सीमाओं तथा अधिकरणों के अंतर्गत वैध तथा संवैधानिक दृष्टी से आवश्यक है।
इस प्रकार प्रशासनिक विधि कार्यपालिका की नीति को क्रियान्वित करने हेतु बना ली जाती है। लेकिन सैद्धान्तिक विधि को व्यवहारिक रूप देने में प्रशासनिक अधिकारियों को कठिनाईयां महसूस होती हैं। इन कठिनाईयों का निराकरण अधिकारीगण अपने विवेक से करते हैं। इसी प्रशासनिक विवेक को निरंकुशता से बचाने के लिये केन्द्रीय सरकार संसद के माध्यम से इसे नियंत्रित करती है।