Question : "तुलनात्मक न होना सहज-रूप में संकीर्ण होता है" (रिग्स) टिप्पणी कीजिए?
(2007)
Answer : सामाजिक विषयों में तुलनात्मकता का विशिष्ट स्थान है। तुलनात्मक लोक प्रशासन आधुनिक युग में अग्रगण्य धारित करता है। तुलनात्मक प्रशासन एवं तुलनात्मक राजनीति सम्यक् रूप नूतन व्यावहारिक राजनैतिक पक्ष के स्थायी भाग है। अपनी सम्यक् अर्थपूर्ण सामाजिक दृष्टिकोण से युक्तिसंगत विवेचन प्रणाली की दृष्टि से पुष्ट सिद्धांतों अवधारणाओं को वर्तमान समय में व्यवाहारिक राजनैतिक पक्ष सम्पुष्टता तुलनात्मकता के आधार पर ही प्रदान कर रहा है। तुलनात्मक लोक प्रशासन का मूलभूत लक्ष्य लोक प्रशासन को प्राचीन एवं पारम्परिक अध्ययन प्रणालियों से मुक्त करके उसके विषय को विस्तार प्रदान करते हुए नवीन कठिनाईयों के अनुसार नवीन मान्यताओं को निर्मित करना है। इस नवीन विचार ने लोक प्रशासन की अव्यावहारिक परिकल्पनाओं को छोड़कर समाजिक समस्याओं की वास्तविकताओं को अध्ययन हेतु उपर्युक्त माना।
इसने लोक प्रशासन की यर्थाथवादी कठिनाईयों को लोक प्रशासन का मौलिक क्षेत्र अंगीकार करते हुए विकास को प्रमुखता दी। इसने राजनीति, समाज एवं अर्थ के सभी क्षेत्रों में विकास एवं जनता के विचार को अग्रगण्यता प्रदान की। इसकी मूलभूत धारणा है कि लोक सेवक एवं प्रशासन मात्र जनकल्याण के निर्मित्त है। वर्तमान परिदृश्य में लोक प्रशासन के तुलनात्मक अध्ययन की महत्ता बढ़ती जा रही है। उन्नीसवीं सदी के पांचवें दशक में अफ्रीका एवं एशिया के नवोदित राष्ट्रों के उदय के साथ ही लोक प्रशासन के तुलनात्मक अध्ययन की भावना का अभ्युदय हुआ। तुलनात्मक लोक प्रशासन के अध्ययन को यर्थाथवाद की खोज, सैद्धान्तिक पक्षों की उपादेयता, एवं अधिक व्यापाक विषय क्षेत्र की खोज में अभिप्रेरित किया है।
साधारणतः तुलनात्मक लोक प्रशासन का तात्पर्य विश्व के विभिन्न देशों में अयस्थित शासकीय प्रणालियों का तुलनात्मक दृष्टिाकोण से अध्ययन है। आधुनिक तुलनात्मक लोक प्रशासन में लोक प्रशासनिक संरचनाओं में उपस्थित राष्ट्रीय एवं सांस्कृतिक आधुनिक परिप्रेक्ष्यों को भी सम्मिलित किया गया है। वस्तुतः प्रशासन की वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अध्ययन करने के निमित्त तुलना अत्यावश्यक होती है। प्रशासन परिस्थितियों से सीधा प्रभावित होता है। अस्तु प्रशासन का परिस्थितिकीय दृष्टिकोण से अध्ययन आवश्यक है। किसी भी देश का प्रशासन चाहे वह विकसित हो या विकासशील सामान्यतः एक दूसरे से भिन्न होता है। विकास प्रशासन और तुलनात्मक प्रशासन एक दूसरे के बिना अपूर्ण प्रतीत होते हैं।
मूलतः तुलना दृष्टिकोण को विस्तार प्रदान करती है। तुलना कार्य के विषय को व्यापकता प्रदान करने के साथ ही साथ संकीर्णता को भी न्यूनता प्रदान करती है। तुलना निरपेक्ष दृष्टि एवं युक्तिसंगत विचारों को भी प्रकाश में लाने का श्लाघनीय कार्य करती है। अतः रिग्स का यह विचार सम्यक् है कि तुलनात्मक न होना सहज रूप से संकीर्ण होना है।
Question : सरकारी कर्मचारियों और उनके मुकाबले में लोक क्षेत्रक निगमों और निजी क्षेत्रक कर्मचारियों की परिलब्धियों में चौड़ी होती हुई खाई का अभिप्रेरण और कार्य करने की योग्यता के साथ मजबूत सम्बन्ध है। टिप्पणी कीजिए।
(2007)
Answer : सरकारी कर्मचारियों और लोक क्षेत्रक निगमों और निजी क्षेत्रक कर्मचारियों के निष्पादन में काफी अन्तर पाया जाता है।
सरकारी कर्मचारियों की कार्य संस्कृति और निगमों व निजी क्षेत्र के कार्मिकों की कार्य संस्कृति भिन्न होती है। इसके अतिरिक्त सरकारी कर्मचारी राजनीतिक परिवेश में कार्य करते हैं। जबकि निगम व निजी क्षेत्र के कार्मिकों के लिए ऐसा नहीं होता। सरकारी कार्य की प्रक्रिया सुनिश्चित होती है। उसी प्रक्रिया के अनुसार उसे कार्य करना पड़ता है, इससे प्रशासन में लालफीताशाही की प्रवृत्ति का विकास होता है। जबकि निगमों व निजी क्षेत्र में कार्य करने की प्रक्रिया सरल होती है, अतः लालफीताशाही की प्रवृत्ति का विकास नहीं होता है।
इसके अतिरिक्त सरकारी कार्मिकों में व्यावसायिक योग्यता का स्तर निम्न अफसर शाही का गुण, असफल, राजनीतिक सम्बद्धता भ्रष्ट उच्च अधिकारी, पूरी निष्ठा का अभाव व वेतन की कमी इत्यादि कारण भी है।
वस्तुतः घटिया कार्य निष्पादन के लिए अफसरशाही जिम्मेदार है। एक अन्य जहां अफसरशाही बुरी तरह असफल रही है, वह है विकास परियोजनाएं तथा कार्यक्रमों को तैयार करना एवं उनका कार्यान्वयन करना। सामान्यतया योजनाएं, विशेष रूप से कृषि, ग्रामीण विकास तथा समाज सेवा से सम्बन्धी परियेजनाएं राष्ट्रीय स्तर पर बनायी जाती हैं। ऐसा करते समय क्षेत्र विशेष से उसकी समरसता, उपयुक्तता सामाजिक मान्यताओं का सम्मान, वास्तविक लाभ तथा व्यावहारिकता की ओर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता। अनेक बार जरा सी बात पर ये योजनाएं बदल जाती हैं या फिर समाप्त कर दी जाती हैं। जिस कारण दिशाहीनता व दिशाभ्रम की स्थिति पनपती है। राज्य की योजनाएं तो इतनी जल्दी शुरू की जाती हैं कि उनमें तकनीकी, वित्तीय और आर्थिक पक्षों पर ध्यान देने की आवश्यकता भी नहीं समझी जाती। इसके अतिरिक्त व्यावसायिक योग्यता की भी कमी होती है, जिससे कार्य करने की योग्यता कम होती है। आधुनिक अफसरशाही से सभी दृष्टि से उच्च स्तर की व्यावसायिक अयोग्यता अपेक्षित है।
अफसरशाही की स्थिति आज है वह इसकी शोचनीय व्यावसायिक अयोग्यता के कारण है। अधिकारी वर्ग में व्यावसायिक स्तर पर हीनता की स्थिति स्पष्ट है। आज हमारे उच्च अधिकारों निर्भिक होकर अपनी राय नहीं देते, देश के सम्मुख उपस्थिति समस्याओं का समाधान करने का प्रयास सही ढंग से नहीं करते। विभिन्न मसलों के हल के लिए अपनी सूझ-बूझ कर परिचय नहीं देते, आज के विकास युग में नयी तकनीकें नहीं सीखते, परियोजनाओं को तैयार करने ओर उनके कार्यान्वयन में ढुलमुल की नीति अपनाते हैं और निर्णय लेने में टाल-मटोल करते हैं। इन सबके अलावा वे रोजमर्रा के प्रशासन कार्यों में भी लापरवाही बरतते हैं, जो अक्षम्य हैं। यद्यपि संसदीय लोकतंत्र में मंत्री और कुछ महत्वपूर्ण मामलों में मंत्रिपरिषद ही अन्तिम निर्णय लेती है, पर उच्चधिकारी नीति-निर्माण में महती भूमिका निभाते हैं। कुछ मसलों में मंत्री को नीति का मोटे तौर पर ज्ञान होता है, परन्तु अधिकांशतः वे प्रश्नों पर गहराई से चिंतन नहीं करते, चाहे इस बारे में वे भले ही पूर्वाग्रह से ग्रसित हों। राज्य स्तर पर हो मंत्रीगण नीति सम्बन्धी प्रश्नों में बिल्कुल रूची नहीं लेते। ऐसे सभी मामलों में सरकारी अधिकारियों का यह कर्तव्य होता है कि वे प्रस्ताव के अच्छे और बुरे दोनों पक्षों की पूरी समीक्षा करें तथा निर्भिकतापूर्वक अपना मत व्यक्त करें। सरकारी कार्मिकों के मनोबल में कमी होती है।
सरकार एक मानवीय संस्था है। उसे केवल औपचारिक सिद्धांतों के आधार पर संचालित नहीं किया जा सकता है। इसके लिए मानवीय दृष्टिकोण आवश्यक है।
प्रशासनिक कार्य मूलतः एक मानवीय कार्य है। अतएव प्रशासन की कार्य क्षमता प्रशासनिक अधिकारियों के अभिप्रेरणा या मनोबल पर निर्भर करती है। प्रशासन में कार्य कुशलता हेतु जो तत्व आवश्यक है, उनमें लोक सेवकों में मनोबल अर्थात् मनः स्थिति पर निर्भर करती है। मनोबल द्वारा ही प्रशासनिक संगठन की सभी क्रियाएं संचालित होती हैं। संगठन को उत्प्रेरित एवं सक्रिय करने के लिए प्रबन्धकों द्वारा कदम उठाए जाते हैं, उनका संगठन का मनोबल पर बहुत मनोबल बनाए रखने के लिए आवश्यक तत्व पर्याप्त वेतन पद की स्थिति और सुरक्षा, स्पष्ट प्रयोजन का निर्धारण, नीति निर्धारण में समुचित भागीदारी, उच्चाधिकारी की न्यायप्रियता, सद्भावपूर्णता, स्पक्षता का गुण, नेतृत्व का अवसर है।
लोक सेवक का मनोबल मुख्यतः लोक सेवक के कार्य की प्रवृति संगठन का वातावरण, कार्य की अच्छी दशाओं पर निर्भर करता है। मनोबल की विकसित करने के उपाय, कार्य करने की उचित दशाएं, प्रेरणादायक के तत्व, उच्च अधिकारी का अधीनस्थों के प्रति सहानुभूति दृष्टिकोण, संगठन के उद्देश्य की जानकारी, देश-प्रेम व राष्ट्रभक्ति का विकास, कर्मचारियों की गरिमापूर्ण स्थिति, लोक सेवकों के प्रति जनता की सद्भावना, पुरस्कारों की व्यवस्था कार्य के महत्वपूर्ण एवं मूल्यवान होने की अनुमति आदि हो।
निष्कर्षतः अभिप्रेरणा/मनोबल कार्मिक प्रशासन की ऊर्जा है, संचार शक्ति है। मनोबल को ऊंचा रखने के लिए प्रेरणाओं की आवश्यकता रहती है। संगठन में कार्य का बंटवारा इस ढंग से किया जाना चाहिए कि कर्मचारी अपने महत्व का अनुभव करे।
Question : तुलनात्मक लोक प्रशासन के अर्थ, सार्थकता और मॉडलों को समझाइए।
(2004)
Answer : तुलनात्मक लोक प्रशासन आधुनिक व्यवहारवादी राजनीति विज्ञान के स्थायी अनुदाय है। लोक प्रशासन के अध्ययन में तुलनात्मक लोक प्रशासन एक नवीन अवधारणा है। तुलनात्मक लोक प्रशासन से तात्पर्य एक ऐसे विषय से है जिसके अन्तर्गत सामान्यतः दो या दो से अधिक प्रशासनिक इकाइयों या अभिकरणों की संरचना एवं कार्यात्मकता की तुलना की जाती है। तुलनात्मक लोक प्रशासन, तुलनात्मक आधार पर लोक प्रशासन का अध्ययन है। विभिन्न संस्कृतियों एवं राष्ट्रीय विन्यासों में प्रयुक्त हुए लोक प्रशासन के सिद्धांत तथा तथ्यात्मक सामग्री, जिसके द्वारा इसका विस्तार एवं परीक्षण किया जाता सकता है, तुलनात्मक लोक प्रशासन का अंग है। तुलनात्मक लोक प्रशासन एक ऐसा अनुशासन है जो लोक प्रशासन के संपूर्ण सत्य को जानने के लिए समय, स्थान एवं सांस्कृतिक विविधताओं की परवाह किए बिना तुलनात्मक अध्ययन में व्यावहारिक मंत्रें का प्रयोग करता है। वह लोक प्रशासन के अध्ययन क्षेत्र में नवीन अनुशासन है। वह दो या दो से अधिक प्रशासनिक संस्थाओं, क्षेत्रें, देशों आदि के तुलनात्मक अध्ययन पर बल देता है। तुलनात्मक लोक प्रशासन स्वरूप में अन्तर्राष्ट्रीय, संकट, राष्ट्रीय अन्तः सांस्कृतिक संकट, सांस्कृतिक संकट, सामाजिक संकट आदि होता है। यह लोक प्रशासन के अन्तर विषयी अध्ययन पर बल देता है।
तुलनात्मक लोक प्रशासन की अपनी सार्थकता है। यह किसी विशिष्ट प्रशासनिक प्रणाली अथवा प्रणाली समूहों की विशिष्टताओं का अध्ययन करता है। प्रशासनिक व्यवहार में संकर-सांस्कृतिक और संकर राष्ट्रीय भिन्नताओं के लिए उत्तरदायी घटकों की व्याख्या करता है। यह किसी विशिष्ट पारिस्थितिक विचार में विशिष्ट प्रशासनिक रूपों की सफलताओं एवं असफलताओं के कारणों की जांच पड़ताल करता है एवं प्रशासनिक सुधारों की कार्यनीति को समझाता है। तुलनात्मक लोक प्रशासन, अन्तर अनुशासनिक अध्ययन पद्धति पर जोर देता है। जिससे अन्य सामाजिक विज्ञानों के बारे में व्यापक जानकारी प्राप्त होती है। तुलनात्मक लोक प्रशासन द्वारा प्रशासन में व्याप्त प्रान्तीयता एवं क्षेत्रीयता को संकीर्णताओं को समाप्त करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया जाता है।
तुलनात्मक लोक प्रशासन क्षेत्र में विभिन्न विद्वानों ने अलग-अलग मॉडल प्रस्तुत किए हैं।
नौकरशाही मॉडल के रूप में मैक्सवेबर का प्रमुख योगदान है। मैक्सवेबर का नौकरशाही का आदर्श-प्रारूप जो एक वैध-विवेकपूर्ण सत्ता प्रणाली में प्रशासनिक कर्मचारी वर्ग की संरचना का विश्लेषण करती है, तुलनात्मक लोक-प्रशासन के अध्ययन में एक अत्यन्त लोकप्रिय मॉडल है।
तुलनात्मक लोक प्रशासन में पारिस्थितिकीय मॉडल की मूल अवधारणा है। लोक प्रशासन को समाज में कुछ आधार भूत संस्थाओं में से ही एक समझना चाहिए। इस प्रकार प्रशासन की संरचना एवं प्रकार्य को समझने के लिए प्रशासन का अध्ययन दूसरे सामायिक संस्थाओं के साथ इसके परस्पर संबंधों के संदर्भ में ही किया जाना चाहिए। संरचनात्मक कार्यात्मक मॉडल का सर्वप्रथम प्रयोग ड्वाइट वाल्डो ने किया। तुलनात्मक लोक प्रशासन के अन्तर्गत विकासात्मक प्रशासन और नौकरशाही के संबंध में इस दृष्टिकोण का काफी उपयोग किया जाता है। विकास मॉडल नवस्वतंत्र विकासशील देशों से संबंधित है। प्रारम्भ में तीसरी दुनिया के देशों ने विकसित देशों को ही अपने विकास का मांडल स्वीकार किया।
डाउन्स मॉडल में उच्चधिकारी द्वारा अपने अधीनस्थ इकाइयों पर जितना अधिक नियंत्रण का प्रयास किया जाता है, उतना ही अधिक मात्र में अधीनस्थों द्वारा उससे बचने के लिए प्रतिरोध किया जाता है। प्रशासनिक इकाइयां अपने साम्राज्य विस्तार के लिए प्रतिस्पर्धा रखती हैं। डाउन्स ने पांच प्रकार को नौकरशाही का विभेदीकरण किया है।
डोरसे ने तुलनात्मक लोक प्रशासन में सूचना ऊर्जा मांडल प्रस्तुत किया। डोरसे का सूचना ऊर्जा प्रतिमान सामान्यत संचार एवं नियंत्रण तथा ऊर्जा विर्कण रूपान्तर के प्रत्ययों के संश्लेषण पर आधारित है।
Question : फ्रैंड डब्ल्यू. रिग्स प्रशासनिक तन्त्रें और उनके परिवेश के बीच अन्योन्यक्रियाओं का किस प्रकार संकल्पनाकरण किया था।
(2002)
Answer : फ्रैड डब्ल्यू रिग्स प्रशासनिक प्रक्रिया को एक व्यवस्था मानते हैं, जिसका परिवेश होता है, जिसमें यह कार्य करता है और जिसके साथ यह परस्पर क्रिया करता है। किसी भी प्रशासनिक संरचना का महत्व उसकी स्थिति के अन्तर्गत होता है। रिग्स ने सांस्कृतिक विविधताओं के आधार पर प्रारंभ में समाज सम्बन्धी दो प्रकार के प्रतिमान प्रस्तुत किए प्रधानतः औद्योगिक और प्रधानतः कृषि सम्पन्न ये दोनों विपरीत मॉडल है। दोनों समाजों के परिवेश में भिन्नता होने के कारण प्रशासनिक तन्त्र में अन्तर आ गया है। इन दोनों समाजों के मध्य उभरी तीसरी श्रेणी को उसने ट्रांजीशिया का नाम दिया है। इसके पश्चात रिग्स ने नए मॉडलों पर जोर दिया।
बहुकार्यात्मक समाज में कार्यों का कोई वर्गीकरण नहीं था एवं इनकी संरचना अनेक प्रकार से कार्य करती थी। ये समाज कृषि पर बहुत अधिक निर्भर थे एवं उनका आधुनिकीकरण एवं औद्योगिकीकरण नहीं हुआ था। इन समाजों में आर्थिक व प्रशासनिक कार्य करने की कोई अलग व्यवस्था नहीं थी। सरकार एवं जनता के मध्य सम्बन्ध सामान्यता निचले स्तर पर थे। सरकार जनता के प्रति उत्तरदायी नहीं थी। दूसरे प्रकार के समाज के रूप में अल्प कार्यात्मक समाज सार्वभौमिक सिदान्तों पर आधारित है। यह समाज अत्यधिक गतिशील तथा अल्प कार्यात्मक होता है। इन समाजों में खुली वर्ग संरचनाएं होती हैं। जिसका प्रतिनिधित्व विभिन्न संघ करते हैं। प्रशासन लोगों की आवश्यकता के प्रति संवेदनशील होता है एवं मानव अधिकारों की रक्षा करता है।
रिग्स ने समपार्श्वीय समाज की व्याख्या करते हुए कहा कि इतने विशिष्टकरण का स्तर, आधुनिक प्रौद्योगिकी के लेन देन में आवश्यक भूमिका का विशेषीकरण प्राप्त कर लिया हो परन्तु इन भूमिकाओं को जोड़ने में असफल रहा है। बहुकार्यात्मक तथा अल्पकार्यात्मक समाज के मध्य का समाज समपार्श्वीय समाज कहलाता है।
समपार्श्वीय समाज में बहुत अधिक विजातीयता पायी जाती है। समपार्श्वीय समाज में सरकारी सेवा ऐसा अधिकतम उपलब्ध मार्ग है, जिसके द्वारा सम्मान, शक्ति तथा धन प्राप्त होता है। समपार्श्वीय समाज में परस्पर विरोधी मूल्यों का प्रसार होता है।
ऐसे समाज में संविधान, कानून, नियम, सरकार आदि औपचारिक रूप से विद्यमान रहते हैं। अधिकारीगण कभी नियमों पर डटे रहते हैं और कभी उनकी उपेक्षा व उल्लंघन तक कर देते हैं। प्रशासनिक स्तर पर नौकरशाही पर कोई प्रभावी राजनीतिक नियंत्रण नहीं होता है। अधिकारी स्वयं ही अपने निर्णय लेते हैं। औपचारिकता की उपस्थिति में भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है। समपार्श्वीय समाज में नए आधुनिक संगठन खडे़ किए जाते हैं। फिर भी वास्तव में पुराने संगठन सामाजिक व्यवस्था पर प्रभुत्व जमाये रखते हैं। नौकरशाही में निंरकुशता विद्यमान रहती है। समपार्श्वीय समाज की नौकरशाही के लिए रिग्स ने साला शब्द को प्रयोग किया है। साला अधिकारी सामाजिक-कल्याण की अपेक्षा स्वयं के स्वार्थ को पूरा करने में लगे रहते हैं। नौकरशाही के व्यवहार तथा प्रशासनिक उत्पादन में घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। एक नौकरशाह उतना ही प्रभावहीन प्रशासक होगा जितना अधिक वह शक्तिशाली होगा। रिग्स ने समपार्श्वीय समाज को एक असन्तुलित राज्य कहा है जिसमें राजनीतिक नेताओं की संवैधानिक शक्तियों के होते हुए भी नौकरशाही का ही प्रभुत्व होता है।
Question : विकासशील समाज के प्रशासन में ‘रिग्जियन प्रिज्मैटिक साला माडल पर आलोचनात्मक टिप्पणी लिखिए। भारतीय प्रशासनिक प्रणाली किस सीमा तक प्रिज्सीय लक्षणों से अभिव्यक्त करती है।
(2001)
Answer : फ्रैड डब्ल्यू रिग्स ने लोक प्रशासन में रिग्जयन प्रिज्मैटिक साला मॉडल के आधार पर प्रशासनिक व्यवस्थाओं का अध्ययन किया है। प्रिज्मैटिक समाज में सामाजिक संरचनाओं के महत्वपूर्ण तत्वों और इस समाज के प्रशासनिक उपतंत्र का अध्ययन किया। रिग्स ने समपार्श्वीय समाज की नौकरशाही के लिए साला शब्द का प्रयोग किया। साला मॉडल प्रशासन व्यवस्थाओं का आदर्श प्रकार प्रस्तुत करता है। इसमें आदि काल से आधुनिक काल तक के प्रशासन की विशेषता पायी जाती है। वर्तमान समय में, सरकारी अधिकारी प्रतियोगिता के आधार चुने जाते हैं, परंतु इस चयन प्रक्रिया में रिश्वत भाई-भतीजावाद, भ्रष्टाचार आदि चलते हैं। साला अधिकारी सामाजिक कल्याण की बजाय अपनी प्राथमिकताओं को ध्यान में रखते हैं। उनका आचरण तथा निष्पादन पुरातनवाद से प्रभावित रहता है। जिसके परिणामस्वरूप नियमों एवं विनियमों का क्रियान्वयन व्यापक रूप से नहीं हो पा रहा है। रिग्स के अनुसार समपार्श्वीय समाज के निर्णय निर्माण प्रक्रियाओं में अल्पकार्यात्मक समाज की तुलना में अधिक शक्तिशाली भूमिका निभाते हैं। नौकरशाही के व्यवहार तथा प्रशासनिक उत्पादन का घनिष्ठ संबंध है।
रिग्स के अनुसार प्रिज्मैटिक समाज वह है, जिसने विशिष्टीकरण का स्तर, आधुनिक प्रौद्योगिक में लेन-देन में आवश्यक भूमिका का विशेषीकरण प्राप्त कर लिया हो।
बहुकार्यात्मक तथा अल्पकार्यात्मक के मध्य का समाज ही प्रिज्मैटिक समाज कहलाता है।
समपार्श्वीय समाज में अत्यधिक विजातीयता पायी जाती है। ऐसे समाजों में संविधान कानून, नियम, सरकार औपचारिकता रूप से विद्यमान रहते हैं। समपार्श्वीय समाज में नए या आधुनिक संगठन खड़े हो जाते हैं किंतु उन पर पुराने अविभेदीकृत संगठन सामाजिक व्यवस्था पर प्रभुत्व जमाए रखते हैं।
भारतीय प्रशासन में समपार्श्वीय समाज की लगभग सभी विशेषताएं पायी जाती हैं क्योंकि भारतीय प्रशासन ब्रिटिश औपनिवेशिक विरासत की देन रहा है। भर्ती में गैर-पारदर्शिता, भाई-भतीजावाद, प्रशासन द्वारा तय मापदंडों से विचलन, नौकरशाही, लालफीताशाही, नौकरशाही की निरंकुशता एवं प्रशसकों व राजनीतिज्ञों का दूषित गठबंधन आदि बड़ी मात्र में पाये जाते हैं जो कि रिग्स द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों की पुष्टि करते हैं।
Question : फ्राजनीतिक परिवेश प्रशासनिक तंत्र को अनुकूलित करता हैय्।
(2000)
Answer : प्रशासन एवं राजनीतिक परिवेश का बहुत ही करीबी व घनिष्ठ संबंध है। दोनों ही एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं। वस्तुतः लोक प्रशासन उस राजनीतिक व्यवस्था की उपव्यवस्था है, जिसमें कि प्रशासन कार्य करता है। नौकरशाही तंत्र आर्थिक या सामाजिक-सांस्कृतिक प्रणालियों की अपेक्षा राजनीतिक व्यवस्था के साथ अधिक पारस्परिक क्रिया करता है। प्रशासनिक व्यवस्था का स्वरूप नौकरशाही की प्रकृति, कार्य एवं लक्ष्य मुख्य तथा उस राजनीतिक ढांचे द्वारा निरूपित होते हैं, जिसमे यह कार्य करता है। राजनीतिक ढांचे के आधार पर व्यापक रूप से दो प्रकार की व्यवस्थाएं पाई जाती हैं। लोकतांत्रिक एवं सत्तात्मक प्रशासन और राजनीतिक परिवेश में घनिष्ठ संबंध होता है। गतिशील राजनीतिक परिवेश प्रशासन को भी अपने परिवर्तन के अनुरूप ढालने पर बाध्य करता है, आपस में शासन और प्रशासन एक दूसरे के पूरक हैं और घनिष्ठ संबंध रखते हैं। साधारण नागरिक प्रशासन से ही संपर्क रखता है और प्रशासन की क्षमता पर ही शासन का मूल्यांकन किया जाता है। जिसके अंतर्गत शासन की नीतियों के बनाने का काम तो शासक वर्ग करता है, परंतु उन्हें जनता तक पहुंचाने का काम सेवक वर्ग करता है। आज स्थिति यह है कि शासकीय वर्ग खुलेआम प्रशासन पर अपना नियंत्रण करता है। स्वाधीनता के पश्चात भारत में भ्रष्टाचार तथा घोटालों में राजनेता तथा प्रशासन दोनों कीही महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
भारतीय संस्कृति धर्मनिरपेक्ष राज्य में विश्वास करती है। आज के संदर्भ में धैर्य को राजनीति से पृथक करना मुश्किल है। जिसके कारण अल्पसंख्यक समुदाय के प्रति सरकार तुष्टिकरण की नीति अपनाती है।
भारत में संविधान द्वारा राजनीतिक लोकतंत्र की स्थापना की गई है। लोकतंत्र का संसदीय प्रतिमान भारत में प्रचलित है। अब राजनीतिक सत्तारूढ़ दल प्रशासकों की प्रतिबद्धता की मांग करने लगे हैं तथा प्रशासकों एवं राजनीतिज्ञों में सांठ-गांठ बढ़ता जा रहा है।
निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि राजनीति प्रशासन को अपने उद्देश्यों को सिद्ध करने का माध्यम बना लेती है तथा विभिन्न कारणों से प्रशासन राजनीति के अनुकूल होने लगता है।
Question : फ्रैंड डब्ल्यू. रिग्स द्वारा प्रिज्मीय और साला समाजों के अपने अध्ययन में अपनाए गए उपागम और क्रिया पद्धति की समीक्षा कीजिए। अपवर्तन की राजकृष्ण की आलोचना की वैध अंतर्वस्तु क्या है?
(2000)
Answer : रिग्स ने सांस्कृतिक विविधताओं के आधार पर समाज से संबंधी दो प्रकार के प्रतिमान को प्रस्तुत किया- प्रधानतः औद्योगिक और प्रधानतः कृषि संपन्न। इन समाजों के मॉडल में कुछ कमी होने के कारण उन्होंने फिर बहुकार्यात्मक या संयोजित समाज एवं प्रिज्मीय या समपार्श्वीय समाज को मान्यता दी।
प्रिज्मीय समाज बहुकार्यात्मक समाज एवं अल्पकार्यात्मक समाज के बीच का समाज है। इस समाज में विभिन्न प्रकार की व्यवस्थाएं, व्यवहार, क्रियाएं तथा दृष्टिकोणों आदि की एक साथ उपस्थिति होती है। ऐसे समाजों में नया-पुराना, पूर्व-पश्चिम गांव-शहर, पूंजीवाद-समाजवाद जैसी विरोधी प्रवृत्तियां साथ-साथ चलती रहती हैं।
समपार्श्वीय समाज में सरकारी सेवा सम्मान, शक्ति व धन प्राप्त करने वाला एक मार्ग है। समपार्श्वीय समाज में विरोधी मूल्यों का प्रसार परस्पर होता रहता है।
प्रिज्मीय समाज में संविधान, कानून, नियम, सरकार, औपचारिक रूप से विद्यमान रहते हैं। प्रायः यह दृष्टिगत होता है कि नौकरशाह कभी नियमों का उपेक्षा करते हैं तो कभी नियमों पर ही निर्भर होकर काम करते हैं। समपार्श्वीय समाज में औपचारिकता संवैधानिक, प्रशासनिक, शैक्षिक आदि कई रूपों में प्रकट होती है। प्रायः नौकरशाह निरंकुश होते हैं। इन पर प्रभावी राजनीतिक का कोई प्रभाव नहीं होता है। अधिकारी स्वयं ही सारे निर्णय लेते हैं, औपचारिकता को उपस्थिति में भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है। सरकारी सेवाओं में भर्ती की व्यवस्था सिद्धि युक्त होती है।
एक समपार्श्वीय समाज में संगठन खडे़ किए जाते हैं। फिर भी, वास्तव में आधुनिक अविभेदीकृत संगठन सामाजिक व्यवस्था पर प्रमुखता जमाये रखते हैं। समपार्श्वीय समाज में संसद, सरकारी कार्यालय, बाजार, स्कूल आदि आते हैं। ये विभिन्न राजनीतिक, प्रशासनिक तथा आर्थिक कार्य सम्पन्न करते हैं। फिर भी उनका व्यवहार कुछ परम्परावादी संगठनों से प्रभावित रहता है। साला का प्रयोग रिग्स ने समपार्श्वीय समाज की नौकरशाही के लिए किया है। अल्पकार्यात्मक समाज में इसे ब्यूरो तथा एक बहुकार्यात्मक समाज में इसे चैम्बर कहा जाता है। साला मॉडल प्रशासन व्यवस्थाओं को आदर्श प्रकार से प्रतिनिधित्व करता है। इसमें पुरातन एवं
आधुनिक दो दोनों प्रकार के प्रशासनों की विशेषताएं विद्यमान रहती है। सरकारी अधिकारी प्रतियोगिता परीक्षाओं के आधार पर चुने जाते हैं। किन्तु चयन में भाई, भतीजावाद, रिश्वत आदि चलते हैं। नौकरशाह समाज के कल्याण की उपेक्षा अपने कल्याण पर अधिक ध्यान देते हैं। समपार्श्वीय समाज एक असन्तुलित समाज है जिसमें नौकरशाह प्रभुत्व सम्पन्न है। परिणामस्वरूप शाला अधिकारी समपार्श्वीय समाज की निर्णय निर्माण प्रक्रियाओं में अल्पकार्यात्मक समाज की तुलना में अधिक प्रभावी भूमिका निभाते हैं। भाई भतीजावाद कानूनों के संचालन में अकुशलता, संस्थागत भ्रष्टाचार ये सभी विशेषताएं साला में विद्यमान रहती हैं। नौकरशाही को नियन्त्रित करने में असफल राजनीतिक व्यवस्था विधानमण्डल, राजनीतिक दलों, स्वैच्छिक संस्थाओं तथा जनमत को प्रभाव शून्य बना देती है।
रिग्स के समपार्श्वेीय समाज की व साला समाज की आलोचनाएं हुईं। रिग्स ने अपनी धारणाओं का अर्थ बतलाने के लिए अनेक शब्दों को निर्मित किया। राजकृष्ण रिग्स सिद्धान्त के एक आलोचक रहे हैं, जिन्होंने रिग्स मॉडल की इस आधार पर आलोचना की कि यह सिद्धान्त (प्रिज्मीय सिद्धान्त) विकास की प्रक्रिया को समझने में कोई सहायता नहीं पहुंचाता है। किसी समाज में होने वाले परिवर्तन की दर्शानेमें रिग्स का डिफ्रस्टेड मॉडल अवांक्षित एवं अव्यावहारिक है। डिफ्रेक्टेड समाज सन्तुलित अवस्था को प्रकट करता है तथा व्यवस्था के सन्तुलन एवं संरक्षण की स्थिति का द्योतक है। इस प्रकार राजकृष्ण के मतानुसार डिफ्रेक्टेड समाज अपेक्षित समाज नहीं है।
Question : विकासशील देशों के सन्दर्भ में, प्रशासनिक सक्षमताओं के प्रकार्य पर समीक्षात्मक टिप्पणी कीजिए।
(1999)
Answer : विकासशील देशों की अल्पविकसित अथवा अविकसित देशों के नाम से जाना जाता है। विकासशील देशों में प्रशासनिक व्यवस्था में कार्य विशेषज्ञता की कम मात्र एक महत्वपूर्ण विशेषता है, लेकिन दूसरी ओर संसार के सभी विकसित देशों ने अपने प्रशासकीय ढांचे को मजबूत रखा। विकासशील देशों की प्रशासनिक व्यवस्था पाश्चात्य औपनिवेशिक देशों की नकल मात्र है। विकासशील देशों में प्रशासकीय कार्यों का भार कम होता है, क्योंकि ऐसे देशों में औद्योगिकरण तीव्र गति से नहीं होता है। विकासशील देशों की अधिकांश जनता गांवों में निवास करती है, परन्तु अब विकासशील देशों में शहरीकरण हो रहा है पर यह विकास तेज नहीं है।
विकासशील देशों में प्रशासन पद्धति स्वदेशी की उपज नहीं होती, बल्कि यह अधिकतर विकसित देशों से ग्रहण की जाती है। औपनिवेशिक विरासत, जिसका अपना स्वभाव और संस्कृति है, विकास कार्यक्रम के अनुकूल नहीं है। विकासशील देशों में प्रशासन की बागडोर सामान्य प्रशासकों के हाथों में रहती है। तकनीकी और विशेषज्ञतापूर्ण पदों के लिए प्रशिक्षित प्रशासक कम मिलते हैं। विकासशील देशों में प्रशासन नौकरशाही प्रकृति के होते हैं, प्रशासन में लालफीता शाही पायी जाती है। अधिकारी प्रक्रिया का औपचारिकताओं में विश्वास करते हुए कठोरता के साथ नियमों और विनियमों का पालन करते हैं। जिसके परिणामस्वरूप कार्य को सम्पन्नता में बाधा पहुंचती है। नियमों और पद्धतियों पर अनावश्यक बल दिया जाता है, जबकि उत्पादन पर नहीं। विकासशील देशों में प्रशासनिक अधिकारियों में श्रेष्ठता की भावना पायी जाती है, चूंकि इनके हाथ में सत्ता नहीं रहती है तथा इन्हें कुछ विशेषाधिकार प्राप्त रहते हैं, इसलिए वे अपने आपको जनता से श्रेष्ठ और पृथक समझने लगते हैं, वे जनता के प्रति हीन भावना रखते हैं। इन देशों में ऊपर बड़े-बड़े अधिकारी तटस्थ दिखाई देते हैं, किन्तु उनका राजनीति से कहीं न कहीं तदात्मय भी रहता है। इन देशों में अफसर राजनीति करते हैं। विकासशील देशों में प्रशासनिक सामंजस्य का अभाव पाया जाता है तथा अति व्याप्ति देखने को मिलती हैं। अति व्याप्ति उस अवस्था को कहते हैं जब आर्थिक, राजनैतिक, सामाजिक तथा प्रशासनिक पद्धति को एक दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता, परम्परागत समाजों को मिश्रित समाज कहा जा सकता है क्योंकि इसमें बहुत कम विभेदीकरक होता है।
विकासशील देश में राजनैतिक दल दुर्बल होते हैं। उसके पास न तो विशेषज्ञ होते हैं और न ही धन होता है और न ही वैधानिक सामग्री, अतः नीति निर्माण का कार्य काफी सीमा तक नौकरशाही द्वारा किया जाता है। इसमें भेद करना भी कठिन होता है कि किस सीमा तक नीति का निर्माण का कार्य पूरा हुआ है और किस सीमा तक लागू किया गया है। नौकरशाही का राजनीतिक कार्यों में अधिक हाथ होता है तो मंत्रियों को बहुत से प्रशासनिक कार्य करने पड़ते हैं।
सामान्य तौर पर विकासशील देशों में प्रशासनिक सक्षमताओं का प्रमुख प्रकार्य सामाजिक एवं आर्थिक विकास करना है। विकास सम्बंधी नीतियों और लक्ष्यों का सूत्रीकरण करना है। कार्यक्रमएवं परियोजनाओं का प्रबन्ध करना है, साथ ही प्रशासनिक संगठन और प्रक्रिया का पूर्ण गठन करना है। विकास के कायों में जनता की सहभागिता प्राप्त करने का प्रयास करना एवं सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक संरचना की प्रगति करना है। सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक संरचना की प्रगति करना व परिणामों का मूल्यांकन करना एवं आधुनिक वैज्ञानिक और तकनीकी साधनों को प्रयोग करना विकासशील देशों में प्रशासनिक सक्षमताओं के मुख्य प्रकार्य हैं।
विकासशील देशों में इन उद्देश्यों की प्रगति में राजस्व, कानून, विकास अभिकरण सहयोग प्रदान करते हैं। उनकी सहायता से प्रत्येक विकासशील देश उपयुक्त उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए प्रत्यनशील रहता है।
Question : यू. एस. ए. में विकासशील पूंजीवादी तन्त्र के अनुक्रिया स्वरूप लोक प्रशासन के विषय की संवृद्धि का परीक्षण कीजिए।
(1999)
Answer : यू. एस. ए. विकसित देशों को प्रतिनिधि राष्ट्र है। विकासशील पूंजीवादी तन्त्र की अनुक्रिया स्वरूप यू. एस. ए. में उच्च दर्जें का कार्य विशेषीकरण होता है तथा समान सर्वव्यापी निश्चित तथा उपलब्ध नियमों की प्रबलता पाई जाती है। उच्च कोटि की सामाजिक गतिशीलता विकसित व्यावसायिक व्यवस्था तथा व्यावसायिक उपलब्धि के आधार पर खुली या परिवर्तन शील वर्ग व्यवस्था आदि विकासशील पूंजीवादी तन्त्र के अनुक्रिया स्वरूप विकसित हो सके हैं। इसके परिणामस्वरूप यू. एस. ए. में लोक प्रशासन की संवृद्धि भी हुई है।
अमेरिका जैसे विकसित देशों में पूंजीवादी तन्त्र के अनुक्रिया स्वरूप विकासशील राष्ट्रों से भिन्न प्रशासनिक व्यवस्था देखने को मिलती है। विकासशील राष्ट्रों में कम दर्जे का कार्य विशेषीकरण होता है जबकि अमेरिका जैसे विकसित समाज में उच्च दर्जा का कार्य विशेषीकरण पाया जाता है। यहां बड़ी संख्या में विशिष्ट प्रशासनिक ढांचे होते हैं, जिनमें से प्रत्येक किसी एक का निश्चित उद्देश्य के लिए विशेषीकरण होता है। कार्यों तथा भूमिकाओं का बंटवारा पारिवारिक स्थिति अथवा सामाजिक वर्ग आधार पर नहीं किया जाता है, बल्कि व्यक्ति की व्यक्तिगत उपलब्धियों के आधार पर किया जाता है।
अमेरिका जैसे विकासशील देश की राजनीतिक व्यवस्था में औपचारिक राजनीतिक ढांचे होते हैं, जिनमें पहले से निर्धारित किए गये नमूने अथवा नियम के अनुकूल नियंत्रण रखा जाता है। सरकार की क्रिया अथवा कार्यों का क्षेत्र सार्वजनिक तथा व्यक्तिगत मामलों के बहुत बड़े दायरे तक फैला होता है।
नौकरशाही में उच्च प्रकार का विशेषीकरण होता है और इसकी व्यवस्था में वे सभी व्यवसाय तथा ऐसे प्रतिबिम्ब होते हैं, जो समाज में पाये जाते हैं।
19 वीं शताब्दी के नौवें दशक में प्रारम्भ से लेकर अमेरिका की प्रशासनिक व्यवस्था का झुकाव बहुत ही व्यावहारिक रहा है। अमेरिका की प्रशासनिक व्यवस्था को सुधारना जिससे कि अधिक मितव्यवयिता कार्य कुशलता सम्भव हो सके।इस विचार धारा के परिणाम स्वरूप अमेरिका में पूंजीवादी तन्त्र का विकास हुआ। इस समय अमेरिका में प्रशासन में अधिकांश मूल्य तत्वों का अभाव था, परन्तु उद्योग एवं व्यापार बहुत ही सफल थे। अतः इस पूंजीवादी तंन्त्र के अनुक्रिया स्वरूप प्रशासनिक सुधार की प्रेरणा अमेरिका के व्यापारिकसंगठन और व्यवहार से प्राप्त हुई। लोक प्रशासन की अपेक्षा व्यापार को लाभ यह था कि यह राजनेताओं के भ्रष्टाचारी प्रभाव से मुक्त था, अतः यह परिकल्पना की गई कि लोक प्रशासन की कार्यकुशल होने के लिए अराजनीतिक होना चाहिए।
पूंजीवादी तन्त्र के अनुक्रियास्वरूप लोक प्रशासन में नए पन की लहर दौड़ पड़ी है। यू- एस- ए में इस विचारधाराओं का प्रतिपादन कई नामों के अन्दर हो रहा है। इन नये नामों में न्यूपब्लिक मैनेजमेन्ट नवीन लोक प्रबन्ध, बाजार आश्रित प्रशासन साहसिक सरकार प्रमुख है। यह सभी निजी प्रशासन को दक्ष समझते हैं, आदर्श समझते हैं एवं लोक प्रशासन को इसी दिशा में ले जाना चाहते हैं। इससे जनता को चुनने का अवसर प्राप्त होता है एवं उन्हें अच्छी सेवा मिलती है। लोक प्रशासन को शक्तिशाली करने के लिए जनता के लिए कार्य करने वाली लोक संस्थाओं में प्रतिबद्धता होनीचाहिए, जिससे जनता को चुनने का अवसर प्राप्त हो। नौकरशाही आज जो नियन्त्रण करती है, वह समाप्त होना चाहिए। लोक संगठनों कार्य मूल्यांकन उनकी उपस्थित पर आधारित होना चाहिए। संगठ नों का उद्देश्य परक होना चाहिए पर सरकार को धन खर्च की बजाय धनार्जन करने के बारे में भी सोचना चाहिए। नौकरशाही से नियंत्रण के बजाय बाजार पर नियंत्रण होना चाहिए। सरकार को चाहिए वह समस्याओं की उत्पत्ति पर रोक लगाए प्राधिकार का विकेंन्द्रीकरण आवश्यक है, साथ ही साझेदारी प्रबन्ध को भी प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
उपरोक्त विवेचना से स्पष्ट है कि विकासशील पूंजीवादी अनुक्रिया स्वरूप यू- एस- ए में लोक प्रशासन के समक्ष उपयुक्त महत्वपूर्ण एवं विचारणीय मुद्दे आ गए हैं। प्राचीन लोक प्रशासन से जनता का मोह भंग हो चुका है, अतः इसके लिए नये प्रकार से विचार करना आवश्यक है। परम्परागत प्रशासनिक सिद्धांत स्थितिवादी अर्थात् पूंजीवाद का रक्षक है लेकिन अब इसमें सुधारवादी संगठनात्मक सिद्धांत की आवश्यकता है एवं विकासशील पूंजीवादी तंत्र परिवर्तन का संकेत है।
Question : जब तक लोक प्रशासन का अध्ययन तुलनात्मक नहीं बनता, तब तक ‘लोक प्रशासन का विज्ञान’ का दावा करना खोखला प्रतीत होता है। स्पष्ट कीजिए।
(1998)
Answer : तुलनात्मक लोक प्रशासन का अर्थ विश्व के विभिन्न देशों में कार्यरत सरकारी प्रशासनिक प्रणाली का तुलनात्मक अध्ययन है। तुलनात्मक लोक प्रशासन के अन्तर्गत दो या दो से अधिक प्रशासनिक इकाइयों की संरचना एवं कार्यात्मकता की तुलना की जाती है। तुलनात्मक लोक प्रशासन की प्रकृति में निरन्तर परिवर्तन आता रहता है। लोक प्रशासन को विज्ञान न मानने के पीछे कई कारण उत्तरदायी है यथा निश्चितता या पूर्णता का अभाव, सार्वभौमिक सिद्धान्तों का अभाव, पर्यवेक्षण तथा परीक्षण का अभाव, आदर्शात्मकता पूर्व-कथनीयता का अभाव आदि। विज्ञान मूल्य शून्य होता है, जबकि प्रशासन मूल्य बहुल होता है। मनुष्यों के व्यक्तित्व समान नहीं होते, फलस्वरूप प्रशासन के कार्यों में भिन्नता आ जाती है। वह रासायनिक ढांचा की एक बाधा है, जिसके अंतर्गत लोक प्रशासन पनपता है।
लोक प्रशासन के विकास के द्वितीय चरण के अंतर्गत सभी विचारकों की यह मान्यता रही कि लोक प्रशासन एक विज्ञान है तथा यह विज्ञान समान रूप से लोक व निजी दोनों क्षेत्रें पर लागू होता है। इसमें यह बात उभरकर सामने आयी कि प्रशासन में कुछ निश्चित है इसलिए इसे समृद्ध करने की जरूरत है। तृतीय चरण के अंतर्गत द्वितीय चरण के विचारों एवं उपलब्धियों को चुनौती दी गई तथा इन सिद्धान्तों को व्यर्थ घोषित कर दिया गया। पांचवें चरण में लोक प्रशासन ने अपने को अंतर्विषयी कर लिया। इससे लोक प्रशासन के विज्ञान स्वरूप का उद्घाटन हुआ तथा लोक प्रशासन का क्षेत्र भी बढ़ा एवं तुलनात्मक लोक प्रशासन व विकास प्रशासन का जन्म हुआ। परंपरागत दृष्टिकोण की अनुरोध के नए उपकरणों के नवीन धारणाओं का उदय, नवीन सामाजिक संदर्भ, अंतरराष्ट्रीय निर्भरता आदि ने तुलनात्मक लोक प्रशासन का विकास दिया।
लोक प्रशासन में आज पश्चिम देशों का ही अध्ययन नहीं होता बल्कि साम्यवादी तथा अफ्रीका व एशिया के देश भी इसकी परिधि में आ गए हैं। लोक प्रशासन एक संस्कृति विशेष के घेरे से निकलकर बहुसंस्कृतिवादी हो गया। तुलनात्मक लोक प्रशासन के विकास का यह क्रम दर्शाता है कि उसने अपनी कुछ मान्यताएं विकसित कर ली हैं। इससे उसकी प्रकृति का पता चलता है। लोक प्रशासन का विज्ञान न्यूनाधिक मात्र में प्राप्ति योग्य है। प्रशासनिक व्यवहार का विश्लेषण किया जा सकता है तथा उससे सिद्धांत रचना संभव हो सकती है। वैज्ञानिक अध्ययन के लिए प्रशासन द्वारा प्रयुक्त पद्धतियों का विभिन्न संस्कृतियों व राष्ट्रीयताओं के परिवेश में अनुसंधान करना चाहिए। इससे प्राप्त आनुभाविक निष्कर्षों की परिशुद्धि व्यवस्थित तुलनात्मक विश्लेषणों के माध्यम से जांच की जानी चाहिए। ऐसा करने से विविध स्तर पर लागू किए जा सकने वाले सामान्यीकरण प्राप्त होंगे जिससे एक व्यापक सामान्य सिद्धान्त का विकास किया जा सकता है। उक्त मान्यताओं से यह स्पष्ट होता है कि लोक प्रशासन एक विशुद्ध विज्ञान बनने की प्रक्रिया में है तथा यह तुलनात्मक अध्ययन से संभव है।