Question : "प्रत्यायोजित विधान एक आवश्यक बुराई है।" परीक्षण कीजिए।
(2007)
Answer : संगठन की पद सोपानात्मक व्यवस्था में उच्च- निम्न कई प्रकार के पदधारक कार्मिक कार्य करते हैं। सभी पदों को उनके लिए निर्धारित कार्य के निष्पादन के लिए सत्ता या अधिकार प्रदान किए जाते हैं। लेकिन वर्तमान में गठित तथा संचालित जटिल एवं विशाल संगठनों में एक अधिकारी के लिए यह सम्भव नहीं है कि वह बहुत सारे दायित्वों का निर्वहन कर सके, अतः एक अधिकारी को कार्य एवं अधिकार सौंप देता है, यही प्रत्यायोजन या भारार्पण कहलाता है। एल. डी. व्हाइट के शब्दों में- कार्य की व्यापकता तथा अधिकता की परिस्थितियों के कारण अधिकारों का प्रत्यायोजन करना और अधिकांश समस्याओं के उत्पन्न होते ही उन्हें सुलझाना आवश्यक हो जाता है।
सामान्यतः प्रत्यायोजन उच्च से निम्न पद की ओर होता है, प्रशासन में प्रत्यायोजन का काफी महत्वपूर्ण स्थान है। बिना प्रत्यायोजन के प्रशासनिक संगठन सफलता एवं कुशलतापूर्वक कार्य नहीं कर सकते हैं। इसका विभिन्न कारण से अधिक महत्व है, कार्य बोझ, तकनीकी जटिलता, समय की बचत, सीखने का माध्यम, प्रबन्धकीय गुणों में विकास संगठनात्मक लचीलापन, मितव्यमिता एवं कुशलता, उत्तराधिकार में सहायता है। लेकिन प्रत्यायोजन में कई कठिनाइयां उपस्थित होती हैं, जिससे इसका उद्देश्य पूरा नहीं होता है।
निदेशन योग्यता का अभाव, अधिकारियों का मिथ्या दम्भ, अधीनस्थों में विश्वास का अभाव, अधीनस्थों में भय, प्रभुत्व स्थापना की आकांक्षा, समन्वय की कठिनाई, आत्मविश्वास का अभाव, प्रेरणा की कमी, सूचनाओं का अभाव आदि कारणों से प्रत्यायोजन सही समय पर नहीं हो पाता, जिससे प्रशासनिक कुशलता गिरती है।
प्रत्यायोजन प्रशासनिक संगठन के लिए महत्वपूर्ण है लेकिन इसमें काफी अड़चन होने के कारण प्रत्यायोजन का उद्देश्य पूरा नहीं होता। अतः इसे संगठन की आवश्यक बुराई माना जाता है। इसकी सफलता के लिए निम्न उपाय किए जा सकते हैं-
प्रत्यायोजन के लक्ष्यों एवं उद्देश्यों का स्पष्ट निर्धारण कर दिया जाना चाहिए, अधिकारों एवं उत्तरदायित्वों की स्पष्ट विवेचना की जानी चाहिए, प्रत्यायोजन के लिए प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए, आवश्यक प्रेरणा दी जाए, अधिकारों के दायित्वों में समता, अधीनस्थों के दैनिक कार्यों में अनावश्यक हस्तक्षेप न हो, पारस्परिक सहयोग, सद्भाव एवं विश्वास का वातावरण तैयार किया जाना चाहिए, आदेश की एकता का अनुपालन, लिखित एवं औपचारिक प्रत्यायोजन किया जाना चाहिए।
Question : फ्लोक प्रशासन को अध्ययन के लिए और लोक प्रशासन संव्यावसायिकता के अमल के लिए साइमन के कार्य के प्रमुख निहितार्थ थे।य् टिप्पणी कीजिये।
(2006)
Answer : जेम्स डी- कैरोल का कथन है- सूचना ज्ञान है, ज्ञान शक्ति है, प्रशासन शक्ति है। साइमन ‘प्रशासन’ को निर्णय लेने की प्रक्रिया में इलेक्ट्रॉनिक कंप्यूटरों के मानवी चिंतन की अनुकरणीय भूमिका पर शोध विश्लेषण, सिद्धांत और तार्किक निश्चयात्मकता की प्रणाली पर आधारित प्रशासन की एक नई अवधारणा_ पारंपरिक सिद्धांतों और व्यवहार के बीच अंतर का प्रतिपादन_ कृत्रिम इंटेलीजेन्स, सीमित तार्किकता से रूबरू कराना_ निर्णयों को संतुष्टि की परिभाषा से जोड़ना, स्टाफ के कार्यों की परीक्षा, साधन-साध्य का प्रतिपादन, स्वीकृति के क्षेत्र का अनुमोदन, प्रोग्राम्ड और नॉन प्रोग्राम्ड निर्णय ये सभी साइमन के अंतहीन योगदान और लोक प्रशासन को लोक विज्ञान के रूप में पुष्ट करने के निहितार्थ के रूप में हमारे सामने आते हैं।
अर्थव्यवस्था और मनोविज्ञान जैसे विषयों के प्रयोग को सुनिश्चित करना_ इलेक्ट्रॉनिक डाटा प्रोसेसिंग का संस्थागत कार्यों में अधिक-से-अधिक प्रयोग प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण की तरफ ध्यान आकर्षित करना_ संगठन में वैज्ञानिक संकल्पनाओं का प्रयोग_ संगठनात्मक निष्ठा और सामूहिक प्रयासों का महत्व_ विभिन्न परिस्थितियों में सूचना और सलाह का प्रभावी ढंग से इस्तेमाल_ मानव और मशीन का संगठन में पूरक प्रयोग तथा सिद्धांतों से व्यवहार की तरफ संगठन की कार्यप्रणाली को ले जाना। उनकी स्थापनायें जैसे- प्रशासनिक कुशलता की कसौटी उस विकल्प के चयन का ‘आदेश’ देती है जो उपलब्ध संसाधनों के उपयोग से व्यापक परिणाम दे, तथा जैसे- निर्णय लेने की प्रक्रिया में कंप्यूटरों और ‘सिम्युलेशन माडलों का इस्तेमाल बढ़ता है, वैसे-वैसे ज्यादा से ज्यादा निर्णय नियोजित होते जाते हैं, जिससे निर्णय प्रक्रिया तथा व्यवहार में तार्किकता बढ़ती है। फलस्वरूप संगठनात्मक तार्किकता का भी विस्तार होता है। उनकी ये सभी स्थापनायें व अवधारणात्मक पहल निश्चित रूप से लोक प्रशासन के अध्ययन के लिए व उसके व्यवसाय के रूप में प्रयोग के लिए एक सुदृढ़ आधार प्रदान करती हैं।
परंतु कुछ सीमायें जिनके कारण साइमन के योगदान को आलोचना का सामना करना पड़ा वे हैं- साइमन सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक घटकों को पृष्ठभूमि में डाल देते हैं, हालांकि प्रशासनिक व्यवहार के विश्लेषण में इनकी कोई कम महत्वपूर्ण भूमिका नहीं होती। साइमन इसी तरह नैतिक मूल्यों को भी जो कि नीति निर्धारण के अनिवार्य अंग होते हैं- को इस प्रक्रिया में शामिल नहीं करते। उनका ऐसा करना लोक प्रशासन के अध्ययन को यांत्रिक तथा रोजमर्रा के जीवन में उसकी भूमिका को कम महत्वपूर्ण बनाता है, तब साइमन के तथ्य आधारित प्रशासनिक सिद्धांत का विचार लोक प्रशासन के बजाये व्यापार प्रशासन के लिये ज्यादा उपयुक्त है।
मगर उपयुक्त सभी कमजोरियों के बावजूद प्रशासनिक सिद्धांत के विकास के मामले में साइमन के योगदान को नकारा नहीं जा सकता। उनका ध्यान प्रशासनिक व्यवहार पर ही अधिक रहा, साथ ही वे आर्थिक और व्यापारिक व्यवस्थाओं पर ही अधिक केंद्रित रहे। परंतु यह दुर्भाग्यपूर्ण रहा कि बाद में जो प्रशासनिक सिद्धांत प्रकाश में आये, वे भी संगठनों में निर्णय लेने की प्रक्रिया के बारे में साइमन द्वारा प्रतिपादित विचारों को अधिक महत्व देते प्रतीत नहीं होते।
Question : अभिप्रेरण थियोरी व्यवहार थियोरी के समानार्थी नहीं है। अभिप्रेरण व्यवहार के निर्धारकों का केवल एक वर्ग है, जबकि व्यवहार लगभग हमेशा ही अभिप्रेरित होता है, साथ ही वह लगभग हमेशा जैविकतः सांस्कृतिकतः और स्थितितः निर्धारित होता है। इस पर टिप्पणी कीजिए।
(2004)
Answer : अभिप्रेरण प्रबंध का एक महत्वपूर्ण उपकरण है। मानव शक्ति के व्यवहार को निदेशित करने तथा उसका सहयोग प्राप्त करने की कला को अभिप्रेरण कहते हैं। अभिप्रेरण किसी व्यक्ति को इच्छित कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करने की क्रिया है। अभिप्रेरण से आशय मनोवैज्ञानिक उत्तेजना है, जो व्यक्तियों को कार्य के प्रति प्रोत्साहित करती है, कार्य पर बनाए रखती है तथा अधिकतम कार्य संतुष्टि प्रदान करती है। समान्य रूप में अभिप्रेरण सिद्धांत एवं व्यवहार सिद्धांत एक जैसे प्रतीत होते है क्योंकि दोनों का संबंध संगठन से जुड़े लोगों के साथ होता है परन्तु फिर भी दोनों एक समान ही है। अभिप्रेरण की यह मान्यता है कि किसी भी संगठन के लक्ष्यों की प्राप्ति एवं संगठनात्मक प्रभावशीलता के स्तर को उच्च बनाने के लिए कार्मियों की संतुष्टि महत्वपूर्ण है। इसके लिए जरूरी यह है कि कार्मियों को संगठनात्मक लक्ष्यों की ओर प्रेरित किया जाए। फलतः कार्य करने की योग्यता एवं काम करने की इच्छा को जोड़ने वाली प्रक्रिया ही अभिप्रेरण है। अभिप्रेरण के सिद्धांत के अनुसार विभिन्न अभिप्रेरणाओं के द्वारा व्यक्ति को संगठन के उद्देश्यों के अनुरूप कार्य करने हेतु प्रेरित किया जा सकता है एवं इस प्रकार सांगठनिक सफलता निश्चित की जा सकती है।
वही दूसरी तरफ व्यवहारवादी उपागम का मुख्य ध्यान संगठन के कार्य में व्यक्ति के आंतरिक मूल्यों तथा विचारशीलता पर होता है। व्यवहारवादी सिद्धांत व्यक्ति के मन के अंदर क्या है इसको समझने की ओर जोर देता है। व्यवहारवाद इस बात पर जोर देता है कि किसी संगठन की सफलता उसमें कार्यरत व्यक्तियों के व्यवहार पर निर्भर करती है।
यह सत्य है कि व्यक्ति को व्यवहार कुछ हद तक अभिप्रेरण से प्रभावित होता है लेकिन अभिप्रेरण की व्यक्ति के व्यवहार का निर्धारण नहीं करता, बल्कि अन्य तत्व भी मानवीय व्यवहार को निर्धारित करता है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है जिस कारण उस पर कुछ मर्यादा का आवरण होता है। व्यक्ति के व्यवहार पर उसके समाज के मूल्यों, रीति-रिवाजों, सांस्कृतिक प्रतिमानों आदि का प्रभाव पड़ता है। सामाजीकरण की प्रक्रिया भी व्यक्ति के व्यवहार को प्रभावित करती है। व्यक्ति का व्यवहार सामाजिक नियंत्रण के विभिन्न साधनों की प्रभावशीलता की मात्र पर भी निर्भर करता है।
इस कारण यह स्पष्ट हो जाता है कि अभिप्ररेण थियोरी व्यवहार थियोरी के समानार्थी नहीं है वरन् बहुत अधिक समानता होते हुए भी यह एक दूसरे से भिन्न है।
Question : अब्राहम मैस्लो की अभिप्रेरणा की थियोरी और हर्जबर्ग की अभिप्रेरण- हाइजीन थियोरी की तुलना कीजिए। क्या आप समझते हैं कि वे सार्वत्रिकता अनुप्रयोज्य हैं? यदि हां, तो क्यों? यदि नहीं, तो क्यों नहीं?
(2002)
Answer : अब्राहम मैस्लो एवं हर्जबर्ग ने संगठनों तथा व्यक्तियों के मध्य संबंधों का मानव आवश्यकताओं की दृष्टि से विश्लेषण किया। मैस्लो न यह विचार व्यक्त किए कि व्यक्ति की जब कोई आवश्यकता पूरी जो जाती है तो वह व्यक्ति के लिए अभिप्रेरक नहीं होती है। यह हर्जबर्ग के अनुरक्षक तत्वों के समान ही है जो कि व्यक्ति को प्रेरणा प्रदान करने में असफल होते हैं। यदि अभिप्रेरक तत्वों एवं उच्चकोटि आवश्यकताओं की तुलना की जाए तो दोनों समान ही दिखाई देते हैं। हर्जबर्ग ने सभी आवश्यकताओं को दो रूपों में बांट दिया है। मैस्लो एवं हर्जबर्ग के अभिप्रेरक तत्व एक-दूसरे के समान है।
अर्थात मैस्लो का जीवन निर्वाह, सुरक्षा सामाजिक और सम्मान में पद स्थिति हर्जबर्ग के आरोप तत्व के जैसी ही है। मैस्लो के सम्मान में पदोन्नति मान्यता और आत्म सम्मान हर्जबर्ग के अभिप्रेरक तत्व हैं। मैस्लो ने आवश्यकताओं का एक निश्चित क्रम बताया है जो कि एक पूर्ति के बाद दूसरे के लिए प्रेरित करती है, जबकि हर्जबर्ग ऐसा नहीं मानते हैं। मैस्लो की आवश्यकताओ की क्रमशः पूर्ति या संतुष्टि ही अभिप्रेरण प्रदान करती है, वही हर्जबर्ग की आरोग्य घटक वातावरण से संबंधित है जो कर्मचारियों को अधिक कार्य के लिए प्रेरित नहीं करती है अर्थात् संतुष्टि प्रदान नहीं करती है, अपितु इसके अभाव में असंतुष्टि अवश्य प्रदान करती है। आरोग्य घटकों में संगठन की कार्मिक एवं प्रशासनिक नीति, वेतन, पर्यवेक्षण अंतर का वैयक्तिक संबंध तथा कार्य दशाएं सम्मिलित हैं। हर्जबर्ग का दूसरा घटक अभिप्रेरक घटक कहलाता है, जो कार्मिकों के कार्य संतुष्टि के वास्तविक कारक हैं। यह घटक कार्मिकों में कार्यकुशलता तथा अभिप्रेरणा को प्रोत्साहित करते हैं तथा अधिक कार्य करने के लिए प्रेरित करते हैं।
मैस्लो की आवश्यकता सोपान सिद्धांत एवं हर्जबर्ग के द्विघटक सिद्धांत का परीक्षण करने के बाद यह सिद्ध हुआ कि इनके सिद्धांत विकसित देशों के संदर्भ में है। इस कारण विकासशील देश एवं सामान्य कार्यकर्त्ता के संबंध में यह सही नहीं हो पाते हैं, क्योंकि ऐसी अवस्था में अनुरक्षक तत्व भी अभिप्रेरक तत्व में आ जाते हैं।
मैस्लो के सिद्धांत के बारे में यह कहा जा सकता है कि यह जनता में लोकप्रिय तो है, पर सत्य नहीं है। आत्मसिद्धि की आवश्यकता, अस्पष्ट, जटिल तथा दार्शनिक एवं अव्यावहारिक है, क्योंकि संगठन में मानव की जरूरत इसी क्रम में हो यह जरूरी नहीं। हर्जबर्ग का सिद्धांत भी प्रमाणिक शोध या पूर्ण वैज्ञानिक न होने के कारण सर्वमान्य एवं स्वीकार्य नहीं है, क्योंकि एक घटक जहां एक ओर व्यक्ति को असंतुष्टि प्रदान करता है तो दूसरे व्यक्ति की वहीं संतुष्टि भी प्रदान करता है।
यद्यपि मैस्लो एवं हर्जबर्ग के अभिप्रेरक सिद्धांत स्वीकार्य एवं शोध योग्य हैं लेकिन फिर भी सर्वमान्य स्वीकार्यता का अभाव है क्योंकि मैस्लो एवं हर्जबर्ग ने जिन परिस्थितियों, समय, स्थान, व्यक्तियों का चयन किया था। वह कोई मानक नहीं था, व्यक्तियों का चयन विकसित देश होने के कारण उस जैसी परिस्थितियों में संभव था। किसी भी सिद्धांत की सर्वमान्यता के लिए यह आवश्यक है कि वह प्रमाणित एवं वैज्ञानिक हो।
Question : प्रशासन में संचार के स्वरूप और भूमिका से सिद्ध होता है कि ‘संचार ही सत्ता है।’ टिप्पणी कीजिए।
(2001)
Answer : संचार मानवीय संबंधों का अभिन्न एवं महत्वपूर्ण अंग है। प्रशासन में संचार का बहुत महत्व है। संचार को प्रशासन का प्रथम सिद्धांत माना गया है। प्रबंधकों के लिए संचार संयोजक कड़ी का काम करता है। संचार संदेशों के विनिमय एवं पारस्परिक समझ के निर्माण की प्रक्रिया है। संचार की प्रक्रिया प्रशासन को बांधे रखती है, क्योंकि इससे संगठन की गतिविधियों और लक्ष्य प्राप्त करने के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है।
संचार एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को सूचनाएं एवं समझ हस्तांतरित करने की प्रक्रिया है। यह प्रक्रिया लिखित एवं मौखिक शब्दों द्वारा ही संदेश एवं विनिमय नहीं करती है। वरन् संकेतों, हाव-भावों तथा मौन द्वारा भी विनिमय करती है।
प्रशासन के लिए प्रभावी संचार की आवश्यकता हमेशा पड़ती है। प्रभावी संचार के अभाव में प्रबंध की कल्पना भी नहीं की जा सकती। संचार प्रबंध की मुख्य समस्या है। प्रबंधकीय कार्यों की सफलता कुशल संचार पर निर्भर करती है। संचार प्रशासन को बांधे रखता है। प्रशासन में संचार की विशेष महत्व है। नियोजन प्रशासन का अत्यंत महत्वपूर्ण एवं प्राथमिक कार्य है। प्रशासन की सफलता कुशल नियोजन पर निर्भर करती है। संचार योजना के निर्माण एवं उसके क्रियान्वयन दोनों के लिए अनिवार्य है।
प्रशासन के लिए संगठन परम आवश्यक है। संगठन भी बिना संचार के संभव नहीं है। संचार की एक सुनिश्चित प्रणाली की आवश्यकता संगठनकर्ता का प्रथम कार्य है। प्रशासन में समन्वय एवं नियंत्रण परम जरूरी है। समन्वय एक समूह द्वारा किये जाने वाले प्रयासों को एक निश्चित दिशा प्रदान करने का कार्य करता है। अच्छा संचार समन्वय में भी सहायक होता है। नियंत्रण द्वारा प्रबंध यह जानने का प्रयास करता है कि कार्य पूर्व-निश्चित योजनानुसार हो रहा है या नहीं। ये सभी कार्य बिना कुशल संचार प्रणाली के असंभव हैं। किसी प्रशासन की प्रभावशीलता इसी बात पर निर्भर होती है कि वहां कर्मचारी आपस में विचारों का कितना आदान-प्रदान करते हैं, ये संचार के द्वारा ही संभव है। निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि सत्ता के सभी प्रयोजन संचार द्वारा ही पूर्ण किए जाते है इसलिए सत्ता से संचार की प्रति ध्वनि उत्पन्न होती है। इससे यह सिद्ध होता है कि संचार व सत्ता एक दूसरे के पूरक है एवं संचार ही सत्ता है।
Question : ‘सूचना संगठन के प्रकार्यण की जीवन धारा (प्राण शक्ति) होती है, इस कथन के प्रकाश में निर्णय में संचार की उपयोगिता और महत्व को स्पष्ट कीजिए।
(2000)
Answer : संचार वह प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को सूचनाएं आदान-प्रदान होती है। संचार एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति के मस्तिष्क से जोड़ने वाला पुल है। संचार वह प्रक्रिया है जिसमें लिखित एवं मौखिक शब्दों द्वारा संदेश एवं समझ का विनिमय नहीं होता, बल्कि संकेतों, हाव-भावों तथा मौन द्वारा विनिमय होता है। संचार प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से चेतन एवं अचेतन रूप से सम्प्रेषित भावनाओं, प्रवृत्तियों व इच्छाओं का योग है। संचार संप्रेषण का प्रथम सिद्धांत माना जाता है। प्रबंधकों के लिए निर्णयन की तरह संचार भी संयोजक कड़ी का कार्य करता है। संचार संदेशों के विनिमय एवं पारस्परिक समझ के निर्माण की प्रक्रिया है। संचार मानवीय संबंधों के अभिनव का महत्वूर्ण अंग है। संचार वह प्रक्रिया है जो संगठन को बांधे रखती है क्योंकि इससे संगठन की गतिविधियों और लक्ष्यों की प्राप्ति की बारे में महत्वपूर्ण जानकारी का प्रचार-प्रसार होता है। निर्णयन में संचार की उपयोगिता व महत्व बहुत अधिक है, क्योंकि प्रभावी संचार प्रणाली के बिना आधुनिक युग में प्रबंधकों को सही एवं पर्याप्त सूचनाएं नहीं मिल पाती हैं। संचार प्रबंध की सबसे बड़ी समस्या है। प्रबंधकीय कार्यों की सफलता कुशल संचार पर ही निर्भर करती है। एक प्रभावी संचार प्रबंध के एकीकृत दृष्टिकोण के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। संचार योजना के निर्माण एवं उसके क्रियान्वयन दोनों के लिए अनिवार्य है।
कुशल नियोजन हेतु अनेक प्रकार की आवश्यकता एवं उपयोग सूचनाओं तथ्यों एवं आंकड़ों और कुशल क्रियान्वयन हेतु आदेश, निदेश एवं मार्गदर्शन की आवश्यकता पड़ती है। जिसकी पूर्ति संचार द्वारा ही संभव है। अधिकार एवं दायित्वों का निर्धारण एवं प्रत्यायोजन करना और कर्मचारियों को उससे अवगत कराना संगठन के लिए यह आवयक कार्य है जो संचार के माध्यम से ही पूरे होते हैं। संचार की आवश्यकता प्रबंधकों द्वारा कर्मचारियों को अभिप्रेरित करने के लिए होती है। संचार वह साधन है, जिसके द्वारा किसी संगठन में व्यक्तियों को एक समान उद्देश्य की प्राप्ति हेतु परस्पर संयोजित किया जाता है।
संगठन में त्रुटियों एवं विचलनों को ज्ञात करना कुशल संचार का ही कार्य है। संगठन की प्रभावशीलता के लिए यह आवश्यक है कि कर्मचारी आपस में विचारों का आदान-प्रदान करते रहें, जो कि संचार के ही माध्यम से संभव है। संचार में कई तरह की बाधाएं भी आती रहती हैं, जिसके कारण निर्णयन की प्रक्रिया प्रभावित होती है। संचार में सबसे बड़ी बाधा भाषा की जटिलता होती है। प्रेषक एवं प्रेरित के मध्य की भौगोलिक दूरी भी शीघ्र संचार के मार्ग को बाधित करती है। संगठन में कार्यरत कर्मचारियों के मध्य अच्छे एवं मधुर मानवीय संबंधों के अभाव का संचार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। जब कभी प्रेषक और प्रेषित के मध्य मनोवैज्ञानिक मतभेद उत्पन्न हो जाता है, तो वे परस्पर एक दूसरे की बातों को सुनना पसंद नहीं करते। संचार की तकनीकी बाधाएं संचार माध्यमों में अभियांत्रिक दोषों, गलत माध्यम के चुनाव अथवा प्रयोग तथा संचार यंत्रें के गलत ढंग से प्रयोग करने के परिणामस्वरूप उत्पन्न होती है। परंतु इन बांधाओं को दूर करने के बाद प्रभावशाली संचार प्राप्त किया जा सकता है।
निर्णयन में संचार एक महत्वपूर्ण तत्व है। किसी भी तंत्र में अधिकारियों एवं प्रशासकों को सही समय पर सही निर्णय लेने की आवश्यकता पड़ती है। जिस लिए समय पर पर्याप्त सूचनाओं, तथ्यों एवं आंकड़ों का ज्ञान प्राप्त करना आवश्यक है जो संचार के बिना असंभव है। संचार के द्वारा ही संपूर्ण सूचनाओं को प्राप्त किया जा सकता है।
वर्तमान युग में संचार का महत्व बहुत अधिक बढ़ गया है। यह प्रणाली संगठन के सभी स्तरों पर सही पर्याप्त सूचनाएं उपलब्ध कराती है जिससे निर्णयन में सहायता प्राप्त होती है। निर्णयन में संचार की उपयोगिता एवं महत्व इस बात से स्पष्ट हो जाता है कि संचार सेवाओं के द्वारा ही प्रबंधकों को सही सूचना सही समय पर प्राप्त होती है। जिसके द्वारा निर्णय लेने में प्रबंधक को सहायता मिलती है।