Question : निष्पादन बजटन क्या होता है? उसके गुणावगुणों परिसीमाओं और कठिनाईयों पर प्रकाश डालिए?
(2007)
Answer : नव लोक प्रशासन का एक बिन्दु कार्य निष्पादन बजट है। कार्य-निष्पादन बजट की अवधारणा पिछले कुछ वर्षों से एक महत्वपूर्ण अवधारणा बन गई है क्योंकि यह वित्तीय प्रशासन में सुधार की प्रक्रिया का आवश्यक अंग है। कार्यनिष्पादन बजट परम्परागत बजट से बहुत भिन्न होता है। कार्य निष्पादन बजट विशिष्ट उद्देश्यों और कार्यों को ध्यान में रखकर बनाया जाता है। कार्य निष्पादन बजट परम्परागत बजट प्रणाली के एक चुनौती है। यह परम्परागत बजट से इस अर्थ में भिन्न है कि परम्परागत बजट केवल यह बताता है कि कितना रुपया कर्मचारियों पर खर्च हुआ कितना फर्नीचर पर, कितना स्टेशनरी पर। जबकि कार्य निष्पादन बजट सार्वजनिक व्यय को कार्यों, प्रोग्रामों और क्रियाओं के संदर्भ में प्रस्तुत करता है। कार्य निष्पादन बजट सरकार की गतिविधियों के कार्यों, प्रोग्रामों, क्रियाओं के प्रविधि है। कार्य निष्पादन बजट इस प्रक्रिया को प्रकट करता है, जिसके द्वारा बजट के माध्यम से सरकार के प्रोग्रामों और कार्यों को निष्पादित किया जाता है। सरकार के लेन-देन का वर्गीकरण कार्यगत है। इस प्रकार के बजट में इनपुट एवं आउटपुट के मध्य सीधा सम्बन्ध स्थापित हो जाता है और सरकार की उपलब्धियों का मूल्याकंन लागत के सन्दर्भ में किया जाता है। कार्य निष्पादन बजट कार्यरत वर्गों में तैयार किया जाता है, अर्थात् इसमें मुख्य तत्व शिक्षा, स्वास्थ्य कृषि आदि होता है। प्रत्येक कार्यगत वर्ग को कार्यक्रमों में विभाजित किया जाता है।
कार्य निष्पादन बजट की अवधारणा का आरम्भ संयुक्त राज्य अमेरिका में हुआ। 1950 से अमेरिका की सरकार ने इस प्रकार के बजट को स्वीकार कर लिया। भारत में कार्य निष्पादन बजट को 1955 के आस-पास मान्यता प्राप्त हुई। लोक सभा की प्राक्कलन समिति ने अपनी 20वीं रिपोर्ट में कार्य निष्पादन बजट की सिफारिश की थी। वर्ष 1984-85 में 39 कार्य निष्पादन बजट तैयार किए गए और प्रस्तुत किए गए। कार्य निष्पादन बजट की रूप रेखा निम्न प्रकार होती है-
1. प्रस्तावना- उद्देश्यों का वर्णन
2. वित्तीय आवश्यकताएं
3. वित्तीय आवश्यकताओं की व्याख्या-
कार्य निष्पादन बजट के लाभ के अंतर्गत उन उद्देश्यों एवं लक्ष्यों को पूर्ण स्पष्टता से प्रकट करना है जिन पर व्यय किया जाना है। यह विधान मण्डल द्वारा बजट का अच्छी प्रकार से पुनरावलोकन एवं मूल्यांकन करने में सहायता देता है। यह प्रशासन में उत्तर-दायित्वों को सुनिश्चित करता है। यह सरकारी व्यय तथा आय के विकल्पों का सही चित्र प्रस्तुत करता है। इसमें धन का दुरूपयोग कम हो जाता है, जो वर्तमान बजट प्रणाली में वित्तीय अनुदान के व्ययगत होने पर होता है। परन्तु हमारे देश में कार्यनिष्पादन बजट से जो लाभ होना चाहिए वह हो नहीं रहा है।
इसका प्रमुख कारण यह रहा कि कार्य निष्पादन बजट का क्रियान्वयन शिथिल रहा, महत्वपूर्ण प्रोग्रामों के बेारे में इकाई लागत संख्या को नहीं अपनाया गया। उद्देश्यों को सही प्रकार से निर्धारित नहीं किया गया तथा निष्पादन को सही से नहीं माना जाता है।
परन्तु कार्य निष्पादन बजटन बहुत महत्वपूर्ण है। कार्य निष्पादन बजट को प्रशासनिक एवं वित्तीय नियंत्रण तथा विकास प्रक्रिया के क्रियान्वयन एवं उपलब्धियों के मूल्यांकन हेतु एक लाभदायक प्रबन्धकीय उपकरण बनाया जाना चाहिए।
Question : लेखा-परीक्षण को परायी चीज, बहिरंग चीज और बाधा की प्रकृति की कोई चीज के तौर पर माना जाना जारी है। स्पष्ट
(2006)
Answer : 1976 में संघ स्तर पर लेखा और लेखा परीक्षण का अलगाव किया गया और लेखा कार्यों में महालेखा नियंत्रक को वित्त मंत्रलय के व्यय विभाग में रखा गया।
महालेखा नियंत्रक के द्वारा तैयार किये गये लेखा का परीक्षण नियंत्रक व महालेखा परीक्षक करता है। यह लोक वित्त पर संसदीय नियंत्रण का अपरिहार्य अंग है।
लेन-देन के पूर्ण होने के पश्चात लेखाओं की जांच तथा परीक्षण ही लेखा-परीक्षण कहलाता है। इस जांच का उद्देश्य किसी भी अनधिकृत, अवैध या अनियमित व्ययों, दोषपूर्ण वित्तीय कार्यविधियों की खोज तथा विधानमण्डल को तत्संबंधी सूचना देना एवं यह पता लगाना होता है कि प्रशासन ने अपने उत्तरदायित्वों को सच्चाई के साथ पूरा किया है या नहीं। लेखा-परीक्षण को बाधा की प्रकृति की चीज के रूप में पारिभाषित किया जाता है।
नियंत्रक और महालेखा परीक्षक में शक्तियों का केंद्रण ज्यादा है और यह व्यवस्था संघवादी व्यवस्था के अनुरूप नहीं है, क्योंकि या तो लेखा में कमियां होती हैं या कभी-कभी लेखा सूचना देरी से उपलब्ध होती है। ऐसी स्थिति में लेखा रिपोर्टों का उचित परीक्षण संसद की वित्तीय समितियां नहीं कर पातीं। भले ही 11वें वित्त आयोग की सिफारिशों को लागू करते हुए स्थानीय सरकारों के लेखा परीक्षण मामले में बहुत से राज्यों में CAG की भूमिका उभरी हो, लेकिन अभी भी इनका परीक्षण की नहीं कर रहा है, जबकि भारत सरकार और राज्य सरकार के बहुत से अनुदान स्थानीय सरकारों को दिये जाते हैं। CAG की रिपोर्ट के महत्वपूर्ण सुझावों को लागू न करने के बावजूद विधायिका में चर्चा किये जाने में कमियां होती हैं।
नियंत्रक और महालेखा परीक्षक का लेखा परीक्षण स्वयं किये जाने के मुद्दों को संसदीय समिति ने उचित नहीं माना है। CAG और भ्रष्टाचार निवारक अभिकरणों में दूरियां बनी हुई हैं। लेखा परीक्षण में आर्थिक उपक्रमों की बाजारिक स्थितियों को ध्यान में रखनें की कमियां हैं। वैसे भी मंत्रलयों, विभागों की लेखा ओर लेखा परीक्षण के तंत्र को आधुनिकीकृत किये जाने में कमियों का असर लेखा परीक्षण की प्रभावशीलता पर पड़ता है। कुछ आधारभूत अभाव जो इस व्यवस्था में पाये जाते हैं। लेखा परीक्षण के कारण ही भारतीय प्रशासन में निर्णय करने तथा कार्य करने के प्रति व्यापक एवं घातक अनिच्छा हमें दिखाई पड़ती है। सुप्रशासन के बारे में भी लेखा-परीक्षक अधिक नहीं जानता है और न ही उससे ऐसी आशा की जा सकती है। इस प्रकार वर्तमान परिप्रेक्ष्य में यह व्यवस्था अपनी संपूर्ण प्रभावशीलता का प्रतिपादन उस प्रकार नहीं कर रहा है, जितना इसके उद्भव के समय आशा की गई थी।
Question : बजटन उपागम (budgeting approach) के सफलतापूर्वक कार्यान्वयन के लिये अनुकूल प्रोत्साहन संरचनाओं की आवश्यकता होती है। चर्चा कीजिए।
(2006)
Answer : लोक वित्त अर्थव्यवस्था का मस्तिष्क है यह दक्षता का उत्प्रेरक और नियंत्रक है। इससे राजस्व और व्यय में संतुलन बनाता है। बजट से लेखा संभव है, लेखा से लेखा परीक्षण संभव है, लेखा परीक्षण से वित्तीय जवाबदेही आती है और वित्तीय जवाबदेही से लोकतांत्रिक नियंत्रण संभव बनता है। विश्व में आज सरकार के कायों का क्षेत्र विस्तृत हो गया है। वह निजी व्यक्तियों और उद्योगों की प्रतिस्पर्धा देखने वाले केवल दर्शक नेता ही नहीं है, बल्कि उसके उत्तरदायित्व बढ़ गये हैं। पहले समाज के व्यक्तियों को अपनी उन्नति और उत्कर्ष के लिये स्वयं प्रयत्न करना पड़ता था। वे जितना धन चाहते, उत्पन्न करते और संपत्ति बनाते थे। आज स्थिति बदल गयी है। समस्त समाज औद्योगिक विवेक का केंद्र हो गया है। आज की सरकार प्रधानतया कल्याणकारी संस्था है। उस पर समस्त देश की समृद्धि का उत्तरदायित्व है।
बजट, सरकार के इन्हीं कर्त्तव्यों के निर्वहन का महत्वपूर्ण उपकरण है। यह आर्थिक उन्नति तथा सामाजिक उत्कर्ष का सबल साधन समझा जाने लगा है। इसकी दक्षता से अनेक कल्याण की नीतियां सफल बनायी जा सकती हैं। बजट सुरक्षा तथा सहायता के द्वारा उद्योग और कृषि के उत्पादन की वृद्धि करने में सहायक बनाया जा सकता है। राष्ट्रीय धन और आय की सुव्यवस्थित वितरण बजट के माध्यम से ही संभव है। सामाजिक विषमता को यथासंभव साम्य का रूप देना सुंदर बजट का ही काम है। बजट में करों की ऐसी व्यवस्था हो सकती है कि जिनके पास अधिक धन है, उनसे अधिक कर लिये जायें।
उत्तराधिकार में मिलने वाली संपत्ति पर विशेष कर तथा मरण-कर लगाये जायें और उस धन को शिक्षा, सार्वजनिक स्वास्थ्य भवन-निर्माण आदि समाजिक सेवाओं को सस्ता बनाने में खर्च किया जाये, जिससे अल्प आय वाले समूह का हित हो। परंतु यह आवश्यक है कि उक्त प्रकार के उद्देश्य को पूरा करने के लिये बजट रचना में बड़े कौशल की आवश्यकता पड़ेगी, उसको बनाने में कुछ विशेष काट-छांट करनी पडे़गी और आर्थिक मसलों को जो समझते हैं और जिनको उनका प्रत्यक्ष अनुभव है, वे उसको संपादित कर सकते हैं। इस प्रसंग में समस्त राष्ट्र की वित्तीय व्यवस्था का सर्वेक्षण करना पड़ेगा, राजकीय एवं निजी सभी प्रकार की आयों को देखना पड़ेगा और ठीक-ठीक आंकड़े एकत्रित करने पड़ेंगे।
बजटिंग प्रक्रिया को उपरोक्त लाभों के विश्लेषण से निश्चित रूप से तय होना है कि इसके सफलतापूर्वक क्रियान्वयन के लिये अनुकूल प्रोत्साहन की आवश्यकता होती है। जो पूरे देश, समाज व अर्थव्यवस्था के लिये अपरिहार्य है।
Question : ‘बजट समन्वय का एक उपकरण है’। स्पष्ट कीजिए।
(2005)
Answer : बजट आधुनिक राज्यों में राष्ट्र की आर्थिक नीति को संचालित और नियन्त्रित करने के विशिष्ट साधनों में प्रमुख स्थान रखता है। सरकार बजट की सहायता से ही अपने कार्य का संचालन करती है तथा सार्वजनिक आय के विभिन्न ड्डोतों का अधिकतम सदुपयोग करने की योजना बनाती है। जो सरकार इस कार्य को जितनी क्षमता से करती है, वह अपने नागरिकों की आर्थिक भौतिक समृद्धि को उतनी तेजी से बढ़ाती है।
बजट के माध्यम से ही राष्ट्र को दिशा मिलती है। प्रशासन करने वाले सरकारी अधिकारी बजट की सहायता से ही विभागों का प्रशासन समुचित रीति से कर सकते हैं। बजट विधायिका को न केवल देश का अपितु उस देश की अर्थव्यवस्था को पूरा नियन्त्रण और अंकुश रखने का साधन प्रदान करता है। बजट नागरिकों व करदाताओं के लिए भी उपयोगी है, क्योंकि इससे नागरिकों को यह पता चलता है कि सरकार को किन-किन ड्डोतों से कितनी आमदनी होती है और वह आमदनी का किस प्रकार व्यय करती है व उससे कौन-कौन से उद्देश्य पूरा करती है।
बजट समन्वय का एक उपकरण है। बजट के माध्यम से सरकार अपनी योजनाओं को क्रियात्मक रूप देती है। वह मुख्य रूप से निम्न कार्यों को पूरा करती हैः
(i) राष्ट्रीय वित्त का सुव्यवस्थित रूप से सदुपयोग करना
(ii) सार्वजनिक आय-व्यय की विभिन्न मदों का विस्तृत विवरण वैज्ञानिक एवं सुव्यवस्थित रीति से कार्यपालिका द्वारा तैयार किया जाता है।
(iii) स्वीकृत बजट के अनुसार ही कार्यपालिका को इकठ्ठा करने और आवश्यक व्यय के लिए बजट के आधार पर अनुमति देना है।
(iv) सरकार की आर्थिक नीति को कार्यान्वित करने के लिए बजट का एक साधन के रूप में उपयोग किया जाता है। एक स्वीकृत बजट प्रशासकों को यह बताता है कि उसे किस प्रकार की वित्तीय परिस्थितियों में कार्य करना है और किन योजनाओं और उद्देश्यों की पूर्ति के लिए उसे प्रयास करना है।
(v) बजट के माध्यम से पिछले वित्तीय वर्ष में किये गये कार्य का अवलोकन होता है।
(vi) बजट के द्वारा नवीन नीति निर्माण करने के लिए पिछले वर्षों में किये गये कार्यों का विवरण प्रस्तुत करना है, जिसके आधार पर अगले वर्षों के लिए नीति सम्बन्धी निर्णय किए जा सकते हैं।
(vii) बजट विभिन्न विभागों का इस विषय में मार्गदर्शन करता है कि उन्हें इस वर्ष कौन-कौन से कार्य कितनी धनराशि की सीमा के भीतर रहते हुए करने हैं। बजट जनता के लिए बनता है, जनता उससे प्रभावित होती है।
अतः बजट को कई चरणों व अवस्थाओं से गुजरना पड़ता है। कार्यपालिका द्वारा बजट बनाया जाना तथा व्यवस्थापिका के समक्ष रखा जाना, व्यवस्थापिका द्वारा कार्यान्वित किया जाना इन विभिन्न अवस्थाओं का पर्याप्त प्रचार-प्रसार होना चाहिए ताकि जनता बजट में प्रस्तावित योजनाओं तथा कार्यक्रमों के सम्बन्ध में सुझाव दे सके। अतः बजट समन्वय का एक साधन है।
Question : सरकार में लेखा परीक्षण एक मरणोत्तर चेष्टा है। परीक्षण कीजिए।
(2002)
Answer : लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में सरकारी व्यय पर नियन्त्रण बनाए रखना एक कठिन व श्रमसाध्य प्रक्रिया होती है। सरकारी कोष में जमा धन जनता का धन होने के कारण उचित व पर्याप्त महत्व के प्रश्नों पर ही व्यय हो, इसके लिए लेखा परीक्षा एक आवश्यक भाग बन जाता है। भारत में इस कार्य को सम्पन्न करने के लिए नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक की व्यवस्था की गई है। जिसको विभिन्न प्रकार के कार्य सौपे गए हैं, यथा- भारत की संचित निधि से निकाले जाने वाले समस्त धन राशि को देखना है। यह कार्य वह नियन्त्रक के रूप में करता है तथा सार्वजनिक लेखों के महालेखा निरीक्षक के रूप में उसका कार्य यह है कि वह सभी व्यय हुए सरकारी धन की जांच इस दृष्टि से करे कि वह संसद द्वारा पास किए गए कानूनों व नियमों के अनुसार व्यय किए गए हैं।
इसके अतिरिक्त महालेखा परीक्षक सभी प्रकार के ट्टण, निक्षेप, शोधन निधि, उचन्त खाता एवं अगाऊ धनराशियों से सम्बन्ध रखने वाले केन्द्र एवं राज्यों के सभी लेन देनों की लेखा परीक्षा करता है। साथ ही, अन्य सरकारी विभागों तथा सरकारी विभाग के भण्डार के समान व सामग्री के लेखों की जांच करता है।
सबसे महत्वपूर्ण लाभ यह है कि लेखा परीक्षण द्वारा प्रशासन पर नियन्त्रण बनाया रखा जा सकता है। चूंकि महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट में व्यय की नियमितता तथा उनके औचित्य के सम्बन्ध में टीका टिप्पणियां होती हैं और ये रिपोर्ट कई महत्वपूर्ण वित्तीय अनियमितताओं को प्रकाश में लाती है, इससे प्रशासन पर संसद द्वारा नियन्त्रण बनाए रखना आसान हो जाता है। लेखा परीक्षा के कारण कार्यपालिका को यह डर हमेशा बना रहता है कि उसके द्वारा की गई वित्तीय अनियमितताएं लेखा परीक्षक की निगाह में आ जाएगी। इससे वे कम से कम गलतियां करते हैं। इसके अलावा लेखा परीक्षक की रिपोर्ट लोक लेखा समिति के पर्याप्त महत्व की होती है क्योंकि इसी रिपोर्ट का उपयोग कर उसे कई ऐसे मुद्दे मिलते हैं जिन पर सुधारों के लिए वह सुझाव देती है। प्रशासन में लेखा परीक्षण एक मरणोत्तर चेष्टा है। यह कहना युक्तिसंगत इसलिए नहीं है, क्योंकि भले ही लेखा परीक्षण सभी व्ययों एवं अनियमितताओं के हो जाने के बाद किया जाता है फिर भी इन अनियमितताओं का पता लगने पर उन्हें काफी हद तक दूर किए जाने के उपाय खोजे जा सकते हैं।
Question : सरकारी बजट का लोकनीति के एक उपकरण और विधायी नियन्त्रण के एक साधन के रूप में परीक्षण कीजिए।
(2002)
Answer : प्रशासन पर संसदीय-नियन्त्रण की दृष्टि से बजट विवादों को सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। विनियोग प्रक्रिया का ऐसा सबसे अधिक व्यापक तथा व्यवस्थित साधन है, जिसके द्वारा विधान मण्डल प्रशासकीय क्रियाओं की समीक्षा करता है। बजट विवादों को एक महान वार्षिक राष्ट्रीय जांच समझा जाता है। विभिन्न विभागों से सम्बन्धित अनुदानों की मांग पर विचारों के समय, संसद, सम्पूर्ण विभाग की कार्य प्रणाली का जांच सूक्ष्म परीक्षण तथा समीक्षा से करती है।
बजट सम्बन्धी वाद-विवाद तथा बहस के समय संसद सदस्यों को सरकार की नीतियों तथा प्रशासन की कार्य प्रणाली की समीक्षा का अवसर मिलता है। सदन में बजट प्रस्तुत होने के कुछ दिन पश्चात् उस पर सामान्य बहस होती है। जब बजट पर सामान्य बहस समाप्त हो जाती है, तब लोक सभा में अनुदानों की मांगों पर मतदान का कार्य आरम्भ होता है।
बजट पर बहस के समय वार्षिक प्रतिवेदनों की नकलें तथा मंत्रलयों के कार्यों के संक्षिप्त विवरण सदस्यों को उपलब्ध कराये जाते हैं। संसदीय शासन पद्धति में संसद द्वारा बजट में कोई बड़ा संशोधन तो नहीं किया जाता है, परन्तु सरकार की वित्तीय नीतियों तथा बजट की मदों की स्वास्थ्य आलोचना करने का उपयुक्त क्षेत्र अवश्य विद्यमान रहता है।
विनियोग विधेयक सदन द्वारा मतदान की हुई मांगों को मामूली रूप देता है और उन कार्यों के लिए भारत को संचित नीधि से धन निकालने का अधिकार प्रदान करता है। लोकसभा में इसके पारित होने की प्रक्रिया वही है, जो किसी दूसरे विधेयक की होती है, उसमें केवल अन्तर मात्र यह होता है कि इस विधेयक को पारित करते समय सदन द्वारा पारित अनुदानों में अथवा संचित निधि से प्रयासों में कोई संशोधन नहीं किया जा सकता।
विनियोग विधेयक वाद-विवाद विधेयक के अनुदानों में अन्तर्निहित प्रशासकीय नीति के ऐसे मामलों तक ही सीमित रहता है जो कि उस समय नहीं उठाये गये हों, जबकि अनुदानों से
सम्बन्धित मांगें विचाराधीन होती हैं। लोक सभा विधेयक पर विचार करती है तथा उसको पास करती है। वित्त विधेयक में भारत सरकार के सारे वार्षिक कर प्रस्तवित्त किये जाते हैं।
सरकारी विभागों में कार्य-संचालन का सूक्ष्म परीक्षण करने के लिए संसद समितियों का भी उपयोग करती है। लोक लेखा समिति, अनुदान समिति तथा सरकारी उद्यम समिति का सम्बन्ध मुख्यतः लोक वित्त तथा प्रशासक से होता है। उत्तरदायी सरकारों वाले सभी देशों की वित्त व्यवस्थाओं में एक मान्य उपबन्ध होता है कि बजट के क्रियान्वयन के पश्चात सौदों अथवा व्यवहारों की समीक्षा की जाती है।
प्रत्येक स्थिति में महालेखा परीक्षक की शक्तियां अनियमितताओं की ओर ध्यान दिलाने तथा उसके सम्बन्ध में सुझाव देने तक ही समिति थी। नियन्त्रक व महालेखा परीक्षक सरकार के वार्षिक खातों की जांच करता है और सूक्ष्म परीक्षण के बाद खातों को प्रभावित करता है। तत्पश्चात वह इस सम्बन्ध में अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को प्रस्तुत करते हैं। राष्ट्रपति उसे संसद में प्रस्तुत करता है और संसद उस रिपोर्ट को व्यापक जांच के लिए लोक लेखा समिति को सौंप देती है। वित्तीय प्रशासन के क्षेत्र में कार्यपालिका द्वारा बजट का प्रस्तुतीकरण व्यवस्थापिका द्वारा उसे पास करने की प्रक्रिया तथा सरकारी आय-व्यय लेखों की सुव्यवस्थित व्यवस्था से जुड़ी क्रियाओं का महत्वपूर्ण स्थान होता है। इस प्रकार सरकारी बजट विधायी नियन्त्रण के रूप में कार्य करता है।
Question : संसदीय प्रणाली की सरकार में सांविधिक बाह्य लेखा परीक्षण, लोकतन्त्र के रक्षकों में से एक है। टिप्पणी कीजिए।
(2001)
Answer : भारत में लोक लेखा परीक्षा द्वारा प्रशासन पर नियन्त्रण बनाए रखने का प्रयास किया जाता है एवं यह संसदीय लोकतन्त्र का एक महत्वपूर्ण पहलू है।
भारत में नियन्त्रक एवं महालेखों का पद संविधान द्वारा स्थापित किया गया हैे। भारतीय संविधान में भी इसका उल्लेख है। इस सम्बन्ध में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 148 में यह व्यवस्था है कि संघ तथा राज्यों के लेखा एवं लेखा परीक्षण के लिए एक स्वतन्त्र नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक होगा, जो राष्ट्रपति के हस्ताक्षर एवं मुहर द्वारा नियुक्त किया जाएगा तथा निर्धारित विधि द्वारा शपथ ग्रहण करेगा।
नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक एक संवैधानिक पद है, जो कार्यपालिका से स्वतन्त्र रह कर सरकारी धन के दुरूपयोग पर अंकुश लगाता है। इसके मुख्य उत्तरादायित्व हैं, यथा- राष्ट्रपति की सहमति से यह निर्धारित करना कि संघ तथा राज्यों के लेखा रखने की विधि, प्रारूप तथा प्रक्रियाएं क्या होंगी? संसद द्वारा प्रदत्त शक्तियों के अन्तर्गत संघ एवं राज्यों के लेखाओं का परीक्षण करना व संघ तथा राज्यों की संचित निधि में आय-व्यय के लेखे तैयार करना व आकस्मिक निधि तथा लोक लेखा के क्रम में देन-लेन पर आवश्यक कार्यवाही करना, राजकीय विभागों में व्यापार, निर्माण, लाभ व हानि लेखों तथा बैलेंस सीटों पर नियन्त्रण करना, राजकीय संगठनों में भण्डार तथा सामग्री के लेखे नियन्त्रित करना व लोक निगमों तथा सरकारी कम्पनियों से सम्बन्धित अंकेक्षण करना तथा संघ तथा राज्यों में संचित निधि से वित्त पोषित संस्थाओं पर वित्तीय नियन्त्रण करना। साथ ही राष्ट्रपति तथा राज्यपाल की प्रार्थना पर ऐसी संस्था का लेखा एवं अंकेक्षण देखना जो राज्य द्वारा वित्त पोषित हो। नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक के प्रमुख कार्य हैं- अंकेक्षण करना, ये अंकेक्षण है- व्यापक अंकेक्षण, प्राप्ति अंकेक्षण, अंकेक्षण भंडार तथा माल अंकेक्षण, संघ तथा राज्यों के वार्षिक लेखों का प्रमापीकरण, लोक उपक्रमों का अंकेक्षण। नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक का कार्य अत्यन्त उपयोगी होता है। सरकारी धन जनता की धरोहर होता है, उसकी समुचित अभिरक्षा आवश्यक है, जिसकी जिम्मेदारी लोक लेखा परीक्षक की होती है, इसी कारण इसे लेाकतन्त्र के रक्षकों में से एक माना जाता है।
Question : बर्कहेड का कथन है ‘सरकार का बजट’ राजकोषीय नीति का वाहक और प्रबन्धन का एक साधन होता है। इस कथन की समीक्षा कीजिए।
(2001)
Answer : बजट एक ऐसा परिपत्र है, जिसमें सार्वजनिक राजस्व और व्यय की प्रारम्भिक योजनाएं प्रस्तुत की जाती हैं। यह सम्पूर्ण सहकारी प्राप्तियों तथा अनुमानों की एक भारी रूप-रेखा है। इसमें कुछ प्राप्तियों को संग्रहित करने एवं कुछ को व्यय करने का आदेश भी होता है। लेकिन वर्तमान जनतान्त्रिक संदर्भ में बजट प्रशासन का अर्थ आय-व्यय के लेखे मात्र से कुछ अधिक है। यह अतीत और भविष्य के बारे में ब्यौरेवार तथ्यपूर्ण कथन है और नीति सम्बन्धी नियन्त्रण का एक साधन भी है।
बजट सरकार की आय और व्यय का केवल अनुमान ही नहीं है, वरन् यह साथ ही एक प्रतिवेदन, एक अनुमान तथा एक प्रस्ताव तीनों है अथवा इसे ऐसा होना चाहिए। यह एक ऐसा लेखा पात्र है, जिसके माध्यम से कार्यपालिका, व्यवस्थापिका के सम्मुख आती है और विस्तार के साथ अतीत, वर्तमान और भविष्य की वित्तीय स्थितियों का प्रतिवेदन प्रस्तुत करती है।
किसी भी देश का बजट उसके आर्थिक एवं सामाजिक जीवनमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। बजट के माध्यम से उत्पादन एवं उपयोग की वस्तुओं पर कर लगाकर आर्थिक असमानता को कम किया जा सकता है और समाजवादी समाज की स्थापना की जा सकती है। प्रारम्भ में बजट आय-व्यय का लेखा मात्र समझा जाता था, जबकि वर्तमान समाज में कल्याणकारी समाज की अवधारणा तथा सरकार के कार्यों में क्रान्तिकारी वृद्धि हो जाने के कारण बजट सरकारी नीति का एक महत्वपूर्ण वक्तव्य बन चुका है। बजट के माध्यम से नागरिक यह जान पाते हैं कि सरकार की विभिन्न योजनाएं उन्हें किस प्रकार लाभान्वित करेंगी एवं कर के रूप में उन्हें कितना कुछ देना होगा। सामान्य नागरिक भी बजट की प्रक्रियाओं के मूल्यों पर पड़ने वाले प्रभाव को मुद्रा स्फूर्ति एवं उत्पादन दर के निर्धारण से, पूंजी विनियोजन एवं बजट के लिए उपलब्ध धनराशि की मात्र से, सम्पत्ति सम्बधों एवं वर्ग सम्बन्धों पर पड़ने वाले प्रभाव से, आलोचना एवं भावी विकास सम्बन्धी नीतियों की प्रक्रिया से, बजट की राजनीति एवं उसके राजनीतिक चुनावों पर पड़ने वाली गतिविधियों तथा उत्पादन, वितरण, विनिमय एवं उपभोग की रीतियों से प्रभावित होता है, अतः बजट वित्तीय प्रशासन का प्रधान उपकरण होता है।
Question : सामाजिक-आर्थिक रूपान्तरण के साधन के रूप में बजट।
(2000)
Answer : किसी भी राष्ट्र की नीतियों का संचालन वित्त की अनुपस्थिति में सम्भव नहीं है। वित्त के द्वारा ही कोई योजना कार्यक्रम तथा नीतियां अपने उद्देश्यों को प्राप्त कर पाती हैं। राष्ट्र के संसाधनों के समुचित प्रयोग तथा वित्त की पर्याप्तता सुनिश्चित करने के लिए बजट का अविर्भाव हुआ।
बजट सम्पूर्ण सरकारी प्राप्तियों तथा खर्चों का एक पूर्वानुमान तथा अनुमान है और प्राप्तियों का संग्रह करने तथा कुछ खर्चों को करने का एक आदेश है। बजट सरकार की आय तथा व्यय का विवरण है।
वर्तमान समय में बजट राष्ट्र के आर्थिक तथा सामाजिक जीवन में अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। बजट प्रशासनिक नियन्त्रण का प्रभावशाली यन्त्र है। बजट सरकार की तथा सामाजिक तथा अर्थिक नीति का एक अत्यंत महत्वपूर्ण साधन है। बजट के द्वारा सरकार देश के तथा सामाजिक एवं आर्थिक उत्थान हेतु प्रस्तावित योजनाओं तथा कार्यक्रमों को जनता के समक्ष रखती है।
बजट में उत्पादन, उपयोग, आयात-निर्यात, राष्ट्रीयकरण क्रय-विक्रय, वाणिज्य, उद्योग, आयकर, कराधान, आदि सभी समस्याओं के सम्बन्ध में सरकार की नीतियों का उल्लेख किया जाता है।
बजट आर्थिक तथा सामाजिक नीतियों का महत्वपूर्ण उपकरण होता है। बजट देश की आर्थिक प्रगति में योगदान देता है। बजट देश की आर्थिक व्यवस्था को प्रभावित करने की युक्ति है। बजट-निर्माण प्रशासनिक व्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है। बजट नकारात्मक रूप में अपव्यय को कम करने की एक प्रभावशाली युक्ति है। बजट ही व्यवस्था वित्तीय प्रशासन का आधार स्तम्भ है। वित्तीय प्रशासन में पूर्णता एवं स्थायित्व तब तक नहीं आ सकता है, जब तक बजट का कोई सदृढ़ सिद्धान्त न हो।
बजट सरकार की नीतियों एवं उसके कार्यक्रमों के राष्ट्रीयकरण का एक प्रमुख अस्त्र है। बजट राष्ट्र के सामाजिक, आर्थिक जीवन पर गहरा प्रभाव डालता है। बजट देश की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने की युक्ति है। सामाजिक-आर्थिक रूपान्तरण के साधन के रूप में बजट एक महत्वपूर्ण उपकरण है।
Question : भारत सरकार की संघ मन्त्रलयों में निष्पादन कार्यक्रम बजटीय तकनीक को वर्तित करने में विफलता के कारणों को बताइए। भारत में आजतक किस प्रकार का बजटीय तन्त्र व्यवहार में लाया जा रहा है और क्यों?
(2000)
Answer : बजट सरकार के आय-व्यय के मध्य संतुलन एवं इससे प्राप्त उपलब्धियों का विवरण है। बजट सरकारी नीतियों के प्रतिबिम्बित करने का प्रशासनिक प्रयास होता है। बजट विगत वर्षों में कार्यपालिका द्वारा सम्पादित प्रशासनिक तथा आर्थिक कार्यों का सन्तुलित ब्यौरा है। बजट सरकारी क्रिया कलापों के संचालन के लिए आवश्यक धनराशि जुटाने तथा खर्च करने का एक व्यवस्थित मसौदा है एवं व्यवस्थापिका के समक्ष स्वीकृति के लिए पेश किए जाने के कारण नियमित रूप से कार्यपालिका को व्यवस्थापिका के प्रति अपने उत्तरदायित्व का बोध कराने का प्रभावी माध्यम है।
व्यवस्थापिका की स्वीकृति के पश्चात ही सत्त पुष्टि का प्रभाव बजट प्रक्रिया में कुछ सिद्धान्तों का पालन होता है। जो निम्न प्रकार हैः
भारत में बजट को वार्षिक वित्तीय विवरण कहा जाता है तथा केन्द्र एवं राज्य सरकारें दोनों अपने लिए अलग-अलग बजट बनाती हैं। केन्द्रीय बजट के दो भाग होते हैं- सामान्य बजट एवं रेलवे बजट।
बजट आधुनिक राज्यों में राष्ट्र की आर्थिक नीति को संचालित और नियन्त्रित करने में विशिष्ट स्थान रखता है। बजट की सहायता से सरकार अपना काम करती है तथा सार्वजनिक आय के विभिन्न ड्डोतों का अधिकतम प्रयोग करती है। वित्तीय प्रशासन के क्षेत्र में ‘निष्पादन बजट’ एक महत्वपूर्ण अवधारणा है। निष्पादन बजट निष्पादन पर आधारित बजट है अर्थात् इसमें बजट के उद्देश्यात्मक, परिणामात्मक, गुणात्मक तथा उपलब्धिपरक पक्षों पर ध्यान दिया जाता है। यह धन का आर्थिक प्रशासन सुनिश्चित करता है (निष्पादन बजट) उस प्रक्रिया को प्रकट करता है, जिसके बजट के माध्यम से सरकार के कार्यक्रमों और कार्यों को निष्पादित किया जाता है। सरकार के लेन-देन का वर्गीकरण कार्यगत होता है। इस प्रकार के बजट में इनपुट तथा आउटपुट के मध्य सीधा सम्बन्ध स्थापित होता है। वास्तव में कार्य निष्पादन बजट का सम्बन्ध सरकर के द्वारा प्राप्त किए जाने वाले उद्देश्यों से होता है, न कि विभिन्न वस्तुओं पर किए जाने वाले व्यय से।
निष्पादन बजट व्यावसायिक प्रबन्ध का एक उपकरण है क्योंकि यह उन उद्देश्यों एवं लक्ष्यों को पूर्ण स्पष्टता से प्रकट करता है, जिन पर व्यय किया जाना है। यह विधान मण्डल द्वारा बजट का अच्छी प्रकार से पुनरावलोकन एवं मूल्यांकन करने में सहायता देता है। यह प्रशासन एवं प्रबन्ध में उत्तरदायित्व सुनिश्चित करता है। कौन किस कार्य के लिए उत्तरदायी है तथा किसको क्या-क्या अधिकार प्राप्त है, यह कार्य भी निष्पादन बजट कर देता है। व्यय तथा आय के विकल्पों का सही चित्र प्रस्तुत करता है।
कार्य निष्पादन बजट सार्वजनिक व्यय को कार्यों, कार्यक्रमों और क्रियाओं के संदर्भ में प्रस्तुत करता है। कार्य निष्पादन बजट सरकार की गतिविधियों को कार्यों, कार्यक्रमों, क्रियाओं एवं परियोजनाओं के रूप में प्रकट करने की प्रविधि है। इसमें सरकार के लेन-देन का वर्गीकरण कार्यगत होता है तथा इनपुट एवं आउटपुट से सीधा सम्बन्ध स्थापित होता है।
परम्परागत बजट उस काल की देन थी जब सरकार के कार्य कम होते थे। अतः सार्वजनिक व्यय कम ही रहता था। और प्रयत्न यह किया जाता था कि कम से कम खर्च हो। साथ ही वित्त प्रशासन मध्यम और निम्न श्रेणी के कर्मचारियों को सदैव शंका की दृष्टि से देखता था। उद्देश्य प्राप्ति की पूर्ति के लिए उसने नियन्त्रण की एक विशाल प्रणाली तैयार कर ली थी। निश्चय ही इससे प्रशासन की गति भेद हो गई थी, क्योंकि यह संरचनात्मक पहलू पर ही ध्यान देता था न कि बजट के गुणात्मक पहलू पर।
Question : बजट वह साधन है जिससे अनेक प्रयोजन सिद्ध होते हैं।
(1998)
Answer : वित्त को प्रशासन का जीवन रक्त कहा जाता है। पुरातन काल से ही वित्त पर ध्यान दिया जाता था। वित्त के अभाव में किसी भी प्रकार के प्रशासन की कल्पना नहीं की जा सकती है। प्राचीन विद्वान का मत है कि फ्शुप्रशासन वित्त पर ही निर्भर करती है। अतः कोषागार के प्रति सर्वाधिक ध्यान दिया जाना चाहिए।य् प्रत्येक राष्ट्र की सफलता के लिए राष्ट्र की प्रशासनिक व्यवस्था में ठोस व कुशल वित्तीय प्रणाली सरकार के प्रति लोगों में उदासीनता दिखाती है। जिस कारण सरकार का आस्तित्व ही खतरे में पड़ जाता है। प्रशासन के लिए अच्छी वित्तीय प्रणाली परमावश्यक है। कुशल शासन की समस्या में अन्तर्निहित विविध तत्वों मे वित्तीय प्रशासन से अधिक महत्चपूर्ण कोई दूसरा नहीं है।
बजट आधुनिक राज्यों में राष्ट्र की आर्थिक नीति को संचालित और नियंत्रित करने वाले विशिष्ट साधनों में एक है। सरकार बजट की ही सहायता से अपना कार्य करती है तथा सार्वजनिक आय के विभिन्न ड्डोतों का अधिकतम सदुपयोग करने की योजना बनाती है। जो सरकार इस कार्य को जितनी अधिक क्षमता से करती है, वह अपने नागरिकों की आर्थिक और भौतिक समृद्धि को उतनी ही तेजी से बढ़ाती है। बजट केवल गणित के आंकड़े मात्र नहीं है, बल्कि यह हजारों व्यक्तियों की समृद्धि विभिन्न वर्गों के पारस्परिक सम्बन्धों तथा राज्यों की शक्ति का मूल है। किसी भी देश के प्रशासन में वित्तीय प्रशासन अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वित्त ही किसी भी राष्ट्र को सम्पन्न एवं असम्पन्न की कोटि में रखता है। वित्त व प्रशासन प्रायः एक दूसरे से जुड़े रहते हैं। प्रशासन के अधिकांश कार्यों का आधार वित्त ही होता है। लोकहित की कोई भी योजना अथवा प्रगतिशील नीति को अपनाने में धन लगाना पड़ता है। वित्तीय एवं प्रशासनिक मामले अनेक स्तरों पर साथ-साथ उठते हैं और उन्हें समुचित रूप से सम्बद्ध करना आवश्यक हो जाता है।
वित्तीय प्रशासन का यह दायित्व होता है कि वह यह देखें कि धन का सुदुपयोग हो रहा है औेर विधि सम्मत तरीकों से उसका व्यय किया जा रहा है अथवा नहीं। व्यवस्थापिका कहीं जनता पर अनुचित कर भार तो नहीं डाल रही हैं। वित्तीय प्रशासन दक्षता एवं मितव्ययिता दोनों को समान रूप से लेकर चलता है।
बजट किसी राष्ट्र की वित्तीय स्थिति के लिए दर्पण, दीपकऔर दिग्द्योतक यन्त्र के रूप में तीन प्रकार के कार्य करता है। नेहरू के शब्दों में बजट को इस दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए कि देश में क्या करना है और किन लक्ष्यों को प्राप्त करना है? बजट कई कारणों से प्रशासकों विधायकों एवं नागरिकों के लिए अत्यन्त उपयोगी है। बजट नागरिकों और करदाताओं के लिए अत्यन्त उपयोगी है, क्योंकि इससे राष्ट्र की जनता को यह विदित होता है कि सरकार का काम चलाने के लिए कितना धन व्यय किया जा रहा है। सरकार को किस ड्डोत से कितनी आमदनी है।
वास्तव में बजट सम्पूर्ण सरकारी प्राप्तियों एवं खर्चों का एक पूर्वानुमान है। यह कुछ प्राप्तियों का संग्रह करने तथा कुछ को व्यय करने का एक आदेश है। बजट सरकारी आय एवं व्यय का अनुमान मात्र ही नहीं, बल्कि इससे कुछ अधिक है। बजट का प्रभाव पूरे राष्ट्र पर पड़ता है। किसी भी विकसित देश की प्रगति में आर्थिक उत्कर्ष में बजट पद्धति का बड़ा सहयोग है। अतः यह कहना कि बजट मात्र आर्थिक गतिविधियों तक सीमित है, यह सत्य न होगा बल्कि बजट वह साधन है जिसके द्वारा अनेक प्रयोजन सिद्ध होते हैं।
Question : प्रशासन को उत्तरदायित्वपूर्ण ढंग से चलाने के राजकोषीय तकनीकी काफी समय से चली आ रहे हैं, परन्तु फिर भी उनके महत्व को पर्याप्त रूप से समझा नहीं जा रहा,’’ चर्चा कीजिये।
(1997)
Answer : राजकोष के द्वारा केन्द्र तथा राज्य सरकार दोनों की ओर से मुद्रा की प्राप्ति तथा उसके व्यय का कार्य निष्पादन प्रतिदिन किया जाता है तथा दोनों के लिखित अभिलेखों को भी अलग-अलग व्यवस्थित किये जाते हैं। उप राजकोषों द्वारा भी प्रतिदिन अपने लिखित अभिलेख जिला राजकोष को भेजे जाते हैं, जहां इन्हें व्यवस्थित किया जाता है। प्रत्येक एक पखवाडे़ के पश्चात जिला राजकोष अपने विवरणों को राज्य के महालेखपाल के पास सम्प्रेषित करता है। प्रत्येक लेखे के खर्च के साथ ही साथ खर्च के प्रमाण भी सलंग्न रहते हैं। वस्तुतः पूरे देश के विशाल क्षेत्रफल में केन्द्र सरकार की राजस्व प्राप्तियों तथा भुगतान की एक समुचित व्यवस्था होती है। बजट लेखों के सुव्यस्थित संचालन को सुगमतापूर्वक सम्भव बनाती है। राजकोष द्वारा भुगतान के तकनीकी पक्ष पर औपचारिकता पूर्ण करने के पश्चात् ही भुगतान किया जाता है। संवितरण अधिकारी बजट प्रावधानों के अनुसार ही धन का वितरण करता है।
रिजर्व बैंक में राजकोष का एक बड़ा भाग जमा रहता है। जहां रिजर्व बैंक की शाखा नहीं है, उस स्थान पर भारतीय स्टेट बैंक की शाखायें रिजर्व बैंक की अभिकर्ता के रूप में सरकारी कोषों का भण्डारण करती हैं। धन के वितरण बिल मात्र संवितरण अधिकारियों द्वारा ही जारी किये जाते हैं, ये अधिकारी ही अदायगियों के लिये जिम्मेदार होते हैं। संसद द्वारा कार्यपालिका के लिये अनुदान स्वीकार किये जाते हैं। कार्यपालिका का यह दायित्व है कि वह धन को उसी मद में खर्च करे, जिस हेतु उसे दिया गया है। संवैधानिक दृष्टि से कार्यपालिका को सभी व्ययों के लिये स्वीकृति प्रदान करने का अधिकार मात्र संसद को है। व्यवस्थापिका कर आरोपित करती है, कार्यपालिका उन करों का प्रबंध करने के निमित्त प्रशासन तंत्र एवं कार्यपद्धति के नियमों की व्यवस्था करती है। प्रशासन तंत्र एवं कार्यपद्धति के नियमों की रूपरेखा तैयार हो जाने पर करों के निर्धारण का कार्य आरम्भ हो जाता है। करों के निर्धारण के पश्चात् उनका संग्रहन किया जाता है। राजस्व मंडल शासन को राजस्व नीति से सम्बन्धित विषय पर सलाह देते हैं तथा सरकार के आदेशों के सम्बन्ध में पत्र व्यवहार करते हैं। राजस्व नीति के क्रियान्वयन का कार्य भी राजस्व मंडल द्वारा ही सम्पादित किया जाता है। अतिरिक्त सचिव केन्द्रीय राजस्व मंडल का पदेन सभापति होता है और मंडल के अन्य सदस्यों केा सचिवालय में संयुक्त सचिवों के रूप में पदेन स्थिति प्राप्त होती है। इस तरह से वे दोहरी भूमिका का निर्वहन करते हैं। केन्द्रीय राजस्व मंडल संवैधानिक संगठन है, जिसका कार्यनिर्धारण संसद के अधिनियम द्वारा किया जाता है।
वर्तमान में शासन का उद्देश्य सन् 2009 तक राजस्व घाटे को शून्य करना है। राजकोषीय घाटे को जी. डी. पी. के 3 प्रतिशत तक करने एवं जी. डी. पी. अनुपात में वृद्धि के लिए मितव्ययिता के स्थान पर राजस्व वृद्धि को प्रयुक्त किया जाना चाहिये। राजस्व वृद्धि के लिये कर की दर को निम्न रखने कराधान में वृद्धि करने तथा करापात को उपभोग की ओर करने की आवश्यकता है। आयकर की सीमा को भी पुनर्निर्धारित किया जाना आवश्यक है। सरकार को मानक कटौती सहित आयकर छूट से संदर्भित सभी प्रावधान हटा लेने चाहिये। वरिष्ठ नागरिकों व महिलाओं को और भी छूट देने के प्रावधान किये जाने चाहिये। आवास ऋणों को विकास के परिप्रेक्ष्य में बढ़ाया जाना चाहिए। कर छूट से बचतों के संदर्भ में विवेकपूर्ण निर्णय लिये जाने की महती आवश्यकता है। इसके तहत् बचत से संदर्भित योगदान व उस पर ब्याजों को करमुक्त किया जाना चाहिये। आयकर अधिनियम 80 एल के तहत दी जाने वाली छूट को समाप्त किया जाना चाहिये। स्वदेशी कंपनियों पर कर की दर को 30 प्रतिशत के साथ ही मूल्य ”ह्रस दर 15 प्रतिशत की जानी चाहिये। वितरित लाभांशों को करमुक्त घोषित किया जाना चाहिये। आसियान राष्ट्रों की ही भांति सीमाकर के मामले में तीन दरें क्रमशः 5, 8 व 10 प्रतिशत रखी जानी चाहिये।
भारत में लागू वित्तीय कोषों के संरक्षण तथा संवितरण की राजकोष व्यवस्था के कारण भारत के नियंत्रक तथा महालेखा परीक्षक को भारत की संचित निधि से भुगतान किये जाने वाले धन पर नियंत्रण रखने में जटिलता का सामना करना पड़ता है। इसी कारण इस संदर्भ में एकीकृत व्यवस्था अपनायें जाने की आवश्यकता है।
वित्तीय प्रशासन के कार्यक्षेत्र में कार्यपालिका द्वारा बजट का प्रस्तुतीकरण व्यवस्थापिका द्वारा उसे पास करने की प्रक्रिया तथा शासकीय आगमन-निगमन के खाते जैसी व्यवस्थाओं का महत्वपूर्ण स्थान होता है। जनतंत्र व्यवस्था में ये सभी कार्य नागरिकों का हितवर्धन करते हैं तथा प्रशासकों को यह स्मृत कराते रहते हैं कि लोकसत्ता में नागरिकों का हितचिन्तन ही मूलमंतव्य है। वस्तुतः राजकोषीय पद्धति जो ब्रिटिशकाल से ही व्यवस्थित है, के महत्व को कुशल राजकोषीय कार्य संपन्न करने के बावजूद पर्याप्त सम्मान नहीं दिया जा सका है।