Question : "जन सहभागिता विकास प्रशासन के लिये निर्णायक होती है।" टिप्पणी कीजिये।
(2007)
Answer : विकास प्रशासन लोक प्रशासन की नूतन अवधारणा है। उन्नीसवीं शताब्दी के पांचवे दशक के बाद की परिस्थितियों ने प्रशासन को जन सहयोग, आर्थिक विकास एवं राष्ट्रीय निर्माण के महत्वपूर्ण विषयों पर चिंतन करने हेतु विवश किया। इन काल में विश्व के अनेक राष्ट्रों ने स्वतंत्रता के सूर्य को देखा। इन नव राष्ट्रों के राजनैतिक परिदृश्य के विकास का उत्तरदायित्व भी प्रशासन पर ही डाला गया। इन नवराष्ट्रों में प्रशासन जनता के सहयोग से विकास कार्यक्रमों को सम्पादित करना था। दूसरे शब्दों में कहा जाये तो यह काल जनता एवं प्रशासन के मध्य खाई को न्यून करने में सफल रहा, किंतु इस काल में प्रशासन ने शासन की अपेक्षा राष्ट्रहित को विहंगम दृष्टिकोण प्रदान किया।
अन्यानेक विकास के निमित्त किये गये अध्ययनों से यह सुस्पष्ट हुआ कि नवोदित राष्ट्रों के लिए पाश्चात्य विकास मॉडल उपयुक्त नहीं है। वस्तुतः परिस्थितियों ही प्रशासन को सीधे प्रभावित करती हैं। नवस्वतंत्र राष्ट्रों के लिए परंपरागत प्रशासन की अपेक्षा विकास प्रशासन की स्थापना अधिक सार्थक रही है। विकास प्रशासन का तात्पर्य प्रशासन के आधुनिकीकरण के साथ ही साथ आर्थिक नियोजन के एक ज्वलंत साधन के रूप में भी है। इसे प्रशासनिक विकास का पर्यायवाची माना जा सकता है। मूलतः विकास प्रशासन राज्य एवं जनता की आधुनिक आवश्यकताओं एवं मांगों को संतुष्ट करने की क्षमता से सन्दर्भित है।
पांचवें दशक में उदित नवस्वतंत्र एशिया व अफ्रीका के राष्ट्रों ने सर्वप्रथम पश्चिमी देशों द्वारा विकसित मॉडल को ही अंगीकृत किया, लेकिन परिस्थितिक भिन्नता ने पाश्चात्य मॉडल को विफल कर दिया। बाद के वर्षों में आर्थिक विकास के लिए परिस्थिति जन्य स्थितियों को महत्ता प्राप्त हुई। इन्हीं नवीन परिस्थितियों में विकास प्रशासन की संकल्पना उत्पन्न हुई जो कि आधुनिकीकरण के साथ ही साथ आर्थिक विकास को भी प्रश्रय देती थी। साधारणतः विकास प्रशासन से तात्पर्य विकास की योजना निर्मित करने तथा राष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक गतिविधियां बढ़ाने के लिये साधनों को प्रवृत्त करने तथा विभाजित करने से है। विकास शब्द मुख्यतः सामाजिक विषयों से पूर्णयता संगुम्फित है, जिसे वर्तमान मे लोक प्रशासन से भी गुम्फित कर दिया गया है।
विकास प्रशासन वस्तुतः बदलाव लाता है। यह लक्ष्यों की ओर सदैव गतिशील रहता है, इसमें प्रगतिशीलता का मूलभूत गुण पाया जाता है। यह नियोजन एवं नवाचार को पूर्ण संरक्षण प्रदान करता है। विकास प्रशासन, प्रशासन में नम्यता प्रदर्शित करता है। विकास प्रशासन की सफलता का आधार जनसहभागिता पर आश्रित है। इसमें प्रभावी एकीकरण लाभ उपभोग की प्रवृति, का गुण पाया जाता है। इसमें आधुनिक तकनीकों का प्रयोग किया जाता है।
विकास प्रशासन में तकनीकी रूप से सुदृढ़ कार्यक्रम निर्मित किये जाते हैं तथा उन्हें परिचालित किया जाता है। अस्तु जनता के सहयोग की आवश्यकता विकास प्रशासन के कार्यों को सफल करने हेतु होती है। भारत में परम्परागत संस्थाओं के माध्यम से जनसामान्य को विकास कार्यों में सहभागिता हेतु आकर्षित किया जा रहा है। मूलतः विकास का प्रशासन संगठन के कार्य और उत्तरदायित्व तथा विचार-विमर्श लेने की प्रभावी रणनीति का एक महत्वपूर्ण अंग है। विकास प्रशासन की सफलता हेतु अनुशासन का अग्रगण्य योगदान होता है अतः सुस्पष्ट है कि जन सहभागिता विकास प्रशासन के लिए निर्णायक है।
Question : क्या आप इस मत से सहमत हैं कि विकास प्रशासन ने हाल के वर्षों में किसी महत्वपूर्ण बौद्धिक प्रस्फुटन (Intellectual Break Through) किये बिना ही अपने आवेग को गंवा दिया है। चर्चा कीजिए।
(2006)
Answer : एडवर्ड वीडनर की परिभाषा के अनुसार "विकास प्रशासन एक कार्यान्मुखी- लक्ष्योन्मुखी प्रशासनिक व्यवस्था है।" विकास प्रशासन का मूल प्रश्न है- सामाजिक परिवर्तन इसके साथ वह यह भी मानते हैं कि सरकार में विकास प्रशासन "वह प्रक्रिया है, जो एक संगठन के प्रगतिशील, राजनीतिक, आर्थिक तथा सामाजिक लक्ष्यों की ओर मार्गदर्शन करती है, जिन लक्ष्यों को किसी न किसी प्रकार अधिकृत ढंग से निर्मित किया गया है।" साधारणतया विकास प्रशासन में वे संगठन और साधन सम्मिलित हैं जो नियोजन, आर्थिक विकास तथा राष्ट्रीय आय का प्रसार करने के लिये साधनों को जुटाने और बांटने के लिए स्थापित किये जाते हैं, अतः आधुनिकीकरण, सामाजिक-आर्थिक विकास और संस्थानों का निर्माण विकास प्रशासन के अनिवार्य तत्व माने गये। फ्रेंड रिग्स के अनुसार विकास प्रशासन का अभिप्राय प्रशासनिक समस्यायें तथा सरकार का सुधार दोनों ही से है। सामान्तया प्रशासन को बहुत अच्छी प्रकार से तब तक नहीं सुधारा जा सकता, जब तक कि उन पर्यावरणात्मक प्रतिबंधों (अवसंरचना) जो इसके प्रभावी बनने में रूकावट डालते हैं, में परिवर्तन न किये जाये और स्वयं पर्यावरण तब तक नहीं बदल सकता, जब तक का विकास-कार्यक्रमों को सुदृढ़ न किया जाये।
इसमें राज्य की भूमिका नियोजन में ज्यादा होती है। राज्य विकास की प्राथमिकताओं को ज्यादा रखता है। विकास की नीतियों और प्राथमिकताओं को कानूनी आधार अधिक दिये जाते हैं। विकास में नौकरशाही की राज्य की ओर से भूमिका ज्यादा आती है। सामाजिक और आर्थिक प्राथमिकताओं के मुद्दे राज्य ज्यादा प्रभावित करता है। राज्य के नेतृत्व में विकास प्राप्त किया जाता है। विकास की रणनीतियों को सरकारी तंत्र विशेषकर राष्ट्रीय स्तर की सरकारें ज्यादा निर्देशित करती हैं।
विकास प्रशासन के उदय के कारणः सामान्य तौर पर विकास प्रशासन शब्द का प्रयोग विकासशील देशों की समस्याओं के समाधान एवं उनके सर्वांगीण विकास हेतु प्रयुक्त प्रशासन के संदर्भ में किया जाता है। विकास प्रशासन शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग भारतीय प्रशासनिक अधिकारी यू. एल. गोस्वामी ने 1955 में किया। विकास प्रशासन के उदय के पीछे निम्नलिखित कारण थे-
1950-60 के दशक के दौरान लोक प्रशासन के विद्वानों ने लोक प्रशासन के पारस्परिक दृष्टिकोण, जो कि पाश्चात्य मूल्य-उन्मुखी था, के प्रति काफी असंतोष जाहिर किया। विद्वानों को सूचना के एक मात्र आधार के रूप में अमेरिकी अनुभव पर लोक प्रशासन संबंधी अध्ययनों की अत्यधिक निर्भरता से भी असंतोष था।
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अनेक अफ्रीकी और एशियाई देश स्वतंत्र हुये, जो कि सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक एवं प्रशासनिक विकास के विभिन्न चरणों में थे, चूंकि इन देशों के प्रशासन का अध्ययन करने की उत्सुकता पनपी। इस कारण उन्होंने विकास प्रशासन का अध्ययन किया।
तृतीय विश्व के देशों में समय और प्राकृतिक संसाधनों की काफी कमी थी। आधारभूत संरचना की कमी थी, जबकि उनकी आवश्यकता तुरंत और तीव्र सामाजिक-आर्थिक विकास की थी। ये लक्ष्य निष्क्रिय प्रशासन जो कि बंद और यथास्थिति वाला था, कि सहायता से प्राप्त नहीं किये जा सके थे। अतः एक ऐसे प्रशासन तंत्र की आवश्यकता महसूस की गई, जो विकसित देशों के प्रशासनिक ढांचों से भिन्न हो और इस प्रकार विकास प्रशासन की संकल्पना का आविर्भाव हुआ।
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पारिस्थितिक दृष्टिकोण का उदय हुआ। इसने भी विकास प्रशासन के उदय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ये वे सब कारण थे, जिनके परिणामस्वरूप विकास प्रशासन का उदय हुआ और विकासशील देशों में विकसित देशों की पहल पर विकास कार्य आरंभ हुआ। विकास प्रशासन ने अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिये प्रशासनिक तंत्र, राजनैतिक संगठन, ऐच्छिक संस्थाओं, जन संगठन इत्यादि का प्रयोग किया। इसने अपना अध्ययन क्षेत्र बहुत ही विस्तृत कर लिया। इसमें वे सभी कार्य आते हैं, जो सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, औद्योगिक तथा प्रशासनिक विकास से संबंधित है और जो सरकार द्वारा कार्यान्वित होते हैं, अतः जिस प्रकार विकास का कार्य क्षेत्र असीमित है, उसी प्रकार विकास प्रशासन के क्षेत्र को भी निर्धारित नहीं किया जा सकता।
वस्तुतः विकास प्रशासन की अवधारणा पश्चिमी देशों की प्रणाली पर बनी थी, वह विकासशील देशों में प्रयुक्त न हो पाने के कारण कमजोर पड़ती गई और इसका स्थान तुलनात्मक अध्ययन पद्धति या पारिस्थितिकी पद्धति लेती गई, जो समय, स्थान और संस्कृति सापेक्ष अवधारणा रखती थी।
अतः विकास प्रशासन किसी बड़े बौद्धिक प्रेदय के साथ तो नहीं आती परंतु यह आधुनिकता और इन्नोविशन की वह पहल लेकर आयी। जिसमें हमारी अर्थव्यवस्थाओं को बहुत हद तक प्रभावित किया है। यह आज के परिप्रेक्ष्य में भी उतनी ही प्रासंगिक है। यह एक सुनियोजित परिवर्तन के माध्यम से परिणामोन्मुखी प्रशासन का लक्ष्य रखता है, जो निश्चित रूप से हर व्यवस्था का अनिवार्य लक्षण है।
Question : विकास प्रशासन में ऐसी थियोरियों का अकाल है जो आनुभाविक ज्ञान के एकत्रीकरण को मार्ग दिखाएं, नये अनुसंधान की दिशा तय करें और प्रशासनिक नीति की सिफारिश करें। स्पष्ट कीजिए।
(2005)
Answer : विकास प्रशासन से तात्पर्य है- विकास कार्यक्रमों का प्रशासन। यह दो शब्दों के सहयोग से बना है विकास तथा प्रशासन विकास शब्द से अभिप्राय है कि लगातार आगे बढ़ना या एक अवस्था से अच्छी अवस्था की प्राप्ति करना वही प्रशासन से अभिप्राय है कि सेवा करना या निश्चित उद्देश्य की प्राप्त हेतु किया गया सामूहिक प्रयास। इस तरह यह स्पष्ट होता है कि विकास की प्रक्रिया को पूर्ण करने में लगे प्रशासन को ही विकास प्रशासन कहते हैं। विकास एक सर्वागीण अवधारणा है, अतः आर्थिक वृद्धि, आधुनिकीकरण, औद्योगीकरण आदि विकास के विभिन्न पहलुओं की ओर संकेत करते है। विकास की अवधारणा बहुउद्देशीय है, साथ ही विकास के माध्यम से राजनीतिक विकास, आर्थिक विकास एवं सामाजिक विकास व सांस्कृतिक विकास को प्राप्त किया जा सकता है। विकास में परिवर्तन के साथ वृद्धि होना अनिवार्य है। विकास प्रशासन का उद्देश्य ग्राहकोन्मुखी, परिणामोन्मुखी एवं परिवर्तनोन्मुखी होता है। इसके अंतर्गत कालिन आयाम पर बल दिया जाता है। कालिन आयाम का अर्थ है- निश्चित सीमा में उद्देश्यों की प्राप्ति।
विकास प्रशासन का संबंध विकासशील देशों से है। विकासशील देशों की आर्थिक, सामाजिक, प्रशासनिक समस्याएं विकसित देशों से अलग हैं, अतः उनके समाधान के लिए लोक प्रशासन के वे सिद्धांत, तकनीक या आयाम काम नहीं आते, जो विकसित देशों में प्रचलित हैं। विकसित एवं विकासशील देशों में विकास लक्ष्य अलग-अलग होते हैं, जिस कारण लोक प्रशासन में नये दृष्टिकोण की आवश्यकता है। विकास प्रशासन में नये मूल्यों एवं प्रवृत्तियों का समावेश किया जाना आवश्यक है, ताकि इसका ध्यान प्रक्रियाओं की ओर से हटाकर परिणामों की ओर केंद्रित किया जा सके। अतः ऐसे सिद्धांतों का विकास किया जाना आवश्यक है, जो विकास प्रशासन के लक्ष्यों को पूरा करने में सहायक सिद्ध हो।
Question : विकास प्रशासन के बदलते हुए स्वरूप का वर्णन कीजिए और जनसशक्तीकरण की दिशा में उसके प्रयासों की पहचान कीजिए।
(2004)
Answer : विकास प्रशासन आधुनिक लोक प्रशासन का परिचायक है। विकास प्रशासन का अर्थ आधुनिकीकरण से लगाया जाता है क्योंकि बदलते समय के साथ विकास प्रशासन के स्वरूप में बदलाव आया है। विकास प्रशासन राज्य द्वारा जनता की बढ़ती हुई विकासात्मक आवश्यकताओं एवं मांगों को संतुष्ट करने की क्षमता से संबंध रखता है। यह आर्थिक विकास की योजना बनाने तथा राष्ट्रीय आय को बढ़ाने के लिए साधनों को प्रवृत्त करने का काम करता है।
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद विकास प्रशासन का उदय हुआ। लोक प्रशासन के परंपरागत सिद्धांतों की अपर्याप्तता को देखकर प्रशासनिक सिद्धांतों में रिक्तता की पूर्ति हेतु एडवर्ड वीडनर ने विकास प्रशासन की अवधारणा को प्रस्तुत किया। भारत में 1955 में एक भारतीय अधिकारी यू-एल- गोस्वामी द्वारा विकास प्रशासन शब्द का प्रयोग किया गया। जार्ज एफ- ग्राव्ट, फ्रेंड डब्ल्यू रिग्स वाटसन, पाई पनिन्हीकर आदि विद्वानों ने विकास प्रशासन की अवधारणा को विकसित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
विकास प्रशासन का संबंध राष्ट्रीय विकास को पूरा करने से है। परिवर्तन के लक्ष्य, मूल्य एवं व्यूह रचनाएं भिन्न-भिन्न हो सकती हैं, किंतु कतिपय मूलभूत प्रक्रियाएं ऐसी होती हैं, जिनके द्वारा लक्ष्यों पर सहमति प्राप्त की जाती है। विकास प्रशासन देश के समग्र सामाजिक-राजनीतिक एवं आर्थिक विकास से संबंधित है। विकास प्रशासन के माध्यम से समाज के विभिन्न लोगों के जीवन स्तर में विकास करने का सरकारी प्रयास किया जाता है।
वर्तमान समय में विकास प्रशासन के बदलते स्वरूप के साथ विकास प्रशासन के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए विभिन्न सामाजिक आर्थिक गतिविधियों के क्षेत्र में सरकार की बढ़ती भूमिका के कारण लोक उपक्रमों का विकास हुआ है। योजना आयोग के माध्यम से देश को तीव्र योजनागत विकास सुनिश्चित करने का प्रयास किया गया है। इसी क्रम में उदारीकरण, निजीकरण तथा खगोलीकरण की प्रक्रिया आरंभ हुई है। विकास प्रशासन के बदलते स्वरूप में सरकार विभिन्न गैर सरकारी संगठनों एवं नागरिकों, समाजों को बढ़ावा दे रही है। सरकार इनके माध्यम से ही विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने का प्रयास कर रही है।
आरंभ में विकास प्रशासन का प्रमुख लक्ष्य जनसशक्तिकरण सुनिश्चित करना रहा है। इस दिशा में समाज के वंचित समूहों के जीवन स्तर को सुधार कर उन्हें मुख्य धारा पर लाने का प्रयास किया जा रहा है। इनमें सशक्तिकरण को सुनिश्चित करने हेतु अनेक कानून भी निर्मित किए जा रहे हैं। अस्पृश्यता निवारण व दहेज प्रथा निवारण अधिनियम, बाल श्रम उन्मूलन अधिनियम आदि विभिन्न अधिनियमों द्वारा समाज के कमजोर लोगों को सुरक्षा प्रदान कर उनके सशक्तिकरण का प्रयास किया जा रहा है। साथ ही विभिन्न ग्रामीण एवं नगरीय स्थानीय स्वशासन, इकाइयों को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया है एवं औरतों, अनुसूचित जातियों व अनुसूचित जनजातियों के लिए स्थान भी आरक्षित किए गए हैं। इन प्रावधानों का प्रमुख उद्देश्य जन सशक्तिकरण को सुनिश्चित करना ही था।
परंतु जनसशक्तिकरण के इतने प्रयास होने के बावजूद भी आशा के अनुरूप परिणाम प्राप्त नहीं हो पाये हैं। इसका प्रमुख कारण प्रशासन में व्याप्त भ्रष्टाचार है। आज अधिकांश प्रशासनिक संगठनों के शीर्ष से लेकर निम्नतम स्तर पर विद्यमान अधीनस्थ कर्मी भ्रष्टाचार में लिप्त हैं, जिस कारण जनसशक्तिकरण की दिशा में विकास प्रशासन के प्रयास को अपेक्षित सफलता नहीं मिल पा रही है।
Question : विकास प्रशासन के दो महत्वपूर्ण पक्ष होते हैं, यथा विकास का प्रशासन और प्रशासन का विकास स्पष्ट कीजिए।
(2003)
Answer : विकास प्रशासन से तात्पर्य है विकास कार्यक्रमों का प्रशासन। रिग्स ने विकास प्रशासन में दो महत्वपूर्ण आयाम बताए हैं- विकास का प्रशासन एवं प्रशासन का विकास।
विकास का प्रशासन यह एक ऐसी प्रक्रिया से जुड़ा है, जिसके द्वारा लोक प्रशासन प्रणाली समाज में सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक परिवर्तनों का संचालन करती है। वही प्रशासन के विकास से तात्पर्य है कि यह प्रशासनिक प्रणाली के भीतरी परिवर्तनों की गति का अध्ययन करता है। इसमें प्रशासनिक क्षमताओं को मजबूत करने का भाव शामिल रहता है।
विकास प्रशासन के कुशल एवं प्रभावशाली होने के लिए विकास प्रशासन को अपनी प्रशासनिक योग्यताओं तथा संरचनात्मक एवं व्यावहारिक परिवर्तन के क्षेत्र का विस्तार करना आवश्यक है। प्रशासन के सांस्कृतिक व्यवस्थाओं के महत्वपूर्ण विकास की अनुभूति करने वाले किसी भी समाज द्वारा अपने प्रशासनिक तंत्र को प्रभावित करना सुनिश्चित है।
विकास लक्ष्यों की प्रभावी प्राप्ति के लिए प्रशासनिक क्षमता में वृद्धि आवश्यक है व प्रशासनिक क्षमता में वृद्धि योजनाबद्ध विकास से जुड़ी हुई है। प्रशासन का विकास व विकास का प्रशासन दोनों प्रक्रियाएं आपस में एक कड़ी का काम करती हैं।
Question : ‘विकास प्रशासन का सरोकार विकास के लिए नवप्रवर्तन का अधिकतमीकरण करना होता है।‘ चर्चा कीजिए
(2002)
Answer : विकास प्रशासन राज्य द्वारा जनता की बढ़ती हुई विकासात्मक आवश्यकताओं एवं मांगों को संतुष्ट करने की क्षमता से संबंधित है। यह आर्थिक विकास की योजना बनाने तथा राष्ट्रीय आय को बढ़ाने के लिए साधनों को प्रवृत्त करने तथा बांटने का काम करता है। विकास प्रशासन अनिवार्य रूप से प्रशासन की परिवर्तन-उन्मुख प्रशासकीय आचरण से संबद्ध धारणा है। यह मात्र पारंपरिक किस्म के प्रशासनिक कार्यों का ही अध्ययन नहीं है, साथ ही यह विकास योजना कार्यान्वयन के उपकरण के रूप में व्यवस्था के भीतर परिवर्तन की गति की ओर उन्मुखी है। विकास प्रशासन अर्थव्यवस्था में योजनाबद्ध परिवर्तन लाता है और कुछ कम सीमा तक राज्य की सामाजिक सेवाओं में भी यह सामान्यतः राजनीतिक क्षमताओं को बढ़ाने के प्रयत्नों से संबद्ध नहीं है, बल्कि विकास प्रशासन प्रगतिशील, राजनीतिक, धार्मिक एवं सामाजिक उद्देश्यों के चुनने तथा पूरा करने का साधन भी है।
विकास प्रशासन में नागरिक और प्रशासक दोनों मिलकर सहयोग से, एक-दूसरे पर विश्वास करते हुए, अपने को एक समान स्थिति में महसूस करते हुए काम करते हैं। विकास की अभिव्यक्ति में राजनीतिक प्रतिनिधि, हित समूह सामाजिक संगठन इत्यादि शामिल रहते हैं। विकासोन्मुख राष्ट्र में आर्थिक प्रगति कृषि एवं उद्योगों पर निर्भर करती है तथा राष्ट्र की आय का ड्डोत कृषि है, अतः यह आवश्यक है कि गांवों का विकास होता रहे। प्रशासन जनता के निकट आए विभिन्न प्रकार की रीतियों द्वारा विकास का आयोजन करना एवं जनता के जीवन को उन्नत बनाने के लिए नवप्रवर्तनों का व्यावहारिक प्रयोग करना विकास प्रशासन का प्रमुख दायित्व है। निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है विकास प्रशासन का प्रमुख सरोकार अविकसित एवं विकासशील देशों की संरचना एवं विकास प्रक्रमों को उन्नत बनाने के लिए विभिन्न प्रकार से प्रयत्न करने से है।
Question : राजनीतिक तटस्थता और अनामता का सिद्धांत आधुनिक ‘सिविल’ सेवा के लिए प्रासंगिक नहीं रहता है।
(2002)
Answer : राजनीतिज्ञों और लोकसेवकों के मध्य पारस्परिक संबंध अंग्रेजी संसदीय प्रशासनिक परंपरा के आधार पर किए गए हैं। ब्रिटिश प्रशासन में राजनीति राजनीतिज्ञों का कार्यक्षेत्र थी और लोक प्रशासन प्रशासनिक अधिकारियों का। वहां परम्परा के अनुरूप अहस्तक्षेप की नीति का पालन किया जाता था और नौकरशाह केवल नीति निर्माण और नीति तथा योजनाओं के क्रियान्वयन हेतु संपर्क में आते थे।
लोकतांत्रिक विचारधारा के आधार पर यह माना जाता है कि राजनीतिज्ञ नीतियों को बनाने के लिए जिम्मेदार हैं तथा वह नीतियों में आवश्यकतानुसार परिवर्तन भी कर सकते हैं। लोक सेवकों का संवैधानिक कर्त्तव्य है कि वह नीतियों का निर्माण अथवा उसके परिवर्तन में राजनेताओं को अपेक्षित सहयोग प्रदान करे।
राजनीतिक अनामता से यह तात्पर्य है कि लोक सेवकों की संवैधानिक निष्ठा और विधि के शासन के प्रति उनका समर्पण है। लोकतांत्रिक लोक प्रशासन में नौकरशाहों से यह उम्मीद की जाती है कि वे विधि के शासन को विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया को सर्वोच्च प्राथमिकता प्रदान करे और राजनैतिक दलों के दृष्टिकोण से अप्रभावित रहते हुए अपने काम की सफलता पर ध्यान दे।
वर्तमान समय में तटस्थता की पारंपरिक अवधारणा में परिवर्तन हुआ है, जिससे सिविल सेवकों की अनामता भी प्रभावित हुई है। सत्ता में आने के उपरांत राजनैतिक दल अपने कार्यक्रमों को विशिष्ट राजनैतिक दर्शन के आधार पर लागू करते हैं और सचिव राजनैतिक दर्शन को ग्रहण करता है, इसी कारण आज प्रशासक हो राजनीतिज्ञ भी माना जाता है, क्योंकि वे लोकहित के प्रति उत्तरदायी है।
प्रत्येक राजनैतिक दल संवैधानिक उद्देश्यों को प्राथमिकता देते है। यह उद्देश्य सामाजिक न्याय, राजनैतिक न्याय और आर्थिक न्याय है। भारत में यदि राजनीतिक दल लोक सेवकों का सहयोग प्राप्त करते हैं तो बिना किसी भेदभाव के ये दोनों ही सहयोगी के रूप में कार्य करने में सक्षम हैं। पर आधुनिक समय में तटस्थता और अनायता की प्रांसगिकता बनी हुई है। जहां लोक सेवकों से स्वार्थ की राजनीति से तटस्थ रहने की अपेक्षा की जाती है वही राजनीतिज्ञों से यह उम्मीद की जाती है कि वह लोक सेवकों का सहयोग करे।
Question : ‘विकासशील देशों के सन्दर्भ में अधिकारी-तांत्रिक तटस्थता का सिद्धांत अपेक्षाकृत अधिक फालतू एवं अनावश्यक है।‘
(1999)
Answer : विकासशील देशों में नौकरशाही का चमत्कारिक फैलाव हुआ है, जिसके परिणामस्वरूप उनके सामाजिक ढांचों पर वास्तविक प्रभाव पड़ता है। इनमें से कई देशों में नौकरशाही ने मध्यम वर्ग जैसे नए वर्ग में बड़ी तेजी से सामाजिक और राजनीतिक श्रेष्ठता प्राप्त कर ली है। राष्ट्रीय नेतृत्व एक ओर भूमिपतियों, कृषकों एवं दूसरी ओर पूंजीपतियों के बीच सन्तुलन बनाए रखने का काम करता है। भ्रष्टाचार तथा एकाधिकार में विकास पर बहुत कम रोक है। इनमें कुछ देशों जैसे भारत में समाजवाद के नाम पर सरकार की क्रियाओं में बहुत प्रसार हुआ है, किन्तु यह समाजवाद केवल नाममात्र का है।
इन विकासशील देशों के समाज में अनेक प्रकार के कार्यों को करने के लिए ढांचों का पृथक-पृथक विभेदीकरण केवल एक स्तर तक ही हुआ है। सामन्ती समाज की भांति अधिकारियों अथवा कर्मचारियों का एक समूह बिना किसी विभेदीकरण के सैनिक, राजनीतिक, प्रशासनिक, धार्मिक एवं आर्थिक सभी प्रकार से कार्यों को करता चला आया है। विकासशील देशों में आधुनिकीकरण की जो प्रक्रिया अपनायी गई। उसकी विशेषता यह है कि पश्चिमी नमूनों को अपनाकर औपचारिक रूप से भिन्न भिन्न सामाजिक ढांचों की उत्तरोत्तर स्थापना की जा रही है। विकासशील देशों में विभिन्न कार्यात्मक क्षेत्रें में परिवर्तन की गति एकसार नहीं होती है। लोक प्रशासन में विकास जितनी तेजी से होता है, उतनी तेजी से राजनीतिक संस्थाओं में नहीं हो पाता है। विकासशील देशों में नौकरशाही अधिक प्रभुत्वशाली हो जाती है, यह बेमेल प्रभाव का प्रयोग करती है, जिसके गम्भीर परिणाम होते हैं।
विभिन्न राजनीतिक विशेषताओं के विकास में असन्तुलन नौकरशाही की प्रभुत्वशाली भूमिका, एक चमत्कारिक कार्यकारिणी अध्यक्ष जो राष्ट्रीय अन्दोलन या सैनिक अथवा असैनिक नौकरशाही से आया है, उनकी राजनीतिक अव्यवस्था में भाई-भतीजावाद, भ्रष्टाचार तथा औपचारिकतावाद का होना है।
इस प्रकार स्पष्ट है कि विकासशील देशों में नौकरशाही की स्थिति अर्थव्यवस्था पोषक एवं परिवर्तन अभिकर्ता की होती है लेकिन भ्रष्टाचार के कारण यह दोनों ही उद्देश्यों में असफल रह जाता है। अतः विकासशील देशों में तटस्थता का सिद्धांत अपेक्षाकृत अधिक फालतू एवं अनावश्यक है।
Question : विकास प्रशासन का उद्देश्य क्या है? विकास प्रशासन के लिए प्रशासन की संरचना एवं रीतियों में कौन सा रूपान्तरण जरूरी है, इनका भी परीक्षण कीजिए।
(1998)
Answer : विकास प्रशासन से तात्पर्य है कि जो आर्थिक विकास की योजनाओं को बनाने तथा राष्ट्रीय आय को बढ़ने के लिए साधनों को प्रवृत्त करने तथा बांटने का कार्य करता है। विकास प्रशासन निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए संयुक्त प्रयास के रूप में सभी तत्वों, मानवीय व भौतिक साधनों का मिश्रण है। इसका लक्ष्य निर्धारित करते समय क्रम के अन्तर्गत विकास के पूर्व निश्चित लक्ष्य की प्राप्ति होती है।
विकास प्रशासन लोक प्रशासन का वह पहलू है जिसमें लोक अभिकरणों को संगठित और प्रशासित करने पर ध्यान दिया जाए। कतिपय विद्वान विकास प्रशासन का सम्बन्ध प्रशासन के आंतरिक तत्वों के बजाय बाधक तत्वों से अधिक मानते हैं।
विकास प्रशासन का उद्देश्य आम लोगों की दृष्टि में परिवर्तन को आकर्षक और सम्भव बनाना है। विकास प्रगति उपलब्ध संसाधनों की गत्यात्मकता और विकासवादी लक्ष्यों की प्राप्ति उपयुक्त आवश्यकता कुशलता विकसित किये जाने वाले की जवाबदेही से युक्त है। अतएव इसका केन्द्र बिन्दु सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन होता है। यद्यपि कुछ विज्ञान विकास का अर्थ संक्रमण कालीन समाज के औद्योगिक तथा आधुनिक समाज में परिवर्तन होने से लगाते हैं। किन्तु विकास का वास्तविक अर्थ राष्ट्रीय राजनीतिक तन्त्र द्वारा स्थापित किये गये निरन्तर विकास के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए दुलर्भ संसाधनों का योजनाबद्ध गतिशील एवं निर्धारण है। विकास प्रशासन का मुख्य उद्देश्य क्रियान्मुख तथा लक्ष्य उन्मुख प्रशासनिक व्यवस्था का निर्माण करना है।
विकास प्रशासन का लक्ष्य सामाजिक-आर्थिक परिर्वतन के प्रति वचनबद्धता है। यह निश्चित समय के भीतर अपने कार्यक्रमों को समाप्त करने का पक्षधर है। विकास प्रशासन नागरिक सेवा उन्मुखी होता है। विकास प्रशासन को आविष्कारक मूल्यों का संवाहक माना है। यह विकासशील देशों के आधुनिकीकरण और औद्योगीकरण की दिशा में पड़ने वाली समस्याओं का समाधान करता है। विकास प्रशासन का उद्देश्य विकास की प्रक्रिया में जनता की सहभागिता है, अधिकांश विकासशील देशों में सरकार सामुदायिक विकास, ग्रामीण-शहरी स्थानीय स्वशासन की नई दिशा प्रदान करने के कार्यक्रमों एवं जनता के समर्थन को प्राप्त करने के कार्यक्रमों पर अधिकाधिक जोर दे रही है। विकास प्रशासन सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन का पक्षधर है। समय सीमा का लोक प्रशासन में बड़ा महत्व है सभी विकास कार्यक्रमों को एक सीमा के अन्दर पूरा करना पड़ता है। विकास प्रशासन अर्थतन्त्र में योजनाबद्ध परिवर्तन लाता है।
परम्परागत प्रशासन में नियमों, विनियमों एवं आदेशों का पर्याप्त अनुशीलन किया जाता है, इससे पहले उनको वांछनीय माना जाता था किन्तु मूलभूत नहीं, इसमें भिन्न विकास प्रशासन में कार्य के प्रति रचनात्मक दृष्टिकोण आवश्यक है। कोई भी विकास योजना आदेशों के अधीन सभी क्षेत्रें में एक ही प्रकार से लागू नहीं की जा सकती है। प्रत्येक विकास कार्यकर्त्ता स्वयं ही पहल द्वारा विशेष परिस्थिति में विभिन्न कार्यक्रमों को कार्यान्वित करने का स्वयं निर्णय करता है।
परम्परागत प्रशासन कानून और व्यवस्था से सम्बंधित होने के कारण स्थैतिक प्रकृति का था। प्रशासकों की पीढि़ यों के लिए एक जैसी व्यवस्था आवश्यक थी। विकास प्रशासन इससे भिन्न विज्ञान और तकनीक से सम्बन्धित होने के कारण गतिशील है।
विकास प्रशासन के उद्देश्य कि प्राप्ति के लिए संरचना एवं नीतियों में परिवर्तन जरूरी है। आधुनिक समय में प्रशासनिक सेवाओं के द्वारा सामाजिक आर्थिक परिस्थितियों के संबंध में महत्वपूर्ण निर्णय लेने पड़ेंगे इससे न सिपफऱ् विकास कार्यक्रमों को योजना एवं क्रियान्वयन से जूझना पड़ेगा अपितु सरकारी क्रियाओं के द्वारा सम्पूर्ण राष्ट्र का रूपान्तरण और आधुनिकीकरण करना पड़ेगा क्योंकि प्रगति के लिए प्रशासन को राजनैतिक और सामाजिक प्रक्रिया से बहुत अधिक चुस्त होने की जरूरत है।
Question : विकास प्रशासन बुनियादी तौर पर ‘एक कार्योन्मुखी, लक्ष्योन्मुखी प्रशासनिक तंत्र’ है।
(1997)
Answer : विकास प्रशासन एक नूतन अवधारणा है, जो बीसवीं सदी के मध्यान्ह के वर्षों में सृजत की गई। वर्तमान में विकास प्रशासन की अवधारणा नित नवीन सफलताओं का आचमन करके सर्वप्रिय है। वस्तुतः विकास प्रशासन लोक प्रशासन की वह अवधारणा है, जिसमें लोक अभिकरणों को समाजिक एवं आर्थिक विकास हेतु निर्मित कार्यक्रमों के निहित्तार्थ संगठित और प्रशासित एवं प्रोत्साहित किया जाता है और इस प्रक्रिया को विकास के पथ पर अग्रसारित किया जाता है। विकास प्रशासन पद्धति में तकनीकी, क्रियात्मक तथा संगठनात्मक प्रबन्ध समाहित होते हैं, इनकी सहायता से शासन विकास उद्देश्यों को सार्थकता प्रदान करने का यत्न करता है। विकास प्रशासन में पूर्व लक्षित लक्ष्यों की सम्प्राप्ति हेतु समेकित प्रयास किया जाता है, जिसमें विकास के सभी साधनों एवं तत्वों का समावेश होता है। इनका प्रमुख उद्देश्य पूर्व निर्धारित लक्ष्यों को अवधारित क्रम में प्राप्त करना होता है। इस पूर्व निर्धारित लक्ष्यों से संदार्भित योजनाओं, नीतियों, कार्यक्रमों, परियोजनाओं, क्रियाओं और अन्य तथ्यों, अवलोकन, विश्लेषण, निरीक्षण, परीक्षण, मूल्यांकन और क्रियान्वयन का सतत् क्रम चलता रहता है।
शासन में विकास प्रशासन वह पद्धति है, जो संगठन के उन्नत, राजनैतिक, सामाजिक तथा आर्थिक लक्ष्यों की ओर पथ प्रदर्शित करती है। विकास प्रशासन सामाजिक परिवर्तन पर आश्रित है। विकास प्रशासन उन नवीन कार्यों को संवाहित करता है, जो राज्य ने आधुनिकीकरण के मार्ग पर चलने हेतु निर्धारित किये हैं। नियोजन, आर्थिक विकास तथा राष्ट्रीय आय को प्रसारित करने वाले साधन एवं संगठन विकास प्रशासन के अंतर्गत कार्यरत रहकर संसाधनों को जुटाने तथा उनके वितरणीकरण हेतु श्लाघनीय प्रयास करते हैं, अतः संस्थानों की स्थापना, आधुनिकीकरण, सामाजिक तथा आर्थिक विकास, विकास प्रशासन के मूल तत्व माने गये हैं। विकास प्रशासन के मुख्य उद्देश्य निम्नांकित हैं-
मूलतः कोई राष्ट्र तब तक विकसित नहीं माना जायेगा, जब तक वह विकास के लिये संशोधित निर्णयन प्रक्रिया को सही अर्थों में परिचालित नहीं करता। संशोधित निर्णयन प्रक्रिया स्वनियंत्रण व स्वविवेक का प्रयोग कर लागू की जा सकती है। एक समाज में जितनी अधिक भिन्नतायें एवं एकता होगी, वह समाज उतना ही अधिक विकसित तत्वों का समावेश अपने अन्तस में धारित करने में समर्थ होगा। विकसित समाज ही विकास से आप्लावित वातावरण पर कुशल नियंत्रण कर सकने में सक्षम होगा एवं व्यावहारिक रूप में विकास सम्बन्धी निर्णयों को लागू करा पाने में दक्ष होगा। विकास प्रशासन के कार्यक्रमों के क्रियान्वयन में सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक समस्यायें अवरोधक का कार्य करती हैं, जिससे विकास प्रशासन के कार्यक्रम अपूर्णता को प्राप्त होते हैं।
विकास प्रशासन के द्वारा निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये संरचना एवं रीतियों में बदलाव की आवश्यकता है। वर्तमान सामाजिक-आर्थिक परिवेश में लोकसेवा को आगामी दशक तक फलदायी सार्थक भूमिका का निर्वहन करना पड़ेगा। इसे मात्र विकास कार्यक्रमों के योजना एवं कार्यान्वयन से ही संघर्ष नहीं करना पड़ेगा, वरन् शासकीय क्रियाओं के द्वारा सामाजिक परिवर्तन करते हुये आधुनिकता को प्रश्रय देना पड़ेगा। एडवर्ड वीडनर का यह कथन कि फ्विकास प्रशासन एक कार्योन्मुखी, लक्ष्योन्मुखी प्रशासनिक तंत्र हैय् सत्य को उद्घटित करता है।
Question : यह कहना कहां तक सही होगा कि विकासशील लोकतंत्र के लिये सिविल सेवा तटस्थता की संकल्पना अब पुरानी पड़ गई है, इसके बजाय संव्यावसायिक सक्षमता और प्रतिबद्धता वाली सिविल सेवा की जरूरत है?
(1997)
Answer : शासकीय कर्मचारियों के राजनैतिक क्रियाकलापों के सम्बन्ध में विवाद है। जनतांत्रिक समाज के लिये यह आवश्यक है कि कर्मचारी निरपेक्ष एवं दलगत भावनाओं से विरत रहें, तभी शासन में दक्षता आ सकती है, वस्तुतः कर्मचारी समाज के विवेकीय पक्ष का भी प्रतिनिधित्व करते हैं और जैसे-जैसे प्रशासन का क्षेत्र बढ़ता जाता है, वैसे-वैसे उत्तरोत्तर इनकी संख्या में भी वृद्धि होती जाती है। ऐसे में यक्ष प्रश्न खड़ा हो जाता है कि लोक सेवकों की व्यावहारिक निष्पक्षता का सामान्य जनतंत्र में जन के अधिकारों से किस प्रकार समायोजन स्थापित किया जाये कि यह राजनीति के आवरण से विमुक्त दिखे। लोक सेवकों को राजनैतिक क्रियाकलापों से विमुक्त कर देने पर समाज का एक बड़ा अंश राजनीति के लिये निरर्थक सिद्ध होने लगेगा।
निष्पक्षता लोक सेवा की एक परम्परागत विशिष्टता रही है। निष्पक्षता का आशय जनसेवकों का सार्वजनिक जीवन में राजनैतिक विचारधाराओं या कार्यों से विरत रहना है। इस निष्पक्षता को जनता, मंत्री, परीक्षित करते हैं, वस्तुतः लोकसेवकों को राजनैतिक आवधारणओं से एक निश्चित दूरी रखकर ही नीतियों का निर्माण करना चाहिये। लोकसेवकों को औपचारिक वक्तव्य ही प्रेस को प्रदान करने चाहिये। राजनैतिक या निजी वक्तव्य देने से लोक सेवकों को परहेज करना चाहिये।
वर्तमान समय के लोक सेवकों के कार्य बदल रहे हैं और नीति-निर्धारण में वे राजनैतिक कार्यपलिका के सहयोगी की भाँति कार्यरत रहते हैं। वे प्रायः नीति-सम्बन्धी राजनीति से स्वयं को विरत नहीं कर पाते है। लोकहित में कार्यरत होने के कारण आज सभी प्रशासक राजनीतिज्ञ सदृश ही प्रतीत होते हैं। अब यह विचार कि राजनीतिक कार्यपालिका नीतियां निर्धारित करे तथा लोक सेवक उसे क्रियान्वित करें, सार्थक नहीं रहा। आज ऐसे लोक सेवकों की आवश्यकता महसूस की जा रही है, जो विकासात्मक दृष्टिकोण के संरक्षक होने के साथ ही साथ लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति समर्पित हों। सरकारी तंत्र कर्मचारियों के माध्यम से नीतियों को कार्यरूप प्रदान करता है तथा विनियमों को भी निर्मित करता है। नियुक्ति की समस्या प्रशासन में मुख्य बिन्दु मानी जाती है। किसी कार्य विशेष के लिये व्यक्तियों को प्रतियोगात्मक परीक्षा के आधार पर निर्धारित वेतन पर रखना ही नियुक्ति कहलाती है। प्रजातंत्र में योग्यतापूर्ण, सत्याचरण, निष्पक्ष कर्मचारी प्राप्त करना एक जटिल समस्या रहा है। जब से राज्य का स्वरूप लोक कल्याणकारी हुआ है, लोकसेवाओं में नियुक्ति का प्रश्न और भी जटिलता को प्राप्त हुआ है। ब्रिटिशकोलीन भारत में लोकसेवाओं में नियुक्ति के लिये योग्यता के सिद्धान्त का पालन किया जाता था। राज्य के कार्यों की वृद्धि को देखते हुये कर्मचारी वर्ग का कद एवं महत्व बढ़ता जा रहा है। पूर्व में शासन अपने कार्यों को केवल समाज में विधि व्यवस्था बनाये रखने तक ही संकुचित रखता था। कर्मचारी भी शासन के सीमित उद्देश्यों की पूर्ति करने तक ही संकुचित रहते थे। वर्तमान समय में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के आलोक में राज्य के दायित्वों में वृहद्ता आ गई है। वर्तमान में राज्य की क्रियायें वृहद् तथा विविध स्वरूपों वाली हो गई हैं। राज्य अप्रत्यक्ष रूप से लोकसेवकों के माध्यम से सामान्य जन तक पहुंचता है। लोकसेवक शासन एवं जनता के मध्य सेतु का कार्य करते हैं।
पहले की कार्मिक व्यवस्था में अप्रशिक्षित तथा अवैतनिक वर्ग से लोकसेवक हुआ करते थे, वर्तमान में यह व्यवस्था अप्रासंगिक है। वर्तमान में तो कुशल प्रशिक्षण प्राप्त एवं दक्ष शिक्षित व्यक्ति की लोक सेवा में आवश्यकता है। ऐसे व्यक्ति राज्य की सेवा तथा योजनाओं एवें नीतियों को सार्थकता प्रदान कर सकते हैं। वैज्ञानिक युग की विशेषता कार्यों का विशिष्टीकरण तथा श्रम विभाजन है। प्रशासन का कार्य सम्पादित करना ही सिविल सेवकों का पूर्णकालिक उद्यम है। वे राजनैतिक तटस्थता की छाया में ही राज्य के कार्यों को पूर्णरूप देने का यत्न करते हैं। ये पदसोपान व्यवस्था के अंतर्गत कार्यरत रहते हैं।
वर्तमान समय में, लोकसेवा में नियुक्ति का प्रारूप भी दोषपूर्ण है। आज भी हम वर्षों पूर्व से निर्धारित परीक्षा पद्धति को ही संचालित कर रहे हैं। इस परीक्षा प्रणाली में वैज्ञानिक पद्धति को स्थान नहीं दिया गया है। साक्षात्कार की पद्धति भी अव्यवहारिक है। हमारी नियुक्ति प्रक्रिया में मनोवैज्ञानिक परीक्षणों का सर्वथा अभाव है। भारत में लोकसेवकों की नियुक्ति राजनैतिक प्रभाव से मुक्त नहीं है। आज भी राज्यों के कुछ अत्यन्त महत्वपूर्ण पदों को लोकसेवा की परिधि में नहीं लाया जा सका है। इसमें कार्मिकों की पदोन्नति प्रायः एक ही विभाग में कर दी जाती है। वर्तमान समय में नियुक्ति की प्रक्रिया में निष्पक्षता आवश्यक है। साक्षात्कार की पद्धति के स्थान पर मनोवैज्ञानिक परीक्षणों को स्थान दिया जाना चाहिये। किसी भी विकासशील लोकतंत्र के लिये यह आवश्यक है कि वह सिविल सेवा पुरातन परम्परा को हटाये तथा वैज्ञानिक एवं मनोवैज्ञानिक परीक्षणों को परीक्षा प्रणाली में सम्यक् स्थान दे। निश्चय ही नई परीक्षा प्रणाली के माध्यम से योग्य, कर्मठ व्यक्तियों का चयन लोक सेवा में हो सकेगा। इस प्रकार प्रतिबद्धता और कार्य सक्षमता इसमें प्रतिबिम्बित हो सकेगी।
लोकसेवकों के नवीन कार्य अत्यन्त व्यापकता धारित किये हुये हैं। इसमें समस्त सामाजिक, आर्थिक, व्यावहारिकता से पूर्ण कार्यशालाओं का आयोजन, मार्गदर्शन एवं नियंत्रण सम्मिलित है। आज राज्य के पास अनेक प्रकार के सामाजिक एवं आथि्ार्क दायित्व है, जो विशिष्ट योग्यताओं से संतृप्त व्यक्ति ही सम्पादित कर सकने में समर्थ हो सकते हैं। सिविल सेवा का उद्देश्य प्रतिभाशाली एवं महत्वाकांक्षा रखने वाले युवा व्यक्तियों को प्रशिक्षित कर उनके द्वारा राज्य के कार्यों को कुशलतापूर्वक सम्पादित कराना है।
ईसा पूर्व द्वितीय शताब्दी में प्रतियोगी परीक्षाओं द्वारा आरम्भ की गई नियुक्ति प्रक्रिया को अठारहवीं शताब्दी के मध्य के वर्षों में नये आयाम मिले। परम्परागत नियुक्ति के स्थान पर योग्यता सिद्धान्त को इन वर्षों में मान्यता मिली। वैयक्तिक नियुक्ति के चार चरण हैं - लिखित परीक्षा, मौखिक परीक्षा, निष्पादन प्रदर्शन, अनुभव और शिक्षा का मूल्यांकन। लिखित परीक्षा वस्तुनिष्ठ या निबन्धात्मक रूप में हो सकती है। उन्नीसवीं शताब्दी के प्रथम दशक के मध्य में सामान्य बुद्धि सिद्धान्त प्रकाश में आया, जो कि हृदय की भावनाओं को मापने की एक युक्ति है, यह सिद्धान्त साक्षात्कार में उपयोगी सिद्ध हुआ। मूलतः वर्तमान समय में परिवर्तित परिदृश्य को देखते हुये लोकसेवा में पेशेवरों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये। वैज्ञानिक एवं तकनीकी प्रगति को दृष्टिगत रखते हुये वर्तमान में प्रशासनिक सेवाओं में विशेषज्ञों को भी स्थान दिया जाना चाहिये, जिससे कि प्रशासनिक सेवा समाज के सभी क्षेत्रें की समस्याओं को समाप्त करने में समर्थ हो सके।
यदि लोकसेवकों का समूह राजनीतिक तटस्थता को अनुसारित करता है, तो वह वृ“नलाओं के एक समूह की भाँति ही हो जायेगा। कोई भी कार्यपालिका ऐसे व्यक्ति को पद सोंपने में सदेंह करेगी, जो राजनैतिक रूप में निष्क्रिय हो वस्तुतः तटस्थता पर ज्यादा ध्यान देने से सम्पूर्ण शासन का स्वरूप ही तटस्थ हो जायेगा। जिससे प्रशासन के लिये समस्या उत्पन्न हो जायेगी तथा कार्यों में भावना शून्यता की उत्पत्ति होगी, जो कि सामाजिक एवं आर्थिक दृष्टि से युक्तिसंगत नहीं है, अतः लोकसेवा में तटस्थता की उपादेयता वर्तमान में प्रासंगिक नहीं है।