Question : विकेंद्रित योजना निर्माण
(2006)
Answer : स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् नेताओं और नीति-निर्माताओं का ध्यान ग्रामीण पुनर्निर्माण और पंचायतों की पुनः स्थापना की ओर गया। संविधान की धारा 40 में यह व्यवस्था की गई है कि ‘राज्य ग्राम पंचायतों का संगठन करेगा और उनको समस्त अधिकार प्रदान करेगा, जिससे वे स्वायत्त शासन की इकाइयों के रूप में कार्य करने योग्य हो जाएं।’ देश के स्वतंत्र होने के पश्चात् यहां शासन की लोकतांत्रिक प्रणाली को अपनाया गया और जनता को स्वयं अपने प्रतिनिधियों को चुनने का अवसर मिला। शासन का विकेन्द्रीकरण करने हेतु विभिन्न राज्यों में ग्राम पंचायतें स्थापित की गयीं। विकेन्द्रित योजना निर्माण एवं सामुदायिक विकास कार्यक्रम पर काफी खर्च हो चुकने और इसकी सफलता के लंबे-चौड़े दावों के बाद इसकी जांच के लिए एक अध्ययन दल के अध्यक्ष श्री बलवंत राय मेहता थे।
मेहता अध्ययन दल ने 1957 के अंत में अपनी रिपोर्ट में यह सिफारिश की कि लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण और सामुदायिक विकास कार्यक्रमों को सफल बनाने हेतु पंचायती राज संस्थाओं की तुरंत शुरुआत की जानी चाहिए। अध्ययन दल ने इसे ‘लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण’ का नाम दिया। इस प्रकार लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण और विकास कार्यक्रमों में जनता का सहयोग लेने के उद्देश्य से ‘पंचायत राज’ की शुरुआत की गई। ‘पंचायत राज’ व्यवस्था की तीन सीढि़यां रही हैं-ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायत, खंड स्तर पर पंचायत समिति या जनपद पंचायत और जिला स्तर पर जिला परिषद् या जिला पंचायत।
विकेन्द्रित योजना निर्माण का प्रयास की सफलता 73वां संवैधानिक अधिनियम और 74वां संवैधानिक अधिनियम के तहत 1993 ई. में हुआ। इस अधिनियम में प्राथमिक स्तर पर गांव सभा की व्यवस्था की गई है। प्रत्येक गांव के सभी वयस्क नागरिकों से मिलकर बनने वाली सभा को गांव सभा का नाम दिया गया है। इस प्रकार यह ग्रामीण क्षेत्रों में स्थानीय स्वशासन की प्रत्यक्ष लोकतांत्रिक संस्था है। यह गांव सभा, गांव के स्तर पर ऐसी शक्तियों का प्रयोग करेगी और ऐसे कार्यों को करेगी, जो राज्य विधानमंडल विधि बनाकर निश्चित करे।
इस अधिनियम में गांव सभा के अतिरिक्त ‘त्रिस्तरीय पंचायत राज संस्थाओं’ की व्यवस्था की गई है। पंचायत राज व्यवस्था के तीन स्तर हैं- ग्राम के स्तर पर ग्राम पंचायत, विकास खंड या मध्यवर्ती स्तर पर खंड समिति, क्षेत्र समिति या पंचायत समिति और जिला स्तर पर जिला परिषद्, लेकिन जिन राज्यों या संघीय राज्य क्षेत्रों की जनसंख्या 20 लाख से कम हैं, उन्हें स्वयं अपने संबंध में इस बात पर निर्णय लेना होगा कि मध्यवर्ती स्तर पर पंचायत राज संस्था रखी जाए या नहीं।