Question : वैश्वीकरण का राज्य संप्रभुता पर प्रभाव।
(2006)
Answer : रूसो की सामान्य इच्छा का सिद्धांत राजनीतिक चिंतन के सर्वाधिक विवादास्पद विषयों में से एक है। इसकी अस्पष्टता के कारण ही मैकाइवर, रूसो की सामान्य इच्छा के सिद्धांत को 'राज्य की इच्छा का सिद्धांत' कहकर उसकी आलोचना करता है। सामान्य इच्छा के प्रतिपादन का उद्देश्य तो जनता के अधिकारों की रक्षा करना है, किंतु यह धारणा व्यवहार में निरंकुश तथा अत्याचारी राज्य की पोषक भी बन सकती है। एक विशेष समय पर सामान्य इच्छा क्या है, यह निश्चित करने की शक्ति रूसो शासक को सौंप देता है और यदि शासक दुराचारी है तो वह अपने स्वार्थ को ही सामान्य इच्छा का रूप दे सकता है। इसके अतिरिक्त सामान्य इच्छा के सिद्धांत में जनता के द्वारा अपने समस्त अधिकारों का समर्पण कर दिया गया है और जनता को किसी भी परिस्थिति में समाज के विरोध का अधिकार नहीं है। इस प्रकार रूसो के सामान्य इच्छा विषयक सिद्धांत में कुछ ऐसे अस्थिर तत्व हैं, जो उसे जनतंत्र के समर्थन से हटाकर निरंकुश शासन के समर्थन की ओर ले जाते हैं। अतः कहा जा सकता है कि रूसो सामान्य इच्छा की आड़ में बहुमत की निरंकुशता का प्रतिपादन तथा समर्थन करता है।
रूसो के सिद्धांत में निरंकुशतावाद का बीज भी बोया जाता है। रूसो ने स्वयं कहा है कि जनता सदैव अपनी अच्छाई तो चाहती है, परंतु यह नहीं जानती कि अच्छाई क्या है अतः जनता को नेता और पथ प्रदर्शक की आवश्यकता पड़ती है, जो उसे अच्छाई का ज्ञान करा सके। इस प्रकार रूसो अपने सामान्य इच्छा के सिद्धांत के नाम पर जनता को शासक या राज्य की इच्छा के पूरी तरह से अधीन कर देता है और सामान्य इच्छा का सिद्धांत 'राज्य की इच्छा' का सिद्धांत बन जाता है।