Question : द्रव्य विषयक लॉक के विचारों का कथन कीजिए और उस पर चर्चा कीजिए।
(2007)
Answer : यद्यपि लॉक के दर्शन में ज्ञान मीमांसा का प्राथमिक महत्व है, तथापि वह तत्वमीमांसा की उपेक्षा नहीं करता है। वस्तुतः तत्वमीमांसा को ज्ञान मीमांसा के आधार पर सिद्ध करने का प्रयास करता है। लॉक के दर्शन की सबसे बड़ी विसंगति यह है कि उसकी ज्ञानमीमांसा से उसके द्वारा प्रतिपादित तत्वमीमांसा तर्कतः सिद्ध नहीं हो पाती है।
यद्यपि लॉक और देकार्त की ज्ञान मीमांसा में अंतर है, परन्तु तत्वज्ञान से संबंधित विचारों में दोनों दार्शनिकों में पर्याप्त ....
Question : ह्यूम के संशयवाद पर चर्चा कीजिए।
(2006)
Answer : संयशवाद वह विचारधारा है जो किसी चीज को असंदिग्ध और निश्चयात्मक रूप में जानने से इंकार करता है। उग्र संशयवाद के अनुसार किसी भी वस्तु का ज्ञान असंभव है। यद्यपि संशयवाद तार्किक बहस में भाग ले सकता है तथापि वह किसी सिद्धान्त का तार्किक दृष्टि से निश्चित नहीं मानता है। उग्र संशयवाद के अनुसार किसी सिद्धान्त की प्राथिकता भी तकर्तः सिद्ध नहीं की जा सकती है। ऐसी संशयात्मा एक उभयतोपाश की स्थिति में फंसा रहता ....
Question : लॉक के अनुसार ज्ञानमीमांसा।
(2006)
Answer : लॉक आधुनिक पाश्चात्य दर्शन के ऐसे प्रथम दार्शनिक हैं, जो तत्व मीमांसा के पूर्व ज्ञान मीमांसा को प्रथामिकता देते हैं।
लॉक की ज्ञान मीमांसा के चार प्रमुख भाग हैं:
लॉक के अनुसार यथार्थ ज्ञान प्राप्ति का एकमात्र स्रोत अनुभव है। अनुभव हमें दो रूपों में मिलता हैः
शारीरिक इन्द्रियों का बाह्य वस्तुओं से संपर्क एवं प्रभावित होने पर वाह्य वस्तुओं ....
Question : कांट ह्यूम के संशयवाद के प्रति किस प्रकार अनुक्रिया करता है।
(2005)
Answer : कांट के अनुसार बुद्धि विकल्प अनुभव निरपेक्ष और सार्वभौम होते हैं और इनका कार्य अव्यस्थित, असम्बद्ध तथा निरर्थक इन्द्रिय संवेदनों को व्यवस्थित, सम्बद्ध और सार्थक बनाकर ज्ञान के रूप में परिणत करना है। भौतिक विज्ञान और व्यावहारिक दर्शन में संयोजक और अनुभव निरपेक्ष वाक्य इन बुद्धि विकल्पों के कारण ही सम्भव होते हैं। बुद्धि, विकल्प प्रकृति को नियमित करते हैं। हमारे ज्ञान में जो निश्चयात्मकता और अनिवार्यता है, वह संवेदनों से नहीं आती। वह अनुभव ....
Question : उक्ति और प्रदर्शन के बीच भेद।
(2004)
Answer : कथन और प्रदर्शन में अन्तर से सम्बन्धित विश्लेषण विटगेन्सटार्डन द्वारा किया गया भाषा-विश्लेषण है। विटगेन्सटाइन के अनुसार बहुत सी चीजें हैं, जिनका कथन नहीं हो सकता है। जिसमें सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण तो से है कि स्वयं प्रतिज्ञप्ति का आकार क्या है और भाषा का आकार क्या है? मगर हम सार्थक रूप से नहीं कह सकते मों कि भाषा और प्रतिज्ञप्ति का तार्किक आधार क्या है? ऐसा इसलिए क्योंकि भाषा का तार्किक आकार कोई तथ्य या ....
Question : फिनोमेना और न्यूमिना के बीच कांट के विभेद की सार्थकता।
(2004)
Answer : कांट की ज्ञान मीमांसा के अन्तर्गत संश्लेषणात्मक प्राग्नुभविक निर्णय मानव ज्ञान का प्रतिमान है। संश्लेषणात्मक निर्णयों में एक अंश संवेदना का और दूसरा अंश बुद्धि-विकल्पों से संबंधित रहता है। इसके अतिरिक्त जो संवेद्य हैं, वह देश काल से परिच्छिन्न होता है। अनुभव का विषय आभास होता है, जो आभास का विषय नहीं है, वह अनुभव का विषय नहीं हो सकता है। अतः मानव बुद्धि अनुभव की उस सीमा का अतिक्रमण नहीं कर सकती है, जिसके ....
Question : संश्लिष्ट प्राग्नुभविक निर्णय किस प्रकार संभव है?
(2003)
Answer : कांट के Critique of pure Reason का मुख्य उद्देश्य संश्लेषणात्मक प्राग्नुभविक निर्णयों की व्याख्या करना है। कांट यथार्थ ज्ञान की कसौटी के रूप में अनिवार्यता और सार्वभौमता के साथ-साथ नवीनता को भी स्वीकार करते हैं। ज्ञान के सम्बन्ध में कांट अपने पूर्ववर्ती विचारधाराओं, अनुभववाद और बुद्धिवाद की मान्यताओं का खण्डन करते हैं। वे उन्हें एकांगी मानते हैं। बुद्धिवादी ज्ञान में अनिवार्यता एव सार्वभौमता को स्वीकार करते हैं। परन्तु वहां नवीनता नहीं होती, क्योंकि प्रत्यय जन्मजात ....
Question : रसेल का तार्किक परमाणुवाद क्या है? इस सम्बन्ध में शामिल तत्वमीमांसा की संकल्पना को सुस्पष्ट कीजिए।
(2003)
Answer : रसेल के अनुसार भाषा एवं जगत की संरचना एक सामान है, इसलिए अगर भाषा को अच्छी तरह समझ लिया जाए तो जगत को समझना आसान हो जाता है। इसी आधार पर उसने तार्किक परमाणुवाद की संकल्पना का विकास किया। तार्किक परमाणुवाद का उद्देश्य जगत की सरलतम इकाई को खोजना हैताकि जगत की तार्किक व्याख्या हो सके। पुनः इसका दूसरा उद्देश्य जगत की वस्तुओं एवं जगत की संरचना को भाषा के द्वारा सार्थक रूप से व्यक्त ....
Question : सत्ता दृश्यता है।
(2003)
Answer : ‘सत्ता दृश्यता है’ के द्वारा बर्कले यह सिद्ध करने का प्रयास करता है कि वस्तुयें भौतिक या जड़ नहीं मों, बल्कि प्रत्ययों के परिवार है। चूंकि तथाकथित वस्तुयें (प्रत्ययों के संघात) ज्ञाता (आत्मा) के मन के प्रत्यय हैं, इसलिए बर्कले को आत्मनिस्ठ प्रत्यय वादी कहा जाता है। आत्मनिस्ठ प्रत्ययवाद के अनुसार आत्मा और उसके प्रत्ययों के अतिरिक्त किसी भौतिक वस्तु की सत्ता नहीं है। अतः बर्कले को अहंमात्रवादी कहा जाता है। वास्तव में बर्कले ने ....
Question : कांट का फ्समीक्षात्मक दर्शन"तर्क बुद्धिवाद और इन्द्रियानुभवाद के बीच एक समाधान है। इस टिप्पणी को पूरी तरह स्पष्ट कीजिए और पारम्परिक तत्व मीमांसा की संभावना के लिए ऐसे समाधान के परिणाम पर प्रकाश डालिए।
(2002)
Answer : कांट स्वयं अपने दर्शन को आलोचनात्मक दर्शन कहते हैं। यहां आलोचना का आशय किसी दार्शनिक ज्ञान या दार्शनिक पुस्तक की आलोचना करना नहीं है। साथ ही इसका आशय खण्डन करना या कमी बताना मात्र नहीं है। यहां आलोचना का वास्तविक अर्थ ज्ञान के वास्तविक स्वरूप उसकी सम्भावना, उसकी संरचना, प्रमाणिकता आदि का विवेचन, परीक्षण, आलोचना, समीक्षा एवं स्पष्टीकरण करना है। कांट का दर्शन दो कारणों से समीक्षावाद कहा जाता हैः
(i) कांट के पूर्ववर्ती सिद्धान्तों-बुद्धिवादी एवं ....
Question : आगमन पर ह्यूम का विचार।
(2002)
Answer : ह्यूम द्वारा कारणता का विश्लेषण विवाद विषय रहा है। इसी क्रम में इसने आगमन की समस्या पर भी विचार किया है। ह्यूम के अनुसार कारण कार्य के सम्बन्ध को अनिवार्य सिद्ध करने का क्या आधार है? परम्परागत रूप से इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए ‘प्रकृति की एकरूपता’ का सहारा लिया जाता है। प्रकृति की एकरूपता का अर्थ है कि प्रकृति समान परिस्थितियों में समान कार्य करती है। ऐसा अतीत या भूतकाल में सदैव ....
Question : सत्यापन सिद्धान्त को स्पष्ट कीजिए और दर्शाइए कि क्या यह सिद्धान्त तत्वमीमांसा को निराश पर पहुंचा देता है?
(2002)
Answer : सत्यापनीयता सिद्धान्त के उद्भव में पूर्ववर्ती विटगेन्सटार्डन का दर्शन उत्प्रेरक रहा है। विटगेन्सटार्डन कहते हैं कि किसी तर्कवाक्य का अर्थ वह है, जिसे वह प्रस्तुत करता है। सत्यापन किन-किन रूपों में होता है, और इसकी सीमायें क्या है? इसे लेकर तार्किक भाववादियों में मतभेद है। इस मतभेद के कारण इसमे निरन्तर विकास एवं परिवर्द्धन होता रहा है। एम. स्लीक के दर्शन में सत्यापनीयता सिद्धान्त की प्रारंभिक रूप रेखा दिखाई पड़ती है। इनके अनुसार किसी वाक्य ....
Question : मूर की सामान्य बुद्धि की प्रतिरक्षा।
(2002)
Answer : मूर एक सामान्य बुद्धिपरक वस्तुवाद के समर्थक हैं। उन्होंने प्रत्ययवाद का निराकरण करने के साथ-साथ विश्व के सम्बन्ध में अपने विचारों को प्रस्तुत किया। मूर द्वारा प्रतिपादित जगत सम्बन्धी अवधारणा सामान्य बुद्धि के अनुरूप है। मूर अभूर्त चिन्तन पर आधारित दार्शनिक समस्याओं का समर्थन नहीं करते हैं। उनके अनुसार दार्शनिक चिंतन सामान्य बुद्धि के अनुस्य होना चाहिए, अन्यथा दर्शन के क्षेत्र में एक जड़ता आ जाएगी। वे प्रायः सभी दार्शनिक प्रश्नों का उत्तर सामान्य बुद्धि ....
Question : कांट की दिक्काल की संकल्पना।
(2001)
Answer : कांट अपनी पुस्तक बतपजपुनम वि चनतम त्मेंवद में ज्ञान प्राप्त करने की शक्ति को शुद्ध बुद्धि कहते मों। संवेदन शक्ति के अन्तर्गत दो प्रागनुभविक आकार होते हैं। ये हैं- देश और काल। देश और काल बाह्य पदार्थ नहीं हैं, बल्कि मानसिक धर्म है। ये दोनों मानसिक चश्मों के समान हैं। जिस प्रकार नीला चश्मा पहनने पर सब कुछ नीला दिखाई देता हैं उसी प्रकार देश और काल भी मन के दो चश्में हैं, जिनके द्वारा ....
Question : तार्किक प्रत्यक्षवादियों की तत्वमीमांसा की निरसन संबंधी युक्तियों का मूल्यांकन कीजिए।
(2001)
Answer : तत्वमीमांसा प्राचीन काल से दार्शनिक के चिन्तन की मुख्य विषय-वस्तु रही है। तत्वमीमांसकों ने तत्व के स्वरूप के सम्बन्ध में अनेक तात्विक सत्ताओं यथा प्राकृतिक तत्व, आत्म तत्व ईश्वर इत्यादि विषयक युक्तियां प्रस्तुत की हैं, जिन्हें वे आनुभविक वाक्यों से भी अधिक निश्चयात्मक मानते हैं। आधुनिक युग में विएना-सर्किल से उचित अनुभव एवं विज्ञान पर आधारित विचारधारा तार्किक-भाववाद इस परम्परागत तत्वमीमांसीय चिन्तन को दर्शन की विषय वस्तु से हटाकर अर्थहीन घोषित करती है। इस क्रम ....
Question : वैयक्तिक अनन्यता विषयक ह्यूम के मत का मूल्यांकन कीजिए।
(2001)
Answer : ह्यूम के अनुसार आत्मा प्रत्यक्षों की एक प्रवाहमान शाश्वत धारा के अतिरिक्त और कुछ नहीं है, परन्तु इससे यह समस्या उत्पन्न होती है कि नित्य आत्मा के अभाव में वैयक्तिक अनन्यता की व्याख्या कैसे की जा सकती है। ह्यूम के अनुसार हमारे संस्कारों एवं प्रत्ययों को कोई स्वामी नहीं है। अन्तर्निरीक्षण से भी किसी कुटस्थ, नित्य तथा संस्कारों के आश्रय रूपी आत्मा का ज्ञान नहीं होता है।
ह्यूम के इस मत को अस्वामित्व का सिद्धान्त के ....
Question : रसेल का तार्किक रचना का सिद्धान्त।
(2001)
Answer : रसेल काल्पनिक पदार्थों से छूटकारा पाने के लिए तार्किक संरचना का सिद्धान्त प्रस्तुत करते हैं। इसके माध्यम से वे जगत के भौतिक तत्वों की स्थिति को स्पष्ट करते हैं। रसेल के अनुसार तार्किक संरचना सिद्धान्त के दो आयाम हैं:
(i) इस सरलतम तक कैसे पहुंचते हैं।
(ii) उस सरलतम को किस प्रकार भौतिक पदार्थ और मन आदि अवधारणाओं में स्थान्तरित करते है।
रसेल के अनुसार ज्ञान के दो रूप हैं:
(i)साक्षात परिचय ज्ञान तथा
(ii)वर्णनात्मक ज्ञान।
साक्षात परिचय ज्ञान ....
Question : ह्यूम का दृश्य प्रपंचवाद।
(2000)
Answer : ह्यूम विशुद्ध अनुभववादी है। यद्यपि ह्यूम के पूर्व लोक और बर्कले ने भी अनुभव को ज्ञान-प्राप्ति के एकमात्र स्रोत के रूप में स्वीकार किया था, लेकिन वे अनुभववाद का तार्किक रूप से अनुपालन नहीं कर पाए। लॉक अनुभववादी होते हुए भी मन-संरचित जटिल प्रत्ययों के रूप में ईश्वर, आत्मा और जगत की कल्पना कर लेते हैं। बर्कले लॉक से एक कदम आगे बढ़ते हुए जड़ की सत्ता का तो खण्डन कर लेते मों, परन्तु अनुभव ....
Question : ईश्वर के अस्तित्व के लिए साक्ष्यों की कांट की आलोचना बताइए और उसका परीक्षण कीजिए।
(2000)
Answer : दर्शनशास्त्र के इतिहास में ईश्वर के अस्तित्व को सिद्ध करने के लिए परम्परागत रूप से तीन युक्तियां दी गई हैं। इन्द्रियानुभविक जगत में निहित कारण-कार्य के नियम के आधार पर इस जगत से परे जगत या सृष्टि आदि के कारण के रूप में ईश्वर के अस्तित्व को सिद्ध किया गया है। इसके अतिरिक्त वस्तुओं के सामान्य अस्तित्व के आधार पर अनिवार्य सत्ता के अस्तित्व की स्थापना की जाती है। तीसरे तर्क के अन्तर्गत पूर्णता के ....
Question : सामान्य बुद्धि विषयक मूर की धारणा स्पष्ट कीजिए तथा उसके समर्थन के लिए उनके तर्कों की परीक्षा कीजिए।
(1999)
Answer : मूर ने दर्शन के क्षेत्र में प्रचलित बौद्धिक जटिलताओं के विरोध में सामान्य बुद्धि की रक्षा करने का प्रयास किया है। ये बौद्धिक जटिलतायें प्रत्ययवादियों (हीगल, ब्रेडले आदि) और संयशवादियों (ह्यूम) के कारण उत्पन्न हुई। ये दोनों एक तरफ तो कुछ ऐसे सिद्धान्तों को प्र्रतिपादित करते हैं जो हमारे सामान्य बुद्धि के विश्वासों के प्रतिकूल है, तो दूसरी तरफ वे कुछ ऐसी बातों का खण्डन करते हैं, जिन्हें हमारी सामान्य बुद्धि स्वभावतः स्वीकार किये रहती ....
Question : निषेधात्मक तत्वों संबंधित रसेल की संकल्पना।
(1999)
Answer : तथ्य से रसेल का तात्पर्य है कि कुछ वस्तुओं में कुछ गुण हैं अथवा कुछ वस्तुओं में कुछ सम्बन्ध हैं, इससे तथ्य के एक महत्वपूर्ण रूप पर प्रकाश पड़ता है। तथ्य नाम या किसी एक शब्द से व्यक्ति नहीं होते। प्रतिज्ञाष्तियों से व्यक्त होता है। वस्तुतः रसेल का कहना है कि तथ्य वे हैं जो प्रतिज्ञाप्तयों को सत्य या असत्य बनाते हैं। यदि यह कहा जाता है कि ‘वर्षा हो रही है’ तो एक प्रकार ....
Question : बुद्धिगत धारणाओें विषयक कांट के मत।
(1999)
Answer : कांट ज्ञान प्राप्ति के साधन को शुद्ध बुद्धि कहते मों। कांट के अनुसार शुद्ध बुद्धि के तीन पक्ष है- संवेदना, बोध शक्ति और प्रज्ञा शक्ति। संवेदना बाह्य जगत में संवेदनाओं को ग्रहण कर ज्ञान की सामग्री जमा करती है। बोध शक्ति के स्तर पर इन संवेदनाओं को सुव्यवस्थित कर ज्ञान का निर्माण किया जाता है। और प्रज्ञा शक्ति के स्तर पर इन्हें समष्टिगत रूप प्रदान किया जाता है। बोध शक्ति में 12 मूल धारणायें होती ....
Question : मूर प्रत्ययवाद का खण्डन कैसे करते हैं? आलोचनात्मक मूल्यांकन करे।
(1998)
Answer : मूर के दर्शन पटल पर उदय के समय प्रत्ययवाद अपने शिखर पर था, लेकिन मूर सहज ज्ञान के अनुरूप वास्तववादी विचारधारा के मानने वाले थे। अतः अपने दार्शनिक सिद्धान्त को स्थापित करने के लिए मूर के लिए यह आवश्यक था कि प्रत्ययवाद का खण्डन किया जाए। उन्होंने यह कार्य अपने लेख प्रत्ययवाद का खण्डन के माध्यम से किया। मूर का प्रत्यय यह था कि यह खण्डन ऐसा हो कि प्रत्ययवाद की नींव हिल जाए और ....
Question : तत्वमीमांसा के सम्बन्ध में एयर के मत का आलोचनात्मक विवेचन कीजिए।
(1998)
Answer : तत्वमीमांसा के निरसन के प्रयत्न में एयर ने प्रमाणीकरण के सिद्धान्त पर अधिक जोर दिया है। ए.जे. एयर के अनुसार तत्वमीमांसा की आधारभूत मान्यता यह है कि एक अभौतिक सत्ता है। एयर के अनुसार वही कथन सार्थक हो सकता है जो या तो विश्लेषणात्मक हो या फिर तथ्यात्मक, अर्थात् अनुभव पर आधारित। विश्लेषणात्मक कथन पुनयुक्ति मात्र होती है। फलस्वरूप उनसे न तो स्वयं विश्व के विषय में कोई जानकारी मिलती है, और न ही कोई ....
Question : रसेल के वर्णन-सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए और पी.एफ. स्ट्रॉसन की आलोचना के विशेष संदर्भ में उसकी परीक्षा करें।
(1997)
Answer : रसेल ने मूर के साथ आरम्भ में यह माना था कि जितने भी शब्द सार्थक हैं, उनमें केवल वही शब्द सार्थक है, जो किसी न किसी वस्तु का निर्देश करते हैं और वह वस्तु ही उस शब्द का अर्थ है। यही रसेल का वर्णन सिद्धान्त कहलाता है। अधिकतर दार्शनिकों ने इस सिद्धान्त के स्वीकार किया था और उन्हीं की परम्परा में रसेल ने विशेषकर अपने पारंपरिक चिंतन में इस सिद्धान्त को माना। जैसे मेज शब्द ....
Question : द्वन्द्वात्मक प्रणाली की मुख्य बात यह है कि प्रत्येक विशिष्ट अभिवृत्रि या विश्वास के पक्षपाती दावे का तार्किक आधार पर हास्यास्पद बनाकर चुनौती देता है।
(1997)
Answer : तर्कीय परमाणुवाद एक तत्वमीमांसीय सिद्धान्त है जो विश्व के परम तत्वों के रूप में कुछ अणु की कल्पना करता है। अणु का अर्थ वह सरलतम अविभाज्य तत्व, जिसका और विभाजन नहीं हो सके। यह सिद्धान्त अणुवाद है, क्योंकि अणुवाद के तीन विशिष्ट एवं प्रधान लक्षण इसमें उपस्थित हैं- एक तो अणुवाद तत्वमीमांसीय सिद्धान्त है, जिसका लक्ष्य विश्व की तात्विक व्याख्या है। पुनः अणुवाद का दूसरा अनिवार्य लक्षण हैं कि वह अनेकवादी होता है। यहां भी ....
Question : तर्क बुद्धिवाद एवं अनुभववाद का अधिक्रमण करके कांट इन दोनों के बीच सामंजस्य बैठाता है।
(1997)
Answer : कांट स्वयं अपने दर्शन को आलोचनात्मक दर्शन कहते हैं। यहां आलोचना का आशय किसी दार्शनिक ज्ञान या दार्शनिक पुस्तक की आलोचना करना नहीं है। साथ ही इसका आशय खण्डन करना या कभी बताना मात्र नहीं है। यहां आलोचना का वास्तविक अर्थ है ज्ञान के वास्तविक स्वरूप, उसकी सम्भावना, उसकी संरचना प्रामाणिकता आदि का विवेचन, परीक्षण, आलोचना, समीक्षा एवं स्पष्टीकरण करना। कांट के पूर्ववर्ती सिद्धान्तों बुद्धिवाद एवं अनुभववाद में ज्ञान के स्वरूप, ज्ञान की सम्भावना, मनुष्य ....