Question : सांख्य का त्रिगुण सिद्धांत स्पष्ट कीजिए।
(2007)
Answer : सांख्य दर्शन के अनुसार प्रकृति त्रिगुणात्मिका हैं। इसमें तीन गुण पाए जाते हैं, ये गुण हैं सत्व, रजस और तमस। तीनों गुणों की साम्यावस्था का नाम प्रकृति हैं। सामान्यतः गुण शब्द का जो अर्थ किया जाता है, उस अर्थ में सत्व, राजस और तमस गुण नहीं हैं वस्तुतः ये प्रकृति के गुण नहीं हैं, अपितु उसके संघटक तत्व है।
उल्लेखनीय है कि सांख्य दर्शन प्रकृति और उकसे गुणों में द्रव्य गुण भेद स्वीकार नहीं करता। यहां सांख्य दर्शन की मान्यता न्याय वैशेषिक दर्शन की उस विचारधारा के विपरीत है, जिसमें पदार्थ में द्रव्य गुण भेद स्वीकार किया जाता है तात्पर्य यह है कि सत्व, राजस तमस द्रव्य रूप हैं। ये इसलिए भी द्रव्य हैं क्योंकि सांख्य दर्शन में उनके भी गुणों का विवेचन प्राप्त होता है।
सांख्य प्रवचन भास्य के अनुसार सत्व, राजस और तमस इस अर्थ में गुण है कि ये रस्सी के तीनों गुणों के समान पुरुष को बांधने का काम करते हैं, चूंकि ये पुरुष के उद्देश्य साधन में गौण रूप से सहायक हैं, इसलिए भी उन्हें गुण कहा जाता है। एक अन्य व्याख्या के अनुसार पुरुष की अपेक्षा गौण होने के कारण भी इन्हें गुण कहते हैं। राधाकृष्ण के अनुसार ये इसलिए भी गुण हैं, क्योंकि अकेली प्रकृति विशेष्य हैं और ये उसके अंदर केवल अवयव रूप से अवस्थित है।
सांख्य दर्शन के अनुसार प्रकृति के इन गुणों की सत्ता अनुमान से प्रमाणित होती है। इनके कार्यों से इनकी सत्ता का अनुमान किया जाता है। संसार के सभी सूक्ष्मतिसूक्ष्म और स्थूल विषय सुख, दुख अथवा चाहे उत्पन्न करते हैं, ये प्रकृति के इन तीन गुणों सत्व, रजस एवं तमस के कारण ही उत्पन्न होते हैं। सांख्य दर्शन में इन तीनों गुणों के स्वरूप एवं रंग का भी विवेचन किया गया है। सांख्यकारिका के अनुसार सत्व गुण लघु प्रकाशक और आनन्दायक होता है। रजोगुण दुःखदायी और गतिशील होता है तथा तमोगुण भारी (गुरू) और अवरोधक होता है। जिस प्रकार दीपक में तेल बत्ती और ज्वाला परस्पर विरोधी होते हुए भी सहयोग करके प्रकाश उत्पन्न करते हैं, उसी प्रकार ये तीनों गुण परस्पर विरोधी होते हुए भी पारस्परिक सहयोग से सांसारिक विषयों को उत्पन्न करते हैं। दसांख्य दर्शन के अनुसार सत्वगुण लघु, प्रकाशक और आनन्दायक होता है। सत्व गुण प्रकाश का प्रतीक है। यह स्वतः प्रकाशित है और अन्य विषयों को भी प्रकाशित करता है। इन्द्रियों में अपने-अपने विषयों को ग्रहण करने की शक्ति सत्व गुण से आती है। सत्वगुण के कारण ही सूर्य द्वारा संसार को प्रकाशित करने और दर्पण में प्रतिबिम्ब ग्रहण करने की शक्ति आती है। सत्व गुण लघुता (हल्कापन) का प्रतीक है।
अतः हल्केपन के कारण उर्ध्वगमन सत्वगुण का ही कार्य है। जैसे मन की उन्नति, अग्नि ज्वाला का उपर उठना आदि सत्व के कारण ही संभव है। यह आनन्दायक है, सुख का कारण है। सभी प्रकार की सुखात्मक अनुभूतियां हर्ष, उल्लास, प्रीति, श्रद्धा, सरलता आदि- सत्व गुण के कारण संभव होती है। रजोगुण दुःखदायक और गतिशील हैं। यह स्वयं गतिशील है और अन्य वस्तुओं को भी गतिशील बनाता है, इस प्रकार यह क्रिया का प्रवर्तक है। हवा का बहना, मन का चंचल होना इन्द्रियों में अपने विषयों की ओर प्रवृत्ति रजस के कारण हैं, उल्लेखनीय है कि सत्त्व और तमस गुण स्वतः निष्क्रिय हैं, रजस ही उन्हें सक्रिय करता है। यह दुःखात्मक है, दुःख का कारण है। सभी प्रकार की दुखात्मक अनुभुतियों-क्रोध, द्वेष, विषाद असंतोष अतृप्ति, मान, मद, मत्सर आदि रजस के कारण उत्पन्न होती है। तमस गुरू एवं अवरोधाक हैं यह अज्ञान एवं अन्धकार का प्रति है, यह सत्व गुण के विपरीत है। यह रजोगुण की क्रिया का अवरोधक है। यह जड़ता एवं निष्क्रियता का प्रतीक है, यह भारीपन के कारण उद्योगामी है इससे मोह एवं उदासीनता उत्पन्न होती है। सभी प्रकार की उदासीनता की वृत्तियां प्रमाद, आलस्य, निद्रा, तन्द्रा आदि तमस के कारण उत्पन्न होती हैं। ईश्वर कृष्ण के अनुसार सत्व गुण का रंग सफेद, रजस का रंग लाल और तमस का रंग काला है।
यद्यपि सत्व, रजस, तमस में परस्पर विरोध दिखाई पड़ता है, तथापि उनमें परस्पर सहयोग भी है, क्योंकि सहयोग के अभाव में सांसारिक वस्तुओं की उत्पत्ति असम्भव है। सांख्य दश्रन एक उपमा की सहायता से इसकी व्याख्या करता है। उसके अनुसार सत्त्व, रजस एवं तमस में उसी प्रकार सहयोग होता है, जिस प्रकार दीपक की बाती, तेल और अग्नि में होता है। जैसे, तेल, बाती और अग्नि पारस्परिक सहयोग से प्रकाश उत्पन्न करते हैं, वैसे ही सत्व, रजस एवं तमस विरुद्धधर्मी होकर भी सांसारिक वस्तुओं को उत्पन्न करते हैं।
उल्लेखनीय है कि सत्व, रजस और तमस केवल अव्यक्त प्रकृति के ही गुण नहीं हैं। ये प्रकृति से उत्पन्न सभी वस्तुओं (व्यक्त) में भी पाए जाते हैं। इस संदर्भ में यह भी स्मरणीय है कि ये गुण सभी वस्तुओं में समान मात्रा में नहीं पाए जाते हैं। प्रत्येक वस्तु में कोई एक गुण प्रधान होता है और अन्य दोनों गुण गौण होते हैं। प्रत्येक वस्तु के स्वभाव का निर्धारण उसमें प्राप्त प्रधान गुण के आधार पर होता है। जिस वस्तु में सत्व गुण की प्रधानता होती है और रजस तथा तमस गुण होते हैं, उन्हें सात्विक कहा जाता है। इसी प्रकार रजस और तमस की प्रधानता होने पर तथा अन्य दोनों गुणों के गुण होने पर वस्तुओं को क्रमशः राजसिक एवं तामसिक कहा जाता है।
तात्पर्य यह है कि वस्तुओं को सात्विक राजसिक एवं तामसिक कहने का आधार उनमें क्रमशः सत्त्व, राजस एवं तमस की प्रधानता है।
सांख्य दर्शन के अनुसार सत्त्व, रजस एवं तमस तीनों गुण सदैव परिवर्तनशील हैं। यहां तक कि ये गुण साम्यावस्था की स्थिति में भी निरंतर परिवर्तनशील हैं, ये एक क्षण के लिए भी अपरिवर्तनशील नहीं रह सकते, क्योंकि यदि उनमें एक क्षण के लिए भी परिवर्तन रूक जाए तो यह पुनः प्रारम्भ ही नहीं हो सकता। गुणों में दो प्रकार का परिवर्तन या परिणाम दिखायी देता है।
सरूप परिणाम प्रलयावस्था में होता है। प्रलयावस्था गुणों की साम्यावस्था है। इसमें प्रत्येक गुण अन्य गुणों से प्रथक होकर स्वतः अपने परिणत हो जाता है, अर्थात् सत्त्व सत्त्व में, रजस रजस में और तमस तमस में परिणत हो जाता है, क्योंकि कोई गुण अकेले परिणामित होकर भी किसी वस्तु को उत्पन्न नहीं कर सकता। विरूप परिणाम सृष्टि की अवस्था में होता है, इसमें सांसारिक विषयों का आर्विभाव होता है। विरूप परिणाम तब प्रारम्भ होता है। जब पुरुष के संयोग से प्रकृति की साम्यावस्था में क्षोभ (गुण-क्षोभ) उत्पन्न होता है। ये गुण (गुण-क्षोभ) की स्थिति में परस्पर क्रिया-प्रतिक्रिया करते हैं, जिससे सृष्टि का विकास प्रारम्भ होता है।
Question : सांख्य की कार्य-कारण थियोरी पर समालोचनात्मक रूप से चर्चा कीजिए।
(2006)
Answer : सत्यकार्यवाद सांख्य दर्शन का कारणता का सिद्धान्त है, जो न्याय दर्शन के कारण सिद्धान्त के ठीक विपरीत है। उल्लेखनीय है कि सांख्य दर्शन का यह सिद्धान्त केवल उत्पादन कारण तक सीमित है, परन्तु यह निमित्त कारण और प्रयोजन कारण में भी विश्वास करता है। इसमें मुख्यतः इस बात पर विचार किया जाता है कि कार्य का कारण से क्या सम्बन्ध है।
क्या कार्य अपनी उत्पत्ति के पूर्व अपने उत्पादन कारण में विद्यमान रहता है। यह भी स्मरणीय है कि प्रत्येक दार्शनिक विचार जो सृष्टि के उद्भव विकास का लेखा-जोखा प्रस्तुत करना चाहती है और विश्व की अनेकता एवं विविधता के मूल में एकता की खोज करना चाहती है, का आधार उसका कारण विधयक दृष्टिकोण है। सांख्य दर्शन भी इसका अपवाद नहीं है। इस संदर्भ में वह सत्यकार्यवाद का सिद्धान्त प्रस्तुत करता है जिसका अर्थ है कि कार्य अपनी उत्पत्ति के पूर्व अपने उत्पादन कारण में विद्यमान रहता है।
सत्यकार्यवाद उसके प्रधानकारणवाद का आधारभूत सिद्धान्त है, क्योंकि उसकी मान्यतानुसार यह सम्पूर्ण सृष्टि अस्तित्व में आने के पूर्व प्रकृति में अव्यक्त रूप में विद्यमान थी।
सांख्य दर्शन का सत्यकार्यवाद न्याय-वैशेषिक दर्शन के कारण- सिद्धान्त के विरोध में अस्तित्व में आया। न्याय वैशेषिक दर्शन का कारण सिद्धान्त असत्यकार्यवाद है, जो कारण में कार्य के प्राग्भाव को अस्वीकार करता है। उसके अनुसार उत्पत्ति के पूर्व कारण में कार्य का अभाव होता है चूंकि यह कार्य की सर्वथा नवीन शुरूआत में विश्वास करता है, कार्य के नवीन आरम्भ की बात करता है, अतः इसे आरम्भवाद भी कहते हैं।
सांख्य दर्शन में युक्तियों के आधार पर सत्यकार्यवाद का प्रतिपादन किया गया है। एक और उन युक्तियों से न्याय-वैशेषिक दर्शन के असत्यकार्यवाद का खण्डन होता है तो दूसरी ओर कारण में कार्य प्राग्भाव सिद्ध होता है।
ईश्वर कृष्ण की सांख्यकारिका में सत्यकार्यवाद के प्रतिपादनार्थ निम्नलिखित कारिका प्राप्त होती हैः
सांख्य दर्शन उत्पत्ति का विशेष अर्थ करता है। यहां उत्पत्ति से तात्पर्य किसी नवीन वस्तु की सृष्टि नहीं है, जिसका कारण से पूर्व अभाव हो। उसके अनुसार उत्पत्ति केवल अभिव्यक्ति है। कारणावस्था में जो अव्यक्त रहता है, वही कार्यावस्था में अभिव्यक्त होता है। अव्यक्त का व्यक्त हो जाना ही कार्य है। इसी प्रकार सांख्य दर्शन निमित्त कारण को स्वरूपतः निवारणात्मक मानता है। इसकी आवश्यकता केवल कार्योत्पत्ति के मार्ग में बाधाओं को हराने के लिए हैं। वह उपादान कारण में अव्यक्त कार्य को केवल व्यक्त करता हैं। सांख्य दर्शन इन्हीं तर्कों के द्वारा सार्थकवाद की स्थापना करता है।
उल्लेखनीय है कि शंकरवेदान्त और रामानुज भी सत्यकार्यवाद में विश्वास करते हैं और इनका सिद्धांत क्रमशः विवर्तवाद एवं परिणामवाद कहलाता है। विर्वतवादयजतों कार्य कारण का विवर्तमात्र (आभास) है वहीं परिणामवादय कारण का र्का में वास्तविक रूपान्तरण होता है। शांकरवेदान्त में इसे ब्रह्मविदर्तवाद करते हैं और विशिटाहैत में इसे ब्रह्म इसे ब्रह्मपरिणामवाद कहा जाता है।