Question : हीगल की द्वन्द्वात्मक पद्धति।
(2007)
Answer : वास्तविक सत्ता के स्वरूप को समझने, उसे स्पष्ट करने तथा स्थापित करने के लिए हीगल जिस विधि का प्रयोग करते हैं, वह विधि द्वन्द्वात्मक विधि कहलाती है।
हीगल के ठीक पहले कांट ने भी इस पद्धति का उल्लेख किया है, परन्तु उनके दर्शन में इसका विधिवत विकास नहीं हो पाया। फिक्टे के दर्शन में जिस द्वन्द्वात्मक विधि का प्रयोग है, हीगल ने भी लगभग उसी रूप में इसका प्रयोग किया है। यहां फिक्टे से हीगल का अन्तर यही है कि फिक्टे जहां द्वन्द्वात्मक पद्धति द्वारा संकल्प को सर्वोच्च सत्ता के रूप में स्थापित करते हैं, वहीं हीगल विचार या चैतन्य को। द्वन्द्वात्मक न्याय वह विधि है, जिसमें परस्पर विरोधी स्थितियों की समीक्षा कर एवं संशोधित कर दोनों के महत्व को ग्रहण करते हुए सत्य की ओर अग्रसारित होने का प्रयास किया जाता है।
हीगल के अनुसार जीवन में यथार्थ एवं आदर्श का संघर्ष होता है, क्योंकि एक वस्तु जो यथार्थ है वह स्वयं को यथार्थ तक सीमित नहीं रखना चाहती, वरन् वो आदर्श रूप प्राप्त करना चाहती है, जिसके परिणामस्वरूप द्वन्द्वात्मक प्रक्रिया होती है।
हीगल ने इस द्वन्द्वात्मक विधि को एक प्रणाली मात्रा के रूप में नहीं बल्कि यथार्थ तत्व के रूप में स्वीकार किया है। हीगल के अनुसार जहां गति है, जीवन है, संघर्ष है, यर्थाथ है, वहां द्वन्द्व न्याय भी है। हीगल के अनुसार व्यक्ति के अन्दर परस्पर विरोधी विचारों का संघर्ष है। इसलिए हीगल संसार की सभी वस्तुओं को भेद-विशिष्ट अभेद के रूप में स्वीकार करते हैं। उनके अनुसार विशुद्ध भेद और विशुद्ध अभेद की कल्पना असंगत है। भेद की कल्पना अभेद के बिना नहीं हो सकती और अभेद की कल्पना भेद के बिना नहीं हो सकती। इसलिए हीगल यह कहते हैं कि विश्व की जितनी वस्तुयें हैं वे प्रतिपक्षों का तादात्मय हैं। यही तादात्मय हीगल के दर्शन का प्राण है। यहां तादात्मय का अर्थ विशुद्ध तादात्मय नहीं है। यहां इसका आशय भेद में अभेदता से है, अभेद भेद पर आश्रित है।
हीगल की यह विधि कोई गणितीय विधि, निगमनात्मक या आगमनात्मक विधि नहीं है। गणितीय विधि स्वयं सिद्धों एवं पूर्व मान्यताओं पर आधारित होती है, इसलिए यह अपूर्ण एवं स्थैतिक है। द्वन्द्वात्मक विधि निगमनात्मक पद्धति से भी भिन्न है, क्योंकि द्वन्द्वात्मक विधि का सम्बन्ध जगत की घटनाओं से है। यह एक सृजनात्मक विधि है, पुनः यह आगमन से भी भिन्न है। आगमन विधि तथ्यों के आधार पर भविष्य को बताती हैं तथ्यों को सामान्यीकृत करती है, जबकि द्वन्द्वात्मक विधि अतीत की घटनाओं से समस्त घटनाओं से संकेतित परम् लक्ष्य की ओर अग्रसारित होती है। हीगल की द्वन्द्वात्मक पद्धति की कुछ विशेषतायें हैं। जैसे-