विशेष न्यायालय: आवश्यकता एवं प्रासं गिकता
विशेष न्यायालय (Special Court), सीमित क्षेत्रधिकार वाले न्यायालय हैं, जो कानून के एक विशिष्ट क्षेत्र का प्रबंधन करते हैं।
- ये अदालतें ‘न्यायिक’ संस्थाएं होते हुए भी देश की नियमित न्यायिक अदालतों के पदानुक्रम से बाहर होती हैं।
- इन्हें अलग-अलग अधिनियमों द्वारा स्थापित किया जाता है तथा कानून के एक निर्दिष्ट क्षेत्र से निपटने के कारण ये सामान्य अदालतों से भिन्न होती हैं।
- अब तक, देश में विभिन्न प्रतिमानों के तहत 25 से अधिक विशेष न्यायालय स्थापित किये गए हैं।
भारत में विशेष न्यायालयों के उदाहरण
- सीबीआई अदालतः यह (CBI Court) ऐसी ही एक विशेष अदालत है, जिसे दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 ....
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मुख्य विशेष
- 1 भारत के आपराधिक कानून में बदलाव: आपराधिक न्याय प्रणाली पर प्रभाव
- 2 डिजिटलीकरण: स्थानीय सरकारों के लिए एक गेम चेंजर
- 3 विकेंद्रीकृत शासन को प्रोत्साहन: छठी अनुसूची की भूमिका
- 4 नागरिक चार्टर: महत्वपूर्ण अंतराल और सुधारों की आवश्यकता
- 5 राज्यपालों की विवेकाधीन शक्तियां
- 6 विशेष श्रेणी के राज्य: अतिरिक्त वित्त की मांग
- 7 भारत में सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने में राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों का महत्व
- 8 पंचायती राज संस्थानों का वित्तीय सशक्तीकरण : उपाय और चुनौतियां
- 9 संविधान की 9वीं अनुसूचीः न्यायिक समीक्षा से संरक्षण
- 10 भारत में स्थानीय स्वशासन
- 11 न्यायिक बहुसंख्यकवाद एवं इससे संबंधित मुद्दे
- 12 भारत में न्यायेतर हत्याएं: मुद्दे एवं उपाय
- 13 आधारभूत ढांचे का सिद्धांत
- 14 राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियां
- 15 सिविल सेवा क्षमता निर्माण
- 16 सामान्य अध्ययन 100 महत्वपूर्ण विषय - संविधान एवं शासन प्रणाली (जीएस पेपर-2)