आधारभूत ढांचे का सिद्धांत
भारतीय संविधान में कहीं भी ‘आधारभूत ढांचा’ शब्द का उल्लेख नहीं है। यह विचार विभिन्न न्यायिक वादों के जरिये समय के साथ धीरे-धीरे विकसित हुआ कि संसद ऐसे कानून प्रस्तुत नहीं कर सकती, जो संविधान की मूल संरचना में संशोधन करते हों।
- केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973) के मामले में सर्वोच्च न्यायालय की 13 जजों की अब तक की सबसे बड़ी संवैधानिक पीठ ने बुनियादी संरचना या आधारभूत ढांचे के सिद्धांत को परिभाषित किया था।
आधारभूत संरचना का सिद्धांत क्या है?
- संविधान की आधारभूत संरचना का सिद्धांत न्यायिक समीक्षा का एक रूप है, जिसका उपयोग अदालतों विशेष रूप से सर्वोच्च ....
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मुख्य विशेष
- 1 डिजिटल स्थानीय शासन और ई-पंचायत
- 2 न्यायिक सक्रियता बनाम न्यायिक संयम
- 3 भारतीय संघवाद के समक्ष नवीन चुनौतियां
- 4 भुलाए जाने का अधिकार
- 5 समान नागरिक संहिता: आवश्यकता एवं औचित्य
- 6 सील्ड कवर डॉक्ट्रिन: गोपनीयता बनाम न्यायिक पारदर्शिता
- 7 वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र: महत्व एवं सीमाएं
- 8 कानूनों का पूर्वव्यापी प्रभाव से लागू होना
- 9 भारत के आपराधिक कानून में बदलाव: आपराधिक न्याय प्रणाली पर प्रभाव
- 10 डिजिटलीकरण: स्थानीय सरकारों के लिए एक गेम चेंजर
- 11 विकेंद्रीकृत शासन को प्रोत्साहन: छठी अनुसूची की भूमिका
- 12 नागरिक चार्टर: महत्वपूर्ण अंतराल और सुधारों की आवश्यकता
- 13 राज्यपालों की विवेकाधीन शक्तियां
- 14 विशेष श्रेणी के राज्य: अतिरिक्त वित्त की मांग
- 15 भारत में सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने में राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों का महत्व
- 16 पंचायती राज संस्थानों का वित्तीय सशक्तीकरण : उपाय और चुनौतियां
- 17 संविधान की 9वीं अनुसूचीः न्यायिक समीक्षा से संरक्षण
- 18 भारत में स्थानीय स्वशासन
- 19 न्यायिक बहुसंख्यकवाद एवं इससे संबंधित मुद्दे
- 20 भारत में न्यायेतर हत्याएं: मुद्दे एवं उपाय
- 21 विशेष न्यायालय: आवश्यकता एवं प्रासं गिकता
- 22 राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियां
- 23 सिविल सेवा क्षमता निर्माण