राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियां
राज्यपाल केंद्र और राज्यों के बीच सेतु का काम करता है। इसे सहकारी शासन का एक प्रमुख स्तंभ माना जाता है।
- भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में राज्यपाल राज्य के संवैधानिक प्रमुख और केंद्र सरकार के प्रतिनिधि के रूप में ‘दोहरी भूमिका’ के रूप में कार्य करता है।
राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियां
- भारतीय शासन प्रणाली में केंद्रीय स्तर पर भारत के राष्ट्रपति को तथा राज्य स्तर पर सभी राज्यों के राज्यपालों को कुछ विवेकाधीन शक्तियां प्रदान की गई हैं।
- राज्य कार्यपालिका के प्रमुख होने के नाते राज्यपाल को दो प्रकार की विवेकाधीन शक्तियां प्राप्त होती हैं:
- संवैधानिक विवेकाधिकार (Constitutional Discretion)
- परिस्थितिजन्य विवेकाधिकार (Situational Discretion)
- राज्यपाल को प्राप्त ....
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मुख्य विशेष
- 1 डिजिटल स्थानीय शासन और ई-पंचायत
- 2 न्यायिक सक्रियता बनाम न्यायिक संयम
- 3 भारतीय संघवाद के समक्ष नवीन चुनौतियां
- 4 भुलाए जाने का अधिकार
- 5 समान नागरिक संहिता: आवश्यकता एवं औचित्य
- 6 सील्ड कवर डॉक्ट्रिन: गोपनीयता बनाम न्यायिक पारदर्शिता
- 7 वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र: महत्व एवं सीमाएं
- 8 कानूनों का पूर्वव्यापी प्रभाव से लागू होना
- 9 भारत के आपराधिक कानून में बदलाव: आपराधिक न्याय प्रणाली पर प्रभाव
- 10 डिजिटलीकरण: स्थानीय सरकारों के लिए एक गेम चेंजर
- 11 विकेंद्रीकृत शासन को प्रोत्साहन: छठी अनुसूची की भूमिका
- 12 नागरिक चार्टर: महत्वपूर्ण अंतराल और सुधारों की आवश्यकता
- 13 राज्यपालों की विवेकाधीन शक्तियां
- 14 विशेष श्रेणी के राज्य: अतिरिक्त वित्त की मांग
- 15 भारत में सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने में राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों का महत्व
- 16 पंचायती राज संस्थानों का वित्तीय सशक्तीकरण : उपाय और चुनौतियां
- 17 संविधान की 9वीं अनुसूचीः न्यायिक समीक्षा से संरक्षण
- 18 भारत में स्थानीय स्वशासन
- 19 न्यायिक बहुसंख्यकवाद एवं इससे संबंधित मुद्दे
- 20 भारत में न्यायेतर हत्याएं: मुद्दे एवं उपाय
- 21 विशेष न्यायालय: आवश्यकता एवं प्रासं गिकता
- 22 आधारभूत ढांचे का सिद्धांत
- 23 सिविल सेवा क्षमता निर्माण