समान नागरिक संहिता: आवश्यकता एवं औचित्य
समान नागरिक संहिता की अवधारणा पूरे देश के लिए एक कानून का प्रावधान करती है, जोकि सभी धार्मिक समुदायों पर उनके व्यक्तिगत मामलों जैसे विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने आदि में लागू होगी।
- संविधान के अनुच्छेद 44 में कहा गया है कि राज्य भारत के सम्पूर्ण क्षेत्र में नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता को सुरक्षित करने का प्रयास करेगा।
- वर्तमान में देश हर धर्म के लोग विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने आदि से सम्बंधित मामलों का निपटारा अपने पर्सनल लॉ के अधीन करते हैं। फिलहाल मुस्लिम, ईसाई और पारसी समुदाय का पर्सनल लॉ है जबकि हिन्दू सिविल लॉ के तहत हिन्दू, ....
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मुख्य विशेष
- 1 डिजिटल स्थानीय शासन और ई-पंचायत
- 2 न्यायिक सक्रियता बनाम न्यायिक संयम
- 3 भारतीय संघवाद के समक्ष नवीन चुनौतियां
- 4 भुलाए जाने का अधिकार
- 5 सील्ड कवर डॉक्ट्रिन: गोपनीयता बनाम न्यायिक पारदर्शिता
- 6 वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र: महत्व एवं सीमाएं
- 7 कानूनों का पूर्वव्यापी प्रभाव से लागू होना
- 8 भारत के आपराधिक कानून में बदलाव: आपराधिक न्याय प्रणाली पर प्रभाव
- 9 डिजिटलीकरण: स्थानीय सरकारों के लिए एक गेम चेंजर
- 10 विकेंद्रीकृत शासन को प्रोत्साहन: छठी अनुसूची की भूमिका
- 11 नागरिक चार्टर: महत्वपूर्ण अंतराल और सुधारों की आवश्यकता
- 12 राज्यपालों की विवेकाधीन शक्तियां
- 13 विशेष श्रेणी के राज्य: अतिरिक्त वित्त की मांग
- 14 भारत में सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने में राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों का महत्व
- 15 पंचायती राज संस्थानों का वित्तीय सशक्तीकरण : उपाय और चुनौतियां
- 16 संविधान की 9वीं अनुसूचीः न्यायिक समीक्षा से संरक्षण
- 17 भारत में स्थानीय स्वशासन
- 18 न्यायिक बहुसंख्यकवाद एवं इससे संबंधित मुद्दे
- 19 भारत में न्यायेतर हत्याएं: मुद्दे एवं उपाय
- 20 विशेष न्यायालय: आवश्यकता एवं प्रासं गिकता
- 21 आधारभूत ढांचे का सिद्धांत
- 22 राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियां
- 23 सिविल सेवा क्षमता निर्माण