न्यायिक सक्रियता बनाम न्यायिक संयम
हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय के निवर्तमान मुख्य न्यायाधीश डी. एन. पटेल ने आयोजित अपने विदाई समारोह में न्यायिक सक्रियता (Judicial Activism) और न्यायिक संयम (Judicial Restraint) के बीच संतुलन की आवश्यकता पर जोर दिया।
- उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों का कार्य सिर्फ कानूनों की व्याख्या करना है, नीति निर्माण या उनमें सुधार करना नहीं।
- न्यायिक सक्रियता (Judicial Activism) की अवधारणा को कभी-कभी न्यायिक संयम (Judicial Restraint) के विलोम के रूप में देखा जाता है।
न्यायिक सक्रियता क्या है?
- न्यायिक सक्रियता बदलते समाज में न्यायिक दृष्टिकोण की एक गतिशील प्रक्रिया है। हाल के वर्षों में अदालतों द्वारा न्यायिक सक्रियता के माध्यम ....
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मुख्य विशेष
- 1 डिजिटल स्थानीय शासन और ई-पंचायत
- 2 भारतीय संघवाद के समक्ष नवीन चुनौतियां
- 3 भुलाए जाने का अधिकार
- 4 समान नागरिक संहिता: आवश्यकता एवं औचित्य
- 5 सील्ड कवर डॉक्ट्रिन: गोपनीयता बनाम न्यायिक पारदर्शिता
- 6 वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र: महत्व एवं सीमाएं
- 7 कानूनों का पूर्वव्यापी प्रभाव से लागू होना
- 8 भारत के आपराधिक कानून में बदलाव: आपराधिक न्याय प्रणाली पर प्रभाव
- 9 डिजिटलीकरण: स्थानीय सरकारों के लिए एक गेम चेंजर
- 10 विकेंद्रीकृत शासन को प्रोत्साहन: छठी अनुसूची की भूमिका
- 11 नागरिक चार्टर: महत्वपूर्ण अंतराल और सुधारों की आवश्यकता
- 12 राज्यपालों की विवेकाधीन शक्तियां
- 13 विशेष श्रेणी के राज्य: अतिरिक्त वित्त की मांग
- 14 भारत में सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने में राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों का महत्व
- 15 पंचायती राज संस्थानों का वित्तीय सशक्तीकरण : उपाय और चुनौतियां
- 16 संविधान की 9वीं अनुसूचीः न्यायिक समीक्षा से संरक्षण
- 17 भारत में स्थानीय स्वशासन
- 18 न्यायिक बहुसंख्यकवाद एवं इससे संबंधित मुद्दे
- 19 भारत में न्यायेतर हत्याएं: मुद्दे एवं उपाय
- 20 विशेष न्यायालय: आवश्यकता एवं प्रासं गिकता
- 21 आधारभूत ढांचे का सिद्धांत
- 22 राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियां
- 23 सिविल सेवा क्षमता निर्माण