न्यायिक बहुसंख्यकवाद एवं इससे संबंधित मुद्दे
जनवरी 2023 में विवेक नारायण शर्मा बनाम भारत संघ वाद के अपने निर्णय में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने 4-1 के बहुमत से केंद्र सरकार के 2016 के विमुद्रीकरण के फैसले को बरकरार रखा था।
- जस्टिस बी- वी- नागरत्ना इस मामले में असहमतिपूर्ण निर्णय देने वाली एकमात्र न्यायाधीश थीं, जिन्होंने आरबीआई की संस्थागत निष्क्रिय स्वीकृति पर प्रश्न-चिह्न उठाया था।
- इस फैसले ने एक बार पुनः न्यायिक निर्णय लेने में संख्यात्मक बहुमत की तर्कसंगतता के संबंध में बहस शुरू कर दी।
- ऐसा दावा किया जाता है कि न्यायालयों द्वारा न्यायिक निर्णयों में संख्यात्मक बहुमत को दिए गए महत्व से अक्सर असहमति वाले निर्णयों ....
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मुख्य विशेष
- 1 डिजिटल स्थानीय शासन और ई-पंचायत
- 2 न्यायिक सक्रियता बनाम न्यायिक संयम
- 3 भारतीय संघवाद के समक्ष नवीन चुनौतियां
- 4 भुलाए जाने का अधिकार
- 5 समान नागरिक संहिता: आवश्यकता एवं औचित्य
- 6 सील्ड कवर डॉक्ट्रिन: गोपनीयता बनाम न्यायिक पारदर्शिता
- 7 वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र: महत्व एवं सीमाएं
- 8 कानूनों का पूर्वव्यापी प्रभाव से लागू होना
- 9 भारत के आपराधिक कानून में बदलाव: आपराधिक न्याय प्रणाली पर प्रभाव
- 10 डिजिटलीकरण: स्थानीय सरकारों के लिए एक गेम चेंजर
- 11 विकेंद्रीकृत शासन को प्रोत्साहन: छठी अनुसूची की भूमिका
- 12 नागरिक चार्टर: महत्वपूर्ण अंतराल और सुधारों की आवश्यकता
- 13 राज्यपालों की विवेकाधीन शक्तियां
- 14 विशेष श्रेणी के राज्य: अतिरिक्त वित्त की मांग
- 15 भारत में सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने में राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों का महत्व
- 16 पंचायती राज संस्थानों का वित्तीय सशक्तीकरण : उपाय और चुनौतियां
- 17 संविधान की 9वीं अनुसूचीः न्यायिक समीक्षा से संरक्षण
- 18 भारत में स्थानीय स्वशासन
- 19 भारत में न्यायेतर हत्याएं: मुद्दे एवं उपाय
- 20 विशेष न्यायालय: आवश्यकता एवं प्रासं गिकता
- 21 आधारभूत ढांचे का सिद्धांत
- 22 राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियां
- 23 सिविल सेवा क्षमता निर्माण