Question : दैवी अनुभूति एवं रहस्यात्मक अनुभूति में भेद।
(2007)
Answer : आम धारणा यह है कि रहस्यात्मक अनुभूति और दैवी अनुभूति एक ही है अर्थात् रहस्यवाद धार्मिक मनोदशा है। इसे ही कुछ व्यक्ति रहस्यात्मक अनुभूति एवं कुछ व्यक्ति दैवी अनुभूति कहते हैं। अतः ये विचारक रहस्यवादियों को अनिवार्यतः धर्म परायण व्यक्ति मानते हैं। उनकी मान्यता का एक महत्वपूर्ण कारण यह है कि सभी देशों में अधिकतर रहस्यवादी किसी न किसी धर्म के अनुयायी अवश्य रहे हैं और उन्होंने अपने रहस्यात्मक अनुभव की व्याख्या अपने-अपने धर्म के ....
Question : ईश्वरीय उद्घाटन की अवधारणा की व्याख्या कीजिए। क्या ईश्वरीय उद्घाटन को संपुष्टि की आवश्यकता है? विचार कीजिए एवं साथ ही ईश्वरीय उद्घाटन एवं श्रुति के बीच भेद-अभेद की व्याख्या कीजिए।
(2006)
Answer : धार्मिक ज्ञान का संबंध धर्म और धर्मपरायण व्यक्ति से है। ईश्वर, आत्मा, मोक्ष, भक्ति, प्रार्थना, कर्मकांड इत्यादि से संबंधित ज्ञान की प्रायः धार्मिक ज्ञान की संज्ञा दी जाती है। धार्मिक ज्ञान का स्रोत्र धार्मिक ग्रंथ, साधु संत, रहस्यानुभूति, दैवी प्रकाशना एवं तर्क बुद्धि है।
तर्कबुद्धि इच्छा, कल्पना, संवेग आदि से भिन्न मनुष्य के अंतः स्थित वह विवेक शक्ति या विचार शक्ति है, जिसके द्वारा वह जीवन और जगत को जानने का प्रयास करता है। धार्मिक ज्ञान ....
Question : धार्मिक विश्वास तत्वतः अमिथ्यीकृत अभिग्रहों का संघटन है जो व्यक्ति की अन्य सभी मान्यताओं का संचालन करता है आरएम हेयर।
(2006)
Answer : आरएम हेयर तथ्यात्मक सार्थकता की कसौटी के रूप में मिथ्यापनीयता सिद्धांत का पूर्णतः समर्थन करते हैं, अर्थात् हेयर केवल उन्हीं कथनों को तथ्यात्मक दृष्टि से सार्थक मानते हैं जो मिथ्यापनीय हो। अपनी इसी मान्यता के आधार पर उन्होंने धार्मिक कथनों की सार्थकता की समस्या का समाधान करने का प्रयास किया है। हेयर ने इस उद्देश्य से एक नवीन सिद्धांत का प्रतिपादन किया है, जिसे ब्लिक सिद्धांत कहा जाता है।
ब्लिक शब्द से तात्पर्य है जीवन तथा ....