Question : उन्नीसवीं शताब्दी में खड़ी बोली का विकास
(2007)
Answer : 19वीं शताब्दी में खड़ी बोली के विकास को दो खंडों में बांटा जा सकता है- पूर्व हरिश्चन्द्र काल और हरिश्चन्द्र काल। पूर्व हरिश्चन्द्र काल में खड़ी बोली के विकास की दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण घटना 1800 ई- में कोलकाता में फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना है। इस कॉलेज से जुड़े अनेक व्यक्तियों ने हिन्दी के विकास में सराहनीय योगदान किया।
इस कार्य में इंशा अल्ला खां, लल्लू लाल, सदल मिश्र तथा सदासुख लाल का योगदान अविस्मरणीय ....
Question : उन्नीसवीं शताब्दी में नागरी लिपि के विकास पर प्रकाश डालिए।
(2007)
Answer : देवनागरी लिपि का विकास के संबंध में जो प्रमाण उपलब्ध हैं। उसके आधार पर ‘ब्राह्मी लिपि’ से ‘देवनागरी’ का विकास माना जाता है। भारत की प्राचीन लिपियों में सिंधु लिपि, खरोष्ठी लिपि और ब्राह्मी लिपि प्रसिद्ध है। सिन्धु लिपि कुछ चित्रक्षर थी और कुछ ध्वनयाक्षर थी। सन् 400 ई. पू. से पहले इसका प्रयोग भारत के उत्तर-पश्चिम भागों में होता था।
खरोष्ठी लिपि का प्रचलन उत्तर-पश्चिम भारत में एक हजार वर्ष तक रहा। यह दाहिने से ....
Question : भारतेंदु-युग में खड़ी बोली का स्वरूप।
(2006)
Answer : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के मतानुसार हिन्दी गद्य का परिष्कृत रूप आरंभ में भारतेंदु हरिश्चन्द्र की हरिश्चन्द्र पत्रिका (1873 ई) में प्रकट हुआ। भारतेंदु ने कई नाटक कहानियां, निबंध आदि की रचना की। नाटकों में पद की भाषा तो ब्रज है और गद्य में ब्रज मिश्रित खड़ी बोली है, जो धीरे-धीरे व्यावहारिक खड़ी बोली बनती गई।
उनका उपन्यास पूर्ण प्रकाश और चन्द्रप्रभा मराठी उपन्यास का खड़ी बोली में अनुवाद है। उन्होंने अनेक अनुदित और मौलिक कहानियां भी ....