Question : अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का शायद ही कोई ऐसा अभिकरण होगा जो अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आई. एल. ओ.) के मुकाबले में मानवता के कल्याण को पोषित करने में ज्यादा सफल रहा है। उपरोक्त कथन के प्रकाश में, आई. एल. ओ. के संगठन एवं कार्यकलापों पर चर्चा कीजिए।
(2006)
Answer : अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन सामाजिक न्याय तथा मानवीय और श्रम अधिकारों को बढ़ावा देता है। यह पूरे विश्व में मजदूरों के रहने और काम करने की स्थितियों को सुधारने का प्रयास करता है। अपनी श्रेष्ठ सेवाओं के कारण को अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन को 1969 में इसकी पचासवीं वर्षगांठ के अवसर पर नोबेल शांति पुरस्कार प्रदान किया गया। आई. एल. ओ. आर्थिक और सामाजिक परिषद् से जुड़ा हुआ है तथा उसका प्रधान कार्यालय जेनेवा में है। कार्यालय का मुख्य अधिकारी महानिदेशक होता है। 1919 में राष्ट्र संघ की स्थापना के साथ स्थापित यह संगठन 1946 में संयुक्त राष्ट्र की पहली विशिष्ट एजेंसी बन गया।
आई. एल. ओ. की एक प्रमुख संस्था, त्रिपक्षीय अंतर्राष्ट्रीय श्रम सम्मेलन जिसमें सरकार, मालिकों और श्रमिकों के प्रतिनिधि होते हैं ने, समझौतों और सिफरिशों की श्रृंखला के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय मानक निर्धारित किये हैं। इसके द्वारा कुल मिलाकर 183 कन्वेंश्नों (समझौतों) और 191 सिफारिशों का अनुमोदन किया जा चुका है। इनमें से अनेक तो श्रमिक प्रशासन, औद्योगिक संबंध रोजगार नीति, काम की स्थितियों, सामाजिक सुरक्षा, व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य से जुड़ी हैं और अन्य महिलाओं के रोजगार, बाल रोजगार तथा प्रवासी मजदूरों और विकलांगों के रोजगार जैसे मुद्दों के बारे में हैं। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने अनेक महत्वपूर्ण समझौते लागू किये हैं-
Question : प्रादेशिक सहयोग के दक्षिण एशियाई संघ (सार्क) की स्थापना ने दक्षिण एशिया के राज्यों के बीच पारस्परिक सहयोग के द्वार खोल दिए हैं। इस कथन के प्रकाश में, दक्षिण एशियाई प्रदेश में भारत की भूमिका का परीक्षण कीजिए।
(2006)
Answer : दक्षिण एशिया के राज्यों में परस्पर सहयोग के लिए दिसंबर 1985 में सार्क की स्थापना की गयी। जिसका मुख्य उद्देश्य इसके सदस्यों भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, श्रीलंका और मालदीव के बीच क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग पैदा करना था। यह एसियान के आधार पर ही तैयार किया गया तथा अपने सदस्य राष्ट्रों के बीच आर्थिक तथा सांस्कृतिक सहयोग की संस्था के लिए एक एजेन्सी के रूप में कार्य करने के लिए बनाया गया है। इसका उद्देश्य विकास के लिए क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग देना है।
दक्षिण एशिया के राष्ट्रों के बीच यह विश्वास प्रगाढ़ होता जा रहा है कि इस क्षेत्र का विकास, शांति व सुरक्षा पर निर्भर है। इस कार्य के लिए राष्ट्रों के मध्य परस्पर सहयोग, सौहार्द एवं भाईचारे की भावना को और अधिक विकसित किए जाने की गुंजाइश है। दक्षिण-एशिया, भू-राजनैतिक दृष्टि से प्रचुर खनिज संपदा के कारण विश्व राजनीति को प्रभावित करने वाला महत्वपूर्ण कारक रहा है। दक्षिण एशियाई राष्ट्रों में बढ़ती हुई जनसंख्या की समस्या, आर्थिक एवं राजनीतिक क्षेत्र में अपने-अपने हितों के अनुरूप स्थायित्व एवं विकास की समस्या, बेरोजगारी की समस्या, मानवीय एवं प्राकृतिक संसाधनों के समुचित उपयोग की समस्या आदि ऐसी अनेक समस्याएं हैं, जिनके समाधान के लिए दक्षिण-एशिया के देश परस्पर एक दूसरे पर आश्रित हैं। दक्षेस के कारण दक्षिण-एशिया ने पुनः एक क्षेत्रीय पहचान प्राप्त की है। इस प्रकार प्रादेशिक सहयोग के लिए सार्क की स्थापना ने दक्षिण के राज्यों के बीच पारस्परिक सहयोग के द्वार खोल दिए हैं।
दक्षिण एशिया विविधताओं में एकता वाला क्षेत्र है। भारत इस क्षेत्र का सबसे विशाल देश है, जिसकी सीमाएं भी शेष सभी राष्ट्रों से मिलती है। भारत इस क्षेत्र की 73.2% जनसंख्या का स्वामी है। औद्योगिक विकास की दृष्टि से जहां भारत विश्व के प्रथम आठ देशों में एक है, वहां इस क्षेत्र में ऐसे चार देश मालदीव, बांग्लादेश, नेपाल तथा भूटान हैं, जो विश्व के अल्प विकसित देशों की श्रेणी में आते हैं। भारत का सकल राष्ट्रीय उत्पाद अन्य सभी देशों के कुल उत्पादन से तीन गुणा अधिक है। राजनैतिक प्रणाली की दृष्टि से भारत संसदात्मक और आध्यात्मिक प्रजातंत्र है।
इस प्रकार भारत की भूमिका दक्षिण एशिया में अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है। यदि दक्षिण एशिया को एक परिवार मान लिया जाए तो इसमें भारत की भूमिका बड़े भाई की हो जाती है। अतः स्पष्ट है कि इससे भारत की जिम्मेदारियां अत्यंत बढ़ जाती हैं। भारत को इस क्षेत्र के राष्ट्रों के बीच परस्पर विश्वास का वातावरण निर्मित करने में मदद मिली है। श्रीलंका में तमिल समस्या के समाधान हेतु भारत के प्रयास तथा मालदीव के सत्ता पलट के विरूद्ध भारतीय मदद ने जहां एक ओर भारत की शक्ति एवं क्षमता को उजागर किया, वहीं दूसरी ओर इस विश्वास को मजबूती प्रदान की कि दक्षेस सम्पूर्ण एशियाई राष्ट्रों की आकांक्षाओं एवं इच्छाओं का प्रतिनिधित्व करता है।
एक ओर जहां भारत के संबंध अपने पड़ोसियों पाक व बांग्लादेश से बनते-बिगड़ते रहते हैं, वहीं अन्य पड़ोसियों के साथ उसके संबंध मधुर हैं। दिक्षण एशिया को सार्क के रूप में एक ऐसा मंच मिला है, जहां पर मिल बैठकर सभी सदस्य देश अपने गिले-शिकवे दूर कर सकते हैं। वहीं भारत ने सार्क की सफलता हेतु अनेक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। दक्षेस देशों में गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम हेतु एक कोश बनाने का प्रस्ताव भारत ने रखा है, जिसमें वह 10 करोड़ डालर का अनुदान देने को तैयार है। यह कोष भारत को छोड़कर अन्य देशों पर खर्च किया जाएगा।
संयुक्त राष्ट्र ने 2015 तक विकास लक्ष्य प्राप्त करने का कार्यक्रम रखा है, किंतु भारत दक्षेस देशों के लिए इसे 2010 तक पूरा करना चाहता है। दक्षेश देशों के बीच रेल, सड़क, वायु एवं जलमार्ग परिवहन व्यवस्था मजबूत करने के लिए एक कार्य दल के गठन का प्रस्ताव रखा है। भारत इसके लिए पूरा योगदान करेगा। सूचना प्रौद्योगिकी, जैव तकनीकी एवं विज्ञान के क्षेत्र में भारत अनुभव एवं ज्ञान दक्षेस देशों के साथ बांटने को तैयार है।