Question : कारगिल युद्ध के बाद से भारत-पाकिस्तान शान्ति प्रक्रिया की प्रगति की समालोचनात्मक समीक्षा कीजिए।
(2007)
Answer : कुलदीप नैय्यर के अनुसार आज भी भारत और पाकिस्तान दूर के पड़ोसी है।
पाकिस्तानी प्रेस भारत विरोधी प्रचार में निरंतर लगा रहता है। द्विपक्षीय मुद्दों को पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मंच पर उछालता रहता है और अमेरिका से सैनिक सामान घातक एफ-16 विमान, हार्कून नामक जहाज आदि खरीद रहा है। इन दिनों लद्दाख क्षेत्र में सियाचिन ग्लेशियर के मामले को लेकर चलने वाला संघर्ष भी दोनों ओर कटुता को ही बढ़ावा दे रहा है। पिछले 4-5 वर्षों में इस विवाद को लेकर दोनों देशों की सेनाओं के बीच भी कई छोटी-बड़ी झड़पे हो चुकी हैं। भारत में अस्थिरता पैदा करने के लिए पाकिस्तान जम्मू कश्मीर के आतंकवादियों को प्रेरणा, सहायता और प्रशिक्षण दे रहा है। इन्हीं सब परिस्थितियों में मई 1999 में जम्मू कश्मीर के करगिल क्षेत्र में घुसपैठिये भेजकर पाकिस्तान ने नियंत्रण रेखा का उल्लंघन किया। इन घुसपैठियों ने पूर्व निर्धारित योजना के तहत 21 मई को हमला करते हुए भारतीय सेना के आयुध भंडार को क्षतिग्रस्त कर दिया तथा क्षेत्र के विभिन्न स्थानों पर अपना अधिकार जमा लिया। भारतीय सेना ने 434 किमी. लंबे श्रीनगर-लेह राष्ट्रीय राजमार्ग का संपर्क तोड़ने के इन घुसपैठियों के प्रयास को विफल कर दिया। भारतीय क्षेत्र से सेना समर्पित घुसपैठिए हटाने एवं नियंत्रण रेखा का सम्मान करने के लिए पाकिस्तान पर जबरदस्त अंतरराष्ट्रीय दबाव पड़ने लगा। पाकिस्तान के निकटतम मित्र, संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन भी सहमत थे कि पाकिस्तानी सेना के जवान तथा उस देश के द्वारा प्रशिक्षित भाड़े के सशस्त्र घुसपैठिए अवैध रूप से नियंत्रण रेखा पार करके भारतीय क्षेत्र की चोटियों पर कब्जा जमा कर बैठे थे। पाकिस्तान पर इस बात के लिए दबाव डाला गया कि वह आना अवैध कब्जा खाली करे तथा आक्रमण समाप्त करे। सभी प्रमुख देशों ने पाकिस्तान से कहा कि वह नियंत्रण रेखा की मान्यता और वैधता स्वीकार करे। पाकिस्तान उस समय तक स्वतंत्रता सेनानियों का राग अलापता रहा जब तक कि अमेरिकी राष्ट्रपति ने उससे दो टूक शब्दों में यह नहीं कह दिया कि उसको अपने सैनिक एवं घुसपैठिए तुरंत वापस बुलाने होंगे। पिछले 50 वर्षों में यह पहला अवसर था जबकि यूएस ने भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रश्न पर उसे पूर्ण समर्थन दिया था। भारतीय सेना की भारी सफलता और जबरदस्त अंतरराष्ट्रीय दबाव के चलते पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाजशरीफ ने 5 जुलाई, 1999 को अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन को आश्वासन दिया कि वे भारतीय भूमि से पाकिस्तानी सैनिकों और मुजाहिदीन को वापस बुला लेंगे तथा नियंत्रण रेखा का पूरी तरह से सम्मान करेंगे एक नाटकीय घटनाक्रम के तहत 12 अक्टूबर, 1999 को पाकिस्तान के थल सेना अध्यक्ष परवेज मुशर्रफ ने नवाज शरीफ का तख्ता पलटकर स्वयं को देश का मुख्य अधिशासी घोषित कर दिया। मुशर्रफ का यह वक्तव्य गौर करने लायक था कि दक्षिण एशिया में कश्मीर मसले पर परमाणु हथियारों का इस्तेमाल संभव है।
24 दिसंबर, 1999 को 5 व्यक्ति इंडियन एयर लाइंस के विमान का अपहरण कर कंधार ले गये। सरकार तीन आतंकवादियों, जिसमें एक पाकिस्तानी भी था, के बदले में विमान यात्रियों और कर्मचारियों की सुरक्षित वापसी में सफल हुई। यह अपहरण अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद का सबसे घिनौना उदाहरण है। इस बात के स्पष्ट साक्ष्य है कि यह योजना पाकिस्तान तथा उन कट्टरवादी समूहों की है जो पाकिस्तान में रह रहे हैं और यह इसके कमांड तथा नियंत्रण से बाहर हैं। अपहरणकर्ताओं की पहचान करने से पता चला कि वे सभी पाकिस्तानी हैं।
प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के निमंत्रण पर भारत-पाक शिखर वार्ता के लिए पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ 14 जुलाई, 2001 को तीन दिवसीय शिखर वार्ता के लिए नई दिल्ली पहुंचे।
आगरा में संपन्न शिखर वार्ता को 16 जुलाई को तब झटका लगा जबकि घोषणापत्र पर सहमति के बिना राष्ट्रपति मुशर्रफ इस्लामाबाद रवाना हो गये। संयुक्त घोषणा पत्र में कश्मीर को मुख्य मुद्दे के रूप में शामिल करने के सवाल पर दोनों पक्षों में गतिरोध उभरकर सामने आया।
13 दिसंबर, 2001 को संसद भवन परिसर में आतंकी हमले से भारत व पाकिस्तान के संबंधों में गंभीर तनाव की स्थिति उत्पन्न हो गई। हमले में पाक समर्थित आतंकवादियों का हाथ मिलने पर भारत ने पाकिस्तान के प्रति कड़ रुख अपनाया। भारत ने पाक स्थित अपने उच्चायुक्त को वापस बुला लिया। लाहौर बस सेवा तथा समझौता एक्सप्रेस को बंद करने का निर्णय भारत सरकार ने लिया।
पाकिस्तान के साथ संबंधों को सुधारने की दिशा में पहल एक बार फिर भारत ने शुरूआत करते हुए 22 अक्टूबर, 2003 को की और 12 सूत्री नये प्रस्तावों की घोषणा की लोगों में मेलजोल बढ़ाना ही इस नये प्रस्तावों का सार था। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जमाली ने भी इसका सकारात्मक उत्तर देते हुए जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर एकतरफा युद्धविराम की घोषणा कर भारत से सकारात्मक दबाव देने की मंशा जताई। भारत ने नियंत्रण रेखा पर संघर्ष विराम की पेशकश मंजूर करते हुए सियाचिन क्षेत्र में भी संघर्ष विराम की पेशकश की। जनवरी 2004 में इस्लामाबाद में होने वाले सार्क सम्मेलन में प्रधानमंत्री वाजपेयी ने भाग लेते हुए राष्ट्रपति मुशर्रफ से मुलाकात की। इसी दौरान विदेश सचिव स्तर की वार्ता के आयोजन का फैसला लिया गया। इसी के तहत शांति प्रक्रिया के लिए बुनियादी रूपरेखा पर सहमति बनी वार्ता के महत्वपूर्ण बिंदु इस प्रकार हैं:
क्रिकेट के बहाने भारत आये (अप्रैल 2005 में) राष्ट्रपति मुशर्रफ के तेवर इस बार कुछ बदले हुए से लग रहे थे। मुशर्रफ ने तीन दिन के तूफानी दौरे में भारत के साथ कश्मीर मसले पर असहमति के बावजूद दोनों देशों के बीच विश्वास बहाली के विभिन्न उपायों को लागू करने की मंशा जताई। इस दौरान भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तथा परवेज मुशर्रफ के बीच कुछ ठोस मुद्दों पर प्रगति हुई। जिन पर दोनों देशों ने अडि़यल रुख अपना रखा था, ये मुद्दे हैं:
भारत का पाक के बीच तीसरा सड़क मार्ग 20 जनवरी, 2006 को उस समय खुल गया जब अमृतसर व लाहौर के बीच बहुप्रतीक्षित बस सेवा प्रारंभ हो गई। अमृतसर व ननकाना साहेब के बीच बस सेवा 24 मार्च, 2006 से प्रारंभ हुई। अमृतसर-ननकाना साहेब बस सेवा को प्रारंभ करके भारत व पाकिस्तान ने सीमा पार आने-जाने का यह छठा मार्ग खोला है। इसमें 4 सड़क मार्ग व 2 रेल मार्ग हैं। इससे पूर्व दिल्ली-लाहौर के मध्य सदा-ए-सरहद तथा श्रीनगर-मुजाफ्फराबाद के बीच कारवां-ए-अमन की बस सेवाएं व लाहौर-अहारी के बीच समझौता एकसप्रेस रेलगाड़ी प्रचालित है। दूसरी रेलगाड़ी थार एक्सप्रेस का परिचालन 18 फरवरी, 2006 को हुआ।
14 जुलाई, 2006 को मुंबई ट्रेन विस्फोटों, जिसमें 200 से ज्यादा लोग मारे गये, पहली बार भारत ने शांति वार्ता शुरू होने के बाद स्पष्ट संकेत दिये कि वार्ता खतरे में पड़ गई है। वस्तुतः मुशर्रफ ने 2004 के अपने इस वादे को भी पूरा नहीं किया जिसमें उन्होंने कहा था कि वे पाकिस्तान और उसकी सरजमी को भारत के खिलाफ आतंकवाद के लिए इस्तेमाल नहीं होनेदेंगे।
अब समय आ गया है कि भारत और पाकिस्तान अपने द्विपक्षीय तनावपूर्ण संबंधों को छोड़ते हुए विकास पर ध्यान केंद्रित करे। दोनों देशों को अपने शत्रुतापूर्ण संबंधों की कीमत Asean, राष्ट्रमंडल, UNSC की जैसे महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय मंचों पर चुकानी पड़ रही है। दोनों इन मंचों पर एक दूसरे की टांग खिचाई की रणनीति अपनाते हैं। आशा है कि आने वाले समय में दोनों देश इन बातों को समझते हुए युद्ध की तैयारियों में होने वाले धन का सदुपयोग लोगों के विकास की ओर उन्मुख करने का मार्ग प्रशस्त करेंगे।
Question : भारत की ‘पूर्व की ओर देखो’ नीति के लिए कौन-से अभिप्ररेण हैं?
(2007)
Answer : भारत की पूर्व की ओर देखो नीति के लिए अनेक अभिप्रकरण उत्तरदायी हैं। पूर्वी एशिया में अप्रत्याशित आर्थिक विकास देखा जा रहा है तथा इस क्षेत्र में जापान एक बड़ी आर्थिक शक्ति है। चीन जापान की आर्थिक शक्ति को चुनौती देने की ओर अग्रसर है। वर्ष 2020 तक भारतीय आर्थिक शक्ति को विश्व में तीसरे बड़ी आर्थिक शक्ति के रूप में देखे जाने के कयास लगाये जा रहे हैं, अर्थात् तीन शक्तियां एशिया क्षेत्र से होगी। ऐसी स्थिति में भारत की पूर्व की ओर देखो नीति का मुख्य आधार है। जैसे-जैसे भारतीय आर्थिक व्यवस्था विकसित होती जायेगी। जापान व चीन, भारत को बेहतर समझने का प्रयास करेंगे। भारत की पूर्व की ओर देखो नीति से यह अपेक्षित होगी कि जापान के साथ एक बेहतर संबंध स्थापित करे और चीन केंद्रित एशिया की संभावनाओं पर रोकने की क्षमता को विकसित करे।
21वीं सदी में अमेरिका के सामरिक भागीदारी के रूप में प्रशांत क्षेत्र में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका होगी तथा अमेरिका की यह अपेक्षा होगी कि भारत उसे दक्षिण एशिया में समान भूमिका को निर्वहन करने का आमंत्रण प्रदान करे। परंतु इन संभावनाओं से भारत-चीन व भारत-जापान संबंधों के बिगड़ने की आशंका हो सकती है। ऐसी स्थिति में लुक ईस्ट पालिसी से यह अपेक्षित होगा कि वह इन संभावनाओं से निपटने के लिए नये विकल्पों की तलाश करे।
भारत की पूर्व की ओर देखो नीति वस्तुतः दक्षिण-पूर्व एशिया में चीन को संतुलित करने की प्रतिक्रियात्मक नीति के रूप में देखी जाती है। इसलिए अपेक्षित है कि भारत इस क्षेत्र में नये व्यवहार प्रतिमानों की स्थापना करे तथा ऐसा भारत सैन्य शक्ति के आधार पर करने की सामर्थ्य नहीं रखता ऐसी स्थिति में भारत की कोशिश इस क्षेत्र में Soft power के रूप मैं जाने की है। Soft power के रूप में पहचाने जाने के लिए यह आवश्यक है कि भारत अपनी सांस्कृतिक गठजोड़ों के आधारों पर घनिष्ठता को स्थापित करे। दक्षिण-पूर्वी एशिया के राज्य लोकतांत्रिक प्रक्रिया का वरण कर रहे हैं तथा भारत अपनी विशेषता मुहैया कराकर इस क्षेत्र में अपनी साख में वृद्धि कर सकता है। भारत इस क्षेत्र में अंग्रेजी भाषा के प्रशिक्षण संस्थाओं तथा प्रौद्योगिकीय व प्रबंधन के संस्थाओं की स्थापना से आर्थिक व वैचारिक रूपों में लाभान्वित हो सकता है। इस क्षेत्र में भारत अपनी संस्कृति का उपयोग कर सकता है चूंकि इस क्षेत्र में भारतीय संस्कृति के अवशेष अभी भी विद्यमान हैं।