Question : ‘स्त्री-पुरूष न्याय’ किस मायने में आज एक अत्यावश्यक वैश्विक चिन्ता बन गई है?
(2007)
Answer : अंतरराष्ट्रीय राजनीति में महिलावादी दृष्टिकोण भिन्न स्तरों पर स्थापित हुआ है। इसके अंतर्गत न सिर्फ प्रचलित सैद्धांतिक मान्यताओं के पुनर्विलोकन की आवश्यकता उत्पन्न हुई, बल्कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति में वैकल्पिक अवधारणाओं का भी विकास हुआ है। महिलावादी अध्ययनों को वैसे भी शीतयुद्धोत्तर विश्व में महत्ता दी गई है। विचारधाराओं के अंत के बाद अब ध्यान राज्यों के संबंधों की अपेक्षा सामाजिक संरचनाओं पर केंद्रित है तथा इसी दिशा में अंतरराष्ट्रीय संबंधों में लैंगिक न्याय की अवधारणा स्थापित हुई है, जिसके आधार पर स्त्री-पुरुष न्याय वर्तमान समान में एक अत्यावश्यक वैश्विक चिंता बन गई है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महिलाओं की असुविधाजनक स्थितियां स्पष्ट नजर आती हैं। जहां महिलाओं के द्वारा विश्व के कुल कार्यबल का लगभग 60% भाग संपादित है, वहीं उनकी कुल आय लगभग 10% ही है तथा विश्व के कुल संपति के लगभग 1 प्रतिशत भाग पर ही उनका स्वामित्व है। यही नहीं विश्व के कुल अशिक्षितों का 60% महिलाओं का है तथा बच्चों के साथ मिलाकर विश्व के कुल शरणार्थियों का लगभग 80% भाग महिलाओं का है अर्थात विश्व निःसंदेह लैंगिक रूप से विभाजित तथा पुरुष प्रधान है। इस तर्क की पुष्टि इस बात पर आधारित है कि विकास के मानकों जैसे जीडीपी तथा जीएनपी इत्यादि में न तो महिलाओं के योगदान को सम्मिलित किया जाता है तथा न ही यह महिलाओं की असमान स्थिति को स्पष्ट करते हैं। इन सभी तथ्यों के आलोक में अंतरराष्ट्री राजनीति में महिलावादी उपागम का विकास हुआ तथा नयी सैद्धांतिक अवधारणाओं की स्थापना हुई है, जिन्हें विदेश नीति निर्णय तथा आकलन में शामिल भी किया जा रहा है। इसी के तहत जेंडर लेंस की अवधारणा का भी प्रयोग किया जा रहा है जिसके अंतर्गत सभी समाज विज्ञानों में समाज के सभी संरचनाओं को अलग-अलग विभागों में बांटकर महिलावादी दृष्टिकोण से देखा गया है। वैश्वीकरण के अंतर्गत एक यथार्थवादी अध्ययन के लिए इसकी महत्ता बढ़ी है।
Question : राजनीति प्रणाली के इनपुट-आउटपुट प्रकार्य।
(2006)
Answer : राजनीतिक प्रणाली पदक्रम अपने अनुभाविक आयामों में सरकार के अध्ययन की ओर निर्देश करता है। इस प्रकार दृढ़ रूप में यह अंतः शास्त्रीय उपागम है। इस प्रकार राजनीतिक प्रणाली उन अंतः संबंधित चरों का समुच्चय बन जाती है, जो राजनीतिक दृष्टि से सार्थक समझे जाते हैं। आगत-निर्गत विश्लेषण में इस बात की पूर्ण कल्पना कर ली जाती है कि इसमें अंतः क्रियात्मक भूमिकाएं हैं, संरचनाएं हैं एवं उपव्यवस्थाएं हैं। इसमें एक ऐसी प्रक्रिया निहित है, जिसके बारे में यह कहा जा सकता है कि इसमें पर्यावरण से आगत आते हैं और व्यवस्था के भीतर इन आगतों का रूपांतरण और पर्यावरण में निर्गत के रूप में उनका उत्पादन होता है। निर्गतों से पर्यावरण में परिवर्तन आ सकते हैं, जो अपने क्रमानुसार राजनीतिक व्यवस्था को प्रभावित कर सकते हैं। राजनीति विज्ञान में आगत-निर्गत विश्लेषण सिद्धान्त का विस्तृत विवेचन डेविड ईस्टन व गैब्रील ए. आमंड की रचनाओं में पूर्ण रूप से देखने को मिलता है। आगत निर्गत विश्लेषण की सामान्य विशेषताओं को संक्षेप में निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-