Question : चीन-भारत सीमा विवाद के उद्भव, विस्तार और विपदाओं पर एक निबंध लिखिए।
(2004)
Answer : भारत और चीन के बीच की सीमा मैकमोहन रेखा द्वारा निर्धारित है जो 1914 में शिमला में एक त्रिदलीय सम्मेलन में भारत (ब्रिटिश) चीन तथा तिब्बत (स्वतंत्र) के बीच निर्धारित की गयी थी। धरातल उबड़-खाबड़ होने के कारण सीमा निर्धारण मानचित्र पर ही हुआ था।
1914 की संधि के तहत तिब्बत के ऊपर ब्रिटिश भारत अपने अधिकार का इस्तेमाल करती थी। परन्तु भारत के स्वतंत्र होने के बाद एवं 1949 में चीन में साम्यवादी शासन के बाद भारत-चीन मैत्रीपूर्ण संबंधों की ओर बढ़ने लगे जिसके तहत 1954 में ही भारत ने एक संधि के तहत तिब्बत के ऊपर अपना दावा छोड़ दिया। इस तरह से भारत ने तिब्बत के ऊपर चीन की संप्रभुता को स्वीकार कर लिया।
भारत के इस मैत्रीपूर्ण रवैये के दूरगामी परिणाम निकले। पूरे हिमालयी सीमान्त के भू-राजनीतिक स्थिति में परिर्वतन आ गया। तिब्बत के एक बफर क्षेत्र के रूप में काम करने का गुण समाप्त हो गया तथा भारत को एक शक्तिशाली एवं अक्रामक नीति वाले साम्यवादी चीन का प्रत्यक्षतः सामाना करना पड़ा।
अपनी साम्राज्यवादी लिप्सा के तहत तथा भारत को तिब्बत में कथित दखलंदाजी के लिए सबक सिखाने के उद्देश्य से चीन ने सीमा-रेखा को मानने से इन्कार करना शुरू कर दिया। भारत-चीन सीमा निम्न तीन भागों में विभक्त हैः
(1) तिब्बत सीमाः यह सीमा जम्मू-कश्मीर से लेकर सिकियांग और तिब्बत तक विस्तृत है। यह सीमा 1665 और 1684 के लद्दाख-तिब्बत संधि द्वारा परिभाषित की गई थी तथा 1842 में कश्मीर, तिब्बत और चीन के बीच लद्दाख-डोगरा समझौता द्वारा अनुमोदित की गई। अब चीन इस 1842 के समझौते को मानने से इन्कार करता है। 1954 से ही चीन इस सीमा के अन्दर घुसपैठ करता आ रहा है तथा अक्साई चीन और लद्दाख के लगभग 54,000 वर्ग किमी. वर्ग भूमि पर चीन ने अवैध कब्जा कर रखा है।
(2) मध्यवर्ती सीमा क्षेत्रः यह सीमा लद्दाख से नेपाल तक जल विभाजक के सहारे विस्तृत है जो परम्परा और रिवाज के अनुसार लगभग मान्यता प्राप्त कर चुकी है, हालांकि इस क्षेत्र के कुछ भागों पर चीन अपना दावा जताता है।
(3) पूर्वी सीमा क्षेत्रः यह परम्परागत सीमा है जो भूटान के पूर्व से आरम्भ होकर चीन, म्यांमार और भारत के त्रि-संयुक्त बिन्दु तक जाती है। चीन इस सीमा क्षेत्र की मैकमोहन रेखा को अमान्य करार देता है।
इन सीमा विवादों की विवक्षाओं में सबसे महत्वपूर्ण है- अक्टूबर 1962 में चीन द्वारा आक्रमण। इस युद्ध से भारत की गरिमा को काफी ठेस पहुंची तथा चीन ने अरूणाचल प्रदेश के एक बड़े भू-भाग पर अधिकार कर किया जो कोलंबो समझौते के बाद कुछ हद तक ठीक हो सका।
1962 के युद्ध से कई सबक सीखे गये। अपनी सुरक्षा के प्रति हमें स्वयं सजग रहना होगा जिसके लिए एक शक्तिशाली सैन्य शक्ति की भी आवश्यकता है। इस युद्ध से ये मिथक भी टूटा कि हिमालय एक प्रभावशाली सुरक्षा अवरोध है।
भारत-चीन सीमा के तीन भागों में से पश्चिमी भाग भू-राजनीतिक दृष्टिकोण से चीन के लिए ज्यादा महत्वपूर्ण है। ये कहा जाता है कि मध्य एवं पूर्वी भाग पर विवाद चीन ने पश्चिमी सीमा-विवाद पर लाभ उठाने के लिए किया हुआ है।
Question : हिंद महासागर की भू-राजनीति में भारत की भूमिका का आकलन कीजिए।
(2003)
Answer : हिन्द महासागर की भू-राजनीति में भारत की अत्यंत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इस महासागर की सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक गतिविधियां सभ्यता के प्रारंभिक काल से ही भारतीय उपमहाद्वीप से जुड़ी हुई हैं।
हिन्द महासागर की कुल तट रेखा का 12.5 प्रतिशत भारतीय तट रेखा है। इसके तट पर 46 देश स्थित हैं, लेकिन आकृति की दृष्टिकोण से आस्ट्रेलिया के बाद एवं जनसंख्या की दृष्टि से प्रथम स्थान आता है। इस महासागर के तटीय देशों की कुल जनसंख्या का 50 प्रतिशत से भी अधिक भाग यहां पर पाया जाता है। अन्य कई कारणों से भी हिन्द महासागर की भू-राजनीति भारत के साथ जुड़ी है। जैसे -
अतः स्पष्ट है कि हिन्द महासागर से संबंधित कोई भी भू-सामरिक नीति भारत की सहभागिता के बिना संभव नहीं हो सकती है।
Question : भारत की थल सीमाओं के भूराजनीतिक महत्व का विवेचन कीजिए।
(2001)
Answer : भारत के स्थलीय सीमा की कुल लंबाई 15,200 किलोमीटर है। यह सीमा मैदानी, दलदली, मरुस्थलीय एवं पर्वतीय क्षेत्रों से होकर गुजरती है। भू-राजनीतिक दृष्टि से संपूर्ण विश्व में भारत की स्थिति काफी महत्वपूर्ण है। मेकाइण्डर के हृदय स्थल सिद्धांत में सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण आंतरिक अर्द्ध-चंद्राकार क्षेत्र में भारत की स्थिति से इस तथ्य की पुष्टि होती है। मेकाइण्डर के आधार क्षेत्र एवं आंतरिक अर्द्ध-चंद्राकार क्षेत्र की सीमा भारत के जम्मू-कश्मीर की सीमा के निकट से गुजरती है, जो इसके भू-राजनीतिक महत्व का परिचायक है। स्पाइक्समैन ने भारत को सामरिक दृष्टि से सर्वाधिक महत्वपूर्ण आंतरिक अर्द्ध-चंद्रकार क्षेत्र में रखा है। भारत के जम्मू-कश्मीर की सीमा पाकिस्तान, अफगानिस्तान एवं चीन की सीमा से मिलती है तथा भूतपूर्व सोवियत संघ की सीमा भी इसके निकट से गुजरती है। ये सीमाएं पर्वतीय क्षेत्रों से होकर गुजरने के कारण और भी महत्वपूर्ण हो जाती हैं। कोई भी देश इस क्षेत्र पर अधिकार कर अपनी सामरिक स्थिति को मजबूत कर सकता है। निर्जन सियाचीन ग्लेशियर पर अधिकार को लेकर भारत एवं पाकिस्तान के मध्य विवाद से इस तथ्य की पुष्टि होती है। भारत के जम्मू-कश्मीर की अंतर्राष्ट्रीय सीमा के निकट से ही चीन को मध्य एशिया से जोड़ने वाला सड़क मार्ग गुजरता है। इसके माध्यम से चीन पश्चिम एशिया से आर्थिक एवं सामरिक संबंध कायम कर सकता है। चीन के परमाणु परीक्षण केन्द्र लोप नोर को जोड़ने वाला मार्ग भी भारत के जम्मू-कश्मीर की सीमा के निकट से होकर गुजरता है।
मेकाइण्डर के हृदय स्थल एवं परिधि प्रदेश के समुद्र तटीय राज्यों के बीच अतीत में कई संघर्ष हुए हैं। द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात यूरोपीय महाशक्तियों की सामरिक राजनीति का नेतृत्व संयुक्त राज्य अमेरिका के पास आ जाने के फलस्वरूप यह संघर्ष और भी अधिक प्रखर हो गया है। इस संदर्भ में अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में भारत का महत्व बहुत बढ़ गया है। देश की महत्वपूर्ण भौगोलिक स्थिति के कारण सामरिक दृष्टि से भारत की भूमिका इस द्विध्रुवीय संघर्ष में निर्णायक महत्व की थी। अतः सोवियत संघ तथा संयुक्त राज्य अमेरिका दोनों ही भारत को अपने पक्ष में रखने तथा उसे अपने विरोधी पक्ष के दायरे में जाने से रोकने को इच्छुक थे। नीचे दिये गये चित्र को देखने से स्पष्ट है कि हृदय स्थल को तीन ओर से घेरे हुए परिधि प्रदेश में भारत की स्थिति किसी मेहराब की चाबी के समान है, जिसके ऊपर पूरे मेहराब का संतुलन निर्भर है। वर्तमान समय में सोवियत संघ का विघटन हो चुका है। आर्थिक दृष्टि से कमजोर होने के बावजूद भूतपूर्व सोवियत संघ सामरिक दृष्टि से विश्व में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। दूसरी ओर चीन हाल के वर्षों में आर्थिक एवं सामरिक दृष्टि से एक मजबूत शक्ति बनकर उभरा है। ये दोनों देश मिलकर वर्तमान एक-ध्रुवीय विश्व में संयुक्त राज्य अमेरिका को चुनौती दे सकते हैं। इन दोनों देशों की सीमाओं से भारत की सीमाओं के मिलने या उसके निकट स्थित होने के कारण भारत की थल सीमा भू-राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हो जाती है।
भारत की स्थल सीमा पाकिस्तान, अफगानिस्तान, चीन, नेपाल, भूटान, म्यांमार तथा बंगलादेश से मिलती है। भारत की उत्तर-पश्चिमी सीमा पाकिस्तान के मिलती है। इस क्षेत्र में जम्मू-कश्मीर पर अधिकार को लेकर भारत एवं पाकिस्तान के मध्य तीन युद्ध हो चुके हैं। वर्तमान समय में दोनों देश नाभिकीय शस्त्रें से लैस हैं। अतः विद्वानों की दृष्टि में भारत एवं पाकिस्तान की यह सीमा सामरिक दृष्टि से काफी संवेदनशील है। पाकिस्तान द्वारा न केवल सीमावर्ती क्षेत्र में आतंकवादियों के प्रशिक्षण केन्द्र खोले गये हैं बल्कि भाड़े के विदेशी आतंकवादियों को इसी सीमा के माध्यम से भारत में भेजा जा रहा है। भारत एवं चीन के बीच की सीमा विश्व के सर्वोच्च पर्वतीय क्षेत्र से होकर गुजरती है। पर्वतीय सीमाएं सामान्यः विवादरहित होती हैं। परंतु सीमा विवाद को लेकर भारत एवं चीन के बीच 1962 में युद्ध हो चुका है एवं विवाद अभी तक कायम है। इस विवाद का मुख्य कारण यह है कि भारत एवं चीन के बीच की सीमा का निर्धारण परंपरा, संधि एवं व्यवहार पर आधारित है। वास्तविक अर्थों में धरातल पर सीमा निर्धारण का कार्य नहीं हुआ है। हिमालय की भौगोलिक जटिलता के कारण विवाद की समस्या उत्पन्न हुई है। सीमा निर्धारण का कार्य जल विभाजक के शीर्ष एवं प्रजातीय आधार पर किया गया है। चीन, तिब्बत एवं ब्रिटेन के साथ किये गये समझौते को वर्तमान समय में मानने को अनिच्छुक है। भारत एवं म्यांमार में मध्य की सीमा मादक पदार्थों एवं हथियारों की तस्करी के लिए बदनाम है। भारत एवं बंगलादेश के मध्य सीमा विवाद की समस्या मात्र 6-5 किलोमीटर की सीमा में ही है। इसके अलावा 42 किलोमीटर तथाकथित एन्कलेव को लेकर भी विवाद है। कुल मिलकार 162 ऐसे अंतःक्षेत्र हैं जिन पर हक तो एक देश का है, परंतु फिलहाल कब्जा दूसरे देश का है। हाल ही में मेघालय के पिरदीवाह एवं असम के बोराइबाड़ी क्षेत्र में भारत एवं बंगलादेश के सैनिकों के मध्य झड़पें हुईं। अतः स्पष्ट है कि विभिन्न देशों के साथ मिलती हुई भारत की अंतर्राष्ट्रीय थल सीमा भू-राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
Question : हिन्द महासागर क्षेत्र की भू-राजनीति में भारत की भूमिका का विश्लेषण कीजिए।
(2000)
Answer : हिन्द महासागर ही ऐसा एकमात्र महासागर है, जिसका नामकरण नाम के आधार पर हुआ है। यह अपने आप दर्शाता है कि इस प्रदेश में प्राचीन काल से ही भारत की प्रभावशाली भूमिका रही है। विभिन्न भू-राजनैतिक, ऐतिहासिक तथा सामाजिक-आर्थिक परिप्रेक्ष्य में भारत को हिन्द महासागर क्षेत्र में एक महती भूमिका निभानी है।
हिन्द महासागर क्षेत्र में भारत की भूमिका निम्न तथ्यों के संदर्भ में महत्वपूर्ण हो जाती हैः
उपरोक्त वर्णित तथ्यों के संदर्भ में यह भारत के हित में है कि हिन्द महासागर में शान्ति बनी रहे। परंतु हिन्द महासागर क्षेत्र निरन्तर संघर्ष का क्षेत्र रहा है। इसका प्रमुख कारण रहा है- क्षेत्र के ऐतिहासिक कारकों के साथ सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक विकास का निम्न स्तर। इस क्षेत्र में बहुत से युद्ध लड़े गये हैं, उदाहरणस्वरुप- अरब-इजरायल युद्ध, भारत-पाकिस्तान युद्ध, ईरान-इराक युद्ध, 1991 का खाड़ी युद्ध तथा अमरीका द्वारा हाल में इराक पर किया गया आक्रमण। इन युद्धों ने इस क्षेत्र में बड़ी शक्तियों खासकर अमरीका के हस्तेक्षेप को आमंत्रित किया है।
विश्व युद्ध के बाद के समय में हिन्द महासागर क्षेत्र बड़ी शक्तियों खासकर संयुक्त राज्य अमेरिका तथा भूतपूर्व सोवियत संघ के बीच बढ़ती वैमनस्य का गवाह रहा है। इस वैमनस्य का आधार साम्यवाद के पर काटना (जिसे डोमिनो संकल्पना भी कहा जाता है) विरुद्ध पूंजीवादी विचारधारा का प्रचार-प्रचार। इसने हिन्द महासागर क्षेत्र की विस्फोटक प्रकृति में काफी योगदान दिया है।
भारत जो विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है तथा हिन्द महासागर क्षेत्र की एक प्रमुख क्षेत्रीय शक्ति है, का इस क्षेत्र के राष्ट्रों के संघर्ष के समाधान में महती भूमिका हो सकती है। हिन्द महासागर क्षेत्र के देशों की सुरक्षा के संबंध में भी भारत की भूमिका महत्वपूर्ण है। उदाहरण के लिए भारत श्रीलंका के आंतरिक संघर्ष के समाधान में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है। यहां तक कि वर्तमान में चल रहे शांति वार्ता के दोनों पक्ष-श्रीलंका की सरकार तथा लिट्टे (LTTE) दोनों ने इस द्वीपीय राष्ट्र में शांति स्थापित करने में भारत की भूमिका को पूरी तरह से मान्यता दी है।
इसी प्रकार भारतीय वायुसेना ने मालदीव को सुरक्षा देने में तुरंत कार्यवाही की, जब 1989-90 में कुछ सशस्त्र गुटों ने मालदीव की संप्रभुता पर आक्रमण कर उसे कब्जे में करना चाहा। भारतीय वायु सेना की कार्यवाही करने के कुछ समय में ही ये सशस्त्र लुटेरे वहां से भाग गए। भारत के इस भूमिका की विश्व भर में सराहना हुई। इसके अलावे भारत संयुक्त राष्ट्र के झंडे तले चलने वाले शांति मिशनों में अपने योगदान के लिए पूरे विश्व में जाना जाता है।
अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में भारत के महत्व को पहचानते हुए हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका ने भारत पर दबाव डाला कि वह (भारत) इराक की पुनर्संरचना तथा शांति की पुनर्स्थापना के लिए अपनी सेना भेजें। हालांकि भारत ने अमेरिका के इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर ठीक ही किया है तथा यह भी अंतर्राष्ट्रीय विश्व व्यवस्था में भारत की बढ़ती भूमिका एवं महत्व का परिचायक है।
हिन्द महासागर क्षेत्र की भू-राजनीति में भारत की भूमिका 11 सितंबर की घटना के बाद से और महत्वपूर्ण हो जाती है। इस क्षेत्र के कुछ देशों में आतंकवाद की जड़ें पनपी हैं जो विश्व-शांति के लिए एक गंभीर खतरा है। भारत आतंकवाद से काफी समय से जूझता आ रहा है। अतः आतंकवाद को खत्म करने में भारत के अनुभव तथा इंटेलिजेंस जानकारी से लाभ उठाया जा सकता है। आतंकवाद के खिलाफ इस वैश्विक लड़ाई में हिन्द महासागर के रास्ते जलसेना की शक्ति की भी जरुरत पड़ सकती है, जिसमें पुनः भारत की भूमिका महत्वपूर्ण है।
आर्थिक दृष्टिकोण से भी हिन्द महासागर क्षेत्र की भू-राजनीति में भारत की भूमिका महत्वपूर्ण है। हमारे देश के पास 24 लाख वर्ग किलोमीटर का अनन्य आर्थिक क्षेत्र है, जिसके संसाधनों के दोहन से देश की आर्थिक विकास की गति को बढ़ावा मिलेगा। हिन्द महासागर में बहुधात्विक गांठों का भंडार पाया जाता है जिसमें बहुत से महत्वपूर्ण खनिज जैसे निकेल, कोबाल्ट, तांबा, मैंगनीज तथा अन्य बहुत से खनिज मिलते हैं। हिन्द महासागर के इन संसाधनों पर विश्व की बड़ी ताकतों की भी नजर है। इन संसाधनों के दोहन के लिए भारत इस क्षेत्र में शांति बनाये रखना चाहता है।
इन बहुधात्विक खनिजों के अलावा मत्स्यन भी भोजन के स्रोत एवं जनता के लिए आमदनी का एक जरिया के तौर पर महत्वपूर्ण है। हिन्द महासागर में गहरी समुद्री मत्स्यन के विकास की काफी संभावनाएं हैं। इसके अलावे यह महासागर बहुत से जैविक संसाधनों का भी स्रोत है।
दूसरी तरफ हिन्द महासागर नवीनीकरण योग्य ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोत भी प्रदान कर सकता है। इन ऊर्जा स्रोतों में तरंग ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा इत्यादि शामिल हैं। इन ऊर्जा स्रोतों के दोहन के क्षेत्र में कार्य भी चल रहा है।
1982 के संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून कन्वेंशन (UNCLOS‑ III)के तहत भारत की तकनीकी एवं वैज्ञानिक प्रगति तथा हिन्द महासागर में इसकी अवस्थिति को देखते हुए भारत को विशिष्ट स्थान इस क्षेत्र में दिया गया है। भारत अकेला ऐसा विकासशील देश है जिसे अग्रणी राष्ट्र का दर्जा दिया गया है, जिसके तहत भारत हिन्द महासागर के दक्षिणी भाग में समुद्री नितल का खनन कर सकता है जैसा कि यहां दिये गये चित्र में दिखाया गया है।
भारत सूचना तकनीक के क्षेत्र में एक विश्व शक्ति बनकर उभर रहा है। हिन्द महासागरीय देश इस क्षेत्र में भारत के साथ सहयोग करने को इच्छुक हैं तथा भारत की इस प्रगति का लाभ उठाना चाहते हैं। इस तकनीकी प्रगति के कारण भी हिन्द महासागरीय क्षेत्र की भू-राजनीति में भारत का महत्व बढ़ा है। सूचना तकनीक के क्षेत्र में भारत विकसित देशों के साथ ही सहयोग कर रहा है।
भारत को हिन्द महासागरीय देशों के बीच सहयोग बढ़ाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है। इस दिशा में IORARC (Indian Ocean Rim Association for Regional Cooperation) की स्थापना 5 मार्च, 1997 को की गई है। यह क्षेत्रीय सहयोग, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार आदि बढ़ाने के लिए एशिया, अफ्रीका तथा आस्ट्रलिया के 19 सदस्य राष्ट्रों का संगठन है। इस क्षेत्र की भू-राजनीति तथा क्षेत्रीय सहयोग में इस संगठन को तथा इस संगठन के संदर्भ में भारत को प्रमुख भूमिका निभाने की जरुरत है।
हिन्द महासागरीय क्षेत्र की भू-राजनीतिक में भारत की भूमिका भारत की सैन्य शक्ति के साथ-साथ इसके आर्थिक शक्ति पर भी निर्भर करती है। भारत आज विश्व की सबसे तेज गति से वृद्धि करने वाली अर्थव्यवस्थाओं में एक है। हिन्द महासागरीय क्षेत्र में बड़ी ताकतों खासकर अमेरिका के हस्तक्षेप को रोकने एवं इस क्षेत्र को एक शांति क्षेत्र बनाने के उद्देश्य के लिए भारत को एक आर्थिक ताकत बनना होगा।
Question : हिन्द महासागर क्षेत्र के भू-राजनीतिक महत्त्व पर चर्चा कीजिये।
(1998)
Answer : हिन्द महासागर पूर्वी अफ्रीका, पश्चिमी एशिया तथा दक्षिण व दक्षिण-पूर्वी एशिया को जोड़ता है। स्वेज नहर के बन जाने से यूरोप तथा उत्तरी अफ्रीका भी इसके प्रभाव क्षेत्र में आ गये हैं। पूर्व काल में यहां की आर्थिक संभावनाओं को देखते हुए तथा तेल के भण्डारों का पता लगने पर, बड़ी ताकतों ने यहां अपने उपनिवेश बसाये। रूस तथा अमेरिका ने कई स्थानों पर अपने सैनिक अड्डे बनाये। विभिन्न सागरीय संसाधनों से ओत-प्रोत यह सागर आर्थिक झगड़ों का भी केन्द्र बन गया। इन हस्तक्षेपों के फलस्वरूप गुटनिरपेक्ष आंदोलन सक्रिय हुआ तथा इस क्षेत्र में झड़पों से बचने के लिए हिन्द महासागर को ‘शांत क्षेत्र’ घोषित करने की मांग की गयी, इस समस्या को सुलझाने के लिए ‘विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र’ (EEZ) बनाये गये।
हाल ही में यहां के देशों ने मिल कर कार्य करने हेतु ‘सार्क’व ‘हिंद महासागर तटवर्ती संघ’ जैसे व्यापार खण्डों का निर्माण किया है, परन्तु यह क्षेत्र अभी भी विस्फोटक बीज निहित किये हुए है। ईरान-इराक युद्ध, अमेरिका-इराक युद्ध, भारत-पाक तथा भारत-चीन युद्ध ने इस क्षेत्र में अशांति पैदा की है। इस क्षेत्र में तीन नाभिकीय शक्तियों के उदय ने विश्व में हलचल पैदा कर दी है। अब इस क्षेत्र को ‘नाभिकीय हथियारों से मुक्त क्षेत्र’घोषित करने की मांग उठने लगी है। निश्चय ही, सामरिक व भू-राजनीतिक दृष्टि से इस क्षेत्र की महत्ता में वृद्धि हुई है।