जाति आधारित जनगणना: सामाजिक निहितार्थ
जाति आधारित जनगणना समाज में जाति व्यवस्था की व्यापकता और उसकी स्थिति को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण हो सकती है। वर्तमान में देश मे केवल बिहार सरकार द्वारा सभी जातियों और समुदायों (SECC) का सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण का कार्य सम्पन्न किया गया है।
- जाति आधारित जनगणना एक महत्वपूर्ण और संवेदनशील विषय है, जिसके भारतीय समाज पर गहरे सामाजिक निहितार्थ हो सकते हैं।
सामाजिक निहितार्थ
सकारात्मक
- सामाजिक न्याय और आरक्षण नीतियां: जाति आधारित जनगणना से प्राप्त आंकड़ों का उपयोग सरकार द्वारा सामाजिक न्याय और आरक्षण नीतियों को बनाने और सुधारने में किया जा सकता है। इससे यह सुनिश्चित किया ....
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मुख्य विशेष
- 1 पारंपरिक ज्ञान प्रणाली
- 2 कृषि का नारीकरण
- 3 क्षेत्रवाद की चुनौती : सांस्कृतिक मुखरता और असमान क्षेत्रीय विकास
- 4 ग्रामीण महिलाएं: आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में महत्व
- 5 वैश्वीकरण के सामाजिक, आर्थिक व सांस्कृतिक प्रभाव
- 6 सामाजिक मूल्यों पर बढ़ती सांप्रदायिकता का प्रभाव
- 7 भारतीय मीडिया में लैंगिक रूढ़िबद्धता
- 8 महिलाओं के लिए स्वामित्व का अधिकार: मुद्दे एवं समाधान
- 9 पॉपुलेशन एजिंग: चुनौतियां एवं सामाजिक निहितार्थ
- 10 महिलाओं की श्रम बल में घटती भागीदारी: कारण एवं सुझाव
- 11 भारत में आंतरिक प्रवासन
- 12 परंपरागत जनजातीय समाज पर भूमंडलीकरण के प्रभाव
- 13 भारत में बढ़ती असमानता : कारण एवं निवारण
- 14 भारतीय धर्मनिरपेक्षता की विशिष्टता
- 15 शहरीकरण: महिलाओं का सशक्तीकरण एवं चुनौतियां
- 16 भारतीय मीडिया में लैंगिक रूढ़िवादिता
- 17 सामाजिक सामंजस्य पर सांप्रदायिकता की चुनौतियां और निहितार्थ
- 18 वैश्वीकरण: भारतीय समाज पर सामाजिक-सांस्कृतिक प्रभाव
- 19 आधुनिक भारतीय समाज की परिवर्तनशील गत्यात्मकता
- 20 बलात् विस्थापन: कारण एवं समाधान
- 21 धर्मांतरण एवं भारतीय समाज
- 22 समान नागरिक संहिता: आवश्यकता एवं व्यवहार्यता
- 23 ग्रामीण क्षेत्रों में खेलों को पुनर्जीवित करना
- 24 भारत में सहकारिता का महत्व
- 25 शहरीकरण के सामाजिक परिणाम
- 26 भारत में अल्पसंख्यक: चुनौतियां और सुरक्षा उपाय
- 27 राष्ट्रवाद बनाम क्षेत्रवाद