कृषि का नारीकरण
कृषि क्षेत्र का नारीकरण कृषि क्षेत्र में विभिन्न भूमिकाओं जैसे; मजदूरों, किसानों और उद्यमियों में महिलाओं की बढ़ती संख्या को संदर्भित करता है। आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 के अनुसार ‘पुरुषों के बढ़ते प्रवास के कारण कृषि क्षेत्र का नारीकरण हो रहा है’।
कृषि में महिलाओं का प्रतिनिधित्व
कृषि जनगणना (2015-16) के अनुसार, कुल 146 मिलियन परिचालन होल्डिंग्स (Operating Holdings) में से, महिला परिचालन धारकों की हिस्सेदारी लगभग 13% (20.25 मिलियन) है।
- ऑक्सफैम इंडिया के अनुसार, लगभग 60.80% खाद्य उत्पादन और 90% डेयरी उत्पादन के लिए महिलाएं जिम्मेदार हैं।
- 2011 की जनगणना के अनुसार, कुल महिला मुख्य श्रमिकों में से 55% खेतिहर मजदूर थीं।
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मुख्य विशेष
- 1 पारंपरिक ज्ञान प्रणाली
- 2 क्षेत्रवाद की चुनौती : सांस्कृतिक मुखरता और असमान क्षेत्रीय विकास
- 3 ग्रामीण महिलाएं: आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में महत्व
- 4 वैश्वीकरण के सामाजिक, आर्थिक व सांस्कृतिक प्रभाव
- 5 सामाजिक मूल्यों पर बढ़ती सांप्रदायिकता का प्रभाव
- 6 भारतीय मीडिया में लैंगिक रूढ़िबद्धता
- 7 महिलाओं के लिए स्वामित्व का अधिकार: मुद्दे एवं समाधान
- 8 पॉपुलेशन एजिंग: चुनौतियां एवं सामाजिक निहितार्थ
- 9 महिलाओं की श्रम बल में घटती भागीदारी: कारण एवं सुझाव
- 10 भारत में आंतरिक प्रवासन
- 11 परंपरागत जनजातीय समाज पर भूमंडलीकरण के प्रभाव
- 12 भारत में बढ़ती असमानता : कारण एवं निवारण
- 13 भारतीय धर्मनिरपेक्षता की विशिष्टता
- 14 शहरीकरण: महिलाओं का सशक्तीकरण एवं चुनौतियां
- 15 भारतीय मीडिया में लैंगिक रूढ़िवादिता
- 16 सामाजिक सामंजस्य पर सांप्रदायिकता की चुनौतियां और निहितार्थ
- 17 जाति आधारित जनगणना: सामाजिक निहितार्थ
- 18 वैश्वीकरण: भारतीय समाज पर सामाजिक-सांस्कृतिक प्रभाव
- 19 आधुनिक भारतीय समाज की परिवर्तनशील गत्यात्मकता
- 20 बलात् विस्थापन: कारण एवं समाधान
- 21 धर्मांतरण एवं भारतीय समाज
- 22 समान नागरिक संहिता: आवश्यकता एवं व्यवहार्यता
- 23 ग्रामीण क्षेत्रों में खेलों को पुनर्जीवित करना
- 24 भारत में सहकारिता का महत्व
- 25 शहरीकरण के सामाजिक परिणाम
- 26 भारत में अल्पसंख्यक: चुनौतियां और सुरक्षा उपाय
- 27 राष्ट्रवाद बनाम क्षेत्रवाद