राष्ट्रवाद बनाम क्षेत्रवाद
राष्ट्रवाद और क्षेत्रवाद दो अवधारणाएं हैं, जो अक्सर भारत के संदर्भ में एक-दूसरे को प्रभावित करती हैं। जहां राष्ट्रवाद पूरे राष्ट्र की एकता और पहचान पर जोर देता है, वहीं क्षेत्रवाद देश के भीतर विभिन्न क्षेत्रों की विशिष्ट सांस्कृतिक, भाषाई और भौगोलिक पहचान पर ध्यान केंद्रित करता है।
भिन्नता के बिंदु
- जबकि राष्ट्रवाद एकता और एकीकरण को बढ़ावा देता है, क्षेत्रवाद सत्ता के विकेंद्रीकरण, क्षेत्रीय स्वायत्तता और क्षेत्रीय भाषाओं और संस्कृतियों के संरक्षण का समर्थन करता है।
- राष्ट्रवाद समग्र रूप से राष्ट्रीय पहचान और राष्ट्र-राज्य के प्रति निष्ठा की भावना को बढ़ावा देता है। यह एक एकीकृत राष्ट्र और एक साझा ....
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मुख्य विशेष
- 1 पारंपरिक ज्ञान प्रणाली
- 2 कृषि का नारीकरण
- 3 क्षेत्रवाद की चुनौती : सांस्कृतिक मुखरता और असमान क्षेत्रीय विकास
- 4 ग्रामीण महिलाएं: आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में महत्व
- 5 वैश्वीकरण के सामाजिक, आर्थिक व सांस्कृतिक प्रभाव
- 6 सामाजिक मूल्यों पर बढ़ती सांप्रदायिकता का प्रभाव
- 7 भारतीय मीडिया में लैंगिक रूढ़िबद्धता
- 8 महिलाओं के लिए स्वामित्व का अधिकार: मुद्दे एवं समाधान
- 9 पॉपुलेशन एजिंग: चुनौतियां एवं सामाजिक निहितार्थ
- 10 महिलाओं की श्रम बल में घटती भागीदारी: कारण एवं सुझाव
- 11 भारत में आंतरिक प्रवासन
- 12 परंपरागत जनजातीय समाज पर भूमंडलीकरण के प्रभाव
- 13 भारत में बढ़ती असमानता : कारण एवं निवारण
- 14 भारतीय धर्मनिरपेक्षता की विशिष्टता
- 15 शहरीकरण: महिलाओं का सशक्तीकरण एवं चुनौतियां
- 16 भारतीय मीडिया में लैंगिक रूढ़िवादिता
- 17 सामाजिक सामंजस्य पर सांप्रदायिकता की चुनौतियां और निहितार्थ
- 18 जाति आधारित जनगणना: सामाजिक निहितार्थ
- 19 वैश्वीकरण: भारतीय समाज पर सामाजिक-सांस्कृतिक प्रभाव
- 20 आधुनिक भारतीय समाज की परिवर्तनशील गत्यात्मकता
- 21 बलात् विस्थापन: कारण एवं समाधान
- 22 धर्मांतरण एवं भारतीय समाज
- 23 समान नागरिक संहिता: आवश्यकता एवं व्यवहार्यता
- 24 ग्रामीण क्षेत्रों में खेलों को पुनर्जीवित करना
- 25 भारत में सहकारिता का महत्व
- 26 शहरीकरण के सामाजिक परिणाम
- 27 भारत में अल्पसंख्यक: चुनौतियां और सुरक्षा उपाय