Question : सामाजिक अनुसंधान में वस्तुनिष्ठता और मूल्य तटस्थता।
(2004)
Answer : सामाजिक अनुसंधान के अंतर्गत हम विभिन्न सामाजिक समस्याओं के विभिन्न पहलुओं की खोज करते हैं। वस्तुनिष्ठता अनुसंधान विधि की अवलोकन, प्रायोगिक एवं तुलनात्मक पद्धति पर आधारित होती है। साथ ही वस्तुनिष्ठता के अंतर्गत सामाजिक तथ्यों का सामान्यता का योगदान होता है। परंतु वास्तविकता यह है कि सामाजिक घटनाएं किसी मूर्त घटना पर आधारित न होकर अमूर्त घटनाओं पर आधारित होती हैं। समाजशास्त्र के अंतर्गत व्याख्या करने वालों को मुख्यतः हम दो उपागमों के अंतर्गत व्याख्या करते हैं। ये हैं-वस्तुनिष्ठता एवं व्यक्तिनिष्ठता। वस्तुनिष्ठता के अंतर्गत हम मूल्य तटस्थता की बात करते हैं। मूल्य तटस्थता से हमारा तात्पर्य है कि सामाजिक अनुसंधान में अनुसंधानकर्ता को अपने विचारों के सम्मिलन से दूर रहना चाहिए। वास्तव में अनुसंधानकर्ता एक सामाजिक प्राणी होता है जिससे यह स्वाभाविक है कि वह सामाजिक घटनाओं या सामाजिक समस्याओं के अध्ययन में अपने विचार को परिस्थिति के अनुसार सम्मिलित कर सकता है। इस परिप्रेक्ष्य के समर्थकों, जिसमें अगस्त कॉम्टे, ईमाइल दुर्खीम एवं स्पेंसर का मानना है कि अगर हमें सामाजिक घटनाओं का अध्ययन करना है तो घटनाओं को मूल्य निरपेक्षता के आधार पर देखना चाहिए।
दूसरी ओर, सामाजिक अनुसंधान से संबंधित दूसरे परिप्रेक्ष्य को मानने वालों का मत है कि सामाजिक विज्ञान में मूल्य निरपेक्षता संभव नहीं है क्योंकि इसमें अनुसंधानकर्ता के विचार सम्मिलित हो सकते हैं। अतः वेबर ने माना है कि सामाजिक अनुसंधान में हम पूर्णतया मूल्य निरपेक्षता का पालन नहीं कर सकते हैं परंतु अनुसंधानकर्ता से यह आशा की जा सकती है कि वह मूल्य तटस्थ होकर अध्ययन करे, फिर भी इन तथ्यों के आधार पर यह कह सकते हैं कि सामाजिक अनुसंधान में हम वेबर के मतों का समर्थन कर अध्ययन के लिए वस्तुनिष्ठता एवं मूल्य तटस्थता को कायम रख सकते हैं।
Question : सामाजिक अनुसंधान में विश्वसनीयता एवं वैधता की उपयोगिता
(2003)
Answer : सामाजिक अनुसंधान सामाजिक जीवन एवं घटनाओं को जानने का प्रयास है। अतः सामाजिक जीवन एवं घटनाओं को उद्घाटित करना ही सामाजिक अनुसंधान की मूल आत्मा है। सामाजिक अनुसंधान में हमें नवीन ज्ञान तो प्राप्त होता ही है, साथ ही ऐसा ज्ञान प्राप्त होता है, जिस पर विश्वास किया जा सके। इस ज्ञान का परीक्षण और पुनः परीक्षण भी किया जा सकता है। जैसेयदि किसी व्यक्ति से वैश्यावृत्ति का कारण पूछा जाय तो शायद वह एक ही उत्तर देगा और यही कहेगा कि ‘यौन संबंधी सुखों में विभिन्नता की इच्छा’ इसका एकमात्र कारण है। किंतु यदि अनुसंधानकर्त्ता से इस समस्या का कारण पूछा जाये, तो वह मजबूरी, पितृहीनता, बुद्धिहीनता, आर्थिक संकट आदि अनेक कारण बतायेगा। यह सभी कारण विश्वसनीय होंगे क्योंकि उन्हें आंकड़ों के आधार पर प्राप्त किया गया है।
सामाजिक अनुसंधान में विश्वसनीयता एवं वैधता की उपयोगिता निन्म कारणों से हैं:
इस प्रकार सामाजिक अनुसंधान का वास्तविक जीवन से घनिष्ठ संबंध है। श्री मति यंग ने लिखा है कि ‘सामाजिक अनुसंधान का प्राथमिक उद्देश्य सामाजिक जीवन का बोध और इसके द्वारा उस पर अधिक नियंत्रण प्राप्त करना है।’
Question : सामाजिक अनुसंधान में वस्तुनिष्ठता और मूल्य-उदासीनता की समस्या पर प्रकाश डालिए। सामाजिक विज्ञान अनुसंधान में मापन के साधनों से जुड़ी परिसीमाओं की, उपयुक्त उदाहरण देते हुए विशद् व्याख्या कीजिए।
(2003)
Answer : सामाजिक अनुसंधान में वस्तुपरकता आवश्यक है। वस्तुपरकता और मूल्य-उदासीनता के अभाव में सामाजिक अनुसंधान को वैज्ञानिकता की ओर ले जाना असंभव है। सामाजिक अनुसंधान में वस्तुनिष्ठता और मूल्य-उदासीनता की समस्या की विवेचना हम निम्नलिखित रूप में कर सकते हैः
सामाजिक विज्ञान अनुसंधान में मापन के साधनों से जुड़ी परिसीमाएं निम्नलिखित हैः
इस प्रकार हम देखते है कि सामाजिक अनुसंधान की प्रक्रियामें वैषयिकता को प्राप्त करने की समस्या एवं सामाजिक अनुसंधान के मापन में बहुत सी परिसीमाओं के बावजूद सामाजिक अनुसंधान वास्तव में समाज विज्ञानों का आधार है। आज विभिन्न विज्ञानोंके लिए अधिकाधिक प्रामाणिक सामग्री सामाजिक अनुसंधान के द्वारा ही प्राप्त होती है।
Question : सामाजिक अनुसंधान में वस्तुनिष्ठता की समस्याएं
(2000)
Answer : सामाजिक अनुसंधान के अंतर्गत हम विभिन्न सामाजिक समस्याओं के विभिन्न पहलुओं की खोज करते हैं। जहां तक वस्तुनिष्ठता की बात है तो यह वास्तव में अनुसंधान विधि की अवलोकन, प्रयोगिक एवं तुलनात्मक पद्धति पर आधारित होती है। साथ ही वस्तुनिष्ठता के अंतर्गत सामाजिक तथ्यों की सामान्यता का योगदान होता है। वास्तव में सामाजिक घटनाएं किसी मूर्त घटना पर आधारित नहीं होता है, बल्कि यह अमूर्त घटनाओं पर आधारित होता है जिसका कोई निश्चित स्वरूप नहीं होता है। सबसे प्रमुख बात यह है कि सामाजिक घटनाओं का अध्ययन एक अनुसंधानकर्ता के द्वारा किया जाता है और यह हो सकता है कि अनुसंधानकर्ता के व्यक्तिगत विचार शोध में शामिल हो जाये। अतः यह कहा जा सकता है कि अनुसंधान की प्रक्रिया में व्यक्ति की व्यक्तिगत भावना शामिल हो जिसके फलस्वरूप घटनाओं का वस्तुनिष्ठ अध्ययन संभव नहीं हो सकता है। दूसरी ओर यदि अनुसंधानकर्ता किसी सामाजिक समस्या से संबंधित पहलुओं से व्यक्तिगत रूप से संबंधित हो तो यह स्वाभाविक है कि सामाजिक अनुसंधान में व्यक्तिनिष्ठता आ जायेगी।
सामाजिक शोध में वस्तुनिष्ठता एवं व्यक्तिनिष्ठता को समझने का प्रयास भिन्न-भिन्न समाजशास्त्रियों द्वारा किया गया है। वस्तुनिष्ठता के प्रबल समर्थकों में अगस्त कॉम्टे, इमाइल दुर्खीम एवं हरबर्ट स्पेन्सर का नाम प्रमुख है। इन्होंने समाजशास्त्र की अध्ययन विधि के रूप में प्रत्यक्षवाद को विशेष महत्व दिया है। दूसरी ओर व्यक्तिनिष्ठता के समर्थकों में मैक्स वेबर, हेराल्ड गारफिंकल एवं अल्फ्रेड शुत्ज का नाम प्रमुख है। इन समाजशास्त्रियों ने स्पष्ट किया है कि सामाजिक घटनाओं का अध्ययन पूर्णतया वस्तुनिष्ठता के आधार पर असंभव है क्योंकि सामाजिक घटनाओं को कर्त्ता के दृष्टिकोण द्वारा देखा जाता है और यह एक निश्चित परिस्थिति के आधार पर समझा जाता है। अतः सामाजिक अनुसंधान में किसी भी घटना को सामान्यीकरण मुश्किल है।
Question : आधार-सामग्री संग्रह की तकनीकी के रूप में प्रश्नावली की परिसीमाएं
(1999)
प्रश्नावली की कमियों को कम बताते हुए बिटनी ने लिखा है, ‘प्रश्नावली शायद सबसे दूषित प्रविधि है क्योंकि इसमें आंतरिक कमजोरियां व्याप्त हैं। प्रश्नावली पद्धति में अनेक सीमाएं होने के बावजूद भी इसके द्वारा विस्तृत क्षेत्र में सीमित साधन होने के बाद भी सरलतापूर्वक अध्ययन किया जा सकता है। गुडे एवं हाट के अनुसार, ‘अनेक कमियों के होते हुए भी स्वयं प्रशासित डाकप्रेषित प्रश्नावली अनुसंधान में अत्यंत लाभदायक सिद्ध होती है।’
Question : प्रतिदर्श की विश्वसनीयता।
(1998)
Answer : प्रतिदर्श निश्चित रूप में एक उपयोगी प्रविधि है। इसकी विश्वसनीयता की जांच का अवलोकन हम निम्नांकित बिंदुओं में कर सकते हैं: