Question : विशेष रूप से ह्नीटल्सी का हवाला देते हुए प्रमुख कृषि प्रकारों उनसे संबंधित अभिलक्षणों के संबंध में लिखिए। दिए गए संसार के मानचित्र में इन प्रदेशों को दर्शाइएः
(2006)
Answer : कृषि के स्वरूप को निर्धारित करने में जलवायु, मिट्टी, उच्चावच जैसे भौगोलिक कारकों के अलावा सामाजिक आर्थिक, जनांकिकीय, तकनीक संस्थागत तथा राजनीतिक कारकों की भूमिका होती है। इस दृष्टि से विश्व के विभिन्न प्रदेशों में काफी विविधता पाई जाती है, अतः विश्व के विभिन्न प्रदेशों में विभिन्न प्रकार की कृषि देखने को मिलती है। ह्नीटल्सी के अनुसार विश्व के विभिन्न प्रदेशों में निम्नलिखित प्रकार की कृषि की जाती है-
(1) चलवासी पशुचारणः यह कृषि मुख्यतः अफ्रीका एवं एशिया के शुष्क प्रदेश तथा घास वाले टुंड्रा प्रदेश में की जाती है। अधिक शुष्क भागों में गाय एवं बैल पाले जाते हैं। अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्र में याक तथा टुंड्रा प्रदेश में रेंडियर एवं कैरुबू पाले जाते हैं। नवंबर से अप्रैल तक चलवासी पशुचारण एक विशेष क्षेत्र में केन्द्रित होता है तथा स्थानीय स्थानांतरण होता है। ग्रीष्म ऋतु के आगमन के साथ ही बड़े पैमाने पर स्थानांतरण होता है। आधुनिक युग में इस प्रकार की कृषि का क्रमशः ह्रास होता जा रहा है।
(2) व्यापारिक पशुपालनः इसका विस्तार प्रेयरी के अपेक्षाकृत शुष्क प्रदेश, पंपास, वेल्ड तथा डाउन्स में पाया जाता है। इस प्रकार के पशुपालन में प्रत्येक क्षेत्र में कुछ विशेष प्रकार के पशु पाले जाते हैं। इन प्रदेशों में विस्तृत क्षेत्र में चारागाह का विस्तार होता है। पशुओं की देखभाल व्यापारिक ढंग से की जाती है। ऊन, चमड़ा एवं मांस का निर्यात किया जाता है। इस कृषि में अधिक पूजी एवं कम श्रम की आवश्यकता होती है।
(3) स्थानान्तरणशील कृषिः यह कृषि का सबसे आदिम रूप है। इस प्रकार की कृषि मुख्यतः उष्ण आर्द्र प्रदेशों के पहाड़ी क्षेत्रों एवं वनों में जनजातियों द्वारा की जाती है। कृषक 2-3 वर्षों के अंतराल पर खेत बदलते रहते हैं। मक्का, ज्वार, बाजरा, धान तथा जड़ वाली फसलें उगायी जाती हैं। पूंजी एवं श्रम का नाम मात्र का उपयोग होता है, फलस्वरूप उत्पादकता काफी कम होती है।
(4) प्रारंभिक स्थायी कृषिः इस कृषि के सभी लक्षण स्थानान्तरणशील कृषि से मिलती-जुलती है, परंतु इसमें स्थान परिवर्तन नहीं होता है। यह कृषि स्थानान्तरणशील कृषि की तुलना में अधिक गहन होती है।
(5) चावल प्रधान गहन निर्वाहन कृषिः इस प्रकार की कृषि मुख्यतः मानसूनी एशिया के अधिक जनसंख्या घनत्व तथा आर्द्र जलवायु वाले क्षेत्र में की जाती है। अधिक श्रम तथा कम पूंजी का उपभोग होता है। इस जीवन निर्वाह कृषि में कृषि कार्य हेतु पशुओं का उपयोग किया जाता है। मशीनों का उपयोग नगण्य होता है। प्रति एकड़ उत्पादन कम होता है। परंतु लागत के अनुपात में उत्पादन अधिकतम होता है, खेत छोटे तथा बिखरे हुए होते हैं। कृषि का स्वरूप परंपरागत होता है।
(6) चावल विहीन गहन निर्वाहन कृषिः यह कृषि मानसूनी एशिया के उन क्षेत्रों में की जाती है, जहां जलवायु उपार्द्र या अर्द्ध शुष्क होती है तथा जनसंख्या का घनत्व अपेक्षाकृत कम होता है। मशीनों का उपयोग अपेक्षाकृत अधिक होता है। गेहूं के अलावा कपास, चना, जौ आदि भी उपजाए जाते हैं।
(7) व्यापारिक बागानी कृषिः इस प्रकार की कृषि उष्ण कटिबंध के समुद्रतटीय पठारी क्षेत्रों में की जाती है। क्षेत्र विशेष में फसलों का विशिष्टीकरण पाया जाता है। केला, गन्ना, कहवा, कपास, कोको, चाय, नारियल आदि उपजायी जाती है। श्रम तथा पूंजी का अधिक उपयोग होता है। इस प्रकार की कृषि फार्मों की जाती है। कृषि उत्पादों का मुख्यतः निर्यात किया जाता है।
(8) भू-मध्यसागरीय कृषिः इस कृषि में निर्वाहन एवं एवं व्यापारिक कृषि दोनों की ही विशेषताएं पाई जाती हैं। इस कृषि में काफी विविधता पाई जाती है। रसदार फलों की कृषि बड़े पैमाने पर की जाती है। इनकी कृषि का उद्देश्य व्यापारिक होता है। सब्जियां गेंहू, जैतून, जौ आदि की भी कृषि की जाती है।
(9) व्यापारिक अन्न उत्पादक कृषिः शीतोष्ण कटिबंधीय घास के मैदानों में इस प्रकार की कृषि की जाती है। इनमें क्षेत्र विशेष में एक ही फसल का विशेषीकरण होता है। मुख्यतः गेंहू की कृषि की जाती है। कृषि फार्मों का आकार काफी बड़ा होता है, जिनमें मशीनों को अधिकतम उपयोग किया जाता है। कृषि का स्वरूप विस्तृत होता है। सामान्यतः कृषि बिना सिंचाई की जाती है। यद्यपि प्रति एकड़ उत्पादन कम होता है।
(10) मिश्रित कृषिः इस प्रकार की कृषि में फसल उत्पादन एवं पशुपालन साथ-साथ व्यापारिक उद्देश्य से किया जाता है। यह कृषि मुख्यतः विकसित देशों के सघन जनसंख्या वाले क्षेत्रों में की जाती है। जहां कृषक अपनी आय बढ़ाने के लिए कृषि के साथ-साथ पशुपालन भी करते हैं।
कृषि में फसल चक्र की पद्धति अपनायी जाती है। इस कृषि में श्रम एवं पूंजी दोनों का ही अधिक उपभोग होता है।
(11) व्यापारिक दुग्ध पशुपालन कृषिः पश्चिमी यूरोप, उत्तरी अमेरिका के महान झील प्रदेश, दक्षिण-पूर्वी आस्ट्रेलिया तथा न्यूजीलैंड में इस प्रकार की कृषि की जाती है। मुख्यतः गायें पाली जाती हैं। अधिक पूंजी एवं अधिक श्रम की आवश्यकता होती है।
(12) विशिष्ट बागवानीः इस कृषि में व्यापारिक स्तर पर सब्जियों, फलों एवं फूलों का उत्पादन किया जाता है। नगरों में इन उत्पादों की पूर्ति हेतु निकटवर्ती क्षेत्र में इस प्रकार की कृषि की जाती है। यह एक गहन कृषि है। इसमें अधिक श्रम एवं अधिक पूंजी का उपयोग किया जाता है।