Question : भारत में सामाजिक (कल्याण) प्रशासन में प्रशासनिक अभिकरणों का विशेषीकरण और उसका तेजी के साथ विस्तार दिखाई पड़ रहा है। मूल्यांकन कीजिये।
(2007)
Answer : कल्याण प्रशासन की संरचना काफी उलझी हुई है। भारत में सामाजिक (कल्याण) प्रशासन में प्रशासनिक अभिकरणों का विशेषीकरण और उसका द्रुतगति के साथ विस्तार हुआ है। समाज में आर्थिक विकास की तो परम आवश्यकता होती ही है, लेकिन आर्थिक विकास के साथ ही साथ सामाजिक एवं मानवीय विकास की भी अपनी विशिष्ट महत्ता है। स्वास्थ्य, पोषाहार, और शिक्षा मानवीय जीवन, कार्य निष्पादन एवं राष्ट्र की मौलिक भावनाओं के द्योतक हैं।
मूलभूत आवश्यकताएं एवं सेवाएं एकाकार स्वरूप में जीवन के स्तर को उच्चतर बनाने और आर्थिक विकास को तीव्रगति प्रदान करने में सहायक हैं। जो उपाय जीवन की स्थितियों को परिमार्जित करते हैं तथा बालकों महिलाओं एवं समाज के सामाजिक और शारीरिक रूप से असहाय नागरिकों को लाभ पहुंचाते हैं, वे उनके कल्याणकारी एवं आर्थिक कार्यों को भी तीव्र कर सकते हैं। समाज कल्याण मंत्रलय के क्रियाकलाप न्याय के अनुरूप एवं उचित आर्थिक एवं सामाजिक कल्याण व्यवस्था को प्राप्त करने के निमित्त, राष्ट्रीय प्रयत्न के अनुरूप सामाजिक विकास के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये ही हैं।
भारतीय संविधान ने एक लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना का उद्देश्य रखा था। संविधान के नीति निर्देशक तत्वों के अधीन वर्णित अनुच्छेद 38 में बताया गया है कि राज्य ऐसी सामाजिक व्यवस्था की जिसमें सामाजिक और राजनैतिक न्याय राष्ट्रीय जीवन की सभी संस्थाओं को अनुप्राणित करे, भरसक कार्य साधन के रूप में स्थान और संरक्षण करके जन-कल्याण की उन्नति करे। इसी प्रकार अनुच्छेद 39 एवं 46 में भी व्यवस्था की गई है। राज्य के नीति निर्देशक तत्वों का निष्कर्ष भी यही है कि भारत में जनकल्याणकारी राज्य निर्मित किया जाये।
राज्य इसी लोक कल्याण के उद्देश्य को पूरित करने हेतु विभिन्न क्षेत्रों में अनेक लोक कल्याणकारी कार्यों को व्यावहारिक स्वरूप प्रदान करता है। राज्य शिशु एवं महिला कल्याण, युवा कल्याण, अपवंचित वर्ग की आवश्यकताओं को दृष्टिगत रखकर ही उनके विकास के लिये अनेक कार्यक्रमों को संचालित कर सेवाएं प्रदान करता है। लोक हितार्थ के ये समस्त कार्य सम्पादित करने के निमित्त राज्य एवं केन्द्रीय स्तर पर अनेक शासकीय एवं गैर शासकीय संस्थाएं सदैव क्रियाशील रहती हैं।
भारत एक संघीय राष्ट्र है, अस्तु जन कल्याणकारी योजनाओं को क्रिया रूप प्रदान करने का उत्तरदायित्व केन्द्रीय एवं राज्यों की सरकारों दोनों का ही है। केन्द्र में सरकार समाज कल्याण सेवाओं की राष्ट्रीय नीति निर्मित करने के उत्तरदायित्व को पूर्ण करती हैं और राज्यों द्वारा निर्मित कल्याण योजनाओं में समन्वय और उन्हें प्रोत्साहित करने का काम करती है। इसके निमित्त कल्याण मंत्रलय, मानव संसाधन एवं विकास मंत्रलय का महिला एवं बाल विकास विभाग एवं केन्द्रीय कल्याण बोर्ड द्वारा कल्याण से संदर्भित कार्यों को सम्पादित किया जाता है। राज्यों के समाज कल्याण प्रशासन को भी ये संस्थायें सलाह प्रदान करती हैं। कल्याण प्रशासन के निमित्त विशेषीकृत प्रशासनिक अभिकरणों का निर्माण किया गया है। कल्याण प्रशासन दुरूह एवं चुनौतीपूर्ण है, अस्तु इसके निमित्त विशिष्ट एजेंसी की ही आवश्यकता प्रतीत होती है।
Question : भारत की महिलाओं और बच्चों के कल्याण के संबंध में संघ सरकार की नीतियों का, अधिक से अधिक 200 शब्दों में, समालोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।
(2006)
Answer : महिलाओं और बच्चों का सर्वांगीण विकास और उन्हें महत्व देने के लिये पहले मानव संसाधन विकास मंत्रालय के तहत एक अलग महिला एवं बाल विकास विभाग 1985 से काम कर रहा था। लेकिन विभाग का महत्व देखते हुये 30 जनवरी 2006 को महिला एवं बाल विकास मंत्रलय अस्तित्व में आया।
महिला एवं बाल विकास विभाग पर निम्नलिखित पांच अधिनियमों को लागू करने की जिम्मेदारी है। साथ ही विभाग महिला और बाल विकास विभाग के क्षेत्र में यूनिसेफ और यूनिफेम जैसे संस्थानों के साथ अंतरर्राष्ट्रीय सहयोग के लिये भी उत्तरदायी हैं:
क) अनैतिक व्यापार (निरोधक) अधिनियम, 1959 (1986 में संशोधित)
ख) महिलाओं का अश्लील प्रस्तुतिकरण निरोधक कानून 1986
ग) दहेज निरोधक कानून, 1961 (1986 तक संशोधित रूप में)
घ) सती प्रथा (निरोधक) अधिनियम 1987
घ) शिशु दुग्ध विकल्प, दुग्धपान बोतल और शिशु आहार (उत्पादन, आपूर्ति और वितरण अधिनियम, 1992)
महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण के लिये सरकार द्वारा निम्न कदम उठाये गये हैं-
क) महिलाओं को रोजगार और प्रशिक्षण के लिये सहायता देने का कार्यक्रम स्टेप 1986-87 में केंद्रीय क्षेत्र की योजना के रूप में शुरू किया गया।
ख) स्वयंसिद्धा योजना जिसके अंतर्गत महिलाओं को स्व-सहायता समूहों में संगठित करके और सेवाओं के समन्वय तथा अल्पट्टण उपलब्ध कराने और बहुत छोटे उपक्रम को बढ़ावा देने पर जोर दिया जाता है।
ग) स्वाधार योजना कठिन परिस्थितियों में पड़ने वाली महिलाओं के लाभ के लिये (जैसे - दीन-हीन विधवा, प्राकृतिक आपदा की शिकार महिलायें इत्यादि)
घ) अल्पावधि प्रवास गृह-परिवारिक विवादों, सामाजिक बहिष्कार इत्यादि से जूझ रही महिलाओं और बालिकाओं को संरक्षण और पुनर्वास देना।
घ) परिवार परामर्श केंद्र ग्रामीण एवं गरीब महिलाओं के बीच जागरूकता पैदा करने के कार्यक्रम कामकाजी महिलाओं के लिये हॉस्टल मंत्रालय की पहल पर 2004-2005 में ‘लिंग समानता बजट मिशन लागू किया गया है। महिलाओं का घरेलू हिंसा से संरक्षण अधिनियम 2005
इसी प्रकार बच्चे के लिये संघ सरकार के जारी कार्यक्रम और नीतियां इस प्रकार हैं-
बाल अधिकार संधि-भारत ने बच्चों के प्रति अपनी वचनबद्धता दोहराते हुये 11 दिसंबर, 1992 में बच्चों के अधिकारों संबंधी संयुक्त राष्ट्र संधि का अनुमोदन किया।
वर्तमान में लाया गया बाल-श्रम विरोधी कानून, बच्चों के आर्थिक, सामाजिक एवं व्यक्तित्व संबंधी सभी पहलुओं को सुदृढ़ करने के दिशा में महत्वपूर्ण प्रयास है।
सरकार द्वारा महिला तथा बाल विकास के संबंध में जो कदम उठाये गये हैं, वह निश्चित रूप से सराहनीय हैं, परंतु जितना ध्यान आर्थिक पहलुओं पर दिया गया, उतना सामाजिक पहलूओं पर नहीं दिया जा सका। कारण, भारतीय समाज का ढांचा और मानसिकता नीतियों को चरितार्थ करने में काफी हद तक बाधक सिद्ध हुई हैं।
अतः आवश्यकता नीतियों के क्रियान्वयन में स्थिरता और सजगता की है और अनिवार्यता, जागरूकता और वैचारिक प्रगतिशीलता की है।