Question : जिला आयोजना समिति की सांविधानिक प्रस्थिति होने के बावजूद आर्थिक आयोजना की केन्द्रीकृत प्रकृति होने के कारण, वह विकेन्द्रीकृत आयोजन को कार्यान्वित नहीं कर पाती है। टिप्पणी कीजिए।
(2007)
Answer : स्वतन्त्रता प्राप्ति के पूर्व देश का विकास नियोजित ढंग से करने का विचार किया गया था। अतः 15 मार्च 1950 को योजना आयोग का गठन किया गया। योजना आयोग पूरे देश के लिए योजना को बनाने वाला केन्द्रीय अधिकरण है। नियोजन का अर्थ है योजनाबद्ध कार्य, अतः कहा जा सकता है कि उचित रीति से सोच-विचार कर कदम उठाना ही नियोजन है। नियोजन साधनों के संगठन की एक विधि है जिसके माध्यम से साधनों का अधिकतम लाभप्रद प्रयोग निश्चित सामाजिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किया जाता है।
भारत अपनी विशेष परिस्थितियों के कारण नियोजित विकास के लिए कटिबद्ध था, अतः योजना आयोग की स्थापना अनिवार्य थी। संविधान सभा ने योजना आयोग को वैधानिक संस्था का स्वरूप प्रदान नहीं किया, तथपि यह आयोग एक शासकीय आदेश द्वारा स्थापित किया गया। भारत में केन्द्रीय राज्य तथा जिलास्तर पर आयोजना की स्पष्ट व्यवस्था है।
जिला स्तर पर राज्य के सभी जिलों में जिला नियोजन समितियां स्थापित की गई हैं। इन जिला समितियों के मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं-
राज्य के सभी जिलों में जिला नियोजन प्रकोष्ठ कार्यरत है, जिनको विशेषज्ञ अपना सहयोग प्रदान करते हैं। ये प्रकोष्ठ खण्ड योजनाओं के निर्माण के लिए उत्तरदायी हैं। ये प्रकोष्ठ ग्रामीण विकास केन्द्रों और राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम के अतिरिक्त स्थानीय आधार के अन्य ग्रामीण विकास कार्यक्रमों के लिए भी उत्तरदायी है।
वस्तुतः विकेन्द्रीकृत आयोजना की प्रवृति के कारण ही जिला आयोजना समिति सांविधानिक प्रस्थिति प्रदान की गई, लेकिन आर्थिक आयोजना की केन्द्रीकृत प्रकृति के कारण ही विकेन्द्रीकृत आयोजना को कार्योंन्वित नहीं किया जा सकता है। योजना आयोग के कारण केन्द्रीयकरण की प्रवृति बढ़ी है। इसमें जन-सहभागिता समाप्त हो जाती है। वास्तविकता यह है कि कई योजनाएं तो बनीं, किन्तु जो लाभ आम जनता को प्राप्त होने चाहिए थे, प्राप्त नहीं हुए। आर्थिक विषमता में कमी नही आई अपितु वृद्धि हुई है। क्षेत्रीय विषमता भी बढ़ी है। निर्धनता की रेखा से नीचे रहने वाले लोगों का प्रतिशत आंकड़ों की दृष्टि से घटा अवश्य है किन्तु व्यवहार में ऐसा नहीं है। बेरोजगारों की संख्या बढ़ी है। राष्ट्रीय आय में वृद्धि हुई है किन्तु मूल्यों में वृद्धि के कारण उसका लाभ साधारण जनता को नही मिला है। व्यक्तिगत आय की स्थिति भी ठीक नहीं है, अतः यह नहीं कहा जा सकता पंचवर्षीय योजनाएं अपने उद्देश्य में सफल हुई है किन्तु यह कहना असत्य होगा कि योजनाएं पूर्णतः विफल रही है। कुछ क्षेत्रों में निश्चय ही प्रगति हुई है, औद्योगिकरण हुआ है, उत्पादन में वृद्धि हुई है। खाद्यान्न में आत्म निर्भरता प्राप्त हुई है।
अतः योजनाओं को पूर्ण सफलता के लिए इनका विकेन्द्रीकरण होना आवश्यक है। इस दिशा में जिला आयोजना समिति महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन कर सकती है।
Question : "जिला कलेक्टर, अतिरिक्त उप-आयुक्त और उपमंडल अधिकारी, आभासी रूप से ‘हाजरी देने वाले अधिकारी’ बन गये हैं और पहल और निर्णय की स्वतंत्रता गवां बैठे हैं।" टिप्प्णी कीजिए।
(2006)
Answer : जिला कलेक्टर के कर्तव्यों की प्राथमिकताओं में वर्तमान परिप्रेक्ष्य में काफी परिवर्तन आ गया है, पहले कानून और व्यवस्था की स्थापना करना उसका प्रमुख कार्य था, किंतु अब अन्य कार्यों में उसका उत्तरदायित्व निर्धारित हुआ है। वस्तुतः जिला प्रशासन के समस्त प्रशासनिक कार्य जिला कलेक्टर के पर्यवेक्षण तथा नियंत्रण में संपन्न होते हैं। इस प्रकार जिला कलेक्टर वह कार्यों के प्रति जिम्मेदार है जो जिला प्रशासन से अपेक्षित है। अतः वर्तमान में जिला कलेक्टर मानवीय अपेक्षाओं से ऊपर उठकर असंख्य कर्तव्यों के निर्वाह के लिए उत्तरदायी है, जो इस प्रकार है-
जिला स्तर पर सर्वोच्च प्रशासनिक अधिकारी होने के नाते जिला कलेक्टर, सभी विभागों को नियंत्रण तथा पर्यवेक्षण प्रदान करता है। जिला स्तर पर लोक प्रशासन के सामान्य क्षेत्र के कार्य ‘पोस्डकार्ब’ मान्यता के अनुसार जिला कलक्टर ही संपादित करता है। कलेक्टर के रूप में वह जिला स्तर पर राजस्व प्रशासन का मुखिया होता है। उसका मुख्य कार्य राजस्व एकत्र करना बना हुआ है। जिला दंडनायक के रूप में जिला कलेक्टर, पुलिस, जेल तथा न्यायिक क्षेत्र के कतिपय कार्य संपादित करवाता है।
इसके अतिरिक्त स्वतंत्रता के पश्चात् जिला कलेक्टर का पद विकास अधिकारी के रूप में व्यापकता प्राप्त कर रहा है। 1952 में शुरू हुए राष्ट्रीय सामुदायिक विकास कार्यक्रम और कालांतर में निर्मित अनेक कल्याणकारी एवं विकासपरक कार्यक्रम जैसे 20 सूत्री कार्यक्रम, साक्षरता कार्यक्रम, परिवार कल्याण कार्यक्रम इत्यादि ने जिला कलेक्टर के पद को व्यस्ततम् तथा विकासोन्मुख बना दिया है।
प्रशासनिक विभागों तथा उनकी शाखाओं में प्रसार और विशिष्टीकरण में वृद्धि के कारण समन्वय की स्थापना एक दुष्कर कार्य होता जा रहा है। विशेषज्ञ अधिकारियों से युक्त सरकारी विभागों में आपसी सामंजस्य तथा सहयोग पैदा करने के लिए जिला कलेक्टर ही सर्वथा उपयुक्त अधिकारी है। सामान्य परिस्थितियों के अतिरिक्त अन्य प्राकृतिक एवं मानवजनित आपदाओं या संकेत के समय भी जिला कलेक्टर की भूमिका महत्वपूर्ण बनी रहती है। निष्कर्षतः जिला प्रशासन में जिला कलक्टर का पद गंभीर दायित्वों से परिपूर्ण पद है।
वस्तुतः सामान्य दृष्टि से क्षेत्रें को समाप्त कर देने के कारण अब केवल जिले राज्य सरकार एवं लोगों तथा उनकी प्रतिनिधि संस्थाओं के बीच कड़ी का काम करेंगे। इसलिए यह अत्यंत महत्वपूर्ण विषय है कि जिला स्तर पर प्रशासन पूर्णरूपेण सम्मिलित होकर, अधिकतम सहयोग, सद्भावना एवं सामूहिक सहयोग द्वारा इस प्रकार से होना चाहिए, जिस तरह की राज्य स्तर पर सरकार करती है। मजिस्ट्रेट एवं जिला अधिकारी की हैसियत से कार्य के कारण जिला स्तर पर जिलाधीश एक ऐसा कार्यकर्ता होता है, जो इस प्रकार का समन्वय स्थापित कर सकता है।
यह भी उसी पर छोड़ा गया है कि स्थानीय संस्थाओं की समस्याओं को बताएं तथा यह निश्चित करे कि संबंधित विभाग द्वारा उन समस्याओं का हल करने का शीघ्र उपाय निकाले। राज्य में जिलाधीश से यह भी आशा की जाती है कि वह ग्राम पंचायत एवं पंचायत समितियों को आवश्यक तकनीकी सहायता प्रदान करे तथा जिला परिषद को योजनाओं की प्रगति के संबंध में पूर्ण सूचना देता रहे।
यद्यपि कुछ वर्षों से राज्य सरकारों ने ‘कमिश्नरी व्यवस्था’ को लागू करते हुये क्षेत्रीय आयुक्तों की नियुक्ति की है, जिससे कलेक्टर के कार्यबोझ को कुछ कम किया जा सके। वस्तुतः अत्याधिक कार्यबोझ के चलते स्थानांतरण के अनिश्चित मानदंड और राजनीतिक दावपेच प्रशासन में अनाधिकार प्रवेश के चलते कलेक्टर अपने दायित्वों का निर्वाह उतनी मस्तैदी और स्थायित्व के साथ नहीं कर पा रहे हैं।
आवश्यकता इस बात की है कि कलेक्टर के कार्यबोझ के प्रत्यायोजन और स्थानांतरण के मानदंडों का अनुपालन हो क्योंकि राष्ट्र की मूलभूत इकाई जिला ही यदि अपने व्यावहारिक स्वरूप को प्राप्त नहीं कर पाएगा तो उससे प्रशासनिक व्यवस्था खोखली होती जाएगी।
Question : भारतीय प्रशासनिक सेवा (आई. ए. एस.) का सामान्यवादी गुण ही उसका प्रमुख अभिलक्षण है और साथ ही साथ उसकी मुख्य आलोचना भी। टिप्प्णी कीजिए।
(2006)
Answer : भारतीय प्रशासनिक सेवायें राज्यों के संकीर्ण दृष्टिकोण के स्थान पर देश में एकता और अखंडता की स्थापना करती हैं। इन सेवाओं के अधिकारी प्रायः अपने राज्यों से बाहर नियुक्त किये जाते हैं तथा वे स्थानीय अधिकारियों की अपेक्षा स्थानीय और प्रादेशिक प्रभावों से कम प्रभावित होते हैं।
इन सेवाओं के अधिकारी केंद्र और राज्य सेवाओं के मध्य अदलते-बदलते रहते हैं, जिसके कारण दोनों में समन्वय स्थापित होता है। इन सेवाओं के सदस्यों की भर्ती एक विस्तृत क्षेत्र से की जाती है और उन्हें उच्च वेतन तथा स्तर प्राप्त होते हैं। इस कारण इन सेवाओं में राज्य सेवाओं की अपेक्षा अधिक योग्य उम्मीदवार आकर्षित होते हैं।
भारतीय प्रशासनिक सेवाओं के सदस्य राज्य सेवाओं में महत्वपूर्ण पदों पर कार्य करते हैं, अतः वे राज्य मंत्रियों के स्वतंत्रतापूर्वक परामर्श दे सकते हैं। राज्य सेवाओं के सदस्य मंत्रियों के सामने उतनी निर्भयता से बोल नहीं सकते हैं। राज्य में सांविधानिक तंत्र भंग हो जाने पर राष्ट्रपति शासन लागू किया जाता है। ऐसी स्थिति में केंद्रीय सरकार के अधीन और उसके प्रत्यक्ष नियंत्रण में कार्य करने वाले भारतीय प्रशासनिक सेवा के सदस्य बहुत उपयोगी सिद्ध होते हैं और वे राष्ट्रपति के आदेशों को क्रियान्वित करते हैं।
हालांकि यह आलोचना भी है कि ये सेवायें राज्य के स्वतंत्रता पर आघात करती हैं। साथ ही राज्य के बाहर के अधिकारी स्थानीय समस्याओं को उतनी गहनता से न समझ सकते हैं और न सुलझा सकते हैं। किंतु, व्यावहारिक रूप से यही माना जाता है कि केंद्र के अनुशासन में बंधे अधिकारी राष्ट्रीय एकीकरण की दृष्टि से अधिक उपयोगी हैं और वे देश के भीतर विभाज्यकारी शक्तियों का सामना अधिक क्षमतापूर्वक कर सकते हैं।