Question : "कौटिल्य न केवल प्राचीन भारत का अग्रणी राजनीतिक- प्रशासनिक विचारक था, बल्कि वह नैतिक मूल्यों का पक्षसमर्थक एवं उपदेशक भी था’’। टिप्पणी कीजिए।
(2007)
Answer : आचार्य कौटिल्य का मनन् क्षेत्र इतना विस्तृत है कि इसमें राजनैतिक, आर्थिक तथा प्रशासनिक विषय समाहित हैं। ‘अर्थशास्त्र’ के विहंगम अवलोकन के पश्चात कहा जा सकता है कि आचार्य कौटिल्य का ग्रंथ राज्य प्रशासन के साथ ही साथ व्यावहारिक प्रशासन की भी वृहद व्याख्या करने में सक्षम है।
अतः यह कहना समीचीन है कि कौटिल्य प्राचीन भारत का राजनीतिक-प्रशासनिक विचारक के साथ-साथ नैतिक मूल्यों का पक्ष समर्थक एवं उपदेशक भी था।
Question : "अपनी प्रजा के सुख में ही राजा का सुख वास करता है। प्रजा के कल्याण में उसका अपना कल्याण है।" कौटिल्य के राज्य प्रशासन पर टिप्पणी कीजिये। किन बातों में आधुनिक लोकतांत्रिक शासकों का व्यवहार कौटिल्यी शासकों से भिन्न है?
(2006)
Answer : प्राचीन भारतीय प्रशासनिक चिंतकों में अग्रणी आचार्य चाणक्य ने अपने ग्रंथ ‘अर्थशास्त्र’ में लोककल्याणकारी राज्य की बुनियाद रखी थी। उनके अनुसार किसी भी देश में शासन व्यवस्था चाहे राजशाही-तानाशाही तंत्र पर आधारित हो या लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार हो, राज्य और राजा का कर्तव्य जनकल्याण ही होता है। चाणक्य के राज्य में कल्याणकारी स्वरूप पर अत्याधिक महत्व दिया गया है। वैसे तो राजा सर्वसत्ताधिकारी और दैवीय शक्ति का प्रतीक मानकर सर्वोच्च स्थान पर माना जाता है, फिर भी वह निरंकुश नहीं हो सकता है। राजा के ऊपर निम्न प्रतिबंध लगाये गए हैं:
राजा अपने प्रत्येक कार्य का निर्वाहन जनकल्याण को ध्यान में रखकर करता है। कृषि एवं सिंचाई पर विशेष बल दिया गया है। नागरिकों को हर प्रकार की सामाजिक एवं भौतिक अवसरंचना उपलब्ध कराना, हर एक संभावित समस्या से रक्षा कार्य और उनके भविष्य के निर्माण का संपूर्ण प्रयास राजा ही करते हैं।
आधुनिक लोकतांत्रिक शासकों में शक्तियों का बंटवारा विकेंद्रीकरण अत्यंत महत्वपूर्ण है, जबकि मौर्य शासन संपूर्ण केंद्रीकरण पर आधारित है। व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सर्वोच्च सत्ता जनता में निहित है। यदि कोई शासक अपना सर्वसत्ता स्थापित करने का प्रयास करता है तो उसे मानव अधिकार में हस्तक्षेप समझा जाता है।
यहां आस्था के केंद्र में जनता की इच्छा है, न कि किसी राजा की इच्छा। शासन कर्ता का अस्तित्व भी जनता द्वारा ही निर्धारित होता है। वर्तमान लोकतांत्रिक शासक आज हर प्रकार से जनता की सर्वोच्चता को मान अपने अस्तित्व की रक्षा हेतु जी-तोड़ प्रयास करते हैं। मौर्य शासक संपूर्ण शकि्तवान् होकर भी निरंकुश शासक होने के कुचिंतन से दूर रहता था जबकि आज के शासक जनता के प्रतिनिधि होकर भी निरंकुश शासक बनने का कोई अवसर नहीं छोड़ना चाहते।
Question : भारत के संविधान के आधारिक मूल्य उस सामाजिक, राजनीतिक एवं आर्थिक दर्शन को प्रतिस्पापित करते हैं, जो लोगों की संप्रभुता विधि सम्मत शासन और समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य के बुनियादी लक्षणों का प्रतीक है। टिप्पणी कीजिये।
(2006)
Answer : भारत के संविधान की प्रस्तावना राज्यों के आदर्श को व्यक्त करती है, जो देश को संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता उपलब्ध कराने के साथ समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतंत्रत्मक गणराज्य के रूप में बनाने के लिए व्यवस्था करता है।
अतः उद्देशिका जिसे कि संविधान की आत्मा के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त है वह शासन व्यवस्था के मूल्यों की स्पष्ट घोषणा करती है। संविधान निर्माता लोकतांत्रिक आदर्शों की स्थापना के उद्देश्य को सामने रखते हैं, जिनकी प्राप्ति के लिए मौलिक अधिकार, मौलिक कर्तव्य, नीति निर्देशक तत्व, संघवाद की अवधारणा तथा जनता की सर्वोच्चता प्रमुख चरण के रूप में संविधान में अभिव्यक्ति पाते हैं।
Question : "पोटेमैक नहीं बल्कि टेम्स, यमुना के प्रवाह को उर्वर बनाती है।" इस कथन के प्रकाश में भारत में राष्ट्रपति की प्रतीकात्मक संस्था पर टिप्पणी कीजिये।
(2006)
Answer : भारत की संसदीय व्यवस्था या कह सकते हैं- संसदात्मक लोकतंत्र की अवधारणा का उद्भव, ब्रिटेन की व्यवस्था से ही है अर्थात् औपनिवेशिक स्वतंत्रता के पश्चात् हमने वहीं की व्यवस्था को अपने संविधान में अंगीकार किया है।