गैर-कानूनी गतिविधि अधिनियमः राष्ट्रीय सुरक्षा बनाम संवैधानिक अधिकार

वर्तमान में आतंकवाद वैश्विक स्तर पर एक बड़ी समस्या है। आतंकवाद की समस्या से प्रभावित होने वाले देशों में भारत गंभीर रूप से पीड़ित है।

  • आतंकवाद और नक्सलवाद की बढ़ती समस्या से निपटने के लिये गैर-कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियमः राष्ट्रीय सुरक्षा बनाम संवैधानिक अधिकार (Unlwaful Activities (Prevention) Act-UAPA), 1967 में आतंक विरोधी प्रावधानों को शामिल किया गया है।
  • गैर-कानूनी गतिविधियों से तात्पर्य उन कार्यवाहियों से है जो किसी व्यक्ति/संगठन द्वारा देश की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता को भंग करने वाली गतिविधियों को बढ़ावा देती है।
  • स्वाभाविक रूप से, इसने देश की तथाकथित संप्रभुता और अखंडता के नाम पर नागरिकों की बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को भी प्रभावित किया है, जिससे न्यायालयों को भी प्रायः देश के नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिये सक्रियता से हस्तक्षेप करना पड़ा है।

यह कानून संविधान के अनुच्छेद-19 द्वारा प्रदत्त वाक् व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, शस्त्रें के बिना एकत्र होने और संघ बनाने के अधिकार पर युक्तियुक्त प्रतिबंध आरोपित करता है।

  • यह अधिनियम आतंकवादी गतिविधियों को रोकने, आतंकवादी संगठनों को चिह्नित करने और उन पर रोक लगाने में सहायक सिद्ध हुआ है।

कानून का उद्देश्यः उन गतिविधियों पर अंकुश लगाना था, जो भारत की संप्रभुता और अखंडता के लिये खतरा है।

  • गृह मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB), 2018 के आंकड़ों के अनुसार, न्।च्। के तहत वर्ष 2015 में सजा की दर 14-5 प्रतिशत थी तो वहीं 2017 में बढ़कर 49-3 प्रतिशत हो गई।
  • वर्ष 2019 में इस अधिनियम के अंतर्गत विभिन्न संशोधन किये गए, जिससे इस कानून में कुछ कठोर प्रावधान जोड़े गए।

संशोधन की आवश्यकता

पूर्व में निर्मित किसी भी कानून में किसी भी व्यक्ति को व्यक्तिगत स्तर पर आतंकवादी घोषित करने का कोई प्रावधान नहीं था।

  • इसलिये जब किसी आतंकवादी संगठन पर प्रतिबंध लगाया जाता है, तो उसके सदस्य एक नया संगठन बना लेते हैं। ऐसे में व्यक्तिगत स्तर पर आतंकवादी घोषित करना आवश्यक है।

वर्ष 2019 का संशोधित प्रावधान

इसका उद्देश्य आतंकी अपराधों की त्वरित जांच करना और अभियोजन की सुविधा प्रदान करने के साथ ही आतंकी गतिविधियों में शामिल व्यक्तियों को आतंकवादी घोषित करना है।

  • महानगरों व शहरी क्षेत्रों में कार्य करने वाले विचारकों के ऐसे समूह पर भी कार्यवाही करना, जो युवाओं को आतंकी व विध्वंसक गतिविधियों में शामिल होने के लिए उकसाते हैं।
  • यह संशोधन उचित प्रक्रिया तथा पर्याप्त साक्ष्यों के आधार पर ही किसी व्यक्ति को आतंकवादी ठहराने की अनुमति देता है।
  • यह संशोधन राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) के महानिदेशक को ऐसी संपत्ति को जब्त करने का अधिकार देता है, जो उसके द्वारा की जा रही जांच में आतंकवादी गतिविधियों से अर्जित आय हो। पूर्व में NIA को इस तरह की कार्रवाई के लिये राज्य के पुलिस महानिदेशक की अनुमति की आवश्यकता होती थी।
  • मानव तस्करी से संबंधित मामलों की जांच के लिये भी NIA को अधिकार प्रदान किया गया है। यह प्रावधान सरकार को आतंकवादियों से संबंध रखने वाले संदेहास्पद व्यक्ति के नाम का खुलासा करने की अनुमति देते है। यह निर्णय इस्लामिक स्टेट में युवाओं के शामिल होने की घटनाओं के बाद लिया गया था।
  • इस संशोधन में परमाणु आतंकवाद के कृत्यों के दमन हेतु अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन (2005) को दूसरी अनुसूची में शामिल किया गया है। इसके अंतर्गत आतंकवाद व विध्वंसक गतिविधियों में संलग्न व्यक्तियों/संगठनों की जांच करने का दायित्व अब निरीक्षक स्तर के अधिकारी को भी दिया जा सकता है।

राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA)

  • यह भारत की संसद द्वारा पारित अधिनियम राष्ट्रीय जांच एजेंसी विधेयक 2008 के लागू होने के साथ ही अस्तित्व में आई।
  • इसका गठन वर्ष 2008 के मुंबई हमले के पश्चात किया गया।

कार्य

  • यह केन्द्रीय आतंकवाद विरोधी कानून प्रवर्तन एजेंसी के रूप में कार्य करती है।

संशोधित प्रावधान के अनुसार ‘आतंकवादी’

संशोधित प्रावधान के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति ऐसा काम करता है, जिससे देश की एकता, अखंडता, सुरक्षा या संप्रभुता को खतरा है, साथ ही समाज या समाज के किसी वर्ग को डराने की कोशिश की जाए आतंकवाद कहलाता है।

  • अधिनियम के अंतर्गत केंद्र सरकार किसी संगठन को आतंकवादी संगठन निर्दिष्ट कर सकती है, यदि वहः
  • आतंकवादी कार्रवाई करता है या उसमें भाग लेता है,
  • आतंकवादी घटना को अंजाम देने की तैयारी करता है,
  • आतंकवाद को बढ़ावा देता है, या
  • अन्यथा आतंकवादी गतिविधि में शामिल है।

आतंकी घोषित व्यक्ति के अधिकार

  • यदि किसी व्यक्ति को आंतकी घोषित किया जाता है तो वह व्यक्ति गृह सचिव के समक्ष अपील कर सकता है। गृह सचिव को 45 दिन के भीतर अपील पर निर्णय लेना होगा।
  • इस अधिनियम के अंतर्गत सरकार एक पुनर्विचार समिति बनाएगी, जिसकी अध्यक्षता उच्च न्यायालय के वर्तमान न्यायाधीश या सेवानिवृत्त न्यायाधीश द्वारा की जाएगी।
  • इस पुनर्विचार समिति के समक्ष आतंकी घोषित संगठन या
  • व्यक्ति अपील करने के साथ-साथ सुनवाई की अपील भी कर सकता है।

अधिनियम से संबंधित चुनौतियाँ

  • राजनैतिक द्वेष या किसी अन्य दुर्भावना के आधार पर दुरूपयोग की आशंकाः यह अधिनियम सरकार को किसी भी व्यक्ति को न्यायिक प्रक्रिया का पालन किये बिना आतंकी घोषित करने का अधिकार देता है, जिससे भविष्य में राजनैतिक द्वेष अथवा किसी अन्य दुर्भावना के आधार पर दुरूपयोग की आशंका बनी रहेगी।
  • आतंकवाद की निश्चित परिभाषा का अभावः इस संशोधन में आतंकवाद की निश्चित परिभाषा नहीं है, इसका नकारात्मक प्रभाव यह हो सकता है कि सरकार व कार्यान्वयन एजेंसी आतंकवाद की मनमानी व्याख्या द्वारा किसी को भी प्रताड़ित कर सकती हैं।
  • अल्पसंख्यकों के विरुद्ध दुरुपयोगः इस संशोधन का अल्पसंख्यकों के विरुद्ध दुरुपयोग किया जा सकता है।
  • निष्पक्ष जाँच प्रभावित होने की आशंकाः यह संशोधन किसी भी व्यक्ति को आतंकी घोषित करने की शक्ति देता है, जो किसी आतंकी घटना की निष्पक्ष जांच को प्रभावित कर सकता है।
  • राज्य पुलिस के क्षेत्रधिकार का अतिक्रमणः पुलिस राज्य सूची का विषय है परंतु यह संशोधन NIA को संपत्ति को जब्त करने का अधिकार देता है जो कि राज्य पुलिस के क्षेत्रधिकार का अतिक्रमण करता है।