वर्तमान में अफ्रीका भारत की विदेश नीति की प्राथमिकता में शामिल है तथा भारत, अफ्रीकी देशों के साथ संबंधों को गहरा करने के लिए एक दूरदर्शी नीति पर कार्य कर रहा है, जिसका उद्देश्य अफ्रीका के देशों में अपनी पहुंच को स्थापित कर उसका आर्थिक और सामरिक लाभ लेना तथा चीन की इस क्षेत्र में बढ़ती सक्रियता और विस्तार को संतुलित करना है।
सम्बन्धों की वर्तमान स्थिति
नवीनतम आर्थिक आंकड़े इस बात की पुष्टि करते हैं कि भारत-अफ्रीका व्यापार में गिरावट आ रही है।
सम्बन्धों की पृष्ठभूमि
स्वतंत्रता के बाद भारत की विदेश नीति ने अफ्रीकी उपनिवेशवाद आंदोलनों को काफी प्रभावित किया।
वर्ष 1955 के बांडुंग सम्मेलन (Bandung Conference) में भारत ने पहली बार एशियाई और अफ्रीकी देशों को साम्राज्यवाद तथा उपनिवेशवाद के खिलाफ साथ आने का आह्वान किया। साथ ही गुटनिरपेक्ष आंदोलन के बाद भारत ने कई अफ्रीकी देशों के साथ संबंध स्थापित किये।
भारत की चिंताएं
अफ्रीका का साहेल क्षेत्र ISIS और अल कायदा समर्थक आतंकवाद का अड्डा बना है साथ ही माली, नाइजीरिया, चाड़ जैसे देशों ने इस्लामिक स्टेट वेस्ट अफ्रीका प्रॉविंस (ISWAP), इस्लामिक स्टेट सेंट्रल अफ्रीका प्रॉविंस (ISCAP), अल कायदा इन इस्लामिक मगरेब (AQIM) और कई छोटे-छोटे संगठनों पर प्रभाव पड़ा है, जो भारत के हितों के लिए चिंता का कारण है।
अफ्रीका में चीन की चुनौती
भारत, अफ्रीका में मौजूद सामाजिक पूंजी के बावजूद भौतिक संसाधनों के मामले में चीन से पीछे है। अफ्रीका के आर्थिक क्षेत्र में चीन के द्वारा किये जा रहे निवेश भारत के मुकाबले कहीं अधिक है। अफ्रीका में लगभग 10,000 से अधिक चीनी कंपनियॉं कार्य कर रही है और चीन अफ्रीका का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बन गया है।
भारत की भूमिका
पिछले दशक में रक्षा और सुरक्षा सहयोग भारत और अफ्रीका के देशों के लिए 21वीं सदी का महत्वपूर्ण स्तंभ बनकर उभरा है। इसकी वजह है कि हमारे रणनीतिक सिद्धांत, सैन्य परंपरा, कमांड संरचना और ट्रेनिंग के तरीकों में समानता है।
वैश्विक प्रतिस्पर्धा
एक अध्ययन के अनुसार, अफ्रीका ने एक तेज अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा का सामना किया है, जिसे 21वीं सदी के पहले दो दशकों में ‘तीसरा संघर्ष’ के रूप में जाना जाता है। अमेरिका, यूरोप और एशिया देशों ने इस समस्या के समाधान में अफ्रीका की सहायता करने का प्रयास किया है तथा महाद्वीप की राजनीतिक और सामाजिक चुनौतियां के समाधान के बदले में अफ्रीका के बाजारों से खनिज, हाइड्रोकार्बन और समुद्री संसाधन का लाभ प्राप्त कर उस क्षेत्र में भू-राजनीतिक का विस्तार किया।
भारत की भूमिका
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अफ्रीका में संघर्ष और महामारी के बाद की रिकवरी पर खुली बहस में, भारत ने दोहराया कि सुरक्षा परिषद में ‘अफ्रीका की आवाज को उसका उचित हक नहीं दिया गया’।
आगे की राह
पारस्परिक लाभ के लिए अफ्रीका और भारत को बेहतर तरीके से जुड़े रहना चाहिए। यह अवसर का लाभ उठाने और अपनी कूटनीति और आर्थिक हितों को अफ्रीका में प्राथमिकता देने का समय है।