भारत-अफ्रीका संबंध

वर्तमान में अफ्रीका भारत की विदेश नीति की प्राथमिकता में शामिल है तथा भारत, अफ्रीकी देशों के साथ संबंधों को गहरा करने के लिए एक दूरदर्शी नीति पर कार्य कर रहा है, जिसका उद्देश्य अफ्रीका के देशों में अपनी पहुंच को स्थापित कर उसका आर्थिक और सामरिक लाभ लेना तथा चीन की इस क्षेत्र में बढ़ती सक्रियता और विस्तार को संतुलित करना है।

  • राष्ट्रपति का पदभार ग्रहण करने के बाद राष्ट्रपति कोविंद ने अक्टूबर, 2017 में जिबूती और इथियोपिया की पहली विदेश यात्रा की। जब उप राष्ट्रपति हमीद अंसारी ने फरवरी, 2017 में रवांडा का दौरा किया तो वह इस देश की यात्रा करने वाले पहले भारतीय नेता बन गए।
  • इस रणनीति की तहत जब मार्च 2020 में ब्व्टप्क्-19 युग शुरू हुआ, तो नई दिल्ली ने अफ्रीका की सहायता के लिए नई पहल की दवाओं और बाद में टीकों के शीघ्र प्रेषण के माध्यम से भारत ने इस नीति को आगे बढ़ाते हुए अपने सॉफ्ट पावर विदेश नीति का परिचय दिया है।

सम्बन्धों की वर्तमान स्थिति

नवीनतम आर्थिक आंकड़े इस बात की पुष्टि करते हैं कि भारत-अफ्रीका व्यापार में गिरावट आ रही है।

  • भारतीय उद्योग परिसंघ के अनुसार, 2020-21 में, भारत का निर्यात और आयात अफ्रीका से पिछले वर्ष की तुलना में 4.4% और 2.5% कम हुआ।
  • अफ्रीका में भारत के निवेश में भी 2020-21 में कमी देखी गई।
  • अप्रैल 1996 से मार्च 2021 तक 25 वर्षों में कुल निवेश चीन का लगभग एक-तिहाई है।

सम्बन्धों की पृष्ठभूमि

स्वतंत्रता के बाद भारत की विदेश नीति ने अफ्रीकी उपनिवेशवाद आंदोलनों को काफी प्रभावित किया।

वर्ष 1955 के बांडुंग सम्मेलन (Bandung Conference) में भारत ने पहली बार एशियाई और अफ्रीकी देशों को साम्राज्यवाद तथा उपनिवेशवाद के खिलाफ साथ आने का आह्वान किया। साथ ही गुटनिरपेक्ष आंदोलन के बाद भारत ने कई अफ्रीकी देशों के साथ संबंध स्थापित किये।

  • भारत और अफ्रीका पीपल-टू-पीपल (People-to-People) संबंधों के तौर पर जुड़े हैं जिसके तहत ऐतिहासिक रूप से भारतीय व्यापारी पूर्वी-अफ्रीकी तट पर नियमित रूप से यात्रा करते थे एवं बंदरगाहों में स्थानीय निवासियों के साथ संबंध स्थापित करते थे। इस प्रकार अफ्रीका में भारतीय पारिवारिक व्यवसायों की स्थापना हुई।
  • एक प्रभावशाली भारतीय डायस्पोरा की उपस्थिति के कारण कई अफ्रीकी देशों के साथ भारत के सकारात्मक संबंध कायम है।
  • ऐतिहासिक, राजनीतिक, आर्थिक और पीपल-टू-पीपल (People-to-People) संबंधों के माध्यम से अफ्रीका में भारत की मौजूदा सामाजिक पूंजी (Social Capital) के कारण अफ्रीकी देशों द्वारा चीन के मुकाबले भारत को अधिक महत्व दिया जाता है।

भारत की चिंताएं

अफ्रीका का साहेल क्षेत्र ISIS और अल कायदा समर्थक आतंकवाद का अड्डा बना है साथ ही माली, नाइजीरिया, चाड़ जैसे देशों ने इस्लामिक स्टेट वेस्ट अफ्रीका प्रॉविंस (ISWAP), इस्लामिक स्टेट सेंट्रल अफ्रीका प्रॉविंस (ISCAP), अल कायदा इन इस्लामिक मगरेब (AQIM) और कई छोटे-छोटे संगठनों पर प्रभाव पड़ा है, जो भारत के हितों के लिए चिंता का कारण है।

अफ्रीका में चीन की चुनौती

भारत, अफ्रीका में मौजूद सामाजिक पूंजी के बावजूद भौतिक संसाधनों के मामले में चीन से पीछे है। अफ्रीका के आर्थिक क्षेत्र में चीन के द्वारा किये जा रहे निवेश भारत के मुकाबले कहीं अधिक है। अफ्रीका में लगभग 10,000 से अधिक चीनी कंपनियॉं कार्य कर रही है और चीन अफ्रीका का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बन गया है।

  • चीन अफ्रीकी देशों के लिए सबसे बड़ा बाजार, आयात-निर्यात का सबसे बड़ा स्रोत, निवेशक, बिल्डर और दान प्रदाता बन गया। अपनी एक रिपोर्ट में विश्व बैंक ने अफ्रीकी देशों को बुनियादी ढांचे में निवेश के लिए चीन की ओर से मुहैया कराए जा रहे निवेश से विकास की अपार संभावनाओं के खुलने को रेखांकित किया था। इन ऋणों को अक्सर ‘संसाधनों के बदले बुनियादी ढांचा’ का नाम दिया जाता रहा है क्योंकि इन ऋणों को अफ्रीका से चीन को होने वाले संसाधनों के निर्यात से जोड़कर देखा जाता रहा है। चीनी ऋणों ने ज्यादातर अफ्रीकी देशों में रेलवे, हवाई अड्डे, सड़क, पुल, ऊर्जा से जुड़े बुनियादी ढांचे, फुटबॉल के मैदान, अस्पताल, राष्ट्रपति भवनों आदि के निर्माण के लिए जरूरी रकम जुटाने में मदद की है।
  • चीन ने अपनी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) से लगभग पूरे अफ्रीका को पाट दिया है। बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (Belt and Road Initiative-BRI) परियोजनाओं के जरिये चीन अनिवार्य रूप से अफ्रीकी देशों के लिये विकास का एक वैकल्पिक मॉडल प्रस्तुत करने की कोशिश कर रहा है।

भारत की भूमिका

पिछले दशक में रक्षा और सुरक्षा सहयोग भारत और अफ्रीका के देशों के लिए 21वीं सदी का महत्वपूर्ण स्तंभ बनकर उभरा है। इसकी वजह है कि हमारे रणनीतिक सिद्धांत, सैन्य परंपरा, कमांड संरचना और ट्रेनिंग के तरीकों में समानता है।

  • भारत और अफ्रीका- दोनों मजबूती से मानते हैं कि शांति और सुरक्षा मूलभूत रूप से विकास से जुड़े हैं और आतंकवाद मानवता के लिए सबसे बड़ा खतरा है।
  • स्वाभाविक रूप से भारतीय-अफ्रीकी कोशिशों में सभी रूपों में आतंकवाद को जड़ से खत्म करने, आतंकी नेटवर्क को अस्तव्यस्त करने, वित्तीय साधनों (हवाला सिस्टम) को मिटाने और सीमा पार गतिविधियों को रोकने पर ध्यान दिया गया है।
  • भारत-अफ्रीका के मध्य अफ्रीका-इंडिया फील्ड ट्रेनिंग एक्सरसाइज (AFINDEX) की शुरुआत, जो मार्च 2019 में पुणे में हुई थी और भारत-अफ्रीका रक्षा मंत्री कॉन्क्लेव (IADMC) दोनों देशों के मध्य बढ़ते संबंधों का सूचक है।
  • जिसका उदेश्य मानवीय सहायता और शांति अभियान की योजना बनाना और उसे संचालित करना तथा रक्षा, सैन्य और सुरक्षा सहयोग का विस्तार करना है।
  • दोनों देशों द्वारा हर तरह के सशस्त्र संघर्ष को रोकना, उनका निपटारा और समाधान अफ्रीका के एजेंडा 2063 और प्रधानमंत्री मोदी के द्वारा 2018 में अपनाई गई भारत-अफ्रीका भागीदारी के लिए 10 मार्गदर्शक सिद्धांत पर आधारित है। आतंकवाद का विरोध, हिंसक चरमपंथ का मुकाबला करना और अंतर्राष्ट्रीय अपराध जैसे मुद्दों पर खास ध्यान है, जो एजेंडा 2063 के साथ भारत के अफ्रीका एजेंडा से भी जुड़े हैं।

वैश्विक प्रतिस्पर्धा

एक अध्ययन के अनुसार, अफ्रीका ने एक तेज अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा का सामना किया है, जिसे 21वीं सदी के पहले दो दशकों में ‘तीसरा संघर्ष’ के रूप में जाना जाता है। अमेरिका, यूरोप और एशिया देशों ने इस समस्या के समाधान में अफ्रीका की सहायता करने का प्रयास किया है तथा महाद्वीप की राजनीतिक और सामाजिक चुनौतियां के समाधान के बदले में अफ्रीका के बाजारों से खनिज, हाइड्रोकार्बन और समुद्री संसाधन का लाभ प्राप्त कर उस क्षेत्र में भू-राजनीतिक का विस्तार किया।

  • चीन ने इस महामारी के दौरान सफलतापूर्वक अफ्रीका के क्षेत्र में इस्तेमाल अपने सामरिक और आर्थिक हितों का विस्तार का प्रयास किया परन्तु भारत की ‘वैक्सीन डिप्लोमेसी’ ने उसके इस प्रयास को कमजोर कर दिया है।
  • एशिया में भू-राजनीतिक तनाव और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अपनी स्थिति को मजबूत करने की अनिवार्यता ने नई दिल्ली को यूनाइटेड किंगडम, यूरोपीय संघ और क्वाड शक्तियों के साथ अपने संबंधों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए मजबूर किया है।

भारत की भूमिका

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अफ्रीका में संघर्ष और महामारी के बाद की रिकवरी पर खुली बहस में, भारत ने दोहराया कि सुरक्षा परिषद में ‘अफ्रीका की आवाज को उसका उचित हक नहीं दिया गया’।

  • भारत, अफ्रीका शांति स्थापना में महवपूर्ण तथा अफ्रीकी आतंकवाद विरोधी अभियानों को सहायता देने में, अफ्रीकी संस्थानों को प्रशिक्षण और क्षमता बढ़ाने वाली सहायता में योगदान दे रहा है।
  • डिफेंस एक्सपो और एरो इंडिया जैसी रक्षा प्रदर्शनियों में नियमित बातचीत के अलावा अफ्रीका के बाजारों में भारत की रक्षा कंपनियों की मौजूदगी को मजबूती से बढ़ाना होगा।
  • भारत जमीन से हवा में मार करने वाले मिसाइल सिस्टम आकाश, हल्के लड़ाकू विमान, तट से दूर गश्त करने वाले जहाज, डॉर्नियर Do-228 एयरक्राफ्ट, स्पोर्ट्स यूटिलिटी व्हीकल, धनुष आर्टिलरी गन सिस्टम, हल्के हथियार और गोला-बारूद और नाइट विजन इक्विपमेंट अफ्रीका के उन देशों को निर्यात करने पर विचार कर सकता है, जिनके विचार हमसे मिलते हैं।
  • ऐसा करने से न सिर्फ अफ्रीका के साथ भारत की साझेदारी मजबूत होगी बल्कि आतंकवाद से निपटने में अफ्रीका की क्षमता भी बढ़ेगी।

आगे की राह

पारस्परिक लाभ के लिए अफ्रीका और भारत को बेहतर तरीके से जुड़े रहना चाहिए। यह अवसर का लाभ उठाने और अपनी कूटनीति और आर्थिक हितों को अफ्रीका में प्राथमिकता देने का समय है।

  • अफ्रीका को भारत द्वारा अनुदान और रियायती ऋण के लिए नए वित्तीय संसाधन आवंटित किए जाने चाहिए।
  • भारत द्वारा अफ्रीका के साथ साझेदारी को 21वीं सदी का स्वरूप प्रदान करना आवश्यक है।
  • इसका अर्थ है स्वास्थ्य, अंतरिक्ष और डिजिटल प्रौद्योगिकियों में सहयोग विकसित करने से हैं। अफ्रीका में चीन की चुनौती को दूर करने के लिए, भारत और उसके बीच सहयोग बढ़ाने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोगियों की जरूरत है। हाल के भारत-यूरोपीय संघ शिखर सम्मेलन ने अफ्रीका को एक ऐसे क्षेत्र के रूप में पहचाना है जहां साझेदारी आधारित है।