भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा क्वाड के सदस्य देशों संयुक्त राज्य अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया तथा जापान के साथ संवाद के दौरान ‘बाह्य अंतरिक्ष सहयोग’ (Outer Space Cooperation) बढ़ाने पर जोर दिया तथा इस दिशा में भारत ने अमेरिका के साथ ‘अंतरिक्ष स्थिति जागरूकता समझौता ज्ञापन’ (Space Situational Awareness MoU) सम्पन्न किया है जो भारत को बाह्य अंतरिक्ष गतिविधियों के संबंध में डेटा और सेवाओं को साझा करने में म करेगा। भारत ने पहली बार किसी देश के साथ इस तरह का समझौता किया है, ज्ञात हो कि अंतरिक्ष सहयोग पर भारत और उसके क्वाड भागीदारों का जोर देना एक बृहद् प्रौद्योगिकी एजेंडे का भाग है।
बाह्य अंतरिक्ष में भारत की बढ़ती रुचि का कारण
बाह्य अंतरिक्ष
इसे सामान्य रूप में ‘अंतरिक्ष’ भी कहा जाता है। यह आकाशीय पिंडों के वायुमंडल के परे ब्रह्मांड के अपेक्षाकृत खाली क्षेत्रों को संदर्भित करता है। यहां कणों का घनत्व कम होता है, जिनमें मुख्य रूप से हाइड्रोजन, हीलियम, विद्युत चुम्बकीय विकिरण, न्यूट्रिनो, धूल, ब्रह्मांडीय किरणें आदि पाई जाती हैं। यह पृथ्वी से लगभग 100 किमी- ऊपर शुरू होता है, जहां हमारे ग्रह के चारों ओर पाया जाने वाला वायुमंडल गायब हो जाता है। यहां सूर्य के प्रकाश को बिखेरने और नीला आकाश उत्पन्न करने वाले कारक नहीं होते हैं। इस कारण अंतरिक्ष काला दिखाई देता है।
अंतरिक्ष स्थितिपरक जागरूकता (SSA)
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भारत के लिए अवसर
इसरो की भूमिकाः वर्तमान समय में इसरो द्वारा प्रक्षेपण के क्षेत्र में वैश्विक प्रतिष्ठा प्राप्त है तथा यह विश्व के कई देशों के उपग्रहों का प्रक्षेपण कर चूका है। इस प्रकार भारत के पास इसके वाणिज्यिक दोहन की प्रबल सम्भावना है।
अंतरिक्ष में बढ़ती गतिविधियां एवं वैश्विक अंतरिक्ष बाजारः बाह्य अंतरिक्ष वैश्विक स्तर पर अंतरिक्ष उपग्रह प्रक्षेपण का बड़ा बाजार बन गया है तथा यह बाजार लगातार बढ़ रहा है। वर्तमान में इसके लगभग 450 बिलियन डॉलर मूल्य का होने का अनुमान है। इस दशक के अंत तक इसके बढ़कर 1.4 ट्रिलियन डॉलर होने की उम्मीद है।
अंतरिक्ष पर्यटनः हाल के समय में बाह्य अंतरिक्ष एक पर्यटन गंतव्य के रूप में उभरा है। वर्तमान में स्पेस एक्स, ब्लू ओरिजिन आदि कंपनियां इसका दोहन कर रही है। अभी अंतरिक्ष पर्यटन शैशवावस्था में है, जिसके भविष्य में बढ़ने की पूरी संभावना है।
सैन्य शक्ति संतुलनः अंतरिक्ष धीरे-धीरे पृथ्वी पर सैन्य शक्ति संतुलन को आकार देने में एक महत्वपूर्ण कारक के रूप में विकसित हो रहा है। इसलिए, विभिन्न देशों के बीच अंतरिक्ष तथा उपग्रह प्रक्षेपण प्रौद्योगिकी में आगे निकलने की प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है। भारत सहित अमेरिका, रूस, चीन ने उपग्रहों को अंतरिक्ष में नष्ट करने की क्षमता भी प्राप्त कर ली है।
भारत के लिए चुनौतियां
निजी क्षेत्र की कम भागीदारीः भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम मुख्य रूप से भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) के द्वारा संचालित किया जाता है। इसरो एक सरकारी क्षेत्र का उद्यम है। अमेरिका, चीन और रूस जैसे देशों में विनिर्माण समर्थन के अलावा जटिल संचालन कार्यों में निजी क्षेत्र की उच्च भागीदारी पाई जाती है।
संस्थागत समर्थन की कमीः भारत में अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी क्षेत्र को बढ़ावा देने से संबंधित एक उचित संस्थागत समर्थन की कमी पाई जाती है। भारत में एक उचित अनुकूल पारिस्थितिक तंत्र का भी अभाव पाया जाता है।
विशिष्ट कानून का अभावः भारत में कोई विशिष्ट व्यापक कानून नहीं है, जो अंतरिक्ष क्षेत्र से संबंधित पारिस्थितिक तंत्र को नियंत्रित करता हो।
मानव संसाधन की चुनौतीः भारत में अंतरिक्ष क्षेत्र में कार्य करने में सक्षम कुशल मानव संसाधन की कमी है। इसका एक बड़ा कारण देश के विभिन्न संस्थानों में प्रदान की जाने वाली निम्न गुणवत्ता वाली शिक्षा है।
बाह्य अंतरिक्ष संबद्ध समस्याएँ
अंतरराष्ट्रीय संगठनों और संधियों की कमजोरी
इन सबके साथ-साथ मून रश, संपत्ति अधिकारों, ट्रैफिक नियमों, आपराधिक संहिता और लागू करने वाली एजेंसियों को लेकर अंतरर्राष्ट्रीय स्तर पर कानून की कमी है।
बाह्य अन्तरिक्ष संधिः अंतरिक्ष क्षेत्र को विनियमित करने हेतु अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 1960 व 1970 के दशक के कई कानून एवं संधियां हैं, उदाहरणस्वरूप 1967 की बाह्य अंतरिक्ष संधि आदि।
आगे की राह
बैंक ऑफ अमेरिका का कहना है कि वर्तमान में बाह्य अंतरिक्ष मार्केट लगभग 350 बिलियन डॉलर की है, जिसके 2050 तक 2.7 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचने की संभावना है इसलिए भारत द्वारा बाह्य अंतरिक्ष में उपलब्ध अवसर का लाभ उठाने सार्वजनिक और निजी संस्थानों का आपसी सहयोग के साथ-साथ अंतरिक्ष अनुसंधान एवं विकास पर वित्तपोषण को बढ़ावा देकर एक स्वतंत्र नियामक स्थापित किये जाने की आवश्यकता है।