बिम्सटेक की प्रासंगिकता, महत्व एवं चुनौतियां

अप्रैल, 2021 को श्रीलंका की अध्यक्षता में ‘बहु-क्षेत्रीय तकनीक और आर्थिक सहयोग के लिये बंगाल की खाड़ी पहल’ (BIMSTEC) की 17वीं मंत्री स्तरीय बैठक वर्चुअल माध्यम से आयोजित की गई। भारत ने क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ाने और संगठन को अधिक सुदृढ़, जीवंत, प्रभावी तथा परिणाम-उन्मुख बनाने की प्रतिबद्धता दोहराई, ताकि सदस्य देशों के बीच क्षेत्रीय सहयोग को मजबूत किया जा सके।

बैठक के प्रमुख निष्कर्ष

बैठक के दौरान सदस्य देशों द्वारा परिवहन संपर्क बढ़ाने से संबंधित बिम्सटेक मास्टर प्लान को अपनाने पर सहमति व्यक्त की गई। श्रीलंका द्वारा आयोजित पांचवें बिम्सटेक शिखर सम्मेलन में इसे अपनाने का लक्ष्य रखा गया जिससे इससे क्षेत्र का बेहतर एकीकरण हो सकेगा।

  • पांचवें बिम्सटेक शिखर सम्मेलन में बिम्सटेक के सदस्य देशों के द्वारा निम्नलिखित तीन अन्य समझौतों पर हस्ताक्षर करने का लक्ष्य रखा गया है-
    1. अपराधिक मामलों में आपसी कानूनी सहायता पर समझौता।
    2. सदस्य देशों की राजनयिक अकादमियों के बीच सहयोग पर समझौता ज्ञापन।
    3. कोलंबो में एक प्रौद्योगिकी हस्तांतरण सुविधा स्थापित करने से संबंधित मेमोरंडम ऑफ एसोसिएशन।

बिम्सटेक

  • बिम्सटेक एक क्षेत्रीय संगठन है, जिसकी स्थापना वर्ष 1997 में बैंकाक घोषणा के माध्यम से की गई थी।
  • यह दक्षिण एशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया के सात देशों (बांग्लादेश, भारत, म्यांमार, श्रीलंका, थाईलैंड, नेपाल और भूटान) का एक संगठन है। संगठन के सभी सदस्य बंगाल की खाड़ी के समीपवर्ती क्षेत्रों से संबन्धित हैं।

उद्देश्यः आर्थिक विकास के लिए एक सक्षम वातावरण बनाना; सामाजिक प्रगति में तेजी लाना और क्षेत्र में आपसी हितों के मामलों पर सहयोग को बढ़ावा देना।

महत्वः लगभग 1.5 बिलियन लोग या वैश्विक जनसंख्या का 22% बिम्सटेक के अंतर्गत आता है। इसका कुल सकल घरेलू उत्पाद 2.7 ट्रिलियन डॉलर है।

सहयोग के क्षेत्रः वर्तमान में संगठन में सहयोग के 15 क्षेत्रों को सम्मिलित किया गया है। इसमें व्यापार, प्रौद्योगिकी, कृषि, पर्यटन, मत्स्य पालन, ऊर्जा, और जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर क्षेत्रीय सहयोग जैसे विषय सम्मिलित हैं।

पहला शिखर सम्मेलनः वर्ष 2004 में बैंकाक, थाईलैंड में आयोजन किया गया था।

वर्तमान परिदृश्य में बिम्सटेक की प्रासंगिकता

  • दक्षिण तथा दक्षिण-पूर्व एशिया के बीच संपर्कः बिम्सटेक दक्षिण तथा दक्षिण-पूर्व एशिया के बीच बेहतर संपर्क एवं सहयोग का माध्यम बन सकता है।
  • बिम्सटेक में दक्षिण एशिया तथा दक्षिण-पूर्व एशिया दोनों क्षेत्रों के देश हैं, जो संबंधों को बेहतर बनाने में म कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, बिम्सटेक मास्टर प्लान तथा आसियान मास्टर प्लान के साथ तालमेल को बढ़ावा देने से क्षेत्रीय कनेक्टिविटी को विस्तारित किया जा सकता है।
  • विशाल अप्रयुक्त क्षमताः एशियाई विकास बैंक के एक अध्ययन ने बिम्सटेक क्षेत्र के भीतर 167 परियोजनाओं की पहचान की है, जो कनेक्टिविटी को बढ़ावा दे सकते हैं। हालांकि समूह द्वारा उनमें से केवल 66 पर ही ध्यान केंद्रित किया गया है। शेष पर अभी तक पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है।
  • सामरिकः बंगाल की खाड़ी क्षेत्र हिन्द और प्रशांत महासागरों के बीच एक महत्वपूर्ण पारगमन मार्ग है। इसलिए संगठन के रूप में बिम्सटेक नौवहन की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने में सहायता कर सकता है। यह खाड़ी की प्राकृतिक संपदा का उपयोग करने और साझा करने में भी सहायता कर सकता है।
  • सुरक्षाः समूह के सदस्य कई पारंपरिक और गैर-पारंपरिक सुरक्षा चुनौतियों का सामना करते हैं। सदस्य देश मादक पदार्थों की तस्करी को नियंत्रित करने, खुफिया जानकारी साझा करने, आतंकवाद-निरोध, तटीय सुरक्षा, साइबर सुरक्षा, आदि पर सहयोग कर रहे हैं।
  • सहायता के अन्य क्षेत्रः संगठन सदस्य देशों को भविष्य की अनिश्चितताओं, विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन संबंधी चुनौतियों, कोविड-19 महामारी आदि, से निपटने में सहायता कर सकता है।

भारत के लिए बिम्सटेक का महत्व

  • उत्तर-पूर्व का विकासः बिम्सटेक बांग्लादेश और म्यांमार के साथ वार्ता का एक मंच प्रदान करता है। पूर्वोत्तर भारत की सीमा से लगने वाले पड़ोसी देशों के साथ संपर्क, वाणिज्य-व्यापार पर सार्थक वार्ता कर सम्पूर्ण क्षेत्र के विकास को बढ़ावा दिया जा सकता है।
  • उदाहरण के लिए संपर्क बढ़ाने से संबंधित मास्टर प्लान में भारत-म्यांमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग और कोलकाता-सिलीगुड़ी-गुवाहाटी-इंफाल लिंक सम्मिलित है।
  • सार्क का विकल्पः दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) को भारत और पाकिस्तान के मध्य लगातार मतभेदों ने संगठन को निष्क्रिय बना दिया है। चूंकि बिम्सटेक में इस प्रकार की समस्या नहीं है, अतः इससे इस क्षेत्र में अधिक से अधिक सहयोग को बढ़ावा दिया जा सकेगा।
  • आसियान के साथ बेहतर सहयोगः भारत पहले ही क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (RCEP) समझौते से बाहर आ चुका है। चूंकि यह भारत की व्यापार क्षमता में बाधा उत्पन्न कर सकता था। इसलिए थाइलैंड और म्यांमार के साथ और अधिक मजबूत सहयोग, भारत-आसियान मतभेदों को हल करने तथा ‘एक्ट ईस्ट’ पॉलिसी का बेहतर कार्यान्वयन सुनिश्चित कर सकता है।
  • चीन को प्रतिसंतुलित करनाः बिम्सटेक चीन की चेक बुक डिप्लोमेसी का मुकाबला करने में सहायता कर सकता है। इसके अलावा, यह भारत-प्रशांत में एक जिम्मेदार क्षेत्रीय शक्ति के रूप में भारत की स्थिति को मजबूत कर सकता है।

बिम्सटेक से संबंधित चुनौतियां

  • समझौतों पर गतिरोधः मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए), तटीय नौवहन समझौता और मोटर वाहन समझौते में कई वार्ताओं का दौर हो चुका है। लेकिन अभी तक इन पर कोई आम सहमति विकसित नहीं हो सकी है।
  • द्विपक्षीयता को प्राथमिकताः संगठन के सदस्य देशों द्वारा बहुपक्षवाद के साथ द्विपक्षीय रूप से भी संबंधों को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।
  • बिग ब्रदर की छविः संगठन में एक प्रमुख भूमिका निभाने और छोटे देशों के एजेंडों की उपेक्षा करने से संबंधित आरोप भारत पर लगाए जाते हैं।
  • काम करने में अनियमितताः शिखर सम्मेलन नियमित अंतराल पर आयोजित नहीं किए जाते हैं। काम करने की गति भी धीमी देखी जाती है। उदाहरण के लिए एक स्थायी सचिवालय की स्थापना में लगभग 17 साल लग गए।
  • अन्य संगठनों को पसंदः म्यांमार और थाईलैंड जैसे देश आसियान के प्रति अधिक उत्साह दिखाते हैं और बिम्सटेक के दृष्टिकोण की उपेक्षा करते हैं।
  • संसाधन की कमीः पर्याप्त वित्तीय और जनशक्ति संसाधनों का अभाव संगठन की कार्यक्षमता को प्रभावित कर रहा है। हालांकि भारत सबसे बड़ा योगदानकर्ता देश है और अकेले बिम्सटेक के वार्षिक बजट का लगभग 32 प्रतिशत योगदान करता है।

आगे की राह

सदस्य देशों को आगामी बिम्सटेक शिखर सम्मेलन में प्रस्तावित समझौतों को अपनाना चाहिए, इससे संगठन का विश्वास बढ़ेगा।

  • संगठन को लंबे समय से लंबित समझौतों, जैसे बिम्सटेक तटीय शिपिंग समझौते और मोटर वाहनों के समझौते पर सहमति विकसित करनी चाहिए।
  • संगठन को पर्यटन, शैक्षणिक कार्यक्रमों की सुविधा और सीमा पार सार्वजनिक स्वास्थ्य पहल पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
  • बिम्सटेक सदस्यों को वीजा सुविधा समझौते को तेजी से अंतिम रूप देना चाहिए। इससे इस क्षेत्रीय संगठन में आम आदमी के हितों को मजबूत करने में म मिलेगी।