भारत-ताइवान संबंध

भारत और ताइवान के मध्य साझेदारी के 25 वर्ष पूर्ण हो चुके है, हालांकि दिल्ली और ताश्वान के बीच आपसी प्रयासों ने कृषि, निवेश, सीमा शुल्क सहयोग, नागरिक उड्डयन, औद्योगिक सहयोग और अन्य क्षेत्रों को कवर करने वाले कई द्विपक्षीय समझौतों को सक्षम किया है।

राजनीतिक संबंधों का विकास

भारत-ताइवान संबंधों को पुनर्गठित करने के लिए एक राजनीतिक ढांचा तैयार करना एक पूर्वापेक्ष है। दोनों भागीदारों ने सामूहिक विकास के प्रमुख सिद्धांतों के रूप में लोकतंत्र और विविधता के साथ आपसी सम्मान को गहरा किया है। स्वतंत्रता, मानवाधिकार, न्याय और कानून के शासन में साझा विश्वास साझेदारी को आगे बढ़ाता है।

  • 1990 के दशक में भारत ने ‘लुक ईस्ट पॉलिसी’ के तहत भारत और ताइवान के संबंधों में भी बढ़ोतरी देखने को मिली, तथा वर्ष 1995 में दोनों देशों ने एक-दूसरे की राजधानियों में प्रतिनिधि कार्यालय स्थापित किये, जैसे- ताइपे इकोनॉमिक एंड कल्चरल सेंटर इन इंडिया (ज्म्ब्ब्) और भारत-ताइपे एसोसिएशन (प्ज्।) आदि।
  • हाल ही में ताइवान ने कोरोना वायरस रोगियों के इलाज में लगे चिकित्साकर्मियों की सुरक्षा के लिये भारत को 1 मिलियन फेस मास्क प्रदान किये थे।

आपसी सहायता

वायु गुणवत्ता को बनाए रखना भारत सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है तथा ताईवान अपने जैव-अनुकूल उर्जा तकनीकि प्रौद्योगिकियों के माध्यम से इस चुनौती से निपटने में एक मूल्यवान भागीदार हो सकता है।

  • कृषि अपशिष्ट को मूल्यवर्धित और पर्यावरण के लिए लाभकारी अक्षय ऊर्जा या जैव रसायन में परिवर्तित करने के लिए इस तरह के तरीकों को लागू किया जाता है।
  • यह वायु प्रदूषण से निपटने में म करेगी।
  • किसानों की आय में भी वृद्धि होगी।

सांस्कृतिक विनियमन

सांस्कृतिक आदान-प्रदान किसी भी सभ्यतागत आदान-प्रदान की आधारशिला है। इसलिए भारत और ताइवान को लोगों से लोगों के बीच जुड़ाव अर्थात लोक कूटनीित को घनिष्ट करने की जरूरत है।

  • सांस्कृतिक संबंधों के विकास में पर्यटन प्रमुख भूमिका निभा सकता है तथा अतुल्य भारत के साथ-साथ, बौद्ध तीर्थ यात्रा को बेहतर करने की आस्वश्Õकता है। ताइवान पर्यटन ब्यूरो तथा मुंबई मेट्रो के साथ साझेदारी से, ताइवान को अपने देश के बारे में जागरूकता बढ़ाने भारतीय पर्यटकों की आमद में वृद्धि करने का अवसर प्राप्त होगा।

आर्थिक सम्बन्ध की मजबूती

दोनों देशों के मध्य व्यपारिक संबंधों में वृद्धि हुई है तथा भारत का विशाल बाजार ताइवान को निवेश प्रदान करता है।

  • ताइवान सेमीकंडक्टर और इलेक्ट्रॉनिक्स के बाजार में विश्व में अग्रणी है। अतः भारत इस क्षेत्र में ताइवान से लाभ प्राप्त कर सकता है। सुचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में दोनों देशों के बीच संबंधों के विकास और हितों के अभिसरण से नए अवसर पैदा करने में म मिलेगी।
  • भारत द्वारा अगले 5 वर्षों में स्मार्टफोन के उत्पादन हेतु 10-5 ट्रिलियन रुपये (143 अरब डॉलर) से अधिक के निवेश को आकर्षित करने हेतु केंद्र सरकार ने ताइवान की फॉक्सकॉन टेक्नोलॉजी ग्रुप, विस्ट्रॉन कॉर्प और पेगाट्रॉन कॉर्प सहित कई फर्मों को भारत में निवेश की मंजूरी दी।
  • वर्ष 2018 में द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर था।
  • भारत-ताइवान के बीच विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में द्विपक्षीय संबंधों की शुरुआत सर्वप्रथम वर्ष 2018 में हुई थी, जब ताइपे इकोनॉमिक एंड कल्चरल सेंटर इन इंडिया (ज्म्ब्ब्) और भारत-ताइपे एसोसिएशन (प्ज्।) ने विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में सहयोग के लिये एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये थे।

भारत के लिये ताइवान का महत्व

भारत संयुक्त राष्ट्र के उन 179 सदस्य देशों में से एक है, जिसने ताइवान के साथ औपचारिक राजनयिक संबंध स्थापित नहीं किया है। परन्तु ताइवान के साथ अनौपचारिक और आर्थिक संबंध है।

  • ताइवान, पूर्वी एशिया में चीन का मुकाबला करने हेतु महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है तो यह भारत की ‘लुक ईस्ट पॉलिसी’ और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में भारत की बढ़ती भूमिका के लिये महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।
  • अमेरिका-चीन के बीच चल रहा व्यापार युद्ध के कारण ताइवानचीन में स्थापित अपनी विनिर्माण इकाइयों को भारत में स्थापित कर सकता है। ताइवान का 2016 की ‘न्यू साउथबाउंड पॉलिसी’ (New South bound Policy) में 10 आसियान (ASEAN) देशों के साथ-साथ ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और भारत के साथ संबंधों को बढ़ाने की बात कही गई है।
  • विश्व भर में ताइवान को एक ‘टेक पावरहाउस’ है, परन्तु घटती जन्म दर और प्रवासन में वृद्धि के कारण ताइवान में कुशल श्रमिकों का अभाव रहा है, जो भारत कुशल श्रमिकों को रोजगार प्रदान कर सकता है। ऐसे में ताइवान में कुशल श्रमिकों की मांग भारत के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण हो सकती है।
  • वन चाइना पॉलिसी’
  • इस नीति के तहत चीन ताइवान को अपना हिस्सा मानता है क्योंकि उसका मानना है कि ताइवान भी हांगकांग और मकाऊ की तरह चीन के अधिकार क्षेत्र में आता है लेकिन ताइवान चीन की इस नीति को नहीं मानता है और स्वयं को स्वतंत्र घोषित करता है। हालांकि दुनिया के अधिकांश देश चीन की वन चाइना पॉलिसी का समर्थन करते हैं और ताइवान को मान्यता नहीं देते हैं। संयुक्त राष्ट्र ने ताइवान को मान्यता नहीं दी है। भारत ने भी सीधे तौर पर कभी ताइवान को एक अलग देश नहीं माना है। लेकिन भारत ताइवान के साथ औपचारिक संबंधों को बढ़ाने पर विचार कर रहा है।

चिंताएं/चुनौतियां

विशाल संभावनाओं के बावजूद, भारत में ताइवान का निवेश नगण्य रहा है। इसका एक कारण ताइवान की फर्मों को भारत नियामक और श्रम व्यवस्था कठिन लगती है।

  • भारत-ताइवान के मध्य व्यापारिक संबंधों में चीन का वन चाइना पॉलिसी के तहत हस्तक्षेप।
  • दोनों देशों के मध्य व्यापारिक संबंधों को आगे बढ़ाने में टैक्स संरचना की चुनौती।
  • मध्य व्यापारिक समझौते के प्रमुख अवरोध के रूप में फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (थ्ज्।) को लेकर जारी वार्ता में की जाने वाली देरी।
  • दोनों देशों के मध्य सम्बन्धों को बढ़ावा देने में चीन सबसे बड़ा अवरोधक है। भारत में कुशल श्रमिकों की कमी उसे ताइवान की मांग को पूरा करने में समस्या खड़ी कर सकती है।

आगे की राह

वर्तमान में चीन अमेरिका की बढ़ती वैश्विक प्रतिस्पर्धा भारत के लिए इस क्षेत्र में लाभ के अवसर पैदा कर सकता है। भारत को ताइवान के साथ आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संबंध स्थापित करने में चीन की ‘एक चीन नीति’ अलग रख कर देखना होगा।