भारत और ताइवान के मध्य साझेदारी के 25 वर्ष पूर्ण हो चुके है, हालांकि दिल्ली और ताश्वान के बीच आपसी प्रयासों ने कृषि, निवेश, सीमा शुल्क सहयोग, नागरिक उड्डयन, औद्योगिक सहयोग और अन्य क्षेत्रों को कवर करने वाले कई द्विपक्षीय समझौतों को सक्षम किया है।
राजनीतिक संबंधों का विकास
भारत-ताइवान संबंधों को पुनर्गठित करने के लिए एक राजनीतिक ढांचा तैयार करना एक पूर्वापेक्ष है। दोनों भागीदारों ने सामूहिक विकास के प्रमुख सिद्धांतों के रूप में लोकतंत्र और विविधता के साथ आपसी सम्मान को गहरा किया है। स्वतंत्रता, मानवाधिकार, न्याय और कानून के शासन में साझा विश्वास साझेदारी को आगे बढ़ाता है।
आपसी सहायता
वायु गुणवत्ता को बनाए रखना भारत सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है तथा ताईवान अपने जैव-अनुकूल उर्जा तकनीकि प्रौद्योगिकियों के माध्यम से इस चुनौती से निपटने में एक मूल्यवान भागीदार हो सकता है।
सांस्कृतिक विनियमन
सांस्कृतिक आदान-प्रदान किसी भी सभ्यतागत आदान-प्रदान की आधारशिला है। इसलिए भारत और ताइवान को लोगों से लोगों के बीच जुड़ाव अर्थात लोक कूटनीित को घनिष्ट करने की जरूरत है।
आर्थिक सम्बन्ध की मजबूती
दोनों देशों के मध्य व्यपारिक संबंधों में वृद्धि हुई है तथा भारत का विशाल बाजार ताइवान को निवेश प्रदान करता है।
भारत के लिये ताइवान का महत्व
भारत संयुक्त राष्ट्र के उन 179 सदस्य देशों में से एक है, जिसने ताइवान के साथ औपचारिक राजनयिक संबंध स्थापित नहीं किया है। परन्तु ताइवान के साथ अनौपचारिक और आर्थिक संबंध है।
चिंताएं/चुनौतियां
विशाल संभावनाओं के बावजूद, भारत में ताइवान का निवेश नगण्य रहा है। इसका एक कारण ताइवान की फर्मों को भारत नियामक और श्रम व्यवस्था कठिन लगती है।
आगे की राह
वर्तमान में चीन अमेरिका की बढ़ती वैश्विक प्रतिस्पर्धा भारत के लिए इस क्षेत्र में लाभ के अवसर पैदा कर सकता है। भारत को ताइवान के साथ आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संबंध स्थापित करने में चीन की ‘एक चीन नीति’ अलग रख कर देखना होगा।