बदलती भू-राजनीति में भारत की स्थिति

वर्तमान वैश्विक व्यवस्था में तेजी से बदलते भू-राजनीति के परिदृश्य में विश्व में मौलिक स्तर पर रूपांतरण होने से अनिश्चितता उत्पन्न हो रही है तथा वैश्विक स्तर पर वैश्वीकरण की गति में अवरोध आए है।

  • उदारीकृत व्यापार व्यवस्था अब संरक्षणवाद से प्रभावित हो रही है। जो देश आर्थिक रूप से विकासशील है, उनके सामने नये तरह के प्रतिबंध आ रहे हैं।
  • तकनीकी का दुरुपयोग हो रहा है और इसे हथियार जैसा उपयोग किया जा रहा है। इस परिस्थिति में वर्तमान समय की बदलती भू राजनीति और उसमें भारत की भूमिका का अध्ययन काफी महत्वपूर्णहो जाता है।

भू-राजनीति से तात्पर्य

भू-राजनीति के अंतर्गत राज्य के विदेश नीति के स्तर पर भूगोल, अर्थशास्त्र तथा जनानंकी को राजनीति के आधार पर अध्ययन किया जाता है।

एशिया का भूगोल

इस क्षेत्र का भूगोल हिन्द-प्रशांत के संदर्भ में पुनः परिभाषित हो रहा है, जिसके अंतर्गत दो महासागरों, वैश्विक स्तर पर नयी रणनीतियों के निर्माण , सम्पर्क की परियोजनाएं, आर्थिक तथा पर्यावरणीय विषय भी सम्मिलत हो रहे है, जिससे राज्य की सम्प्रभुता, प्रादेशिक एकता भी प्रभावित हो रही है।

भारत की भू-राजनीति की विशेषता

भारत की रणनीतिक स्वायत्ता इस बात पर निर्भर है कि वह किस हद तक अपने राष्ट्रीय हितों को सुरक्षित रख पाता है। क्योंकि भारत आज उदार स्तर पर हर देश से जुड़ा हुआ है।

  • भारत संयुक्त राज्य के साथ लोकतांत्रिक मूल्यों को भी साझा करता है और रूस के साथ भी इसका घनिष्ठ संबंध है। भारत का इजरायल और फिलिस्तीन के साथ भी तथा ईरान, सऊदी अरब के साथ है।
  • अन्य देशों के साथ भी आर्थिक, सैन्य, सुरक्षा सहयोग स्थापित कर रहा है, जिसमें जापान, दक्षिण-पूर्व एशिया भी सम्मिलित है।
  • यूरेशिया के देशों ने देखा है कि भारत को संघाई सहयोग संगठन (SCO) में सम्मिलित करने का क्या लाभ मिला है।
  • भारत के सबसे पहले पड़ोसी नीति से स्पष्ट है। प्रधानमंत्री मोदी अपने पड़ोसियों के साथ साझा संबंधों को स्पष्ट करते हुए ‘सबका साथ सबका विकास’ नीति को आगे बढ़ाया है। जिसको सामूहिक प्रयास समेकित ग्रोथ तथा पारस्परिक विश्वास के रूप में भी देखा जाता है। भारत आई-ओ-आर-ए-, बी-बी-आई-एन- तथा बिम्स्टिेक जैसे संगठनों में सम्मिलित होकर पड़ोसियों के साथ संलग्नता के साथ साथ श्रीलंका, मालदीव के साथ समुद्री सहयोग भी स्थापित किया है।
  • भारत का हिन्द महासागर में हित तो स्वाभाविक है, परन्तु वह अरब सागर तथा पश्चिमोत्तर हिन्द महासागर, बंगाल की खाड़ी और पूर्वोत्तर हिन्द महासागर में भी अपने हितों पर काम कर रहा भारत के रणनीतिक हित के लिए रक्षा कूटनीति उसकी सुरक्षा हेतु अत्यंत आवश्यक है। विश्व के किसी एक क्षेत्र में सकारात्मक या नकारात्मक घटना विश्व के दूसरे क्षेत्रों में भी सकारात्मक या नकारात्मक प्रभाव डालती है।
  • वास्तव में सुरक्षा कूटनीति तथा मजबूत रक्षा बल एक ही सिक्के के दो पहलू है। भारत कभी भी किसी देश के विरुद्ध आक्रामक रूख नहीं अपनाया है। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि भारत आवश्यकता होने पर अपने सैन्य बल का प्रयोग करने से हिचकेगा। उच्च स्तरीय रक्षा आदान-प्रदान, साझा अभ्यास करने तथा मैत्रीपूर्ण संस्कृति तथा खेल के आयोजन भी हमारे रक्षा कूटनीति के महत्वपूर्ण अंग है।
  • क्षेत्रीय सुरक्षा को सुदढ़ करने के लिए सम्पर्क के साधनों को मजबूत करना आवश्यक है। भारत को इसमें सकारात्मक सहयोग करने के लिए प्रतिबद्ध है। प्रधानमंत्री मोदी ने 2017 में रूस से वार्ता में कहा था कि एशिया के देशों का साथ मिलकर काम करने के पर्याप्त अवसर है।

2014-2019 के बीच भारत की विदेश नीति में भू राजनीति

प्रधानमंत्री मोदी अपने प्रथम कार्यकाल 2014-2019 में भारत की विदेश नीति को एक नयी दिशा प्रदान की तथासंबंधों मजबूत करने के साथ साथ नयी सुरक्षा मानकों की स्थापना के साथ साथ भारत की बेहतर पहचान स्थापित करने का कार्य किया तथाविदेश नीति में राष्ट्रीय सुरक्षा को जोड़ने पर ज्यादे महत्व प्रदान किया है।

  • वैश्विक पहल पर प्रधानमंत्री मोदी ने प्राचीन भारतीय मूल्यों जिसमें ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ (विश्व एक परिवार की तरह है) को विदेश नीति का अंग बनाया। साथ ही अमेरिका, जापान तथा रूस के साथ संबंधों को मजबूत करने पर जोर दिया।
  • सबसे पहले पड़ोसी की नीति महत्वपूर्ण थी, परन्तु साथ ही साथ उन्होंने सार्क और बेमेस्टिक को भी महत्व दिया। चीन पर दबाव बनाने के लिए भारत ने क्वाड (भारत, जापान, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया) को महत्व दिया।
  • प्रधानमंत्री मोदी भारतीय विदेश नीति तथा घरेलू वरियताओं में तालमेल बनाया।
  • विदेशों में उन्होंने भारत में विदेश को आमंत्रित किया और ‘मेक इन इंडिया’ विचार को आगे बढ़ाया। इसके साथ ही ‘व्यापार करने का सरल उपाय भी समझाया।
  • बहुपक्षीय स्तर पर भारत, फ्रांस के साथ मिलकर अन्तरराष्ट्रीय सौर समझौते के माध्यम से सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने का भी काम किया।
  • प्रधानमंत्री मोदी के प्रथम कार्यकाल में भारत एक वैश्विक नजरिया तैयार किया, परन्तु अभी भी कुछ ऐसे भू-राजनीतिक विषय है जिस क्षेत्र है जहां काम करना आवशयक है।
  • चीन के लगातार विरोध के कारण भारत नाभिकीय आपूर्ति समूह का सदस्य नहीं बन पाया है।
  • चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा परियोजना जो चीन के बेल्ट रोड परियोजना का अंग है, उसका प्रगति पर होना।
  • पाकिस्तान पोषित आतंकी समूह का भारत पर आक्रमण जिससे पाकिस्तान के साथ संबंध निम्न स्तर पर पहुंच गया है। गंभीर हिंसा के कारण भारत ने दो बार पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक भी किया।
  • 2017 में चीन भारत की सेना का 72 दिनों तक डोकलाम में आमने-सामने बनी रही।
  • वुहान में जब दोनों देशों के नेता अनौपचारिक रूप से मिले तो स्थिति में सुधार आया, परन्तु 2020 भारत के 20 सैनिकों का चीन की सेना के साथ लड़ते हुए शहीद होने से एक बार पुनः संबंधों का विगड़ जाना।
  • प्रधानमंत्री मोदी प्रथम कार्यकाल भारत के महत्वाकांक्षी विदेश
  • नीति को सामने लाया और इसने कार्यकाल में भी इसे आगे
  • बढ़ाया जा रहा है। बहुत सारे देश चीन से सशंकित बने हुए हैं
  • और निवेश के स्तर पर भारत एक मजबूत विकल्प दिखाई दे रहा है।

नयी विश्व व्यवस्था का निर्माण

वैश्वीय तथा क्षेत्रीय वातावरण गतिशील होता है तथाराष्ट्रहित के अतिरिक्त कुछ भी स्थायी नहीं होता। भारत का तेजी से बदलते भू-राजनीति में सीमित नियंत्रण है, जिसमें वह अपने अनुसार नयी विश्व व्यवस्था को आकार दे रहा है।

  • भारत भी विदेश नीति अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने राष्ट्रीय हितों के अनुरूप काम कर रही है। 2020 से वैश्विक व क्षेत्रीय वातावरण काफी अनिश्चित बना रहा।
  • बहुपक्षीय संस्थाएं अपने आपको असहाय महसूस करती रहीं। बहुत सारे देशों की अर्थव्यवस्था कोविड-19 के कारण
  • प्रभावित हुयी है। भारत लम्बे समय से सीमा पार आतंक से प्रभावित है। प्रधानमंत्री मोदी इस समस्या पर अपना ध्यान केन्द्रित किये हुए है।

वैश्विक स्तर पर नये शक्ति संतुलन का विकास

वर्तमान में विश्व में कुछ देशों के समान उभार के कारण बहुध्रुवीय बन रहा है जिसमें संयुक्त राज्य का प्रभाव कम होता हुआ, नयी विश्व व्यवस्था में दिख रहा है।

  • दूसरी तरफ नये शीत युद्ध के संकेत संयुक्त राज्य तथा चीन के मध्य दिखाई दे रहा है तथा हाल में रूस तथा यूक्रेन के बीच युद्ध ने इसे और बढ़ा दिया है, परन्तु संयुक्त राज्य के राष्ट्रपति जो बीडेन ने हाल ही में कहा है कि नये शीत युद्ध को पैदा करना नहीं चाहते। भारत इन स्थितियों पर बारीकी से नजर रखे हुए है।
  • हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में नया वैश्विक संघर्ष का क्षेत्र बन चुका हैसाथ ही क्वार्ड तथा आकुस के गठन से नई वैश्विक संतुलन को साधने का निर्माण हो रहा है, जो नई वैश्विक भू-राजनीतिक व्यवस्था को जन्म दिया है।
  • 2014 के पश्चात भारत सरकार द्वारा भारत के महत्वाकांक्षी विदेश नीति को सामने लाया गया और यह वर्तमान में भी जारी है। बहुत सारे देश चीन से सशंकित बने हुए हैं और निवेश के स्तर पर भारत एक मजबूत विकल्प दिखाई दे रहा है।

वैश्विक नेतृत्वकर्ता के रूप में भारत

अन्तरराष्ट्रीयस्तर पर भारत का महत्व अब किसी भी वैश्विक शक्ति के लिए नजरअंदाज करना मुश्किल है भारत के प्रधानमंत्री द्वारा3डी, जिसका आशय ‘लोकतंत्र, जनांकिकी और मांग के रूप है, के महत्व को वैश्विक जगत के सामने रखा गया।

  • भारत की लोकतान्त्रिक शक्ति, युवा आबादी तथा भारतीय समाज और बाजारों में मांग की स्थिति ने भारत को वैश्विक अगुआ के रूप में स्थापित किया है। भारत ने बड़े पैमाने पर टीकाकरण किया और टीके का निर्माण तथा पडोसी पहले की नीति के आधार पर अपनी वैक्सीन कूटनीति का इस्तेमाल भी किया।
  • भारत विश्व नेतृत्व की ओर अग्रसर है। सभी वैश्विक नेता महामारी के समय इसके टीके के योगदान को स्वीकार रहे है।

निष्कर्ष

कोविड महामारी तथा अफगानिस्तान संकट, रूस - यूक्रेन संकट तथा चीन का भारत तथा अमरीका के साथ तनाव ने विश्व की भूराजनीति को प्रभावित किया है तथानये प्रकार के शक्ति संतुलन बनाये जा रहें है।

  • तेजी से बदलती वैश्विक व्यवस्था की नयी तस्वीरें उभर रही हैं जो देश बहुत ज्यादा करीब नहीं थे अब साझेदार हो रहे हैं और कई साझेदार देश अपने समझौते से मुकर रहे है। छोटे देश अपने को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं और अपने लिए नए साझेदार की तलाश कर रहे हैं।