सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज

कोविड-19 के अनुभव ने भारत में सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (UHC) के लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु आवश्यकताओं पर पुनः विचार करने की अनिवार्यता को रेखांकित किया है। क्योंकि सतत् विकास के लिये एजेंडा-2030 के तहत सभी देशों ने वर्ष 2030 तक सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज प्राप्त करने के लिये प्रतिबद्धत है।

  • सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज न केवल स्वास्थ्य और कल्याण से संबंधित सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये मूलभूत शर्त है बल्कि यह अन्य लक्ष्यों जैसे-गरीबी उन्मूलन (SDG-1), गुणवत्तापूर्ण शिक्षा (SDG-4), लैंगिक समानता और महिला सशत्तफ़ीकरण (SDG-5), उत्कृष्ट कार्य और आर्थिक वृद्धि (SDG-8), बुनियादी ढांचा (SDG-9), असमानता कम करना (SDG-10), न्याय और शांति (SDG-16) आदि की प्राप्ति के लिये भी आवश्यक है।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार न्भ्ब् का अर्थ है कि देश में रहने वाले सभी लोगों को उनकी आवश्यकता के अनुसार और स्थान के अनुसार बिना किसी वित्तीय कठिनाई के स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं तक पहुंच सुनिश्चित कराना है।
  • न्भ्ब् का उद्देश्य लोगों की जाति, धर्म, लिंग, आय स्तर, सामाजिक स्थिति की परवाह किये बिना सभी की वहनीय, उत्तरदायी, गुणवत्तापूर्ण एवं यथोचित स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच सुनिश्चित करना है। स्वास्थ्य सेवाओं में रोगों की रोकथाम, उपचार एवं पुनर्वास देखभाल शामिल है।
  • प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल (PHC) प्रणाली सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज की नींव है। PHC उन्मुख स्वास्थ्य प्रणाली गुणवत्तापूर्ण, व्यापक, निरंतर, समन्वित और जन-केंद्रित सेवाएं प्रदान करने में सक्षम है।

सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज की आवश्यकता

  • सामाजिक न्याय और समावेशी आर्थिक विकासः न्भ्ब् सामाजिक-आर्थिक विकास के लिये एक उत्प्रेरक के साथ ही समता, सामाजिक न्याय और समावेशी आर्थिक विकास के लिये भी आवश्यक है। न्भ्ब् स्वास्थ्य के मानव अधिकार के साथ-साथ व्यापक मानवाधिकार एजेंडे का भी संरक्षक है।
  • प्रभावी स्वास्थ्य देखभाल कवरेजः WHO के अनुमानों के अनुसार भारत में स्वास्थ्य सेवाओं की आवश्यकता वाले लगभग 60 करोड़ लोग की स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं तक पहुंच प्राप्त नहीं है। इसमें मुख्य रूप से बच्चे शामिल हैं, जो महत्वपूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं का कम उपभोग करते हैं।
  • गरीबीः एक अनुमान के अनुसार भारत में 6-3 करोड़ (जनसंख्या का 4-8 प्रतिशत) जनसंख्या स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं के लिए आउट ऑफ पॉकेट खर्च करने के कारण गरीबी रेखा से निचे जीवनयापन करते हैं, जबकि लगभग 60 करोड़ लोग उन स्वास्थ्य सेवाओं को प्राप्त नहीं कर पते, जिन्हें उन्हें जरुरत है।
  • स्वास्थ्य संबंधी परिणामः भारत वर्तमान में भी जीवन प्रत्याशा का निम्न होना, बच्चों की मृत्यु दर उच्च होना और समाज के विभिन्न समूहों के बीच स्वास्थ्य संबंधी असमताएं विद्यमान है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) के अनुसार अधिकांश भारतीय राज्यों में शिशु और बाल मृत्यु दर में गिरावट आई है।
  • परन्तु त्रिपुरा, अंडमान एवं निकोबार द्वीप, मेघालय और मणिपुर में बाल मृत्यु दर के सभी तीनों मामलों में एक समान वृद्धि दर्ज की गई है। 22 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में हुए सर्वेक्षण में बिहार में नवजात मृत्यु दर (34), शिशु मृत्यु दर (47) एवं बाल मृत्यु दर (56) के मामलों में सर्वाधिक मृत्यु दर दर्ज की गई, जबकि केरल में सबसे कम मृत्यु दर है।
  • सामाजिक सुरक्षाः न्भ्ब् से वंचित समूहों के लिए जीवन प्रत्याशा की संभावनाओं में भी सुधार होता है। इस प्रकार इससे घरेलू संपत्ति, लैंगिक, आयु से सम्बंधित, शहरी-ग्रामीण विभाजन और नृजातीय समूहों के बीच असमानताओं को कम किया जा सकता है।

सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज को लागू करने के समक्ष चुनौतियाँ

  • वित्तीय आवंटन की कमीः स्वास्थ्य पर केंद्र और राज्यों का संयुक्त व्यय भारत के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 1-5 प्रतिशत है, जो राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 के तहत निर्धारित 2-5 प्रतिशत के लक्ष्य से बहुत कम है।
  • स्वास्थ्य देखभाल में निजी क्षेत्र की प्रधानताः भारत में कुल जनसंख्या का लगभग 70 प्रतिशत की आवश्यकताओं का पूरा निजी स्वास्थ्य देखभाल सेवा प्रदाताओं द्वारा की जाती है।
  • भौतिक अवसंरचना की कमीः अधिकांश द्वितीयक और तृतीयक स्वास्थ्य देखभाल अस्पताल टियर-1 और टियर-2 शहरों में स्थिति होने के साथ ही डॉक्टरों, नर्सों, अस्पताल में बिस्तरों, पैरामेडिकल और सहायक कर्मचारियों की संख्या वांछित आवश्यकता से बहुत कम है। इसके साथ ही अधिकांश डॉक्टर ग्रामीण क्षेत्रों में प्रैक्टिस करने के प्रति अनिच्छुक होते हैं।
  • स्वास्थ्य संबंधी जागरूकता का अभावः स्वास्थ्य के सामाजिक निर्धारकों जैसे कि शैक्षिक स्थति, खराब कार्यात्मक साक्षरता, आय का कम स्तर आदि स्वास्थ्य जीवन शैली के प्रति खराब दृष्टिकोण का कारण बनते हैं।
  • बीमा पॉलिसियों की सीमित पहुंचः भारत में ग्रामीण क्षेत्रों में 86 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में 82 प्रतिशत लोगों को बीमा कवरेज तक पहुंच सुनिश्चित नहीं हो सका है।

भारत में UHC प्राप्त करने के लिए किया गया प्रयास

  • राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017: भारत सरकार ने न्भ्ब् को प्राप्त करने के लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 तैयार की है। इसमें सार्वजनिक वित्त पोषण के स्तर (वर्ष 2025 तक सकल घरेलू उत्पाद का 2-5 प्रतिशत) को बढ़ाने पर बल दिया है। इसके साथ ही संसाधनों का एक बड़ा हिस्सा प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं के लिए आवंटित करना और अत्यधिक स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं पर व्यय का सामना करने वाले परिवारों के अनुपात को वर्ष 2025 तक वर्तमान स्तर से 25 प्रतिशत कम करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
  • 15वें वित्त आयोग की सिफारिशः 15वें वित्त आयोग ने वर्ष 2022 तक स्वास्थ्य प्रणालियों को मजबूत करने के लिए राज्य के खर्च में वृद्धि से सम्बंधित सिफारिशें की है।
  • आयुष्मान भारत-प्रधान मंत्री जन आरोग्य योजनाः इसे सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज की परिकल्पना को साकार करने के लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 की अनुशंसा के तहत वर्ष 2018 में प्रारंभ किया गया था। यह स्वास्थ्य सेवा आपूर्ति के क्षेत्रक तथा विकेंद्रित दृष्टिकोण से व्यापक आवश्यकता-आधारित स्वास्थ्य सेवा की ओर बढ़ने का एक प्रयास है।