महामारी और मानसिक स्वास्थ्य

वैश्विक स्तर पर प्रसारित कोविड-19 ने लोगों के सम्पूर्ण मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित किया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा जारी एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, कोविड-19 के कारण भारत की लगभग 20 प्रतिशत आबादी मानसिक रोगों से पीड़ित हो सकता है।

मानसिक रोगियों की इतनी बड़ी संख्या के बावजूद भी अब तक भारत में इसे एक रोग के रूप में पहचान नहीं मिल पाई है, आज भी यहां मानसिक स्वास्थ्य की पूर्णतः उपेक्षा की जाती है और इसे काल्पनिक माना जाता है।

  • WHO के एक अनुमान के अनुसार, मानसिक रोग विश्व भर में कुल रोगों का लगभग 15 प्रतिशत है। भारतीय मानसिक स्वास्थ्य देख-रेख अधिनियम, 2017 मानसिक रुग्णता से ग्रस्त व्यक्तियों के लिए मानसिक स्वस्थ्य देख-रेख और सेवाओं के परिदान के दौरान ऐसे व्यक्तियों के अधिकारों का संरक्षण और संवर्धन करने का प्रावधान करता है।
  • मानसिक स्वास्थ्य में हमारा भावनात्मक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक कल्याण शामिल होता है। यह हमारे सोचने, समझने, महसूस करने और कार्य करने की क्षमता को प्रभावित करता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) अपनी स्वास्थ्य की परिभाषा में शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य को भी शामिल करता है।

भारत में मानसिक रोग का वर्तमान परिदृश्य

  • WHO के अनुसार, भारत में मानसिक रोगों से पीड़ित लोगों की सबसे अधिक संख्या मौजूद है।
  • भारत में 15.29 वर्ष की आयु वर्ग के लोगों की मृत्यु का सबसे बड़ा कारण आत्महत्या है।
  • वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में तकरीबन 1.5 मिलियन लोगों में बौद्धिक अक्षमता और लगभग 7.23लाख लोगों में मनोसामाजिक विकलांगता मौजूद है। इसके बावजूद भी भारत में मानसिक स्वास्थ्य पर किये जाने वाला व्यय कुल सरकारी स्वास्थ्य व्यय का मात्र 1.3 प्रतिशत है।
  • वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार मानसिक रोगों से ग्रसित तकरीबन 78.62 फीसदी लोग बेरोजगार हैं।

मानसिक सवास्थ्य को प्रभावित करने वाले कारक

  • जैविक कारकः मानसिक स्वास्थ्य तंत्रिका कोशिकाओं या तंत्रिका मार्गों के निष्पादन से जुड़ा है, जो मस्तिष्क के विभिन्न हिस्सों को जोड़ते हैं। मस्तिष्क के कुछ क्षेत्रों में दोष या चोट कई मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों से जुडी हुई है। अनुवांशिकता, संक्रमण, जन्मपूर्व क्षति तथा खराब पोषण या लैड विषाक्त पदार्थों मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारकों में से एक है।
  • मनोवैज्ञानिक कारकः मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों में जोखिम पैदा करने वाले मनोवैज्ञानिक कारकों में छोटे उम्र में दुर्व्यवहार का सामना, देखभाल करने वाले द्वारा उपेक्षा तथा बच्चे और माता-पिता के बीच असुरक्षित जुड़ाव प्रमुख है।

मानसिक स्वास्थ्य से निपटने में आने वाली चुनौतियाँ

  • मानसिक स्वास्थ्यकर्मियों की कमीः विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, वर्ष 2011 में भारत में मानसिक स्वास्थ्य विकार से पीड़ित प्रत्येक 100,000 रोगियों के लिये 0-301 मनोचिकित्सक और 0-07 मनोवैज्ञानिक थे। वर्ष 2017 में भारत की विशाल जनसंख्या के लिये मात्र 5,000 मनोचिकित्सक और 2,000 से भी कम मनोवैज्ञानिक मौजूद थे।
  • जागरूकता का अभावः मानसिक विकारों के संबंध में जागरूकता की कमी भी भारत के समक्ष मौजूद एक बड़ी चुनौती है। देश में जागरूकता की कमी और अज्ञानता के कारण लोगों द्वारा किसी भी प्रकार के मानसिक स्वास्थ्य विकार से पीड़ित व्यक्ति को ‘पागल’ ही माना जाता है एवं उसके साथ उसकी इच्छा के विरुद्ध बर्ताव किया जाता है।
  • देखभाल की आवश्यक सुविधाओं का अभाव या गुणवत्ता की कमीः भारत में मानसिक रूप से बीमार लोगों के पास या तो देखभाल की आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं और यदि सुविधाएं हैं भी तो उनकी गुणवत्ता अच्छी नहीं है।
  • सामाजिक भ्रांतियाँ: भारत में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी विकारों से जुड़ी सामाजिक भ्रांतियां भी एक बड़ी चुनौती है। उदाहरण के लिये भारत में वर्ष 2017 तक आत्महत्या को एक अपराध माना जाता था और प्च्ब् के तहत इसके लिये अधिकतम 1 वर्ष के कारावास का प्रावधान किया गया था। जबकि कई मनोवैज्ञानिकों ने यह सिद्ध किया है कि अवसाद, तनाव और चिंता आत्महत्या के पीछे कुछ प्रमुख कारण हो सकते हैं।

मानसिक स्वास्थ्य से निपटने के लिए सरकार द्वारा किया गया प्रयास

  • राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रमः भारत सरकार ने वर्ष 1982 में देश में मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति को सुधारने और इस संबंध में जागरूकता लाने के उद्देश्य से राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (NMHP) की शुरुआत की, जिसके मुख्य घटक हैः
    • मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति का इलाज
    • पुनर्वास
    • मानसिक स्वास्थ्य संवर्द्धन और रोकथाम
  • जिला मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रमः वर्ष 1996 में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को देश के प्राथमिक स्तर तक पहुंचाने के लिये जिला मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (DMHP) की शुरुआत की गई।
  • मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017: वर्ष 2017 में लागू किये गए इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य मानसिक रोगों से ग्रसित लोगों को मानसिक स्वास्थ्य सुरक्षा और सेवाएं प्रदान करना है। साथ ही यह अधिनियम मानसिक रोगियों के गरिमा के साथ जीवन जीने के अधिकार को भी सुनिश्चित करता है।
  • राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य नीति 2014: मानसिक स्वास्थ्य देखभाल संस्थाओं तक सार्वभौमिक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य नीति 2014 लागू किया गया।
  • रैपिड एक्शन एडोलसेंट हेल्थ (RAAH) ऐपः इस एप्लीकेशन का निर्माण राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य एवं स्न्नायु विज्ञान संस्थान (National Institute of Mental Health and Neuro-Sciences-NIMHANS) द्वारा किया गया है, जो लोगों को मनोचिकित्सक, मनोवैज्ञानिक, मनोचिकित्सक सामाजिक कार्यकर्ता आदि जैसे पेशेवरों के संबंध में जानकारी प्राप्त करने में सहायता करता है।