विवाह की न्यूनतम आयु के लिए पृथक कानून का औचित्य

दिसंबर 2021 में लोक सभा में बाल विवाह निषेध (संशोधन) विधेयक 2021 पेश किया गया। इस विधेयक में महिलाओं के लिए विवाह की न्यूनतम वैध आयु को 18 वर्ष से बढाकर 21 वर्ष (पुरुषों के बराबर) करने का प्रावधान है।

  • यह प्रस्ताव केंद्र सरकार के एक कार्यबल द्वारा नीति आयोग को प्रस्तुत की गई सिफारिशों पर आधारित है, जिसकी अध्यक्षता जाया जेटली द्वारा किया गया था।
  • भारत में विवाह की न्यूनतम आयु पहली बार शारदा अधिनियम, 1929 द्वारा निर्धारित की गई थी। बाद में इसका नाम परिवर्तित कर बाल विवाह प्रतिबंध अधिनियम (ब्डत्।), 1929 कर दिया गया। वर्ष 1978 में, लड़कियों के लिये विवाह की न्यूनतम आयु 18 वर्ष और लड़कों के लिये 21 वर्ष करने के लिये कानून में संशोधन किया गया था।

प्रारूप विधेयक की प्रमुख विशेषताएँ

  • यह विधेयक बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 में संशोधन करेगा।
  • यह विधेयक विवाह संबंधी कुछ अन्य कानूनों जैसे भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम, 1872, हिन्दू विवाह अधिनियम 1955, मुस्लिम वैयक्तिक विधि (शरियत) अधिनियम 1937, विशेष विवाह अधिनियम 1954 तथा विदेशी विवाह अधिनियम 1969 में संशोधन करता है, जिससे कि उन कानूनों में महिलाओं के विवाह की न्यूनतम आयु को बढ़ाकर 21 वर्ष किया जा सके।
  • यह संविधान की मूल भावना की पूर्ति करेगा। तथा विवाह के संबंध में लैंगिक निष्पक्षता को सुनिश्चित करके महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देगा।

विवाह की आयु बढ़ाने के पक्ष में तर्क

  • लैंगिक निष्पक्षताः सरकार के इस प्रयास ने महिलाओं और पुरूषों, दोनों की विवाह योग्य आयु को एक समान कर देगा।
  • शैक्षणिक सशक्तता बढ़ेगाः कई लड़कियों को विवाह के
  • लिए अपनी पढाई बीच में छोड़नी पड़ती है। इस प्रकार विवाह की न्यूनतम कानूनी आयु को बढाकर 21 वर्ष करने से उन्हें अपनी पढाई जारी रखने का समय और उच्चतर शिक्षा प्रदान करने का अवसर दिया जा सकेगा।
  • महिला एवं बाल कल्याणः विवाह की कम उम्र और इसके परिणामस्वरूप जल्दी गर्भधारण भी माताओं और उनके बच्चों के पोषण स्तर एवं उनके समग्र स्वास्थ्य और मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। बच्चे के जन्म के समय मां की उम्र उसके शैक्षिक स्तर, रह-सहन और स्वास्थ्य स्थिति, महिलाओं की निर्णय लेने की शक्ति को प्रभावित करती है।
  • मानसिक स्वास्थ्यः कम आयु में विवाहित लड़कियों के पास घर की जिम्मेदारियों को संभालने की पर्याप्त समझ नहीं होती है। ऐेसे में विवाहित लड़कियों के मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।
  • आर्थिक सहभागिताः कम आयु में विवाह के कारण भारत की एक-चौथाई महिलाएं अभी भी श्रमबल का हिस्सा नहीं बन पाई है। उल्लेखनीय है कि 130 करोड़ की जनसंख्या में लगभग आधी आबादी महिलाओं की है।
  • बाल विवाह की मामलों में कमी होगीः हाल ही में, जारी की गई राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के आंकड़ों के अनुसार बाल विवाह के मामलों में वर्ष 2015-16 के 27 प्रतिशत से घटकर वर्ष 2019-20 में 23 प्रतिशत पर पहुंच गई है, जो मामूली कमी है। विवाह की आयु बढ़ाने से बाल विवाह के दुष्परिणामों के बारे में जागरूकता बढ़ाने में सहायता मिल सकती है।

विवाह की आयु बढ़ाने की आलोचना

शिक्षा में बढ़ोतरी परन्तु महिलाओं की आर्थिक भागीदारी में कमीः पिछले दो दशकों से उच्चतर शिक्षा में विशेषकर महिलाओं के नामांकन में वृद्धि हुई है।

  • इसलिए महिलाओं के विवाह की आयु का 18 वर्ष होना कोई अवरोधक कारक नहीं है। लेकिन शिक्षा में बढ़ोतरी से महिलाओं की श्रम बल भागीदारी में वृद्धि नहीं हो पाई है।
  • अन्य कानूनों के साथ विरोधाभाषः एक व्यक्ति 18 वर्ष के आयु में मतदान करता है परन्तु अपनी इच्छा से विवाह नहीं कर सकता है। इसके अतिरिक्त वर्ष 2013 के अपराधिक विधि संशोधन अधिनियम के अनुसार, लैंगिक संबंधों के लिए सहमति की आयु 18 वर्ष है।
  • सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा यह अनुमान लगाया जा रहा है कि सहमति की आयु को भी 21 वर्ष किया जाएगा, ताकि इसे महिलाओं के लिए विवाह की संशोधित आयु के समान किया जा सके।
  • लैंगिक निष्पक्षता को सुनिश्चित करने के अन्य उपायः भारत के विधि आयोग ने वर्ष 2018 में पुरुषों के विवाह करने की कानूनी न्यूनतम आयु को 21 वर्ष से 18 वर्ष करने की सिफारिश की थी। इसके साथ ही पुरुषों एवं महिला दोनों के लिए विवाह करने की न्यूनतम आयु को 18 वर्ष निर्धारित करने का सुझाव दिया था।
  • बड़ी संख्या में विवाहों का अपराधीकरणः यह परिवर्तन उन भारतीय महिलाओं के विशाल बहुमत को अनदेखी करेगा, जिन्होंने 21 वर्ष की आयु से पहले शादी की है, बिना कानूनी सुरक्षा के उनके परिवारों को आपराधिक बना देगा। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति जैसे वंचित समुदायों के लड़कियों की कुल संख्या का 70% विवाह कम उम्र में होते हैं, जो इन विवाहों को रोकने के बजाय उन्हें भूमिगत कर देता है।
  • विवाह की औसत आयु में वृद्धिः हाल के सरकारी आंकड़ों के अनुसार महिलाओं के लिए विवाह करने की औसत आयु 22-1 वर्ष है, जो वर्ष दर वर्ष बढ़ी है। यह परिवर्तन स्वैच्छिक है। चूंकि महिलाओं के बीच शिक्षा की दर में सुधार हुआ है, जिसके कारण यह परिवर्तन हुआ है।