तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा का महत्व और चुनैतियां

हाल ही में, यूनेस्को द्वारा "शिक्षा की स्थिति रिपोर्ट 2020: तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण" और राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 ने तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा एवं प्रशिक्षण (TVET) को रेखांकित किया है, जिसका उद्देश्य कौशल भारत मिशन के लिए भारत सरकार को समर्थन प्रदान है।

  • ज्ञातव्य है कि सरकार ने पहले ही कौशल भारत मिशन के तहत एक प्रमुख राष्ट्रीय प्राथमिकता के रूप में कौशल विकास की घोषणा की है।
  • NEP 2020 का उद्देश्य शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के साथ शिक्षा में नवाचार और अनुसंधान को बढ़ावा देना तथा भारतीय शिक्षा प्रणाली को वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा के योग्य बनाना है।

TVET की वर्तमान स्थिति

  • 1000 से अधिक कॉलेजों द्वारा वर्तमान में स्नातक स्तर पर विशेष बैचलर ऑफ वोकेशनल पाठ्यक्रम संचालित किए जा रहे हैं।
  • राज्य-सरकार द्वारा संचालित लगभग 10,158 स्कूल 1.2 मिलियन से अधिक छात्रों को व्यावसायिक शिक्षा प्रदान कर रहे हैं।

तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा का महत्व

  • शिक्षा के सभी क्षेत्रों के संतुलित विकासः राष्ट्रीय विकास में प्रगति करने के लिए यह देखा गया है कि सभी देश, विशेष रूप से विकासशील देश शिक्षा के सभी क्षेत्रों के संतुलित विकास पर विश्वास करते हैं।
  • यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि एक देश को सभी व्यवसायों के लिए शिक्षित और कुशल लोगों के साथ-साथ प्रशिक्षित लोगों की भी आवश्यकता होती है।
  • आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विकास में बढ़ावा देनाः तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा का समाज में किसी भी व्यक्ति की आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक भूमिका को बेहतर बनाने में अहम योगदान होता है।
    • हालांकि शिक्षा का उद्देश्य मात्र कुशल लोगों को तैयार करना ही नहीं है क्योंकि शिक्षा किसी भी व्यक्ति के समग्र विकास पर केन्द्रित है, फिर भी आर्थिक और मानव विकास में इसके योगदान को कम करके नहीं आंका जा सकता है।
    • यह समाज में स्वास्थ्य और पोषण संबंधी सुधार लाता है, आर्थिक विकास में वृद्धि करता है, तकनीकी विकास में तीव्रता लाता है और समग्र रूप से व्यक्ति के जीवन तथा समाज में गुणात्मक सुधार लाता है।
    • कुशल कार्यबल वैश्विक प्रतिस्पर्धा और आर्थिक विकास में अहम भूमिका निभाता है, जो अंततः समाज के विकास में सहायता करता है।
  • श्रमिकों की उत्पादक क्षमता का विकासः वैश्विक स्तर पर हुए कई अध्ययनों से ज्ञात होता है कि शिक्षण और प्रशिक्षण के द्वारा श्रमिकों की उत्पादक क्षमता का विकास होता है और विशेष रूप से शिक्षा के उच्च स्तर वाले लोगों की आय के साधनों में भी वृद्धि होती है।

तकनीकी शिक्षा की विकास के लिए सिफ़ारिशें

  • वर्ष 1948 में अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद ने बोर्ड ऑफ स्टडीज के सहयोग से भारत में पोलिटेक्निक शिक्षा की समीक्षा की और पोलिटेक्निक संस्थानों के काम को लेकर मानदंडों को सुझाव दिया।
  • राधाकृष्णन आयोग (1948-49) के द्वारा देश भर में तकनीकी शिक्षा के विस्तार के लिए व्यावसायिक एवं प्रौद्योगिकी संस्थानों को स्थापित करने की अनुशंसा के साथ-साथ व्यावहारिक प्रशिक्षण और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में अनुसंधान के लिए प्रावधान पर बल दिया।
  • ए. लक्ष्मणस्वामी मुदलियार (1952) की अध्यक्षता वाली आयोग ने बहुउद्देशीय विद्यालयों के साथ जोड़ कर बड़ी संख्या में तकनीकी विद्यालयों को खोलने की आवश्यकता को सुझाव दिया था।
  • कोठारी आयोग (1964-66) के द्वारा राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था और समाज के विकास के लिए विज्ञानं और अनुसंधान को बढ़ावा देने की सिफारिश की।
  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 और 2020 ने शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के साथ शिक्षा में नवाचार और अनुसंधान को बढ़ावा देने को रेखांकित की।

भारत में तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा की आवश्यकता

  • कुशल कार्यबल की कमीः विकसित देशों के 50 प्रतिशत की तुलना में भारत में केवल 2-74 प्रतिशत कार्यशील जनसंख्या ही औपचारिक रूप से तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा में प्रशिक्षित है।
  • विभिन्न क्षेत्रकों पर कोविड के प्रभाव को दूर करने में: भारत में वर्ष 2020-21 में आये कोविड-19 के कारण कई मिलियन युवाओं ने अपनी नौकरी खो दी है। यदि वह तकनीकी रूप से दक्षता ग्रहण कर ले तो किसी अन्य कार्यों के लिए भी उपयोगी हो सकते हैं।
  • जनसांख्यिकीय लाभांशः भारत की जनसांख्यिकीय स्थिति का लाभ उठाने में तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा का उपयोग किया जा सकता है। भारत की कुल जनसंख्या में 66 प्रतिशत कार्यशील लोग (15-59 वर्ष) है।

अन्य लाभ

  • मेक इन इंडिया आदि जैसी सरकार की पहलों का समर्थन करने में।
  • उत्पादकता में सुधार करने में।
  • उद्योग विशिष्ट आवश्यकता को पूरा करने में।
  • भारत की प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ावा देने में।

भारत में TVET के प्रसार में मौजूदा चुनौतियाँ

  • लाभान्वित होने वाले युवाओं की धीमी रफ्रतारः इससे युवा उतना लाभान्वित नहीं हो पा रहे हैं, जितना उन्हें होना चाहिए। हालांकि, उन्हें इन पाठ्यक्रमों से जोड़ा तो गया है, परन्तु उन्हें किस प्रकार की नौकरी और व्यवसाय के लिए प्रशिक्षित किया जाना है, इसकी पर्याप्त जानकारी उन्हें प्रदान नहीं की जाती है।
  • नकारात्मक धारणाः छात्रों और अभिभावकों जैसे प्रमुख हितधारकों के मध्य यह धारणा व्याप्त है कि TVET नियमित स्कूल और कॉलेज की शिक्षा की तुलना में कम महत्वपूर्ण होते हैं तथा यह केवल उन युवाओं के लिए उपयुक्त है, जो मुख्यधारा की शिक्षा को प्राप्त करने में असक्षम हैं।
  • महिलाओं की अल्प भागीदारीः श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी अत्यंत कम (26-5 प्रतिशत) है। इसके अतिरिक्त महिलाओं को आय असमानता का भी सामना करना पड़ता है।
  • डिजिटल अंतरालः कोविड-19 महामारी के दौरान डिजिटल अंतराल उभरकर सामने आया है, जो भारत में TVET के प्रसार के लिए एक गंभीर चुनौती है।
  • निम्नस्तरीय सेवा शर्तेः अपेक्षाकृत कम वेतन, अनियमित वेतन भुगतान, सामाजिक सुरक्षा और अन्य लाभों की कमी तथा निम्नस्तरीय करियर संभावनाओं जैसे मुद्दों के कारण प्रशिक्षक/ मूल्यांकनकर्ता के रूप में करियर बनाने की ओर लोगों का आकर्षण कम है।