जनजातियों में स्वास्थ्य संबंधी समस्या एवं चुनौतियाँ

हाल ही में स्वास्थ्य मंत्रालय और जनजातीय मामलों के मंत्रालय द्वारा गठित विशेषज्ञ समिति द्वारा सरकार को सौंपी गईरिपोर्ट से ज्ञात होता है कि जनजातीय समुदाय संक्रामक रोग (मलेरिया, तपेदिक, कुष्ठ रोग आदि), गैर-संक्रामक रोग (मधुमेह, हृदय रोग एवं उच्च रक्तचाप), मानसिक तनाव तथा अन्य स्वास्थ्य समस्याएं से ग्रसित हैं।

जनजातीय स्वास्थ्य

  • जनजातीय लोग रोगों के तीसरे बोझ से ग्रसित हैं:
  • ये कुपोषण और संक्रामक रोगों जैसे- मलेरिया, तपेदिक, एचआईवी, हेपेटाइटिस, वायरल बुखार से पीड़ित हैं। मलेरिया के कुल मामलों में से 30 प्रतिशत और इसके कारण होने वाली मृत्यु के 60 प्रतिशत मौतें भी जनजातियों से सम्बंधित हैं।
  • अनुवांशिक विकार और जीवन शैली संबंधी रोग, जैसे- उच्च रक्तचाप, मधुमेह, श्वसन आदि रोग से ग्रसित है। इसके अतिरिक्त सिकल सेल एनीमिया के रूप में अनुवांशिक विकार 1.40 प्रतिशत जनजातीय जनसंख्या को प्रभावित करता हैं।
  • मानसिक रोग और व्यसनः राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-3 के अनुसार 15-54 वर्ष की आयु के 56 प्रतिशत गैर-जनजातीय पुरषों की तुलना में 72 प्रतिशत जनजातीय पुरुष तम्बाकू का सेवन करते हैं।
  • जीवन प्रत्याशा, मत्री मृत्यु दर, किशोर स्वास्थ्य, बाल रुग्णता, मृत्यु दर और पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर से सम्बंधित प्रदर्शन राष्ट्रीय औसत की तुलना में 10-25 प्रतिशत कम है। उदहारण के लिएः
  • 67 वर्ष के राष्ट्रीय औसत की तुलना में जनजातियों की जीवन प्रत्याशा 63.9 प्रतिशत है।
  • 50 प्रतिशत किशोर अनुसूचित जाति लड़कियां अल्प वजन की हैं और उनका BMI 18.5 से कम है।
  • 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों में 62 की राष्ट्रीय औसत की तुलना में मृत्यु दर 74 है।
  • लगभग 80 प्रतिशत जनजातीय बच्चे अल्पोषित है और एनीमिया से पीड़ित हैं, जबकि भारत में पांच वर्ष से कम आयु के 40 प्रतिशत जनजातीय बच्चे ठिगनेपन से ग्रसित हैं।

भारत में जनजातीय जनसंख्या

  • वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार अनुसूचित जनजातियों की कुल जनसंख्या 10,42,81,034 है, जो भारत की जनसंख्या का 8.6 प्रतिशत है।
  • 90 प्रतिशत से अधिक जनजातीय लोग ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करते हैं। सर्वाधिक जनजातीय जनसंख्या मध्य प्रदेश में हैं। इसके पश्चात महाराष्ट्र, ओडिशा एवं राजस्थान का स्थान है।
  • वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार लगभग 40.6 प्रतिशत जनजातीय लोग गरीबी रेखा के निचे जीवन-यापन करते हैं।
  • लगभग 41 प्रतिशत जनजातीय लोग निरक्षर है।

जनजातीय समुदायों में खराब स्वास्थ्य के कारण

  • स्वास्थ्य अवसंरचना का अभावः जनजातीय समुदाय सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं पर बहुत अधिक निर्भर होते हैं। इसके बावजुद लगभग आधे राज्यों में सार्वजनिक स्वास्थ्य केन्द्रों, उप-केन्द्रों, सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों की 27-40 प्रतिशत की कमी है।
  • इससे जनजातीय समुदाय के लोगों को स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच सुनिश्चित नहीं हो पाता है या कम पहुंच हो पाता है।
  • पारंपरिक प्रथाएँ: मातृ और बाल मृत्यु दर के प्रमुख कारण प्रसव की अस्वास्थ्यकर एवं प्राचीन प्रथाएं तथा महिलाओं द्वारा आयरन, कैल्सियम एवं विटामिन युक्त कोई विशिष्ट पौष्टिक आहार नहीं लिया जाना इत्यादि पाए गए हैं।
  • मानव संसाधन का अभावः प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में लगभग 33 प्रतिशत डॉक्टरों, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में लगभग 84 प्रतिशत विशेषज्ञों की कमी है। इसके साथ ही स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं, नर्सिंग कर्मचारियों, आशा कार्यकर्ताओं एवं स्थानीय रूप से प्रशिक्षित युवाओं के संदर्भ में स्वास्थ्य मानव संसाधनों की कमी है।
  • जागरूकता का अभावः जनजातीय समुदायों में चिकित्सा की पश्चिमी प्रणालियों के प्रति विश्वास का अभाव है तथा वे अलौकिक इलाज पर विश्वास करते हैं। यही कारण है कि जनजातीय समुदायों में शिशुओं और बच्चों का टीकाकरण एवं रोग-प्रतिरक्षण अपर्याप्त हुआ है।
  • अन्य कारणः जनजातीय समुदायों की जनसंख्या स्तर के आंकड़ों का अभाव, केद्रिकृत नीति निर्माण एवं कार्यान्वयन, प्रक्रिया में नगण्य सहभागिता, दुर्बल राज्य-स्तरीय हस्तक्षेप आदि ने भी जनजातीय समुदार्यों में स्वास्थ्य की निराशाजनक स्थितयों को बढ़ावा दिया है।

निष्कर्ष

  • सहस्राब्दी विकास लक्ष्यों (2015) को प्राप्त करने के लिए भारत में जनजातीय समुदायों के लिये स्वास्थ्य और पोषण के संबंध में ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है, जिससे वर्ष 2025 तक जनजातीय समुदायों को स्वास्थ्य, स्वच्छता और पोषण की स्थिति को संबंधित राज्यों की गैर-जनजातीय समुदायों के समकक्ष स्तर पर लाया जा सकता है। वर्ष 2025 तक सार्वजनिक स्वास्थ्य कवरेज (2011) पर उच्च स्तरीय विशेषज्ञ समूह द्वारा निर्धारित मानदंडों के अनुरूप अनुसूचित क्षेत्रों में स्वास्थ्य देखभाल के प्रावधान के लिये आवश्यक मानव संसाधनों का सृजन करना सरकार का लक्ष्य होना चाहिए।