अंतर-धार्मिक विवाह तथा व्यक्तिगत स्वतंत्रता

हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश 2020 जारी करने के साथ ही देश में कई अन्य राज्यों की सरकारें भी ऐसे ही कानूनों को लागू करने की प्रक्रिया में हैं।

  • उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जारी अध्यादेश बल पूर्वक, प्रभाव दिखाकर, प्रलोभन, धोखाधड़ी या विवाह के उद्देश्य से किये जाने वाले किसी भी धर्मांतरण को प्रतिबंधित करता है, साथ ही इस तरह के विवाह को अवैध घोषित किये जाने का प्रावधान भी करता है। भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र होने के बावजूद कई बार अलग-अलग धर्मों के हितों की रक्षा के लिए किये जाने वाले प्रयास उनके बीच विभाजन की रेखा को और अधिक स्पष्ट कर देते हैं।
  • हालांकि इस कानून को यह कहते हुए आलोचना की गई है कि यह किसी व्यक्ति के अपनी पसंद से विवाह करने के अधिकार का उल्लंघन के साथ ही जीवन, स्वायत्तता तथा गोपनीयता के मौलिक अधिकार के खिलाफ भी है। इसके अलावा इस कानून की जड़ें पितृसत्ता और सांप्रदायिकता से जुड़ी हुई प्रतीत होती है, जो सामाजिक सौहार्द तथा व्यक्तिगत गरिमा के सम्मान को प्रभावित कर सकती है।

अंतरधार्मिक विवाह क्या है?

भारत में यदि दो अलग-अलग धर्मों के लोग विवाह करना चाहते हैं तो वे या तो ‘विशेष विवाह अधिनियम, 1954’ के तहत विवाह कर सकते हैं अथवा उनमें से कोई एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के धर्म को अपना ले और संबंधित धर्म के रीति-रिवाजों के तहत विवाह कर वे अपने विवाह का पंजीकरण करा सकते हैं।

अध्यादेश और मौलिक अधिकार से सम्बंधित मुद्दे

उच्चतम न्यायालय के निर्णयों के विपरीतः शफीन जहां बनाम अशोक केएम (2018) मामले में उच्चतम न्यायालय ने ‘अपनी पसंद के व्यक्ति से विवाह के अधिकार’ कोभारतीय संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत प्राप्त अधिकारों का हिस्सा बताया था। साथ ही उच्चतम न्यायालय ने के- एस- पुट्टास्वामी बनाम भारतीय संघ (2017) मामले का जिक्र करते हुए कहा कि पारिवारिक जीवन के चुनाव का अधिकार एक मौलिक अधिकार है।

  • उच्चतम न्यायालय के अनुसार, संविधान किसी भी व्यक्ति को अपनी पसंद का जीवन जीने या विचारधारा को अपनाने की क्षमता/स्वतंत्रता की रक्षा करता है। अतः एक व्यक्ति द्वारा अपनी पसंद के विवाह करने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद-21 का अभिन्न अंग है।
  • इसके विपरीत हाल ही उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा लाया गया अध्यादेश उच्चतम न्यायालय के इन निर्णयों से मेल नहीं खाता क्योंकि यह एक भावी जीवनसाथी के रूप में पसंद करने के किसी व्यक्ति के अधिकार को सीमित करता है, इसके अनुसार किसी महिला/पुरुष का पति/पत्नी केवल वही हो सकता है, जो राज्य द्वारा अनुमोदित होगा।

व्यक्तिगत स्वतंत्रता के खिलाफः भारतीय संविधान के अनुच्छेद-25-28 प्रावधान के अनुसार किसी भी भारतीय नागरिक को अपनी पसंद के किसी भी धर्म को मानने, उसके नियमों का पालन करने और उसका प्रचार करने का अधिकार प्रदान करता है।

  • जबकि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा लाया गया हालिया अध्यादेश किसी व्यक्ति द्वारा अपनी पसंद के जीवनसाथी का चुनाव करने में हस्तक्षेप कर उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन करता है।

महिलाओं के निर्णय लेने के अधिकार को सिमित करताः वर्तमान में भी कानूनों में गहरी पितृसत्तात्मकता की जड़ें विद्यमान हैं, जिसके तहत महिलाओं को परिपक्व नहीं माना जाता और उन्हें माता-पिता तथा सामुदायिक नियंत्रण के अंतर्गत रखा जाता है। यदि उनके जीवन से संबंधित महत्त्वपूर्ण फैसलों पर उनके अभिभावकों की सहमति न हो तो उन्हेंअपने जीवन के फैसले लेने के अधिकार से भी वंचित रखा जाता है।