राष्ट्र संघ ने वर्ष 2020 में अपनी स्थापना के 75 वर्ष पूर्ण किए परन्तु कोविड-19 महामारी ने संयुक्त राष्ट्र की व्यवस्था की संरचनात्मक कमजोरी को उजागर कर दिया है। वर्तमान समय में दुनिया के ज्यादातर देश द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात स्थापित इस संगठन में नई विश्व व्यवस्था तथा उभरी नई चुनौतियों के कारण इस व्यवस्था में परिवर्तन की मांग करते रहे है, ताकि इसकी भूमिका को तर्कसंगत व प्रभावी बनाया जा सके।
संयुक्त राष्ट्र के समक्ष चुनौतियाँ
संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा पारित किये जाने वाले प्रस्ताव बाध्यकारी प्रकृति के नहीं होते हैं जो महासभा के लिए सबसे बड़ी कमजोरी है।
सुधारों की आवश्यकता
संयुक्त राष्ट्र में सुधार के क्षेत्र
सुरक्षा परिषदः संयुक्त राष्ट्र महासभा के 75वें सत्र में अनेक सदस्यों द्वारा 15 सदस्यी सुरक्षा परिषद को अधिक लोकतांत्रिक और प्रतिनिधि बनाने की बात कही है।विशेषकर जी-4 देशों (जापान, जर्मनी, भारत और ब्राजील) के द्वारा, जो सुरक्षा परिषद में अपनी स्थायी सदस्यता की वकालत करते हैं। लेकिन सुरक्षा परिषद के 5 स्थायी सदस्य अपनी वीटो शक्तियों को अन्य के साथ साझा करने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं। स्थायी सदस्य द्वारा अपनी इन शक्तियों का प्रयोग अकसर अपने भू-राजनीतिक हितों को साधने के लिए किया जाता रहा है।
नीति-निर्णयनः ऐसे ही नीति-निर्णयन जो संपूर्ण विश्व को प्रभावित करते हो या किसी देश विशेष के प्रति लिए गए निर्णय के अंतिम स्वीकृति महासभा में ही वोटिंग के आधार पर तय की जाए और महासभा के निर्णय को ही अंतिम माना जाए। प्रायः कई मामलों में यह देखा गया है कि किसी देश के संदर्भ में लिया गया निर्णय संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सदस्य देश अपने हितों के अनुसार वीटो का प्रयोग करते हैं जिसके कारण कई मामलों में संयुक्त राष्ट्र का उद्देश्य विफल हो जाता है।
सुधार पर भारत का पक्ष