संयुक्त राष्ट्र में सुधार और भारत

राष्ट्र संघ ने वर्ष 2020 में अपनी स्थापना के 75 वर्ष पूर्ण किए परन्तु कोविड-19 महामारी ने संयुक्त राष्ट्र की व्यवस्था की संरचनात्मक कमजोरी को उजागर कर दिया है। वर्तमान समय में दुनिया के ज्यादातर देश द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात स्थापित इस संगठन में नई विश्व व्यवस्था तथा उभरी नई चुनौतियों के कारण इस व्यवस्था में परिवर्तन की मांग करते रहे है, ताकि इसकी भूमिका को तर्कसंगत व प्रभावी बनाया जा सके।

संयुक्त राष्ट्र के समक्ष चुनौतियाँ

संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा पारित किये जाने वाले प्रस्ताव बाध्यकारी प्रकृति के नहीं होते हैं जो महासभा के लिए सबसे बड़ी कमजोरी है।

  • संयुक्त राष्ट्र महासचिव के कार्य और दायित्व में अस्पष्टता जिससे नीति निर्माण के प्रभावित होने का डर रहता है।
  • संयुक्त राष्ट्र आर्थिक रूप से सदस्य देशों से होने वाले फंडिंग पर निर्भर करता है जिससे इसकी निष्पक्षता पर प्रश्चिन्ह उत्पन्न होता है
  • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के वीटो पावर पर नियंत्रण ना होना।
  • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) का तात्कालिक वैश्विक राजनीति के अनुरूप प्रतिनिधित्व नहीं होना।
  • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के समावेशी प्रतिनिधित्व और पारदर्शी न होने के कारण सदस्य देशों के द्वारा वीटो के अधिकार का दुरुपयोग करना।
  • प्रमुख वैश्विक संघर्ष जैसे अमेरिका इरान परमाणु विवाद, चीन- ताइवान हांगकांग विवाद, रूस यूक्रेन जैसे विवादों, वर्तमान समय में एक ओर अमेरिका और दूसरी ओर रूस एवं चीन के गठजोड़ के बीच संघर्षपूर्ण स्वरूप फिर से विकसित हो जाने पर इसकी सीमित भूमिका तथा वैश्विक शक्तियों द्वारा इस संगठन को नजरअंदाज किया जाना।
  • यूएनओ में वैश्विक आर्थिक शक्तियों जैसे अमेरिका, रूस, चीन जैसे देशों का प्रभाव का बढ़ना।
  • कोविड-19 महामारी के दौरान प्रभावी प्रतिक्रिया करने में असफल रहना और सुरक्षा परिषद में चीन ने अपने वीटों का प्रयोग करके कोरोना वायरस की उत्पत्ति को लेकर होने वाली गंभीर चर्चा पर ही रोक लगा देना इसकी संरचनात्मक कमजोरी को उजागर करता है।

सुधारों की आवश्यकता

  • वैश्विक स्तर पर लोकतंत्र के सिद्धांतों को कायम रखने के लिए एक अधिक न्यायसंगत विश्व व्यवस्था की आवश्यकता है।
  • इसे अधिक समावेशी बनाने हेतु अफ्रीकी देशों जैसे विकासशील देशों को बहुपक्षीय संस्थानों में हितधारक बनाने और निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल होने की आवश्यकता है।
  • नई उभरती चुनौतियों जैसे कोरोना महामारी, बढ़ते संरक्षणवाद, आतंकवाद की बढ़ती घटनाओं और जलवायु परिवर्तन के खतरे के दौर में, बहुपक्षीय प्रणाली को और अधिक लचीला और उत्तरदायी बनाए जाने की आवश्यकता है।

संयुक्त राष्ट्र में सुधार के क्षेत्र

सुरक्षा परिषदः संयुक्त राष्ट्र महासभा के 75वें सत्र में अनेक सदस्यों द्वारा 15 सदस्यी सुरक्षा परिषद को अधिक लोकतांत्रिक और प्रतिनिधि बनाने की बात कही है।विशेषकर जी-4 देशों (जापान, जर्मनी, भारत और ब्राजील) के द्वारा, जो सुरक्षा परिषद में अपनी स्थायी सदस्यता की वकालत करते हैं। लेकिन सुरक्षा परिषद के 5 स्थायी सदस्य अपनी वीटो शक्तियों को अन्य के साथ साझा करने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं। स्थायी सदस्य द्वारा अपनी इन शक्तियों का प्रयोग अकसर अपने भू-राजनीतिक हितों को साधने के लिए किया जाता रहा है।

  • महासभा संयुक्त राष्ट्र द्वारा पारित किये जाने वाले प्रस्ताव बाध्यकारी प्रकृति के नहीं होते हैं जो महासभा के लिए सबसे बड़ी कमजोरी है। महासभा में 193 सदस्य देशों के द्वारा पारित प्रस्ताव भी सुरक्षा परिषद के 5 स्थायी सदस्यों की सहमति पर ही निर्भर करते हैं। जिस पर सुधार किये जाने की आवश्यकता है।
  • वित्तीयन में: संयुक्त राष्ट्र को होने वाले फंडिंग में विविधता लाने के साथ-साथ वित्त के नए स्रोतों की तलाश की जानी चाहिए जिससे संयुक्त राष्ट्र महासचिव समेत अन्य हितधारक निष्पक्ष रुप से नीति- निर्णयन कर सके।

नीति-निर्णयनः ऐसे ही नीति-निर्णयन जो संपूर्ण विश्व को प्रभावित करते हो या किसी देश विशेष के प्रति लिए गए निर्णय के अंतिम स्वीकृति महासभा में ही वोटिंग के आधार पर तय की जाए और महासभा के निर्णय को ही अंतिम माना जाए। प्रायः कई मामलों में यह देखा गया है कि किसी देश के संदर्भ में लिया गया निर्णय संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सदस्य देश अपने हितों के अनुसार वीटो का प्रयोग करते हैं जिसके कारण कई मामलों में संयुक्त राष्ट्र का उद्देश्य विफल हो जाता है।

सुधार पर भारत का पक्ष

  • भारत सुरक्षा परिषद् के अस्थायी और स्थायी दोनों ही तरह के सदस्यों की संख्या में बढ़ोत्तरी चाहता है।
  • भारत सुरक्षा परिषद को विस्तार का पक्षधर है क्योंकि इससे यह ज्यादा प्रतिनिधिमूलक होगी। भारत का मानना है की सुरक्षा परिषद् के काम काज की समीक्षा विश्व बिरादरी के कामों पर निर्भर करती है इसलिए सुरक्षा परिषद के पुनर्गठन की जरूरत है।
  • भारत सुरक्षा परिषद् में विकासशील देशों को शमिल किये जाने का पक्षधर है।